राजीव अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। उसके पिता दो वर्ष पूर्व एक सरकारी पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उनको मिलने वाली पेंशन की राशि से ही घर का समस्त ख
पश्चाताप के आंसू
राजीव अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। उसके पिता दो वर्ष पूर्व एक सरकारी पद से सेवानिवृत्त हुए थे। उनको मिलने वाली पेंशन की राशि से ही घर का समस्त खर्च चलता था। जब उसके पिता रिटायर हुए थे, उस समय राजीव लोचन अपनी एम ए की पढ़ाई पूरी कर चुका था और अध्यापक पद के लिए प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था। इसी बीच उसने एक प्राइवेट स्कूल में अध्यापक पद के लिए आवेदन कर दिया । उसे अध्यापक की नौकरी मिल गई थी।
पश्चाताप के आंसू |
उसने मृदुल स्वभाव और अच्छे व्यवहार से विद्यालय के प्रधानाचार्य और सहकर्मी अध्यापकों का मन जीत लिया था, जो उसे अपने माता-पिता से विरासत में मिला था । छात्र भी उसका सम्मान करते थे क्योंकि वह बड़ी मेहनत के साथ अपने छात्रों को पढ़ाता था। इसीलिए का परिणाम रहा कि उस विद्यालय का परीक्षा परिणाम सरकारी स्कूल के परिणामों से भी बेहतर रहा। इससे राजीव का सम्मान और भी बढ़ गया था, यह सम्मान विद्यालय में कार्यरत अध्यापक जिसका नाम मुकुल था, से नहीं सहा गया। वह मन ही मन राजीव से ईर्ष्या करने तथा उसे नीचा दिखाने के अवसर की तलाश में रहता था। एक दिन उसे यह अवसर मिल ही गया।
वार्षिक परीक्षाएं प्रारंभ हो चुकी थी , राजीव लोचन भी अपने छात्रों को कठोर परिश्रम कराने में जुट गया था परंतु इसे राजीव का दुर्भाग्य कहें या मुकुल का सौभाग्य क्योंकि इस साल विद्यालय का परीक्षा परिणाम पिछले साल के परिणाम से अच्छा नहीं रहा। उसे अब अच्छा अवसर मिल चुका था, वह इस अवसर को खोना नहीं चाहता था इसलिए उसने इस परीक्षा परिणाम के लिए राजीव को ही जिम्मेदार ठहरा दिया
प्रधानाचार्य ने भी राजीव को बिना सोचे समझे अपने विद्यालय से हटा दिया। अब उसके समक्ष रोजी-रोटी की चिंता खड़ी थी परंतु ईश्वर की कृपा से उसे उसी शहर में फिर से अन्य विद्यालय में , जहां प्रिंसिपल का पद रिक्त था उस पद पर नियुक्ति दे दी गई। ग्रीष्म कालीन अवकाश समाप्त हो चुके थे, विद्यालय में नये प्रवेश का कार्य शुरू हो गया था। एक दिन राजीव अपने कक्ष में बैठ कर प्रवेश के लिए आए हुए नये विद्यार्थियों के आवेदन जांच रहा था कि रहा था कि उसी समय मुकुल भी अपने पुत्र को इसी विद्यालय में प्रवेश दिलाने आया, उसके पुत्र को कम अंक होने के कारण कहीं भी प्रवेश नहीं मिल पा रहा था। जब उसने प्रिंसिपल के कक्ष में प्रवेश किया तो उसकी नजर बाहर लगी पट्टिका पर पड़ी, वहां पर राजीव का नाम लिखा हुआ था। नाम देखकर मुकुल को चिंता होने लगी कि कहीं उसके दुर्व्यवहार के कारण पुत्र को प्रवेश देने से मना करदे। हिम्मत करके उसने राजीव के कक्ष में प्रवेश किया , जैसे ही राजीव ने उसे देखा तो आने का कारण पूछा। मुकुल ने अपने पुत्र को विद्यालय में प्रवेश दिलाने की बात की।
राजीव ने उसकी आशा के विपरीत उसे सामने रखी हुई कुर्सी पर बैठ जाने को कहा और मुकुल से अंकतालिका लेकर एक बार उस पर सरसरी तौर पर निगाह डाली, फिर एक फार्म देकर उसे भरकर जमा कराए जाने को कहा। उसे राजीव से ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी।
राजीव के इस सद्व्यवहार ने उसे अंदर तक हिला कर रख दिया, उसे अपने आप पर आत्मग्लानि हुई साथ ही उसकी आंखों से अश्रु बहने लगे।
ये आंसू पश्चाताप के आंसू थे , जो उसकी आंखों से बह रहे थे।
- विनय मोहन शर्मा
अलवर
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