कुमुद झालावाड़ जिले के एक छोटे से गांव में अपने माता-पिता के साथ छोटे से कच्चे मकान में रहती थी। उस मकान के सहन में नीम का छोटा सा किंतु गहरी छाया वाल
तुम्हारा वादा
कुमुद झालावाड़ जिले के एक छोटे से गांव में अपने माता-पिता के साथ छोटे से कच्चे मकान में रहती थी। उस मकान के सहन में नीम का छोटा सा किंतु गहरी छाया वाला पेड़ था जिस पर अनेक प्रकार के पक्षी आकर बैठ जाते थे और उनकी मीठी आवाज से वातावरण गूंजता रहता था। गर्मी में उस पेड़ पर जब फूल खिलते तो घर के आंगन के अलावा आसपास का माहौल भी फूलों की सुगंध से सुवासित रहता था। कुमुद और उसकी सहेलियां उसकी छाया में खेलती रहती थी। कुमुद के पिता एक खेतीहर किसान थे जो गांव के जमींदार के खेतों में अपना खून पसीना बहा कर खेती करते थे, उनके साथ गांव के अन्य किसान भी जमींदार के खेतों में काम करते थे।
एक बार उस गांव में बारिश न होने से खेतों में फसल की पैदावार नहीं हुई जिससे लोगों को खाने को कुछ नहीं मिला। गांव के लोग भूखों मरने लगे थे। इसलिए वे गांव से पलायन कर गए और दूसरे शहर में जाकर मजदूरी करने लगे। कुमुद के पिता रामेश्वर जो गांव के अन्य लोगों से कुछ पढ़े लिखे थे, को एक फैक्टरी में हिसाब-किताब रखने की नौकरी मिल गई थी। रामेश्वर अब अपनी आमदनी में से गांव भी मनीआर्डर भेजने लगे थे। कुमुद और उसकी मां दोनों आराम से दिन काटने लगे।
इस वर्ष अच्छी बारिश होने से खेतों में फसल भी बढ़िया थी। गांव से शहर में पलायन कर गए मजदूर भी लौटने लगे थे परन्तु कुमुद के पिता रामेश्वर गांव नहीं लौटे तो कुमुद की मां को चिंता होने लगी और ईश्वर से पति की कुशलता की प्रार्थना करने लगी। पति का इंतजार करते हुए दिन काटने लगी थी। अब तो मनीआर्डर आना भी बंद हो गया था।
एक दिन वह अपनी बच्ची कुमुद जो अब चार साल की हो चुकी थी, को साथ लेकर अपने पति की तलाश में शहर निकल पड़ी जहां उसके पति काम करते थे। उसने मनीआर्डर को साथ में ले लिया था जिसमें उस फैक्ट्री का पता था जहां उसके पति काम करते थे। वहां पहुंचकर कुमुद की मां को पता चला कि उसके पति उस फैक्ट्री में अब काम नहीं करते। यह जानकर वह निराश हो गई और आंसुओं से आंखें भर आई। यह देखकर फैक्ट्री के मालिक बसंत ने उसे दिलासा देते हुए कहा कि बहिन इस अंजान शहर में अपने पति को कैसे ढूंढ पाओगी । आप सभी मेरे घर पर चल कर रहें , मैं अपने विश्वास पात्र नौकर के साथ तुम्हें अपने घर भेजने का इंतजाम कर देता हूं। यह सुनकर कुमुद की मां कुछ सोच में पड़ गई। बसंत ने भांप लिया था कि इनको मुझ पर शायद संदेह है। बसंत ने विश्वास दिलाते हुए कहा कि यहीं पास में ही मेरा छोटा सा मकान है जिसमें मेरी बूढ़ी मां और मेरी धर्मपत्नी श्रीमती कमला व तीन साल का बेटा रहता है।
कुमुद की मां रश्मि उस विश्वस्त नौकर के साथ अपनी बेटी कुमुद को लेकर चलदी। वहां उनका भव्य स्वागत किया गया।अब रश्मि के मन में उपजा संदेह दूर हो चुका था। इधर बसंत ने रश्मि के पति को ढूंढने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उसने चारों ओर अपने विश्वास पात्र व्यक्तियों को इस काम में लगा दिया था कि एक दिन उनमें से एक ने बसंत से आकर बताया कि रश्मि दीदी के पति यहां पास ही कृष्णा नगर कालोनी में रहते हैं और उनके साथ एक औरत भी रह रही है। रामेश्वर ने अब वहीं एक छोटा सा जनरल स्टोर खोल लिया है।
