अचानक आयी आँधी ने सबको झकझोर दिया |पेड़ पौधे ड़रावने से काँप रहे |पशु पक्षी भी बेहाल हो रहे |चारों तरफ धुंध सी छा रही |धूल बेकाबू उड़ रही |पथ पर चलना
मुसीबत भरी आँधी
अचानक आयी आँधी ने सबको झकझोर दिया |पेड़ पौधे ड़रावने से काँप रहे |पशु पक्षी भी बेहाल हो रहे |चारों तरफ धुंध सी छा रही |धूल बेकाबू उड़ रही |पथ पर चलना मुश्किल हो रहा |
"मम्मी.. मम्मी .. ये क्या कर रही हो |कभी उस खिड़की को कभी इस खिड़की को बंद कर रही हो |" सोनिया ने माँ पर सवाल दागा |
"तुझे नहीं पता बिटिया अगर खिड़की दरवाजे बंद नहीं किये तो आँधी अंदर आकर तहलका मचा देगी |" माँ ने सटीक जवाब दिया |
दरवाजे पर थपथपाने की आवाज |"कौन है? "सोनिया ने पूछा |
" जल्दी से दरवाजा खोल बिटिया, मैं तेरा पापा हूँ |" मनोहर ने कहा |
सोनिया ने जैसे ही दरवाजा खोला | मनोहर को धक्का मारती हुई आँधी अंदर चली गयी |चारों तरफ अफरातफरी मचाने लगी |बर्तन खनकने लगे |कपड़े उडने लगे |
सोनिया की माँ चिल्लाई "बिटिया ये क्या कर दिया तूने? मैं सुबह से घर की व्यवस्था संभालने में लगी हूँ |पर सब बेकार गया |"
"मैंने कुछ नहीं किया |पापा बाहर खड़े थे बस दरवाजा खोल दिया |" सोनिया की माँ खीजती हुई बोली |
'हे! भगवान इंसान की कोई इज्जत ही नहीं है आजकल |' मनोहर मन ही मन बुदबुदाते अंदर चले गये |
जैसे तैसे माँ ने दरवाजा बंद किया और राहत भरी साँस लेते हुए कुर्सी पर जा बैठी | 'बड़ी मुसीबत है|'
"भाग्यवान चाय बना दूँ |थोड़ी राहत मिल जाएगी |" अंदर से आवाज आयी |
"हाँ बना दो, आपका मन उछल कूद कर रहा होगा |मैं पहले से इन मुसीबतों की मारी हूँ तुम्हे बस चाय की सूझ रही है |"
मनोहर ने चाय बनायी और धर्मपत्नी के सामने नाश्ते के साथ रख दी | "लो चुस्की लो और अपना गुस्सा दूर कर लो |"
धर्मपत्नी को बहुत गुस्सा आया पर अपने आपको काबू में रखा और चाय के घूँट लेने लगी |अजीब स्वाद था मन को भा गया |सारी थकान और गुस्सा कोसों दूर भाग गये |
"ये चाय कैसे बनायी |" धर्मपत्नी हँसते हुए बोली |
मनोहर भी हँसने लगे |
"मम्मी.. मम्मी .. ये क्या कर रही हो |कभी उस खिड़की को कभी इस खिड़की को बंद कर रही हो |" सोनिया ने माँ पर सवाल दागा |
"तुझे नहीं पता बिटिया अगर खिड़की दरवाजे बंद नहीं किये तो आँधी अंदर आकर तहलका मचा देगी |" माँ ने सटीक जवाब दिया |
दरवाजे पर थपथपाने की आवाज |"कौन है? "सोनिया ने पूछा |
" जल्दी से दरवाजा खोल बिटिया, मैं तेरा पापा हूँ |" मनोहर ने कहा |
सोनिया ने जैसे ही दरवाजा खोला | मनोहर को धक्का मारती हुई आँधी अंदर चली गयी |चारों तरफ अफरातफरी मचाने लगी |बर्तन खनकने लगे |कपड़े उडने लगे |
सोनिया की माँ चिल्लाई "बिटिया ये क्या कर दिया तूने? मैं सुबह से घर की व्यवस्था संभालने में लगी हूँ |पर सब बेकार गया |"
"मैंने कुछ नहीं किया |पापा बाहर खड़े थे बस दरवाजा खोल दिया |" सोनिया की माँ खीजती हुई बोली |
'हे! भगवान इंसान की कोई इज्जत ही नहीं है आजकल |' मनोहर मन ही मन बुदबुदाते अंदर चले गये |
जैसे तैसे माँ ने दरवाजा बंद किया और राहत भरी साँस लेते हुए कुर्सी पर जा बैठी | 'बड़ी मुसीबत है|'
"भाग्यवान चाय बना दूँ |थोड़ी राहत मिल जाएगी |" अंदर से आवाज आयी |
"हाँ बना दो, आपका मन उछल कूद कर रहा होगा |मैं पहले से इन मुसीबतों की मारी हूँ तुम्हे बस चाय की सूझ रही है |"
मनोहर ने चाय बनायी और धर्मपत्नी के सामने नाश्ते के साथ रख दी | "लो चुस्की लो और अपना गुस्सा दूर कर लो |"
धर्मपत्नी को बहुत गुस्सा आया पर अपने आपको काबू में रखा और चाय के घूँट लेने लगी |अजीब स्वाद था मन को भा गया |सारी थकान और गुस्सा कोसों दूर भाग गये |
"ये चाय कैसे बनायी |" धर्मपत्नी हँसते हुए बोली |
मनोहर भी हँसने लगे |
- अशोक बाबू माहौर
ग्राम कदमन का पुरा, तहसील अम्बाह, जिला मुरैना (मप्र) 476111
मो - 8802706980
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