बच्चों के प्रिय केशव शंकर पिल्लै Bachchon Ke Priya Keshav Shankar Pillai Summary Bachchon Ke Priya Keshav Shankar Pillai Question Answer Class 8Hindi
बच्चों के प्रिय केशव शंकर पिल्लै - आशा रानी व्होरा
बच्चों के प्रिय केशव शंकर पिल्लै पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ बच्चों के प्रिय केशव शंकर पिल्लै लेखक आशा रानी व्योरा जी के द्वारा लिखित है। इस पाठ में केशव जी के पूरी जीवन में किए गए कार्य को बताया गया है। जिसके कारण वे पूरे दुनीया में जाने जाते हैं। केशव जी Bachchon Ke Priya Keshav Shankar Pillai का जन्म त्रिवेन्द्रम में सन् 1902 में हुआ था। त्रिवेंद्रम महाविद्यालय से बी.ए. करने के बाद उन्होंने मुंबई में सिंधिया शिपिंग कम्पनी के संस्थापक के निजी सचिव के रूप में काम किया। साथ में कानून की पढ़ाई और चित्रकला का अभ्यास भी करते थे। कार्टून बनाना उनका शौक था। 'बॉम्बे-क्रॉनिकल' में जब उनकी कार्टून छपी तो हिंदुस्तान टाइम्स में उन्हें कार्टूनिस्ट की नौकरी मिली सन् 1932 से 1946 तक उन्होंने वहाँ काम किया। उनके कार्टून ने सभी का ध्यान आकर्षित किया और शंकर जी प्रसिद्ध होते गए। सन् 1946 में वे इंडियन न्यूज क्रॉनिकल में चले गए जो वर्तमान इंडियन एक्सप्रेस है। और वहीं उन्होंने अपनी पत्रिका शंकर्स वीकली निकालने की शुरुआत की। यह अपने-आप में अनूठी कार्टून पत्रिका थी। शंकर्स वीकली में बड़े लोगों की छोटी दुनिया के बारे में हास्य-व्यंग किया गया था। उसके शीर्षक बड़ा साहब और मेम साहब था। जो लोगों के द्वारा बहुत पसंद किया गया।25 वर्ष पहले शंकर इन बड़े लोगों की दुनिया को छोड़कर मासूम और छोटे-छोटे बच्चों की दुनिया में चले गए। फिर उन्होंने भोले-भाले बच्चों की खुशी के लिए कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने पहली बार शंकर्स
केशव शंकर पिल्लै |
आज दिल्ली में चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट, बाल-पुस्तकालय, गुड़िया घर है, नया हॉबी सेंटर है। शंकर जी ने गुड़िया घर में विभिन्न-विभिन्न देशों के वेशभूषा वाले गुड़ियों का संग्रह करके रखा है | भारत के सभी संस्कृति और वेशभूषा वाले गुड़िया संग्रहालय में मौजूद हैं। जो बहुत महंगे और आकर्षक भी हैं | लोगों को पुराने सिक्के, डाक टिकट चित्र आदि चीजें संग्रह करने का शौक होता है, लेकिन शंकर जी ने बच्चों के लिए दुनिया भर के सुंदर-सुन्दर गुड़ियों का संग्रह कर उसे रखा है। जिस तरह शंकर जी ने दुनिया भर के कलापूर्ण , सुन्दर गुड़ियों की खोज की उसी तरह से उन्होंने विश्व भर की चुनी हुई हजारों बाल पुस्तकों का भी संग्रह किया है। चिल्ड्रन बूक ट्रस्ट हर साल हजारों पुस्तकों प्रकाशन भी करता है। इन पुस्तकों में भारत की लोकगाथाएँ, पौराणिक कथाओं, पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियां तथा ज्ञान-विज्ञान की कहानियां होती है।
