चमरासुर उपन्यास (6) / शमोएल अहमद

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मोहनदास ने चमरासुर के कंधे थपथपाए .... चमरासुर जैसे नींद से जागा | उसने आँखें खोलीं और चारो तरफ देखा | वो जाल समेट रहे थे | भाँजी भी इंस्पेक्टर के साथ

चमरासुर उपन्यास (6) / शमोएल अहमद


सुबह सवेरे सब लाठी, बल्लम, बर्छी और दूसरे हथियारों से लैस तालाब पर पहुँचे | चमरासुर के हाथ में तलवार थी | उसकी धमकी काम कर गयी थी | भाँजी पुलिस-बल के साथ तालाब पर मौजूद थी | चमरासुर ने उसका शुक्रिया अदा किया | कुछ ही देर में उमेश सिंह अपने आदमियों के साथ पहुंचा | पुलिस ने उसे आगे बढ़ने से रोका | चमरासुर अचानक दौड़कर तालाब के करीब एक टीले पर खड़ा हो गया . तलवार हवा में लहराई और जोर का नारा लगाया |

‘’ जय महिषासुर !’’

और उसकी अजीब सी गति हो गयी | एक पल के लिए वो सोचे बिना नहीं रहा कि महिषासुर का शब्द उसकी जुबान पर कहाँ से आ गया | अबतक तो जय भीम उनका नारा था | उसको लगा कोई अनदेखी शक्ति उसके साथ हो गयी है | उसको अपनी पीठ पर किसी का हाथ साफ़ महसूस हुआ | तब वो चीते की तरह चलता हुआ उमेश सिंह के पास आया और सीना तानकर खड़ा हो गया |

‘’ मछली का ठीका हमें मिला है फिर भी तुम लोग फसाद चाहते हो तो हम तैयार हैं |’’

उमेश सिंह ने इससे पहले किसी दलित को ललकारते हुए नहीं देखा था | उसके सामने चमरासुर सीना तानकर खड़ा था ....काला भुजंग....बाल खड़े खड़े ....आँखें दहकती हुईं ....हाथ में कटार...!

चमरासुर उपन्यास

भाँजी ने उमेश सिंह को वापस जाने का हुक्म दिया | मौके की नजाकत को देखते हुए वह  अपने आदमियों के साथ लौट गया | लेकिन भाँजी के चेहरे पर घृणा के भाव थे | ऐसा लगता था ये सब उसे स्वीकार नहीं है | वो होंठों को दाँतों से काट रही थी | लेकिन दलितों के चेहरे ख़ुशी से दमक रहे थे | गाँव के सवर्णों पर ये उनकी पहली विजय थी | मोहनदास ने चमरासुर को बाहों में उठा लिया |

‘’ जय भीम !’’

‘’ जय भीम !’’

दोनों को घेरे में लेकर सब गोल गोल घूमने लगे और नारा लगाने लगे और चमरासुर ने एक पल के लिए सोचा कि पेशवा की पराजय पर अंग्रेज़ फ़ौज के दलित सिपाहियों ने ऐसी ही ख़ुशी महसूस की होगी | 

वो पहर ढलने तक मछलियाँ पकड़ते रहे | चमरासुर टीले पर बैठा था | नजर एकटक शून्य में कहीं घूर रही थी | आहिस्ता आहिस्ता उसपर नींद सी तारी होने लगी ....वो धुँध की गहरी तहों में डूबने लगा | 

कोई फुसफुसाया ‘’ महुबा में महिषासुर का मंदिर है | ‘’  

किस की आवाज़ है ...? उसने आँखें खोलने की कोशिश की लेकिन पपोटे भारी हो रहे थे | उसी पल उसको महसूस हुआ कि किसी ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया है ....

‘’ चलो महुबा की ओर ...|’’

और इसबार उसने आवाज़ पहचान ली | ये प्रमोदरंजन थे और दूसरे क्षण वो उनके साथ पहाड़ी पर चलायमान था | हर तरफ सन्नाटा....वो जैसे जैसे ऊपर चढ़ता गया सन्नाटा बढ़ता गया | ऊपर एक बड़ा सा चबूतरा....यहाँ कोई मूर्ति नहीं.....चबूतरे पर मिटटी के पाँच छोटे छोटे खम्भे ....इनपर मिटटी की लेप लगाई गयी है | गर्मी की वजह से मिटटी में दरारें पड़ गयी हैं ... चमरासुर पर कंपकंपाहट तारी है.... महिषासुर का मंदिर....पहाड़ी के चक्कर काटते हुए लोग...!

