आसमान छूते पेट्रोल के दाम राजनीति और अर्थव्यवस्था घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल की रिटेल कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों से जुड़ी
आसमान छूते पेट्रोल के दाम राजनीति और अर्थव्यवस्था
चार राज्यों एवं एक केंद्रशासित प्रदेश के चुनाव समाप्त होते ही पेट्रोल और डीज़ल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं l विधानसभा चुनावों से पहले एक्साइज ड्यूटी में कटौती की मांग की जा रही थी लेकिन सरकार ने इस का ठीकरा तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक प्लस पर फोड़ दिया था । सरकार का कहना था कि ये देश उत्पादन को सीमित कर के कीमतों में तेजी ला रहे हैं। लेकिन सरकारी तेल कंपनियों ने 28 फरवरी से लेकर 23 मार्च तक पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बढ़ोतरी नहीं की जबकि इस दौरान भारत की क्रूड कॉस्ट 68 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई थी। अब विधानसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं और एक बार फिर पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़नी शुरू हो गई हैं। देश के कई शहरों में पेट्रोल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर के पार चली गई है।
घरेलू बाजार में पेट्रोल और डीजल की रिटेल कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों से जुड़ी हैं l इसका मतलब है कि अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं, तो रिटेल कीमतें कम होनी चाहिए, लेकिन ज्यादा तर बार ऐसा नहीं होता है l ऐसा इसलिए है, क्योंकि क्रूड ऑयल की कीमतें गिरने के बाद सरकार नए टैक्स लगा देती है l देश में पेट्रोल और डीजल की कीमत का सीधा रिश्ता विदेश में कच्चे तेल की कीमत से नहीं टैक्स और डीलर्स के कमीशन से है l
पेट्रोल की कीमत कैसे तय होती है ?
दुनिया भर में 160 किस्म के कच्चे तेल का कारोबार होता है l यह उनके घनत्व से ले कर तरलता के स्तर पर निर्भर करता है l ज्यादा तर कच्चे तेल अपने भौगोलिक नामों जैसे ब्रेंट क्रूड, ओमान क्रूड, दुबई क्रूड से पहचाने जाते हैं l भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से आयात करता है और इस आयातित कच्चे तेल का भाव ब्रेंटस, ओमान, दुबई के भाव से तय होता है l ऑयल मार्केटिंग कंपनियां और रिफाइनरी इस कच्चे तेल को खरीद कर ले आती हैं और उसे साफ सुथरा कर के अलग-अलग पेट्रोलियम पदार्थों- पेट्रोल, डीजल को देश भर में भेजती हैं l गौरतलब है कि जिस पेट्रोल के एक लीटर की मूल कीमत पर एक्साइज ड्यूटी, डीलर कमीशन और वैल्यू ऐडेड टैक्स (VAT) जुड़ने के बाद उस की कीमत दुगनी हो जाती है l यानी कि अगर टैक्स कम हो जाए तो पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम हो सकती हैं l
