Class 8 Sanchipt Budhcharit Chapter 1 Aarambhik Jivan Class 8 Sanchipt Budhcharit Chapter 1 Sankshipt Budhcharit Class 8 Sanchipt Budhcharit Samveg
आरंभिक जीवन पाठ संक्षिप्त बुद्धचरित
आरंभिक जीवन पाठ संक्षिप्त बुद्धचरित Sankshipt Budhcharit Class 8 Sanchipt Budhcharit Class 8 Sanchipt Budhcharit Chapter 1 Aarambhik Jivan Class 8 Sanchipt Budhcharit Chapter 1 Bihar Board Hindi Class 8 Sanchipt Budhcharit Chapter 1 Aarambhik Jivan Part 1 Siddhartha ka Janam Class 8 Sanchipt Budhcharit Chapter 1 Aarambhik Jivan
आरंभिक जीवन संक्षिप्त बुद्धचरित पाठ का सारांश
प्रस्तुत पाठ संक्षिप्त बुद्धचरित पुस्तक से लिया गया है. इस अध्याय में सिद्धार्थ के आरंभिक जीवन का वर्णन किया गया है. प्रस्तुत अध्याय के अनुसार प्राचीन काल में भारत में एक प्रसिद्द राजवंश था, जिसका नाम था – इक्ष्वाकु वंश. इसी वंश से सम्बंधित शाक्य कुल में शुद्धोदन नामक एक राजा हुए, जिनकी पत्नी थी माया. कालांतर में इन्हीं दोनों के पुत्र के रूप में सिद्धार्थ ने जन्म लिया. इस बालक के जन्म के समय आकाश से सुगन्धित लाल और नीले कमलों की वर्षा होने लगी, मंद-मंद पवन प्रवाहित होने लगी तथा सूर्य और भी अधिक चमकने लगा. आचरणशास्त्र के ज्ञाता और शीलवान ब्राह्मणों ने जब बालक के सभी लक्षण सुने और उनपर विचार किया तो अत्यंत प्रसन्न होकर उनहोंने राजा से कहा – हे राजन, आपका पुत्र आपके कुल का दीपक है. यह बालक न केवल आपके वंश की वृद्धि करेगा बल्कि यह संसार में दुखियों का संरक्षक भी होगा. इसके लक्षण बता रहे हैं कि यह तो बुद्धों में श्रेष्ठ होगा या परम राज्यश्री प्राप्त करेगा. जैसे सभी धातुओं में स्वर्ण, पर्वतों में सुमेरु, जलाशयों में समुद्र, प्रकाश्पुन्जों में सूर्य श्रेष्ठ है वैसे ही आपका यह पुत्र सभी मनुष्यों में श्रेष्ठ सिद्ध होगा.
बालक सिद्धार्थ को देखकर महर्षि असित ने बताया था कि दुःख रूपी समुद्र में डूबते हुए संसार को यह बालक ज्ञान की विशाल नौका से उस पार ले जाएगा. यह धर्म की ऐसी नदी प्रवाहित करेगा, जिसमें प्रज्ञा का जल होगा, शील का तट होगा और समाधि की शीतलता होगी. इसी धर्म-नदी के जल को पीकर तृष्णा की पिपासा से व्याकुल यह संसार शांति लाभ करेगा.
संक्षिप्त बुद्धचरित |
एक बार राजकुमार सिद्धार्थ ने सुना कि राजमहल से बाहर एक सुन्दर उद्यान है. राजकुमार को वह उद्यान देखने की इच्छा हुई. जब राजकुमार ने महाराज से उसे देखने कि आज्ञा माँगी तो महाराज ने आज्ञा दे दी. लेकिन वे चाहते थे कि राजकुमार के मन में किसी प्रकार का वैराग्य-भाव उत्पन्न न हो. इसलिए अनुचरों को ऐसी व्यवस्था करने की आज्ञा दी की जिधर से राजकुमार निकलें उस मार्ग पर कोई रोगी या पीड़ित व्यक्ति दिखाई न दे. तत्पश्चात राजा की आज्ञा प्राप्त कर अपने कुछ मित्रों को साथ लेकर राजकुमार सिद्धार्थ उद्यान देखने के लिए राजमहल से बाहर निकले. वे स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत और चार घोड़ों से युक्त रथ में बैठे थे जो श्वेत पुष्पों और पताकाओं से भली-भांति सुसज्जित था. राजकुमार को देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई. तभी इतने में राजकुमार सिद्धार्थ को राजपथ पर एक वृद्ध पुरुष दिखाई दिया. उसे देखते ही सिद्धार्थ चौंक गया और बड़े ही ध्यान से उसकी ओर देखने लगा. तत्पश्चात राजकुमार उस वृद्ध व्यक्ति के बारे में अपने सारथि से पूछा – यह कौन है ? उत्तर स्वरूप उसके सारथी ने बोला कि यह बूढ़ा हो चूका है, सबको एकदिन इस अवस्था से गुजरना पड़ेगा. सारथी की बातें सुनकर राजकुमार चकित हो गया. फिर उसने उस वृद्ध की ओर देखा और अपने सारथी से पूछा – क्या यह दोष मुझे भी होगा ? क्यूँ मैं भी बूढ़ा हो जाऊंगा ? सारथी ने उत्तर दिया – हाँ, आयुष्मान ! समय आने पर आपको भी वृद्धावस्था अवश्य प्राप्त होगी. तत्पश्चात राजकुमार सिद्धार्थ ने अपने सारथी को संबोधित करते हुए कहा कि हे सूत ! चलो, घर चलें, अपने घोड़ों को मोड़ दो. मन में जब बुढ़ापे का भाव भर गया हो तो इस उद्यान में मेरा मन कैसे रम सकता है. राजकुमार अपने महल वापस चला