1996 में ग्यारहवीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए। चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पार्टी ने सबसे
1996 में 13 दिन के लिए पीएम बने अटल बिहारी वाजपेयी
1996 में ग्यारहवीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए। चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पार्टी ने सबसे ज्यादा सीटें यू.पी. में जीतीं। भारतीय जनता पार्टी ने 161 सीटों में से 52 सीटें यू.पी. से जीतीं। जबकि मध्यप्रदेश से पार्टी के खाते में 27 सीटें आई। बिहार में भा.ज.पा. ने 18 सीटें जीतीं जो कि 1991 के आम चुनाव से 13 सीटें ज्यादा थी। महाराष्ट्र से भा.ज.पा. के खाते में 16 सीटें और गुजरात से 12 सीटें आई। इस चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ 140 सीटें मिली और पार्टी दक्षिण में भी पिछड़ गई। 1991 के लोकसभा चुनाव में जहां दक्षिण में कांग्रेस का प्रदर्शन उम्दा था वहीं, 1996 के चुनाव में पार्टी को दक्षिण में झटका लगा। कांग्रेस ने तमिलनाडु में जहां इससे पिछले चुनाव में 28 सीटें जीती थी वहीं, इस चुनाव में तमिलनाडु में एक भी सीट नहीं जीत पाई। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस के खाते में सिर्फ 15 सीटें आई। जबकि मध्यप्रदेश में पार्टी ने 8, केरल में 7 और कर्नाटक में 5 सीटें जीतीं। कांग्रेस ने 1996 के चुनाव में गुजरात में 10 सीटें और ओडिशा में 16 सीटें जीतीं। पार्टी ने राजस्थान में 12 सीटें और पश्चिम बंगाल में 9 सीटें जीतीं। यह चुनाव अप्रैल 1996 से लेकर मई 1996 के बीच संपन्न हुा।
13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी
भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी और राष्ट्रपति ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। अटल बिहारी वाजपेयी ने 16 मई को प्रधानमंत्री का पद संभाला लेकिन, 13 दिन ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ पाए और बहुमत साबित न कर पाने की वजह से इस्तीफा देना पड़ा। जनता दल के नेता एच. डी. देवेगौडा ने 1 जून को संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार का गठन किया। लेकिन उनकी सरकार भी 18 महीने ही चली। देवेगौड़ा के कार्यकाल में ही विदेश मंत्री रहे इन्द्र कुमार गुजराल ने अगले प्रधानमंत्री के रूप में 1997 में पदभार संभाला। कांग्रेस इस सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी। इसके बाद देश में 1998 में मध्यावधि चुनाव हो गए।
1996 के लोकसभा चुनावों में 8 राष्ट्रीय और 30 क्षेत्रीय दल मैदान में थे। इस चुनाव में 171 रजिस्टर्ड पार्टियां चुनाव लड़ रही थीं। जब चुनाव नतीजे आए तो क्षेत्रीय पार्टियों को 543 में से 129 सीटें मिलीं। इस चुनाव से पहले ही कई पूर्व कांग्रेसी पार्टी से अलग होकर अपनी पार्टी बना चुके थे। इनमें एन.डी. तिवारी और माधवराव सिंधिया शामिल थे। लेकिन चुनाव में एन.डी. तिवारी को हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में सी.पी.आई. ने 32 और सी.पी.एम. ने 12 सीटें जीतीं। जनता दल के खाते में 46 सीटें आई। चुनाव में जनता दल ने 46 सीटें जीतीं। पार्टी को बिहार में सबसे ज्यादा सीटें मिली। बिहार में जनता दल ने 22 सीटें जीतीं। कर्नाटक में पार्टी के खाते में 16 सीटें आई। जबकि ओडिशा में जनता दल ने चार और यू.पी. में दो सीटें जीती। जम्मू और कश्मीर में पार्टी के खाते में एक सीट आई। इस चुनाव में 10,635 निर्दलीय चुनाव लड़ रहे थे। इनमें से 9 की ही जीत हुई। 1996 के लोकसभा चुनाव में 13,952 प्रत्याशी मैदान में थे।1991 में प्रधानमंत्री बने नरसिंह राव गैर नेहरू-गांधी परिवार के पहले व्यक्ति रहे, जिसने सत्ता में पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। हालांकि, सत्ता में आने के बाद से ही राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा रिपोर्ट, जैन हवाला कांड और तंदूर हत्याकांड जैसे मामलों से सरकार विवादों में आ गई थी। प्रधानमंत्री तक पर आरोप लगे। सात मंत्रियों के इस्तीफे हुए। 1996 के लोकसभा चुनाव आते-आते राव और कांग्रेस अपना तेज खोते गए। चुनाव से पूर्व कई नेताओं ने कांग्रेस से अलग होकर पार्टियां बनाईं। इनमें- एन.