देश के भीतर पेट्रोल या डीजल की कीमतों के तय होने के लिए हम दिल्ली का उदाहरण लेते हैं l सबसे पहले पेट्रोल की कीमत में बेस कीमत जुड़ती है, जैसे दिल्ली में 16 फरवरी 2021 के हिसाब से बेस कीमत 31.82 रुपए प्रति लीटर थी l उसके बाद उसमें भाड़े के 28 पैसे और जुड़ गए l इसके बाद ऑयल मार्केटिंग कंपनियां यह तेल 32 रुपए 10 पैसे के भाव से डीलर्स को बेचती हैं l इसके बाद केंद्र सरकार हर लीटर पेट्रोल पर 32 रुपए 90 पैसे उत्पाद शुल्क लगाती है l एक झटके से पेट्रोल की कीमत 65 रुपये हो जाती है l इसके अलावा हर पेट्रोल पंप डीलर हर लीटर पर 3 रुपए 68 पैसे का कमीशन जोड़ता है l इसके बाद जहां पेट्रोल बेचा जाता है उसकी कीमत में उस राज्य सरकार (उदाहरण के लिए दिल्ली) की ओर से लगाए गए वैट या बिक्री कर यानी 20 रुपए 61 पैसे और जुड़ जाते है, और कुल मिला कर अंत में एक लीटर पेट्रोल के लिए आम आदमी को 89 रुपए 29 पैसे चुकाने पड़ते हैं l
बता दें कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों में हर रोज सुबह 6 बजे बदलाव होता है l पेट्रोल-डीजल के दाम में एक्साइज ड्यूटी, डीलर कमीशन और दूसरी चीजें जोड़ने के बाद इस का दाम करीब दोगुना हो जाता है l विदेशी मुद्रा दरों के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें क्या हैं, इस आधार पर रोज पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बदलाव होता है l इसे डायनामिक प्राइसिंग कहाँ जाता हैं l
डायनामिक प्राइसिंग
इस व्यवस्था के तहत पेट्रोल और डीजल के रेट की रोज समीक्षा होती है। इसके आधार पर रोज सुबह पेट्रोल और डीजल का रेट तय किया जाता है । इस से पहले पेट्रोल और डीजल की कीमत 15 दिन के अंतराल पर निर्धारित की जाती थी l
तेल का सफ़र
जितनी तेल की कीमत होती है लगभग उतना ही टैक्स भी लगता है l कच्चा तेल ख़रीदने के बाद रिफ़ाइनरी में लाया जाता है और वहां से पेट्रोल-डीज़ल की शक्ल में बाहर निकलता है l इसके बाद उस पर टैक्स लगना शुरू होता है l सबसे पहले एक्साइज़ ड्यूटी केंद्र सरकार लगाती है l फिर राज्यों की बारी आती है जो अपना टैक्स लगाते हैं l इसे सेल्स टैक्स या वैट कहा जाता है l इसके साथ ही पेट्रोल पंप का डीलर उस पर अपना कमीशन जोड़ता है l अगर आप केंद्र और राज्य के टैक्स को जोड़ दें तो यह लगभग पेट्रोल या डीजल की वास्तविक कीमत के बराबर और कभी कभी उस से ज़्यादा होती है l उत्पाद शुल्क से अलग वैट एड-वेलोरम (अतिरिक्त कर) होता है, ऐसे में जब पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ते हैं तो राज्यों की कमाई भी बढ़ती है l
इतना लंबा सफर तय करने के बाद पेट्रोल आम लोगों तक पहुँचता हैं l अब फ़र्ज़ कीजिए कि एक्साइज़ ड्यूटी और वैट, दोनों हटाकर पेट्रोल को भी जी.एस.टी. के दायरे में लाने का फ़ैसला कर लिया जाए तो क्या होगा ? एक्साइज़ ड्यूटी और वैट, दोनों हटाकर पेट्रोल को भी जी.एस.टी. के दायरे में लाने का फ़ैसला कर लिया जाए तो पेट्रोल की कीमतें कुछ यूँ होगी l
हालांकि यह मुश्किल हैं क्योंकि सरकार चाहे राज्य की हो या केंद्र की भले ही वो जनता को लुभाने के लिए पेट्रोल को जी.एस.टी. की कक्षा में लाने की वकालत करें परंतु वास्तव में लाएगी नहीं क्योंकि पेट्रोल पर लगाए गए टैक्स सरकार की आय का मुख्य स्त्रोत हैं l
क्या कहना है सरकार का ?
