Bus Ki Sair Class 8 Hindi Durva Chapter 10

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बस की सैर - वल्ली कानन


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बस की सैर कहानी का सारांश

Bus Ki Sair Summary in Hindi प्रस्तुत पाठ बस की सैर  लेखक वल्ली कानन जी के द्वारा लिखित है, जिसका अनुवाद बालक राम नागर जी ने किया है। यह एक कहानी है जिसे वल्ली जी ने बहुत सुन्दर और आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया है। इस पाठ में नायिका का नाम भी वल्ली है, जिस पर पूरी कहानी आधारित है। वल्ली आठ वर्ष की बच्ची है। जो गाँव में रहती है और उसे सड़क का दृश्य देखना, सड़क में आते-जाते लोगों को गाड़ियों, बसों को देखना बहुत अच्छा लगता है। वह अपने घर के दरवाजे में खड़ी होकर सड़क को देखती रहती है। और क्या भी करती क्योंकि उसकी माँ ने सड़क की ओर जाने से बिल्कुल मना किया है। वह रोज बस स्टॉप में बस से उतरते-चढ़ते लोगों को देखती। रोज वह बस नई-नई सवारी से लदी इधर-उधर जाती | ये सब देख वल्ली के लिए कभी ना खत्म होने वाली इच्छा थी। अब वल्ली के मन में भी छोटी सी इच्छा जागने लगती है। उसके नन्हें दिमाग में, बस में सैर करने की इच्छा प्रकट होती है। अब उसकी यह इच्छा बड़ी और बड़ी होती चली गई | जब भी वल्ली को कोई उसके सहेली बस में यात्रा करने की कहानी सुनाती थी तो वल्ली जल-भून जाती थी। कोई शहरों की बात कर डींग हाँकते थे तो वल्ली घमंडी-घमंडी चिल्लाने लगती थी | 

Bus Ki Sair Class 8 Hindi Durva Chapter 10
बस की सैर
अब उसकी इच्छा और भी बढ़ने लगी थी । वह अब अपनी सहेलियों और शहर जाने वाले गाँव के लोगों से पूछ-पूछ के बस यात्रा की छोटी-छोटी जानकारियां हासिल करने लगी थी। उसके गाँव से शहर लगभग दस किलोमीटर दूर था। एक ओर का  बस किराया तीस पैसे थे। मतलब आने जाने का साठ पैसा होगा। गाँव से शहर पहुँचने में लगभग पौन घण्टा लगता था। तो उसने सोचा अगर उसी बस में जाकर वापस आ जाऊँ तो गाँव से दोपहर एक बजे शहर जाकर उसी बस में तीस पैसे देकर वापस आ जाऊँगी तीन बजे तक | वल्ली ने इस तरह से हिसाब लगाकर योजना बनाई उसे बस में सैर करने की इतनी तीव्र इक्छा थी की एक दिन ऐसा आया जब बस गाँव की सीमा पार करके बड़ी सड़क पर मुड़ी तब एक आवाज सुनाई पड़ी | बस रोको-बस रोको एक नन्हा सा हाथ हिल रहा था | 

