देवभूमि हिमालय के वरद पुत्र के नाम से प्रख्यात साहित्यकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का जन्म १५ अगस्त, १९५९ को हुआ। निशंक जी का बचपन अत्यंत गरीबी में गुजरा
तत्वदर्शी निशंक
देवभूमि हिमालय के वरद पुत्र के नाम से प्रख्यात साहित्यकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ का जन्म १५ अगस्त, १९५९ को हुआ। निशंक जी का बचपन अत्यंत गरीबी में गुजरा। उन्होंने कई कठिनाइयों और संघर्षों का सामना कर अपने सपनों को साकार किया। सर्वप्रथम शिक्षक के रूप में जाने गए। इसके बाद उन्होंने पत्रकारिता जगत में अपने कदम बढ़ाए और फिर राजनीति की ओर उन्मुख हुए। वर्तमान में वे भारत के शिक्षा मंत्री हैं और उन्हें ‘नई शिक्षा नीति-२०२०’ का श्रेय प्राप्त है। साहित्यिक क्षेत्र के साथ-साथ राजनीतिक क्षेत्र में भी उनकी ख्याति में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोतरी हुई है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं बल्कि अपने सतत कर्म का ही सुफल ‘निशंक’ जी को मिल रहा है।
हिंदी साहित्य जगत को प्रख्यात साहित्यकार रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने अनेक साहित्यिक रचनाएँ दी हैं। कविता, कहानी, उपन्यास, बाल साहित्य, पर्यटन, तीर्थाटन तथा व्यक्तित्व विकास जैसी अनेक विधाओं में अब तक उनकी पाँच दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हैं। उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए उन्हें देश के तीन राष्ट्रपतियों द्वारा सम्मान भी प्राप्त हो चुका है। उन्हें भारत गौरव, राष्ट्र गौरव, साहित्य भारती, साहित्य गौरव, साहित्यचेता सम्मान के साथ-साथ मॉरीशस सरकार द्वारा प्राप्त मॉरीशस सम्मान एवं अंतरराष्ट्रीय असाधारण उपलब्धि सम्मान तथा राहुल सांकृत्यायन राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार सम्मान से भी विभूषित किया गया है। ऐसे साहित्यकार को समर्पित ग्रंथ ‘तत्वदर्शी निशंक’ (2021) हिमालय पुत्र डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की साहित्य-साधना का दक्षिण भारत की ओर से हिंदी सेवी प्रतिभाओं द्वारा पहली बार किया गया समग्र विवेचनात्मक व विश्लेषणात्मक मूल्यांकन है।
इस ग्रंथ के संपादक प्रो. ऋषभदेव शर्मा कहते हैं कि आपदाओं को अवसरों में बदलने का संकल्प इस ग्रंथ के नायक रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को ‘तत्वदर्शी निशंक’ बनाता है। (पृ.9) कहना ही होगा कि निशंक जी अपने संघर्षमय जीवन को एक नया मोड़ देकर सारे दुखों को अवसरों में रूपांतरित कर संवेदनशीलता और सृजनात्मकता को साहित्यिक रचनाओं के द्वारा प्रतिफलित कर साहित्यिक व्यक्तित्व के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। ‘तत्वदर्शी निशंक’ ग्रंथ में उनकी समग्र साहित्यिक रचनाओं का सूक्ष्म विवेचन करते हुए समग्र साहित्यिक मूल्यांकन किया गया है।
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की रचनाएँ एक ऐसे दस्तावेज के रूप में है, जिसका समग्र अनुशीलन करने पर ज्ञात होता है कि उन्होंने जीवन को सिर्फ देखा नहीं, बल्कि उसे भोगा भी है। इस बात का पता हमें उनकी इन पंक्तियों से चलता है- “प्रतिक्षण मैं संघर्षों की मालाओं से बँधा हुआ हूँ/ राजनीति के चक्रव्यूह में अभिमन्यु सा घिरा हुआ हूँ।” (पृ.12) तभी जाकर उन्होंने साहित्यिक व्यक्तित्व के रूप में अपनी छाप छोड़ी और साहित्यिक रचनाओं को केंद्र में लाकर सुशोभित कर दिया।