ऑयल मार्केटिंग कंपनियां अंतरराष्ट्रीय कीमतों के आधार पर पेट्रोल-डीजल की कीमतों में संशोधन करती हैं l भारत में कीमतों के इस तरह से तय होने की प्रक्रिया को डायनमिक प्राइसिंग कहते हैं और यह हर रोज तय होती है l सरकार का मूल्य निर्धारण पर कोई नियंत्रण नहीं है l इस बाबत पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने सदन में बयान दिया है l
सरकार का कहना है कि, "पेट्रोल कंपनियां कीमतों को तय करने के लिए स्वतंत्र होती है और सरकार इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करती l राज्य सभा के एक सवाल के जवाब में पेट्रोलियम मंत्री धर्मंद्र प्रधान ने कहा कि “पेट्रोलिम पदार्थों की कीमतों को तय करने की एक अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया है जो कि दशकों से चली आ रही है l हमारा देश जरूरत का करीब 80 फीसदी कच्चा तेल बाहर से आयात करता है l जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ती है तो हमें उसी हिसाब से घरेलू कीमत को बदलना होता है l जब कीमत कम होती है तो घरेलू बाजार में भी कीमत घट जाती है l कीमतों को तय करने का यह तरीका सभी मार्किटिंग कंपनियों ने मिलकर विकसित किया है l हमने इसके लिए इन कंपनियों को पूरी आजादी दी है l"
अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमतें लगातार बढ़ रही है l पिछले हफ्ते ब्रेंट क्रूड की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई थी l लॉकडाउन खत्म होने और कोरोना की दवा (वैक्सीन) आने के बाद से कच्चे तेल के बाजार मे उछाल जारी है और घरेलू बाजार में कीमतें तकरीबन हर रोज बढ़ रही है, लेकिन सवाल है कि कच्चे तेल के भाव बढ़ने से घरेलू कीमत बढ़ जाती है लेकिन जब कच्चे तेल की कीमत नीचे जाती है तो उसका फायदा आम लोगों को पूरा क्यों नहीं मिलता ?
अब आइये समझते हैं उन टैक्सों को जो पेट्रोल पर राज्य एवं केंद्र सरकारों द्वारा लगाए जाते हैं l
क्या है एक्साइज ड्यूटी ?
एक्साइज ड्यूटी एक तरह का टैक्स है, जो भारत के अंदर कोई प्रोडक्ट प्रोड्यूस करने या उसे बेचने पर लगाया जाता है। सरकार इस पैसे से रेवेन्यू जनरेट करती है और फिर उस से समाज कल्याण के काम करती है। ध्यान रहे कि यह कस्टम ड्यूटी से बिल्कुल अलग है, जो बाहर से देश में आने वाली चीजों पर लगता है।
VAT क्या हैं ?
वैट / VAT (Value Added Tax) एक प्रकार का अप्रत्यक्ष कर है जो वस्तु और सेवा पर लगाया जाता है। क्योंकि वस्तु और सेवा उत्पादन के हर पड़ाव में मूल्य की वृद्धि होती जाती है इसलिए वस्तु के उत्पाद से लेकर बिक्री तक, हर पड़ाव में वैट / VAT (Value Added Tax) लगाया जाता है। वैट (VAT) किसी भी देश के GDP का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। हलाकि, वैट (VAT) निर्माताओं द्वारा सरकार को भरा जाता है, परन्तु वास्तव में यह टैक्स, ग्राहक, वस्तु को खरीदने के समय भरते है, निर्माता सिर्फ कर सरकार तक पहुँचाने का काम करता है।
सरकार के खाते में जाती है कमाई
पेट्रोल-डीजल पर कई तरह के टैक्स लगते हैं l इनमें रोड सेस भी लगाया जाता है l पेट्रोल खरीदते वक्त आप एक बड़ा हिस्सा रोड़ सेस के रूप में चुकाते हैं, जो एक तरह का टैक्स ही है l पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले इस रोड सेस से तेल कंपनियों को कोई कमाई नहीं होती, न ही रिटेलर इससे कमाते हैं l बल्कि यह पूरी कमाई सरकार के खाते में जाती है l
क्यों और कब से लग रहा है रोड सेस ?