बस रुक गई। कंडक्टर ने बाहर झाक कर तेज आवाज में बोला कौन चढ़ना चाहता है, उसे बोलो  जल्दी करे | तब वल्ली बोली मैं तो बस इतना जानती हूँ कि मुझे शहर तक जाना है | और बोली ये लो तुम्हारे तीस पैसे। कंडक्टर ने बोला ठीक है और उसे धीरे से उठा कर बस में चढ़ाया। वह बोलने लगी मैं खुद ही चढ़ जाऊँगी तुम क्यों मुझे चढ़ा रहे हो। कंडक्टर भी बड़ा मजाकिया मिजाज का था। उसने बोला अरे मेम साहब नाराज क्यूँ होती हो | आओ इधर पधारो बैठो रास्ता दो मेम साहब तशरीफ ला रही है। वल्ली बस में एक कोने वाली सीट में बैठ गई। बस चलने लगी खिड़की में पर्दे लगे होने के कारण वल्ली को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था तो वो सीट में खड़ी हो गई और बाहर के दृश्य देख कर बहुत खुश हो रही थी। बस नहर किराने तंग रास्ते से गुजर रही थी। नीला आसमान, घास के मैदान, नहर के उस पार ताड़ के वृक्ष, सुन्दर पहाड़ियाँ, दूसरे तरफ एक खाई थी और आस-पास चारों तरफ हरी-भरी खेत हरियाली ही हरियाली नजर आ रही थी । वाह ये नाजारा अद्भुत था। फिर अचानक किसी ने कहा सुनो बच्ची तुम खड़ी क्यों हो बैठ जाओ एक उम्रदराज आदमी उससे कह रहा था। लेकिन वह चीढ़ गई और बोली यहाँ कोई बच्ची नहीं है, मैंने पूरा किराया दिया है तभी कंडक्टर बोला ये बड़ी मेम साहिबा है। वल्ली ने गुस्से से बोला मैं मेम साहिब नही हूँ और तुमने अभी तक मुझे टिकट नहीं दिया है। कंडक्टर ने उसे एक टिकट फाड़ कर दिया और बोला, आराम से बैठो टिकट लेकर बस में कोई खड़ा रहे अच्छा नहीं लगता। तुम गिर जाओगी उससे तुम्हें चोट लग सकता है बच्ची बैठ जाओ |  वल्ली बोली मैं बच्ची नहीं हूँ, मैं आठ साल की हूँ। कंडक्टर ने हँसते हुए बोला अरे हाँ तुम बच्ची नहीं हो। मैं भी कैसा बुद्धु हूँ। तभी बस रुकी और नए सवारी बैठे एक बड़ी उम्र की औरत बल्ली के पास आकर बैठ गई बस चलने लगा | औरत ने वल्ली से पूछा शहर जा रही हो अकेले ! तुम्हें पता भी है कहाँ जाना है ? वल्ली बोली मैंने टिकट लिया है, बस का और मुझे सब पता है आप मेरी चिंता ना करें | 

यह बस यात्रा उसकी पहली यात्रा थी | इसके लिए उसने कितनी कठिनाई से योजना बनाई थी | अपनी छोटी-छोटी खुशियों को भूल कर उसने इस यात्रा के लिए तैयारी की थी | जैसे मिठी गोली नहीं खाना है, खिलौनें, गुब्बारे नहीं खरीदना है और जब गाँव में मेला लगा था तो उसने अपनी पसंद की झूले तक नहीं झूले। सच में कितना बड़ा संयम था ओ | और माँ ने मना कर रखा था बाहर जाने को, आखिर घर से बाहर कैसे निकलेगी। इन सब समस्याओं से निपट कर उसने यह यात्रा की थी।  बस रेलवे फाटक के पास पहुँच गई | रेल देखकर वल्ली बहुत खुश हुई | अब बस शहर पहुँच गई। सारे यात्री उतर गए वल्ली बस में ही बैठी थी। कंडक्टर ने पूछा तुम नहीं उतरोगी उसने कहा नहीं मैं इसी बस से वापस जाऊँगी, ये लो तीस पैसे। कंडक्टर को वल्ली की हरकतें बहुत अच्छी लगती थी | उसने पूछा कुछ खाओगी वल्ली बोली मेरे पास उसके लिए पैसे नही हैं। कंडक्टर ने कहा कोई बात नहीं मैं पैसे दे दूँगा। वल्ली बोली नहीं रहने दो। बस फिर नियत समय पर वापस लौट रही थी | वल्ली अभी भी सारे दृश्य देख कर प्रसन्न हो रही थी, लेकिन रास्ते में उसने एक बछड़े को देखा जिसे बहुत चोट लगी थी | वह खून से लतपथ थी । वल्ली को यह दृश्य देखकर बहुत बुरा लगा, वह दुःखी हो गई और चुप-चाप बैठ गई। बस तीन बजकर चालीस मिनट पर गाँव पहुँच गई | वल्ली जमहाई लेते हुए उठी और बोली अलविदा कंडक्टर साहब फिर मिलेंगे। इस कहानी में वल्ली ने अपने इच्छा को पूरा करने के लिए संयम से धैर्य पूर्वक योजना बनाई और उसे पूरा किया नहीं तो इतनी छोटी बच्ची आवेश में आकर कुछ गलत भी कर सकती थी | लेकिन वल्ली ने बहुत समझदारी से काम किया। कोई भी काम मन लगाकर करने से वह जरूर पूरी होती है...|| 

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बस की सैर पाठ के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 शहर की ओर जाते हुए वल्ली ने बस की खिड़की से बाहर क्या-क्या देखा ? 

