गंगा ! तेरी गोद में सुबह का छः बजा होगा I चौसा पुलिस थाना में फोन की घण्टी बजने लगी I थोड़ी ही देर में वह चुप हो गई I तुरंत फिर से बजने लगी I थाने का स
गंगा ! तेरी गोद में
सुबह का छः बजा होगा I चौसा पुलिस थाना में फोन की घण्टी बजने लगी I थोड़ी ही देर में वह चुप हो गई I तुरंत फिर से बजने लगी I थाने का संतरी सिपाही बाबुलाल मुख्य द्वार पर ही अभी दातुन चबा ही रहा था I बीच-बीच में अपनी गर्दन को ऊँट की भांति बढ़ाकर पास के जबरन उग आये झाड़ियों पर थूक दे रहा था I उसका साथी मोहन चौधरी अभी स्नान कर भीतर के कमरे में पुलिसिया ड्रेस ही बदल रहा था I जबकि अन्य और तीन सिपाही थाना के पीछे के नल पर स्नान करने में व्यस्त थे I भीतर से ही आवाज आई, - ‘बाबूलाल, देख किसका फोन है I’
एक नौजवान आगे बढ़कर सड़क की ढलान से नीचे की ओर बढ़ा I उसके पीछे सिपाही मोहन चौधरी, फिर सब-इंस्पेक्टर सुनील राजशेखर और उनके पीछे तीनों सिपाही उस ढलान से उतरते हुए कर्मनाशा नदी के तट पर पहुँचे, जहाँ एक व्यक्ति की लाश नदी की जलधारा में झाड़ियों में उलझ कर फँसी हुई थी I पुलिस दल को आते देख वहाँ पर पहले जमा लोग कुछ दूर हट गए I कुछ स्थानीय लोगों ने लम्बे बांसों की मदद से लाश को किनारे के बालू पर किया I लाश किसी अधेड़ व्यक्ति की थी, जो पानी के कारण फूल गया था I उसके शरीर पर कपड़े के नाम पर केवल एक पुरानी धोती और फटी हुई बनियान थी I उसके बारे में कोई कुछ बता नहीं पा रहा था I इतना तो निश्चय हो ही गया कि यह लाश बहुत दूर से नहीं, वरन पास के ही किसी गांवों से सम्बन्धित है I वैशाख-जेठ की नदी में कोई तेज धारा तो है नहीं, जो दूर से इस लाश को बहा कर लाएगी I चुकी यह कर्मनाशा नदी बिहार और उत्तर प्रदेश का बार्डर निश्चित करती है I नदी के दाहिने किनारे के कोनिया, बनारपुर, आदि गाँव बिहार में तथा उस पार के सिकरौल, मगर्खोई, मिसरौलिया आदि गाँव उत्तर प्रदेश में पड़ते हैं I इन्हीं किसी गाँव से ही सम्बन्धित यह लाश है I‘पंचनामा’ तैयार करने के उपरांत स्थानीय लोगों की सहायता से ही लाश को एक अन्य गाड़ी में लदवाया और पोस्टमार्टम हेतु उसे जिला अस्पताल में भेज दिया गया I
सब-इंस्पेक्टर सुनील राजशेखर के सामने आकर भरत कहार सिर झुकाए जमीन पर बैठ गया I कुछ देर सब-इंस्पेक्टर सुनील राजशेखर मौन रह कर ही उसकी रूप-लेखा का पुलिसिया मुआयना किया और उससे पूछा, - ‘क्या नाम है तुम्हारा? और तुम्हारे पिताजी का नाम क्या है?
भरत कभी पुलिस का सामना न किया था I जरूरत भी क्या थी? आखिर मजदूरा आदमी को अपने परिवार के पेट के जुगाड़ से फुर्सत ही कहाँ, जो किसी और से ताल्लुक रखे I थाना-पुलिस और कोर्ट-कचहरी से भला उस गरीब का क्या ताल्लुकात? पहले तो कुछ सकपकाया और फिर सिर नीचे किए ही बहुत ही मुश्किल से उत्तर दिया, - ‘सरकार! भरत कहार, और हमरे बाबूजी का नाम जोखन कहार है I’
‘इस समय तुम्हारा पिता जोखन कहार कहाँ है?’