सन् 1954 में शंकर जी को हंगरी की एक गुड़िया उपहार में मिली | वह गुड़िया उन्हें बहुत पंसद आयी तभी से उन्होंने भारतीय बच्चों के लिए विदेशों से गुडिया ला-ला कर रखना शुरू कर दिया। और प्रदर्शनी लगाकर बच्चों को दिखाया जाता था | लेकिन गुड़ियों की संख्या ज्यादा होने के कारण शंकर जी ने संग्रहालय बनाने की सोची। और आज दिल्ली में जो विशाल गुड़िया घर है, वह उन्हीं की देन है। वहाँ एक वर्कशॉप भी है, जहाँ गुड़ियों का निर्माण होता है, जिसे विदेश में बच्चों को भेजा जाता है। हर साल उस गुड़िया घर को देखने लाखों बच्चें जाते हैं | वहाँ 85 देशों का प्राचीन और आधुनिक गुड़ियों का विशाल संग्रह है। इसके माध्यम से बच्चे भारत के हर राज्य और विदेशों के रहन-सहन , तौर-तरीके, फैशन, वेशभूषा एवं रीति-रिवाजों से परिचित हो सकते हैं। गुड़िया घर में हंगरी की उन, कातती वृद्धाएँ, टर्की की संगीतज्ञ-टोली, स्पेन कि प्रसिद्ध 'साँड़' से लड़ाई, जापान का चाय उत्सव और काबुकी नर्तकियां, इंग्लैंड का राजपरिवार शेक्सपियर जैसे कवि, अफ्रीका और आदिवासी भारत की सांस्कृतिक झाँकियाँ, देश-विदेश के बच्चों का कक्ष, चंद्र तल पर मानव आदि का आकर्षक संग्रह है। यह गुड़ियाएँ हँसती-बोलती, काम करती, चलती-फिरती, सजीव सी लगती है।यहाँ बच्चों का भरपूर मनोरंजन हो जाता है। शंकर जी की और भी योजनाएं थी, जैसे आर्ट क्लब और बेबी सेंटर चलाना भारतीय बच्चे नामक पुस्तक की लम्बी सीरीज निकालना। हर वर्ष देश के बच्चों को 3-4 दिन की छुट्टी में एक जगह मिलने का अवसर देना | इस योजना को शंकर जी 'बच्चों का जनतंत्र' नाम देना चाहते थे। इस तरह केशव शंकर जी भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गए। उन्होंने बच्चों को ढेर सारा प्यार दिया और ढेर सारे बच्चों का प्यार भी पाया...||
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Bachchon Ke Priya Keshav Shankar Pillai Question Answer
प्रश्न-1 गुड़ियों का संग्रह करने में केशव शंकर पिल्लै को कौन-कौन सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, गुड़ियों के संग्रह में केशव शंकर पिल्लै को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। एक तो गुड़िया बहुत मंहगी थी | उनको रखने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत पड़ती थी। उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने से उसके खराब होने का डर रहता था और उन्हें सुरक्षित रखने के लिए बड़े जगह की आवश्यकता थी |
प्रश्न-2 वे बाल चित्रकला प्रतियोगिता क्यों करना चाहते थे ?
उत्तर- शंकर पिल्लै जी बाल चित्रकला प्रतियोगिता बच्चों की खुशी के लिए कराते थे। और उनके प्रतिभा को निखारने के लिए यह प्रतियोगिता रखते थे। जिससे बच्चे अपनी प्रतिभा को पहचान सकें |
प्रश्न-3 केशव शंकर पिल्लै ने बच्चों के लिए विश्वभर की चुनी हुई गुड़ियों का संग्रह क्यों किया ?
उत्तर- केशव शंकर पिल्लै ने गुड़ियों का संग्रह भारतीय बच्चों के लिए किया । ताकि बच्चे यह देखकर खुश हो जाए और वे अलग-अलग जगह जी वेशभूषा, रीति-रिवाज, फैशन , संस्कृति के बारे में परिचित हो सकें |
प्रश्न-4 केशव शंकर पिल्लै हर वर्ष छुट्टियों में कैंप लगाकर सारे भारत के बच्चों को एक जगह मिलने का अवसर देकर क्या करना चाहते थे ?