प्रमोद रंजन फिर फुसफुसाए ‘’ उधर भी है....देखो |’’

किरत सागर के तट पर सूखी हुई झील ....जमीन के एक टुकड़े की चारो ओर दीवार ....कोई छत नहीं है | चबूतरा भी मिटटी का है | जगह जगह से उखड़ी हुई मिटटी ....यहाँ जानवर उखाड़ करते हैं |उछलते हैं कूदते हैं....ये देख कर महिषासुर खुश होते हैं | वो जानवरों का इलाज करते हैं | एक किसान बीमार भैंस लेकर आया है |

‘’दूध नहीं देती है  |’’

‘’ कट्टे को भी दूध नहीं पिलाती है |’’

साधू उसे भभूत उठा कर देता है | 

पहाड़ी के रास्ते आगे बढ़ता हुआ चमरासुर ...ये कौन सा गाँव है ...? गाँव से बाहर खेत में गड़ा एक पत्थर ....ये भैंसासुर तो नहीं...?

एक ऊँचे स्थान पर मंदिर नजर आ रहा है | सीमेंट की चौरस सतह ....चारो कोने में खम्भे   .....इसके ऊपर तिकोनी छत है | चबूतरे के बीचोबीच ज़रा ऊँचा एक छोटा सा  प्लेटफार्म जिसमें तिकोने खाँचे बने हुए हैं | खाँचे में कोई मूर्ति नहीं है | इसमें शायद मैकासुर रहते हैं | बाएँ तरफ एक भैंसा की मूर्ति है | दाएँ तरफ घोड़े की लगाम थामे एक औरत....और ऊपर मोर है | ये तिकोने खाँचे बाम्बी तो नहीं जिसमें कारसदेव छुपे थे ? और ये वो मोर तो नहीं जिसने कारसदेव की जान बचाई थी | कारसदेव काले नहीं थे, वो पहले गोरे चिट्टे थे | उनकी बहन जब अकेली थी | बहुत दुख था कि कोई भाई नही है |  व्रत रखा और कारसदेव कमल के फूल से पैदा हुए | एक बार दुश्मनों ने घेरा तो सर्प योनि में चले गये और बाँस के पीपे में घुस गये | इन्हें पकड़ कर बाहर खींचा गया तो बहुत सा ज़हर उगला | लेकिन फिर सारा विष खुद पी गये और काले हो गये | कारसदेव महिषासुर के भाई हैं | महिषासुर , मैकासुर , कारस देव , करिया देव सब एक हैं | यहाँ इन्हें गोलबाबा भी कहते हैं , और वह औरत कौन है ? क्या महिषासुर की संगिनी है ? लेकिन घोड़ा तो आर्यन है | यह वही तो नहीं जिसने संगिनी का नाटक किया और महिषासुर का वध किया और देवी कहलाई ? चबूतरे की बाईं  तरफ खुली जगह है जहाँ छोटे छोटे पत्थर रखे हैं | यहाँ पूजा होती है | पत्थर मैकासुर हैं और चबूतरे पर कारसदेव हैं या शायद दोनों ही मैकासुर हैं | तमाम दलित इनकी पूजा करते हैं | इनका पुजारी पाल जाति का ही हो सकता है | यहाँ बहुत लोग आते हैं | मनौती मानते हैं | नारियल चढाते हैं | गोभी चढाते हैं | भैंस इनकी माँ है | इनका सम्बन्ध भैंस संस्कृति से है | गाँव के बाहर एक पत्थर गड़ा है | ये महिषासुर हैं | महिषासुर फसलों के ऊपर से गुज़रते हैं तो फसलें झुक जाती है और हवा चलती है | 

एक चरवाहा आया है | उसने पशु का पहला दूध चढाया | चमरासुर ने उसे गौर से देखा ....काला भुजंग...लम्बा कद....बाल घुँघराले....!