‘जी, .... जी, ..... सरकार, ..... I’
‘जी ... जी ... मत कर I साहेब जो पूछे, उसका सही जवाब दो I नहीं तो, ई पुलिसिया डंडा तुम्हरे पिछवाड़े पर पड़ा, कि महीनों तक सही ढंग से न बैठ पावोगे और न सो ही पावोगे I’ – सिपाही मोहन की आदतन कड़कदार आवाज गूँजी और उसके हाथ का डंडा भी कुछ ऊपर उठ गया था I लेकिन सब-इंस्पेक्टर सुनील राजशेखर के हाथ के ईशारा को समझते ही वह रुक गया I
‘सरकार! .... ‘बाबु’ तो अभी घर पर नहीं हैं ... लगता है कि .... नदी उ पार ‘बारा’ गाँव गए हैं, एक रिश्तेदार के यहाँ I’ – भरत कुछ हकलाते हुए जबरन ही कहा I
‘लेकिन तेरा बाप तो कई दिनों से बीमार था न I और आज वह कुटुमइती करने नदी उ पार चला गया I सही-सही बता, न तो सही उगलवाना हमको आता है I’ – सिपाही मोहन फिर गरजा I
‘देखो भरत, हमें सब पता है I आज सुबह ही एक लाश कर्मनाशा नदी में पुल के नीचे बरामद हुई है I वह किसी और की नहीं, बल्कि तुम्हारे पिता की ही लाश है I अब तुम हमें सारी घटना बताओ I तुमने उसे क्यों मार कर नदी में बहा दिया I सच-सच बताओ I अगर तुमने झूठ कहा या फिर कुछ भी छिपाने की कोशिश की, तो फिर तुम तो जानते ही हो, कि हम मुर्दों से भी सच उगलवा लेते हैं I लेकिन वह उपाय तुम्हारे लिए ठीक न होगा I ...... डरो नहीं I तुम्हें कुछ न होगा I बोलो I’ – सब-इंस्पेक्टर सुनील राजशेखर ने कुछ कठोर और कुछ हमदर्दी युक्त शांत स्वर में उसे समझाते हुए बोले I
पुलिस का सामना पड़ते ही बड़े से बड़े और शातिर अपराधी भी टूट जाते हैं I भरत कहार तो दिन भर मजदूरी करने वाला एक अदना-सा आदमी है I उसका टूटना जायज भी था I भरत कहार फफक कर रो पड़ा I फिर सिसकियाँ भरते हुए कहने लगा I
सरकार! क्या करता, ‘भगवान् की मर्जी’ को मान कर फिर से उन्हें साइकिल पर लादे गाँव की ओर लौट पड़ा I लेकिन गाँव तक वापस लौटने का भी उनका नसीब न हो पाया I बाबू रास्ते में ही तड़पकर हमेशा के लिए एकदम से शांत हो गए I’ – भरत का गला अवरुद्ध होने लगा I जोर-जोर सिसकियाँ लेने की आवाज आने लगी I
उसने आगे बताया, - ‘मन हुआ कि अपने बाबू के मृत शरीर को गाँव ले चलते हैं I पर ख्याल आया कि गाँव वाले कोरोना के नाम पर अब गाँव में घुसने न देंगे I सीधा ‘मुक्तिधाम’ श्मशान घाट पर ले गया I पर वहाँ भी लाश को जलाने के लिए तीन हजार रुपये की माँग की गयी I सरकार! उतना पैसा भला कहाँ से पाता? कुछ आगे-पीछे सोच कर लाचारी में अपने बाबू के मृत शरीर को कर्मनाशा नदी के किनारे ले गया और अकेले ही आँसू बहाते नदी में चुपचाप प्रवाहित कर दिया, सोचा था कि बाबु की लाश धारा के साथ बहते हुए कम से कम गंगा में पहुँच ही जायेगा और किसी को कुछ पता भी न चलेगा I पर गरीब के भाग्य में मर कर भी गंगाजल की प्राप्ति न लिखा था I’ – वह फुट-फुट कर रोने लगा I बिलखते हुए कहा, - ‘सरकार! अपने मरे हुए बाबु की कसम, एक जौ भर भी हम झूठ न कहे हैं I’
‘सरकार, बूढी मतारी है, हमर घरवाली है और दो बच्चे सहित अब हम लोग कुल पाँच जने हैं I’
‘घर में खाने-पीने की व्यवस्था?’