रोड सेस की शुरुआत 1998 में हुई थी l पहले इसे सिर्फ पेट्रोल पर लगाया जाता था मगर, 1999 में इसे डीजल पर भी लगाया जाने लगा l रोड सेस से होने वाली कमाई का इस्तेमाल देश में सड़क, ब्रिज, अंडरपास बनाने के लिए किया जाता है l सरकार इसे पेट्रोल और डीजल का इस्तेमाल करने वालों से वसूलती है l मतलब इस का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है l एक वक्त था, जब सरकार सिर्फ 1 रुपए रोड सेस वसूलती थी l लेकिन, धीरे-धीरे इसे बढ़ाया जाता रहा l आज एक लीटर पेट्रोल-डीजल खरीदते वक्त 18 रुपए प्रति लीटर तक चुकाने पड़ते हैं l
कभी 1 रुपए था रोड सेस
1998 में जब रोड सेस की शुरुआत हुई तो एक लीटर पर सिर्फ 1 रुपए वसूला जाता था l अप्रैल 2003 में पहली बार रोड सेस में 50 पैसे की बढ़ोतरी हुई l अप्रैल 2005 में फिर से 50 पैसे की बढ़ोतरी की गई l 2005 तक यह 2 रुपए प्रति लीटर वसूला जाने लगा l इस के बाद धीरे-धीरे इस में बढ़ोतरी होती रही l
पेट्रोल के दाम और अर्थव्यवस्था
ऐसे समय में जब भारत की जी.डी.पी. (India GDP) लगातार दो तिमाहियों से संकुचन के बाद ग्रोथ के लिए तैयार है, तो ईंधन की बढ़ती कीमतें (Fuel price hike) विलेन बन कर ग्रोथ की रफ्तार को घटाने का काम कर रही हैं l यदि ईंधन की कीमतें उच्च स्तर पर बनी रहती हैं, तो इस से उच्च मुद्रास्फीति का दौर शुरू हो सकता है l जिस का देश की आर्थिक रिकवरी की गति पर सीधा प्रभाव पड़ेगा l
सरकार को क्यों घटानी चाहिए ईंधन की कीमतें ?
जानकारों का मानना है कि सरकार को महंगाई को बढ़ने से रोकने के लिए पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले करों को युक्तिसंगत बनाने का तरीका खोजने की जरूरत है, क्योंकि मुद्रास्फीति का प्रभाव पहले से ही देश के लाखों उपभोक्ताओं, कई क्षेत्रों और व्यवसायों द्वारा महसूस किया जा रहा है l
बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज (BOAS) ने हाल ही में यह चिंता जाहिर की थी कि भारत में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से महंगाई बढ़ सकती है और अर्थव्यवस्था के सही ट्रैक पर आने के बवजूद भी खपत कम हो सकती है l नोट में कहा गया है कि ईंधन पर करों में कटौती करने से ज्यादा नुकसान होने की गुंजाइश भी नहीं रहेगी और इससे उपभोग का स्तर भी बना रहेगा l सीधे शब्दों में कहें तो, बढ़ती कीमतों का मांग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जो जी.डी.पी. वृद्धि को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण है l इसके साथ यह भी कहा गया है कि यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बनी रहती हैं, तो भारत सरकार को पेट्रोल और डीजल पर लगाए गए उच्च उत्पाद शुल्क और अन्य शुल्कों में कटौती करके उपभोक्ताओं के बोझ को कम करना चाहिए l
हालांकि, यह बात सर्व विदित है कि भारत लगातार विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है l लेकिन, उस ट्रैक पर से अगर विकास की गाड़ी उतरती है तो यह अच्छा नहीं होगा, क्योंकि लाख विकास के बाद भी भारत अभी भी एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है l जिसकी अधिकांश आबादी में कम आय वर्ग के लोग शामिल हैं l इसके विपरीत, यहां पर क्या किया जा रहा है ? यहां पर पेट्रोल-डीजल पर टैक्स बढ़ाकर आम लोगों पर बोझ को बढ़ाया जा रहा है l साथ ही तेल के महंगे होने से महंगाई बढ़ रही है l महंगाई से खपत पर असर हो रहा है l खपत घटने से उत्पादन कम करना पड़ रहा है l उत्पादन कम किए जाने पर बेरोजगारी बढ़ रही है l इस तरह से भारत एक चक्र में फंसता जा रहा है l