उत्तर- 
प्रस्तुत पाठ के अनुसार, शहर की ओर जाते हुए वल्ली ने नहर पार करते हुए, नहर के उस पार ताड़ के वृक्ष देखे, आस-पास घास के मैदान, सुदंर पहाड़ियाँ, नीला आकाश और गहरी खाई देखी। जहाँ तक नजर गई दूर-दूर तक हरी-भरी खेत, हरियाली ही हरियाली देखी | 

प्रश्न-2 "अब तो उसकी खिड़की से बाहर देखने की इच्छा भी खत्म हो गई थी |” वापसी में वल्ली ने खिड़की के बाहर देखना बंद क्यों कर दिया ? 

उत्तर- 
वल्ली ने लौटते समय रास्ते में एक मृत पड़ा बछड़े को देखा जिसे उसने जाते समय उल्लास से दौड़ते हुए देखा था। उसे किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी थी | वह खून से लतपथ रास्ते में पड़ी थी। ये सब देख वल्ली बहुत दुःखी हुई और उसका चंचल मन उदास हो गया | इसलिए ओ चुप-चाप बैठ गई। खिड़की से बाहर देखना बंद कर दिया | 

प्रश्न-3 वल्ली ने बस के टिकट के लिए पैसों का प्रबंध कैसे किया ? 

उत्तर- वल्ली ने छोटी-छोटी रेजगारी इकट्टी की। अपनी मीठी गोलियाँ खरीदना, गुब्बारे, खिलौने लेना सभी इच्छा को दबा कर उसने संयम से काम लिया।  वल्ली ने यात्रा के लिए पैसे इकट्ठे करने के लिए गाँव में लगे मेले में जाकर भी गोल घूमने वाले झूले पर भी नहीं बैठी। इस तरह से उसने टिकट के पैसों का प्रबंध किया | 

प्रश्न-4 क्या होता अगर, वल्ली की माँ जाग जाती और वल्ली को घर पर न पाती ? 

उत्तर- 
यदि वल्ली की माँ जाग जाती और वल्ली को घर पर न पाती तो बहुत परेशान हो जाती और  घबराकर उसे इधर-उधर गाँव में ढूँढ़ने निकल जाती | 

प्रश्न-5 क्या होता अगर, वल्ली शहर देखने के लिए बस से उतर जाती और बस वापिस चली जाती ? 

उत्तर- 
यदि वल्ली शहर देखने के लिए बस से उतर जाती और बस वापिस चली जाती तो वह छोटी सी आठ साल की बच्ची शहर में खो जाती और बहुत बड़ा अनर्थ हो जाता | 

प्रश्न-6 “ऐसी छोटी बच्ची का अकेले सफ़र करना ठीक नहीं |” क्या तुम इस बात से सहमत हो ? अपने उत्तर का कारण भी बताओ।

उत्तर- मैं इस बात से सहमत हूँ, छोटी बच्ची का इस तरह सफर करना उचित नहीं । कुछ भी हो सकता था | वह गुम हो सकती थी। एक्सीडेंट हो सकता था। कोई बहला-फुसलाकर अगवा भी कर सकते थे। 

प्रश्न-7 वल्ली ने यह यात्रा घर के बड़ों से छिपकर की थी। तुम्हारे विचार से उसने ठीक किया या गलत ? क्यों ? 
उत्तर- 
उसने यह  गलत काम किया था। इससे वह अपने परिवार से अलग भी हो सकती थी | उसके माता-पिता को बहुत परेशानी का सामना भी करना पड़ सकता था | 

प्रश्न-8 तुम्हारे विचार से घमंडी का क्या अर्थ होता है ? 

उत्तर- 
जरूरत से ज्यादा डींग हाकना और अपने बात के सामने किसी और की बात को नजरअंदाज करना ही घमंडी होता है | 

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बस की सैर पाठ से संबंधित शब्दार्थ 


• ताकीद - निर्देश
• भाड़ा - किराया
• मुसाफिर - यात्री
• बछड़ा - गाय का छोटा बच्चा
• उम्रदराज - लम्बी उम्र का 
• बुद्धू - मुर्ख | 


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