‘सरकार, कुछो नहीं है I राशन दुकान वाला बताया कि इस माह का राशन बँट गया है I अब अगले महिना राशन मिलेगा I जो कुछ हाथ में पैसा था, वह तो बाबू के दवा-दारू में ही खर्च हो गए I’
सुनील राजशेखर कुछ सोचते हुए ग्राम पंचायत के सदस्य अनवर हुसैन को पास बुलाया और उसके माध्यम से सभी को समझाते हुए कहा, - ‘चुकी इसने अपराध तो किया है, परन्तु कोरोना के टेस्ट के बिना मैं इसे गिरफ्तार नहीं कर सकता हूँ I लेकिन जो भी व्यक्ति इसके और इसके परिजन के सम्पर्क में आये हैं, वे सभी गाँव में घूमेंगे-टहलेंगे नहीं, सभी अपने-अपने घर पर ही एक सप्ताह के लिए क्वारंटाइन में रहेंगे I बाहरी किसी भी व्यक्ति को अपने गाँव में प्रवेश न करने देंगे I यह देखना अब आप सबका काम है I अन्यथा पूरे गाँव पर ही मुकदमा कर दूँगा I’
अब भरत आगे-आगे, उससे पर्याप्त दूरी बनाये हुए सब-इंस्पेक्टर सुनील राजशेखर सहित अन्य सिपाही और कुछ लोग भी उसके पीछे-पीछे गाँव की ओर चल पड़े I भरत का घर गाँव में प्रवेश करते ही था I घर तक पहुँचते ही सब इंस्पेक्टर सुनील राजशेखर ने कहा, - ‘भरत! तुम घर में ही रहोगे I तुम या तुम्हारे घर का कोई भी सदस्य कहीं बाहर नहीं जायेगा I अगर जरुरत हुआ तो अपना मुँह-नाक को मास्क से ढँके और अन्य लोगों से काफी दूरी बना कर घर से निकलोगे I तुम्हारे परिजन के लिए राशन की व्यवस्था मैं कर दे रहा हूँ I अब तुम घर में जाओ I’ – भरत हाथ जोड़े हुए अपने घर में घुस गया I
उन्होंने अपने एक सिपाही रामचरण सिंह को पास बुलाया और एक हजार रुपये देते हुए कहा, - ‘रामचरण, तुम अनवर के साथ जाओ और एक महीने के लिए राशन सम्बन्धित जरुरी सामान लेकर भरत के घर पर पहुँचाओ I इसके बाद तुम्हारी ड्यूटी इसी गाँव में होगी I कोई अनावश्यक न घर से निकले I भरत पर विशेष निगरानी रखोगे I’
‘जी सर I’ - सिपाही रामचरण सिंह ने कहा और अनवर हुसैन के साथ एक ओर चला गया I तभी गाँव का ही एक युवक आकर सूचना दी, - ‘सरकार! कर्मनाशा नदी के किनारे बालू में दफ़न कई और लाशें दिखाई दे रही हैं I कुछ को आवारे कुत्ते नोंच रहे हैं I’
(वैशाख शुक्लपक्ष, षष्ठी, मंगलवार, विक्रम संवत् 2078, 18 मई, 2021)
- श्रीराम पुकार शर्मा,
24, बन बिहारी बोस रोड,
हावड़ा – 711101,
(पश्चिम बंगाल)
सम्पर्क सूत्र – 9062366788
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