उत्तर- केशव शंकर पिल्लै हर वर्ष छुट्टियों में कैंप लगाकर सारे भारत के बच्चों को एक जगह मिलने का अवसर देकर वह बच्चों का विकास करना चाहते थे। उन्हें आपस में मिलाकर जनतंत्र को बढ़वा देना चाहते थे।
प्रश्न-5 केशव ने कार्टून बनाना, गुड़ियों व पुस्तकों का संग्रह करना, पत्रिका में लिखना व पत्रिका निकालना, बाल चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन व बच्चों का सम्मेलन कराना जैसे तरह-तरह के काम किए। उनको किसी एक काम के लिए भी तरह-तरह के काम करने पड़े होंगे। अब बताओ कि ---
(क) कार्टून बनाने के लिए उन्हें कौन-कौन से काम करने पड़े होंगे ?
उत्तर- कार्टून बनाने के लिए उन्हें चित्रकारी सीखना पड़ा होगा। फिर तरह-तरह के थीम तैयार किए होंगे। कहानी के पात्रों को कार्टून के माध्यम से दर्शाया गया होगा।
(ख) बच्चों के लिए बाल चित्रकला प्रतियोगिता कराने के लिए क्या-क्या करना पड़ा होगा ?
उत्तर- प्रतियोगिता के लिए सरकार से आदेश मांगना पड़ा होगा | प्रतियोगिता के लिए सारे प्रबंध करना पड़ा होगा। प्रतियोगिता की जानकारी लोगों तक पहुँचाने के लिए अख़बारों और पत्रिकाओं में विज्ञापन प्रेषित करवानी पड़ी होगी। बच्चों के लिए थीम तैयार करना, पुस्तक, रंग ,चार्ट, आदि सभी व्यवस्था करनी पड़ी होगी |
प्रश्न-6 “अनेक देशों के बच्चों की यह फ़ौज अलग-अलग भाषा, वेशभूषा में होकर भी एक जैसी ही है। कई देशों के बच्चों को इकट्ठा कर दो, वे खेलेंगे या लड़ेंगे और यह लड़ाई भी खेल जैसी ही होगी। वे रंग, भाषा या जाति पर कभी नहीं लड़ेंगे।”
ऊपर के वाक्यों को पढ़ो और बताओ कि ---
(क) यह कब, किसने, किसमें और क्यों लिखा ?
उत्तर- यह जवाहर लाल नेहरू ने लिखा था। सन् 1950 के ‘शंकर्स वीकली’ के बाल विशेषांक में उन्होंने ये बात लिखी थी। शंकर पिल्लै जी का विचार था कि बच्चों के लिए बाल चित्रकला प्रतियोगिता रखी जाए और यह प्रतियोगिता नेहरू जी के सहमती से रखी भी गई यह विचार नेहरू जी को पसंद आया क्योंकि वे बच्चों से प्रेम करते थे |
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बच्चों के प्रिय केशव शंकर पिल्लै पाठ से संबंधित शब्दार्थ
• निजी - स्वयं का, व्यक्तिगत
• हस्तियॉं - विशिष्ट लोग
• अनूठी - अनोखी, अद्भुत
• उपेक्षित - जिसकी ओर पूरी तरह ध्यान न दिया जाए
• विशेषांक - विशेष प्रकार का अंक, पत्रिका
• अंतर्राष्ट्रीय- विभिन्न राष्ट्रों के बीच
• कलापूर्ण - कला से युक्त
• पौराणिक - पुराणों से सम्बंधित
• प्रशिक्षण - सिखाना, शिक्षण देना
• आकर्षक - मोहक, सुन्दर
• एकत्रित - जमा की हुई, इक्कठा किया हुआ
• माध्यम - के द्वारा, जरिए
• कृतियाँ - रचनाएँ, पुस्तकें
• विख्यात - प्रसिद्ध, मशहूर
• संग्रह - जमा करना, एकत्र करना
• संग्रहालय - वह स्थान जहाँ कई वस्तुएँ इक्कठी करके जमा करके जमा कर रखी जाती है
• संस्थापक - स्थापना करने वाला
• खोखली - पोली, किसी ठोस वस्तु के भीतर खाली स्थान होना
• प्रदर्शनी - कुछ वस्तुओं को एक स्थान पर देखने के लिए रखना|
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