विवेच्य ग्रंथ के तृतीय खंड का शीर्षक ‘कहानियों का संसार’ है। इस खंड के अंतर्गत डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की कहानियों में आदर्श और यथार्थ का परत दर परत विवेचन किया है। डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा कहती हैं कि “रमेश पोखरियाल निशंक एक ऐसे समसामयिक साहित्यकार हैं जिन्होंने अपनी अनुभूत सच्चाइयों को अपनी रचनाओं की विषयवस्तु बनाया है।” (पृ.104)। अंत में इन्होंने आदर्श और यथार्थ की स्थिति को उजागर करते हुए निशंक की रचनाओं में द्रष्टव्य यथार्थ की अभिव्यक्ति और आक्रोश की अभिव्यक्ति को उदाहरण सहित विवेचित- विश्लेषित किया है। डॉ. डॉली ने रमेश पोखरियाल निशंक की कहानियों में समकालीन परिवेश को दिखलाते हुए ग्रामीण और नगरीय परिवेश की समस्याओं को विवेचित किया है। ज्ञानचंद 'मर्मज्ञ' ने निशंक जी की कहानियों में निहित समाज दर्शन और राष्ट्रवाद को रेखांकित किया है। डॉ. श्रीलता विष्णु ने निशंक की कहानियों की भाषा और तेवर को विलक्षण बतलाते हुए उन्हें मानवीयता का चतुर चितेरा सिद्ध किया है। अंत में उन्होंने कहा है कि ‘निशंक की दृष्टि कबीर की दृष्टि के समान पूर्णत: चरितार्थ है। डॉ. सुषमा देवी ने निशंक की कहानियों में टूटते बिखरते समाज बनाम आशावादी स्वर को भिन्न-भिन्न संदर्भों के द्वारा विवेचित किया है।
चतुर्थ खंड का शीर्षक ‘उपन्यास सृष्टि’ है। इस खंड के अंतर्गत डॉ. बी. बालाजी ने रमेश पोखरियाल निशंक के उपन्यासों में पहाड़ी जीवन के जीवंत दस्तावेज को बखूबी दिखलाने का प्रयास किया है। अंत में इन्होंने कहा है कि निशंक अपने उपन्यासों के अंतर्गत बहुत ही सरलता से मुहावरों, लोकोक्तियों, बिंबों, उपमानों, रूपों का प्रयोग कर कलात्मक शैली का अद्भुत रूप प्रतिफलित करते हैं। डॉ. मंजु शर्मा ने निशंक के उपन्यासों में चेतना के आयाम को प्रतिपादित करते हुए ‘रिश्ते नाते : आदर्श भी विकृत भी’, ‘लोक जीवन और लोक संस्कृति’, ’पलायन और पुनर्वास’, ‘स्त्री जीवन और उसकी समस्याएँ’, ‘पर्वतीय जीवन और उसकी समस्याएँ’ जैसे आयामों द्वारा प्रत्येक मनुष्य के जीवन मूल्य से जोडकर दिखलाने का प्रयास किया है।
पाँचवे खंड का शीर्षक ‘अकाल्पनिक गद्य’ है। इस खंड में प्रवीण प्रणव ने रमेश पोखरियाल निशंक के संस्मरण साहित्य के अंतर्गत प्राकृतिक आपदा में संवेदना के मरहम को परत दर परत दिखाया है। इसके अंतर्गत उन्होंने उत्तराखंड में आई आपदा का चित्रण, आपदा प्रबंधन की खामियों, मौत के तांडव के बीच लोभ की पराकाष्ठा, बाजारीकरण और मीडिया की भूमिका और तीन चार महीने बाद की स्थिति को यथार्थ के परिप्रेक्ष्य में दिखलाने का प्रयास किया है। इसके आगे प्रवीण प्रणव ने निशंक के यात्रा वृत्तांत के अंतर्गत गोचर पहाड़ों से स्नेह और संस्कृति का पुल बखूबी बाँधकर प्रतिफलित किया है। डॉ. सुरेश भीमराव गरुड़ ने निशंक के गद्य में व्यक्तित्व निर्माण के लिए प्रेरणास्पद ओज को विवेचित-विश्लेषित किया है।
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पुस्तक का नाम : ‘तत्वदर्शी निशंक’
संपादक : प्रो. ऋषभदेव शर्मा
सह-संपादक : शीला बालाजी
प्रकाशन : प्रभात प्रकाशन प्रा. लि. नई दिल्ली- 110002
संस्करण : प्रथम , 2021
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पीएच.डी. शोधार्थी,
उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान,
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद- 500 004.
ईमेल- neerajhudge26@gmail.com
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