डी. तिवारी की ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी), माधवराव सिंधिया की मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस, जी.के. मूपनार की तमिल मनीला कांग्रेस शामिल थीं। भ्रष्टाचार मुद्दा बना और कांग्रेस हार गई। 161 सीटें जीतकर भा.ज.पा. सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। पहली बार लोकसभा में उसे कांग्रेस से ज्यादा सीटें भी मिलीं। अटल बिहारी वाजपेयी 13 दिन तक प्रधानमंत्री रहे, लेकिन बहुमत साबित न कर पाने से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को 140 सीटें मिलीं, लेकिन उसने सरकार न बनाने का निर्णय लिया। हरकिशन सिंह सुरजीत व वी.पी. सिंह के प्रयासों से 13 से अधिक दलों के संयुक्त मोर्चा को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया। चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर के बाद इस बार देवेगौड़ा तीसरे प्रधानमंत्री बने, जिनकी सरकार को कांग्रेस ने समर्थन दिया। हालांकि समर्थन ज्यादा टिक नहीं पाया। कांग्रेस ने बिना किसी ठोस कारण देवेगौड़ा से समर्थन वापस लिया और संयुक्त मोर्चे के ही इंद्रकुमार गुजराल को समर्थन दे दिया।
राजीव गांधी हत्याकांड पर आई जैन आयोग की रिपोर्ट लीक होने के बाद कांग्रेस ने गुजराल से भी समर्थन ले लिया। इस तरह 1998 में देश में एक बार फिर मध्यावधि चुनाव हुए। 1996 के लोकसभा चुनावों में 8 राष्ट्रीय दल, 30 राज्य स्तरीय दल सहित 171 रजिस्टर्ड पार्टियां चुनाव लड़ीं। यानी पहली बार 200 से ज्यादा पार्टियां चुनावी मैदान में थीं। कुल 13,952 प्रत्याशी मैदान में थे। पहली बार उम्मीदवारों की संख्या 10 हजार के पार पहुंची थी। लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों के दबदबे की शुरुआत भी 1996 से हुई। इस बार क्षेत्रीय पार्टियों को 543 में से 129 सीटें मिलीं।
आडवाणी की सीट से वाजपेयी लड़े, जीते
कांग्रेस से अलग होकर कांग्रेस (तिवारी) पार्टी बनाने वाले दिग्गज नेता तिवारी और अर्जुन सिंह दोनों चुनाव हार गए। तिवारी झांसी से लड़े और पांचवें स्थान पर रहे। वहीं अर्जुन सिंह सतना से हार गए। अर्जुन सिंह को ब.स.पा. के सुखलाल कुश्वाह ने हराया। अर्जुन सिंह तीसरे स्थान पर रहे। चुनाव में तिवारी कांग्रेस के सिर्फ दो सांसद सतपाल महाराज और शीशराम ओला ही जीते। राजीव गांधी हत्याकांड की जांच के लिए स्थापित जैन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद कांग्रेस ने इंद्रकुमार गुजराल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चे की सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा की। जैन आयोग की अंतरिम रिपोर्ट लीक होने से इस बात का पता चला था कि डी.एम.के. और इसके नेतृत्व की श्रीलंका के लिट्टे नेता वी. प्रभाकरन को प्रोत्साहन देने में भूमिका थी। हालांकि रिपोर्ट में राजीव गांधी की हत्या के संबंध में डी.एम.के. के किसी भी नेता या किसी भी पार्टी का सीधे नाम नहीं था। लालकृष्ण आडवाणी का नाम हवाला कांड में आने के बाद उन्होंने घोषणा की कि जब तक मैं निर्दोश साबित नहीं होता, तब तक चुनाव नहीं लडूंगा। इसके बाद उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र गांधीनगर से चुनाव नहीं लड़ा। वहां से अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव लड़े। वाजपेयी लखनऊ से भी जीते। बाद में उन्होंने गांधीनगर सीट से इस्तीफा दे दिया।
10वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल के बाद 1996 में 11वां आम चुनाव हुआ और एक बार फिर त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति बन गई। इससे आनेवाले दो साल में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल रहा और तीन प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस और बी.जे.पी. के अलावा एक तीसरा संयुक्ते मोर्चा अस्तित्व में आया। इस यूनाइटेड फ्रंट में 332 सांसद थे। पी.वी. नरसिम्हा राव का नाम कई घोटालों में घसीटा जा चुका था। साथ ही, उनकी सरकार को कश्मीर में हिंसा और पंजाब के आतंकवाद के मामले में असफल माना गया। इसके बाद जनता दल के एच.डी. देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने।
क्या था राजनीतिक परिदृश्य ?
पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार में सात केंद्रीय मंत्रियों ने असंतुष्ट होकर इस्तीफा दे दिया था। चुनाव से एक साल पहले ही सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे। राव को भी भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा। उधर, 1995 में अर्जुन सिंह और नारायण दत्त तिवारी ने कांग्रेस से अलग होकर ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस बनाई। 1995 में एक कांग्रेस नेता द्वारा पत्नी की हत्या का मामला भी सामने आया। इससे भी सरकार की छवि को बड़ा धक्का लगा।
चुनाव परिणाम :-
यह कांग्रेस पार्टी के लिए तब तक का सबसे बुरा चुनाव परिणाम रहा और पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस के अलावा कोई पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। वह थी बी.जे.पी., जिसे 161 सीटें मिलीं और इसकी सहयोगी पार्टियों को भी 26 सीट हासिल हुईं। कांग्रेस को 140 सीटों से संतोष करना पड़ा जो पिछले चुनाव के मुकाबले 92 कम थीं। तीसरे नंबर पर नैशनल फ्रंट रहा जिसमें जनता दल, समाजवादी पार्टी और तेलुगु देशम पार्टी शामिल थी। चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत न मिलने की वजह से सभी दल समर्थन ढूंढने लगे। बड़े दल छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाना चाहते थे। वहीं, बी.जे.पी. और कांग्रेस को सत्ता से दूर रखने के लिए जनता दल, तेलुगु देशम पार्टी, वाम मोर्चा और समाजवादी पार्टी साथ आ गए। इस चुनाव में खास बात थी कि कई क्षेत्रीय पार्टियां भी मजबूत स्थिति में थीं, इसलिए इन्होंने किसी के भी साथ जाने से इनकार कर दिया। इस परिस्थिति में 15 मई को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने बी.जे.पी. को सरकार बनाने का न्योता दे दिया। अटल बिहारी वाजपेयी कुछ क्षेत्रीय और मुस्लिम पार्टियों के सपॉर्ट से प्रधानमंत्री तो बन गए, लेकिन 13वें ही दिन उन्हें पद छोड़ना पड़ा। वह लोकसभा में 200 सदस्यों का समर्थन नहीं हासिल कर सके। इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने सरकार बनाने की पेशकश की। जनता दल की मदद से सरकार बननी थी, इसलिए एच.डी. देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया। वह उस वक्त कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे।
गुजराल को मौका और लालू की नई पार्टी
18 महीने के भीतर ही गठबंधन में आंतरिक कलह की वजह से चुनाव कराने की नौबत आ गई। दोबारा चुनाव कराने से बचने के लिए कांग्रेस दूसरे फ्रंट के साथ चली गई और 21 अप्रैल 1997 को इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बन गए। कुछ दिन बाद गुजराल को अपनी ही पार्टी में विरोध का सामना करना पड़ा। जब लालू प्रसाद यादाव चारा घोटाले में फंस गए तो सी.बी.आई. का दबाव बन गया। उधर, इंद्र कुमार गुजराल ने जांच अधिकारी का तबादला करवा दिया। इससे यह संदेश गया कि प्रधानमंत्री लालू यादव को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बाद लालू प्रसाद ने जनता दल का दामन छोड़कर अपनी अलग पार्टी 'राष्ट्रीय जनता दल' बना ली। हालांकि लालू यादव नई पार्टी बनाने के बाद भी इंद्र कुमार गुजराल के साथ ही रहे।' गुजराल 11 महीने तक प्रधानमंत्री रहे जिसमें से 3 महीने वह कार्यवाहक प्रधानमंत्री (केयर टेकर पी.एम.) थे।
ग्यारहवीं लोकसभा चुनाव की मुख्य बातें
*११वी लोकसभा के लिए जब चुनाव हुए तब साल था १९९६ का । ये चुनाव ०४ दिन तक चले। २७ एप्रिल से ०७ मई तक मतदान हुए। ११वी लोकसभा के लिए उस समय २५ राज्यों और ०७ केंद्रशासित प्रदेशों में ५४३ सीटों के लिए चुनाव हुए ।
*देश की ११वी लोकसभा १५ मई १९९६ को अस्तित्व में आई ।
*११वी लोकसभा के चुनाव हेतु ७,६७,४६२ चुनाव केंद्र स्थापित किए गए थे ।
*उस समय मतदाताओं की कुल संख्या ५९.२६ करोड़ थी ।
*उस समय ५७.९४ % मतदान हुए थे ।
*११वी लोकसभा के लिए ५४३ सीटों के लिए हुए चुनाव में कुल १३९५२ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे जिन में से १२६८८ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी।
*इस चुनाव में कुल ५९९ महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ रही थी जिन में से ४० महिला उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुई ।
*५४३ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ७९ सीटे अनुसूचित जाती के लिए और ४१ सीटे अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित रखी गई थी ।