यह सुनकर रश्मि का दिल बैठ गया और अब अपने पति से मिलने की उसकी इच्छा बलवती होती जा रही थी। वह पति से मिलकर पूछना चाहती थी कि तुम इतने बेवफा क्यों हो गए ? उसने बसंत के सामने पति से मिलने की अपनी अदम्य इच्छा प्रकट कर दी। बसंत ने अपने एक विश्वासपात्र के साथ रश्मि को उसके पति के पास भेज दिया।
रश्मि अपने मन में अनेक प्रकार की शंकाएं लिए चली जा रही थी और जब वह कृष्णा नगर कालोनी के नज़दीक आ पहुंची तो उसे गुलाब और चमेली के पुष्पों की मिली-जुली सुगंध महसूस हुई। इस सुगंध से कालोनी का वातावरण सुवासित हो उठा था। रामेश्वर अपनी दुकान पर ग्राहकों को सामान देने में व्यस्त था कि अकस्मात् उसकी दृष्टि रश्मि पर जा टिकी। उसे यह सब स्वप्न लग रहा था। वह अभी सोच रहा था कि रश्मि और कुमुद को तो वह गांव छोड़कर आया था, वह यहां पर कैसे आ सकती है लेकिन जब रश्मि दुकान के बिल्कुल पास आकर खड़ी हो गई तो उसका स्वप्न टूट गया और वह स्वप्न की दुनिया से बाहर निकल आया।
रामेश्वर ने रश्मि को दुकान के अंदर बुलाया और उसे एक कुर्सी पर बैठने को कहा। दोनों ही मौन थे। रश्मि को भी समझ नहीं आ रहा था कि अपनी बात कहां से प्रारंभ करे। कुछ देर तक चुप्पी साधे बैठी रही फिर बोली कि आपने विवाह के समय मुझे वचन दिया था कि मैं तुम्हारे नेत्रों में आंसू नहीं आने दूंगा और तुम पर किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं आने दूंगा। तुम पर आने वाली हर परेशानी का मिलकर हल निकालेंगे। अब मुझसे किया गया तुम्हारा वादा क्यों भूल गए। आगे अपनी बात का क्रम जारी रखते हुए कहने लगी कि यह पुरुष प्रधान समाज पुरुष को तो एक पत्नी के होते हुए भी दूसरे विवाह की अनुमति प्रदान करता है और दूसरी ओर यदि स्त्री एक पति के होते हुए या उसकी मृत्यु के बाद अपना दूसरा विवाह रचा लेती है तो यही समाज उसे हेय दृष्टि से देखता है और उसका सामाजिक बहिष्कार करने का फरमान जारी कर देता है। यही इस पुरुष प्रधान समाज का न्याय है। यह कहते हुए रश्मि हांफने लगी थी।
यह देखकर रामेश्वर ने रश्मि को ठंडा पानी पिलाया और चुप रहने का इशारा किया। जब रश्मि का हांफना बंद हुआ तो रामेश्वर ने अपनी बात कहना प्रारंभ करते हुए कहा कि जिस महिला से मेरे विवाह की चर्चा तुमने सुनी है वह ओर कोई नहीं है, वह मेरी छोटी बहन यशोदा है जिसका विवाह पिता अपने सामने ही बचपन में कर चुके थे। तुम शायद विस्मृत कर चुकी हो कि यशोदा शादी के बाद गांव मिलने भी आयी थी। इसके पति का असाध्य रोग से देहांत हो चुका है और अब मेरे अतिरिक्त अन्य कोई सहारा नहीं है। इसकी यह दशा देखकर मुझसे रहा नहीं गया था और मैं इसे अपने साथ ही यहां ले आया।
मुझे फैक्ट्री से इतनी आमदनी नहीं थी कि उसमें मैं मनीआर्डर भी भेजता और यशोदा का भी ध्यान रखता। इसलिए मैंने फैक्ट्री से इस्तीफा दे दिया था और उस बची हुई रकम से यह छोटा सा जनरल स्टोर खोल लिया और किराये पर यह छोटा सा मकान भी ले लिया है। मैं स्वयं ही समय निकाल कर गांव आना चाहता था और इस अचानक घटी घटना से अवगत कराना चाहता था लेकिन अब तुम ही यहां चली आई। इतना कहकर रामेश्वर ने यशोदा को आवाज देते हुए कहा कि देखो तुमसे मिलने कौन आया है। यह सुनकर यशोदा ने बाहर आकर देखा कि उसकी भाभी रश्मि थी। यशोदा ने रश्मि के चरणस्पर्श किये और अन्दर ले गई।
अब तक रश्मि सहज हो चुकी थी और उसकी सारी शंकाएं दूर हो चुकी थी। रश्मि ने अपने पति से कहें कठोर शब्दों के लिए क्षमा मांगी। रश्मि ने अब कुमुद को भी अपने पास बुला लिया था और वह अपने पति और छोटी ननद के साथ सुख से रहने लगी।
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