क्योंकि ईंधन के बढ़ते दामों का सीधा संबंध महंगाई से हैं l जब ईंधन के दाम बढ़ते हैं तो महंगाई भी बढ़ती हैं जिस का विपरीत परिणाम सत्ताधारी राजनीतिक दल की लोकप्रियता एवं देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता हैं l
भारत में पेट्रोल की कीमत का 69 प्रतिशत हिस्सा अलग-अलग टैक्सेज का है, वहीं, डीजल के मामले में यह 54 प्रतिशत से अधिक है l लेकिन, ईंधन की कीमतों पर इतना ज्यादा टैक्स लगाना एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है, क्योंकि भारत में प्रति व्यक्ति आय अपेक्षाकृत कम है l
तेल के दाम बढ़ने से परिवहन लागत बढ़ जाती है l जिसका कई वस्तुओं पर व्यापक असर पड़ता है l कॉरपोरेट कार्यालयों से लेकर मंडियों तक, कई क्षेत्रों में इस समय ईंधन की बढ़ती कीमतों की गर्मी महसूस हो रही है l ईंधन की उच्च कीमतें, खास कर के डीजल के दाम बढ़ने से समस्त नागरिकों पर इस का असर पड़ता है l हर किसी को किसी भी चीज के लिए ज्यादा भुगतान करना पड़ता है l जिसका सीधा असर उनकी बचत पर होता है l कम बचत होने से उनकी कंजम्प्शन पॉवर कम हो जाती है l इसके बाद मांग में कमी देखी जाती है l मांग घटने पर कंपनियां उत्पादन घटाने के लिए मजबूर हो जाती है l
विपक्षी दलों समेत देश के नागरिकों की बड़ी संख्या में लोगों ने केंद्र सरकार से ईंधन की कीमतों को लेकर कुछ विशेष कदम उठा कर राहत प्रदान करने का आग्रह किया है l हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कुछ दिनों पहले कहा था कि केंद्र और राज्यों को समन्वय करना चाहिए और ईंधन की कीमतों को कम करने पर काम करना चाहिए l
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी भारत में ईंधन की बढ़ती कीमतों के बारे में चिंता व्यक्त की है l रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के मुद्रास्फीति प्रभाव और पेट्रोल और डीजल पर उच्च अप्रत्यक्ष कर की दरों और विशेष रूप से प्रमुख वस्तुओं और सेवाओं की मुद्रास्फीति में पिक-अप के कारण सीपीआई मुद्रास्फीति खाद्य और ईंधन को छोड़कर 5.5 प्रतिशत पर बनी रही l
पिछली सरकार से तुलना
पिछली सरकार से तुलना करने पर हम पाते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल के दाम अधिक होने के बावजूद पेट्रोल देश में कम कीमतों पर बिकता था और अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कीमतें घटने पर आम जनता को राहत मिलती थी क्योंकि उस समय ईंधन पर सरकारों द्वारा कम टैक्सेज़ लगाए जाते थे l इसे हम निम्नलिखित चार्ट द्वारा समझ सकते हैं l
विश्व और हम
इस समय विश्व में पेट्रोल पर सब से अधिक टैक्सेज़ भारत में लगाए जाते हैं l जो कि 69 प्रतिशत से अधिक हैं l जबकि यह दर इटली में 64 %, जर्मनी और फ्रांस में 63 % हैं l असल में केंद्र और राज्य दोनों तरह की सरकारें अपने खजाने की भरपाई के लिए तेल पर टैक्स लगाने का सहारा ले रही हैं l केंद्र सरकार ने इसके पहले मार्च महीने में ही पेट्रोल-डीजल पर 3 रुपये लीटर तक टैक्स बढ़ा दिया था, एक बार फिर इसे बढ़ाया गया है ताकि कच्चे तेल की घटी कीमत का फायदा उठाया जा सके l
जल्द ही सरकार ने ईंधन के दामों को कम कर के जनता को राहत पहुँचाने का प्रबंध करना चाहिए वरना इस का खमियाज़ा आम जनता, देश की अर्थव्यवस्था के साथ साथ सत्ताधारी दल को अगले चुनावों में भुगतना पड़ सकता हैं l पिछले दिनों हुए चार राज्यों एवं एक केंद्रशासित प्रदेशों के चुनावों में हम इस का ट्रेलर देख चुके हैं l
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