*११वी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में २०९ राजनीतिक दलों ने भाग लिया था जिन में से राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की संख्या ०८ और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की संख्या ३० थी जबकि १७१ पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दल भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आज़मा रहे थे ।
*राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने कुल १८१७ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, जिन में से ८९७ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के ४०३ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे । इस चुनाव में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को कुल वोटों में से ६९.०८ % वोट मिले थे ।
*इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों ने कुल ७६१ उम्मीदवार खड़े किए थे। रिकॉर्ड के अनुसार इन ७६१ प्रत्याशीयों में से ४६९ प्रत्याशीयों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी और १२९ प्रत्याशी लोकसभा में पहुंचे थे। इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से २२.४३ % वोट मिले थे।
*इस चुनाव में पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों ने ७३८ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। इन ७३८ उम्मीदवारों में से ७१८ उम्मीदवार अपनी ज़मानत बचाने में भी विफल रहे जबकि केवल ०२ उम्मीदवार लोकसभा तक पहुँचने में सफल हुए । इस चुनाव में पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से २.२० % वोट मिले थे।
*इस चुनाव में कुल १०६३६ निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इन १०६३६ निर्दलीय उम्मीदवारों में से केवल ०९ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुआ था । कुल वोटो में से ६.२८ % वोट निर्दलीय उम्मीदवारों ने प्राप्त किए थे जबकि १०६०४ निर्दलीय उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने का रिकॉर्ड मौजूद है।
*इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सब से बड़े दल के रूप में सामने आया। ५४३ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ४७१ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इन में से १६१ उम्मीदवार जीत दर्ज करा कर लोकसभा पहुँचने में सफल हुए तो वही १८० उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने का उल्लेख भी रिकॉर्ड में मौजूद है। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को कुल वोटो में से २०.२९ % वोट मिले थे।
*कांग्रेस दूसरा सब से बड़ा दल बन कर उभरा था। कांग्रेस ने कुल ५२९ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। इन ५२९ उम्मीदवारों में से १२७ उम्मीदवारों की ज़मानत जब्त हुई थी जबकि १४० उम्मीदवार लोकसभा पहुँचने में सफल हुए थे। कांग्रेस को कुल वोटों में से २८.८० % वोट मिले थे।
*सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि ११वी लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में ५,९७,३४,४१,००० (५ अरब, ९७ करोड़, ३४ लाख, ४१ हज़ार रुपये) रुपये की राशि खर्च हुई थी ।
*उस समय श्री टी. एन. शेषन भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे, जिन्होंने ये चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
*११वी लोकसभा ०४ दिसंबर १९९७ को विसर्जित की गई।
*इस चुनाव के बाद ११वी लोकसभा के लिए २२ और २३ मई १९९६ को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया था।
*११वी लोकसभा के सभापती पद हेतु २३ मई १९९६ को चुनाव हुए और श्री पी. ए. संगमा को सभापती और सूरज भान को उपसभापती के रूप में चुना गया।
*११वी लोकसभा के कुल ०६ अधिवेशन और १२५ बैठके हुई। इस लोकसभा में कुल ६४ बिल पास किए गए थे जिस का रिकॉर्ड मौजूद है।
*११वी लोकसभा की पहली बैठक २२ मई १९९६ को हुई थी।
*११वी लोकसभा की ५४३ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ४०३ सीटों पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने, १२९ सीटों पर राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों ने, ०२ सीटों पर पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों ने जबकि ०९ सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की।
COMMENTS