‘’ तुम्हारा नाम ? ‘’

‘’ गामासुर |’’

‘’ कहाँ से आए हो ? ‘’

‘’ मानभूम ‘’

पाल यादव हो ? ‘’

‘’ संताली हूँ ‘’

और अश्वनी पंकज असुर पाठ करते हैं .....!

जंगल में एक भैंस और भैंसा को नवजात बच्ची मिली | दोनों इसे अपने घर ले आए | बच्ची का पालन पोषन किया | सोने की कान्ति लिए असाधारण हुस्न के साथ बच्ची जवान हुई | राजा की नजर युवती पर पड़ी और वह आशिक हो गया | राजा ने उसका अपहरण करना चाहा | तब ही भैंस और भैंसा वहां आ गये | ये देख राजा ने युवती  को बंदी बना लिया और घर का दरवाज़ा अंदर से बन्द बर दिया | भैंस ने दरवाज़ा खोलने के लिए युवती को आवाज़ लगाई | वो क़ैद में थी | कैसे दरवाज़ा खोलती ? उसने राजा से बहुत आग्रह किया कि दरवाज़ा खोल दे लेकिन राजा नहीं माना | भैंस और भैंसा सिर पटक पटक कर मर गये | तब राजा ने ताकत के जोर पर युवती को अपनी रानी बना लिया |

और सुनो ....

संतालों का एक त्योहार है ‘’ दसाईं ‘’ | ये दुर्गापूजा के समांतर मनाया जाता है | इसमें संताल युवकों की टोली योद्धा के लिबास में होती है | टोली के आगे आगे कमांडर के रूप में कोई संताल बुज़ुर्ग होते हैं जो घर घर घुस कर जासूसी करते हैं | असल में इन्हें अपने सरदार की तलाश है जो खो गया है | टोली जंगी अंदाज़ में नृत्य करती आगे बढती है | टोली जिस सरदार को खोजती है उसका नाम अजरिया होता है जो विदेशियों के ज़ुल्म के विरुद्ध जंग करता है | उसकी वीरता से विदेशी भय खाते हैं | आखिर वे छल का सहारा लेते हैं | उसे धोखे से मारना चाहते हैं| इस काम के लिए एक कोठे की औरत की मदद ली जाती | औरत पूछती है कि इस काम से उसको क्या लाभ होगा | पुजारी वर्ग उसको यकीन दिलाता है कि अगर वह अजरिया को फँसा कर बंदी बनाने में उसकी मदद करेगी तो संसार में अंत तक उसकी पूजा होगी | इस तरह वह औरत उसे अपने जाल में फँसाती है और उसका वध होता है | आदिवासी सरदार अजरिया की हत्या करने की वजह से उस औरत का नाम अजरिया पड़ता है और वो पूजी जाने लगती है | उसकी हत्या में नौ दिन और नौ रातें लगती हैं | इसलिए नवरात्रि मनाते हैं | इस तरह अजरिया पूजा का चलन शुरू हुआ | एक ख़ास राज्य इसका केंद्र बना | यहाँ जो अजरिया की मूर्ति बनाई जाती है उसमे कोठे की मिटटी भी मिलाते हैं | 

गामासुर अलविदा कहता है |

‘’ दीवाली में मिलेंगे | ‘’

मोहनदास ने चमरासुर के कंधे थपथपाए .... चमरासुर जैसे नींद से जागा | उसने आँखें खोलीं और चारो तरफ देखा | वो जाल समेट रहे थे | भाँजी भी इंस्पेक्टर के साथ जाने को थी | जाते जाते उसने चमरासुर की आँखों में झाँका और ज़हरीली मुस्कराहट के साथ बोली |

‘’ ये नहीं भूलो कि हर महिषासुर के लिए एक दुर्गा होती है | ‘’

चमरासुर अगले सोम को राजधानी लौट आया | वह गाँव से अपनी तलवार भी साथ लाया था 



- शेष अगले अंक में 



- शमोएल अहमद 
३०१ ग्रैंड पाटलिपुत्र अपार्टमेंट 
नई पाटलिपुत्र कालोनी 
पटना ८०००१३
मो;  ९८३५२९९३०३ 

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चमरासुर उपन्यास (6) / शमोएल अहमद
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