गया, परन्तु उसका मन उस वृद्ध के बारे में ही सोचा जा रहा था. एक बार पुनः राजकुमार सिद्धार्थ ने अपने से उद्यान जाने की इजाजत लेकर वहां जैसे ही गया, उसे एक रोगी दिखाई पड़ा, उसका पेट बढ़ा हुआ था, कंधे झुके थे और वह लम्बी-लम्बी साँसे ले रहा था. राजकुमार ने पुनः अपने सारथी से पूछा – हे सूत, यह दुबला-पतला व्यक्ति कौन है ? जो दूसरों का सहारा लेकर चल रहा है और कराह रहा है ? तभी सारथी ने उसके बीमार होने की ओर संकेत किया और राजकुमार के पूछने पर यह बताया कि यह रोग किसी को भी हो सकता है. सारथी का उत्तर सुनकर राजकुमार और भी बेचैन हो उठा. उसका ह्रदय कांपने लगा. तत्पश्चात राजकुमार ने सारथी को रथ महल की तरफ मोड़कर वापस चलने को कहा. राजकुमार से वह रोग-भय सहा नहीं जा रहा था. एक समय ऐसा भी आया जब राजकुमार सिद्धार्थ पुनः नगर भ्रमण के लिए अपने रथ पर सवार होकर निकला तो उसे अचानक किसी मृत व्यक्ति की शव-यात्रा दिखाई दी. राजकुमार ने जब इस सुन्दर वातावरण में शव-यात्रा देखी और उसके साथ रोते-बिलखते लोगों को देखा तो वह चौंक गया. उसने फिर अपने सारथी को संबोधित करते हुए उस शव के बारे में पूछा तो सारथी ने उत्तर स्वरूप कहा – हाँ राजकुमार, सभी प्राणियों की यही अंतिम गति है, क्यूंकि सभी नाशवान हैं, चाहे कोई व्यक्ति उत्तम हो या मध्यम हो या अधम हो, अंत सभी का एक सा ही है.
अब राजकुमार सिद्धार्थ को बोध होने लगा था कि इस जगत में सब कुछ क्षणिक है, सब कुछ अनित्य है. जागे की अनित्यता के विषय में सोचते हुए वह अपने महल में गया और संसार की नश्वरता के विषय में और विचार करता रहा. महाराज शुद्धोदन ने जब सुना कि राजकुमार सभी विषयों से विमुख होकर लौट आया है तो उन्हें बहुत दुःख हुआ. जैसे किसी हाथी के ह्रदय में बाण लग जाने से वह रात भर सो नहीं पाता वैसे ही महाराज भी रातभर सो नहीं सके. वे अपने मंत्रियों को बुलाकर उनके साथ मंत्रणा करते रहे कि क्या उपाय किए जाएँ कि राजकुमार का मन बदले, उसका वैराग्य समाप्त हो और विषयों के प्रति आसक्ति जागे...||
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आरंभिक जीवन संक्षिप्त बुद्धचरित पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 सिद्धार्थ के बारे में महर्षि असित की क्या भविष्यवाणी थी ? संक्षेप में बताइए |
उत्तर- बालक सिद्धार्थ को देखकर महर्षि असित ने बताया था कि दुःख रूपी समुद्र में डूबते हुए संसार को यह बालक ज्ञान की विशाल नौका से उस पार ले जाएगा | यह धर्म की ऐसी नदी प्रवाहित करेगा, जिसमें प्रज्ञा का जल होगा, शील का तट होगा और समाधि की शीतलता होगी | इसी धर्म-नदी के जल को पीकर तृष्णा की पिपासा से व्याकुल यह संसार शांति लाभ करेगा | महर्षि असित ने यह भी भविष्यवाणी की थी कि सिद्धार्थ सन्यास जीवन व्यतीत करने और मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर अडिग रहेगा | अर्थात् वह बुद्धों में उत्तम कहलाएगा |
प्रश्न-2 आप कैसे कह सकते हैं कि बालक सिद्धार्थ विशेष मेधावी था ?
उत्तर- बालक सिद्धार्थ अत्यंत मेधावी था | जिन विद्याओं को सामान्य बालक वर्षों में सीखते हैं, उनको उसने कुछ ही समय में सीख लिया | इसलिए यह कह सकते हैं कि बालक सिद्धार्थ विशेष मेधावी था |
प्रश्न-3 महाराज शुद्धोदन सिद्धार्थ की सुख-सुविधाओं की व्यवस्था के लिए क्यों विशेष प्रयत्नशील रहते थे ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, महाराज शुद्धोदन कतई नहीं चाहते थे कि सिद्धार्थ सन्यासी बनकर तपोवन की ओर चला जाए | बल्कि महाराज चाहते थे कि सिद्धार्थ राज-पाट संभाले और गृहस्थ जीवन का निर्वाह करे | इसलिए महाराज शुद्धोदन सिद्धार्थ की सुख-सुविधाओं की व्यवस्था के लिए विशेष प्रयत्नशील रहते थे |
प्रश्न-4 राजकुमार सिद्धार्थ के मन में संवेग की उत्पत्ति के क्या कारण थे ?
उत्तर- प्रस्तुत पाठ के अनुसार, जब राजकुमार सिद्धार्थ ने एक लाचार वृद्ध, कष्टों में उलझा हुआ रोगी और एक मृत व्यक्ति का शव देखा तो उसे जीवन का यथार्थ समझ में आने लगा | यही उसके मन में संवेग की उत्पत्ति का कारण था |
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