भारतीय आम चुनाव 1998

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भारतीय आम चुनाव 1998 12वां लोकसभा चुनाव 1998: अटल बिहारी बने प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी ने रखा राजनीति में कदम

12वां लोकसभा चुनाव 1998: अटल बिहारी बने प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी ने रखा राजनीति में कदम

डी.एम.के. पार्टी को लेकर कांग्रेस और इंद्र कुमार गुजराल में मचे घमासान की वजह से 1996 के दो साल बाद 1998 में ही फिर लोकसभा चुनाव की नौबत आ गई। 12वें आम चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने और दूसरी तरफ सोनिया गांधी भी राजनीति में कदम रख चुकी थीं। इस चुनाव में एन.डी.ए. गठबंधन को कुल 252 सीटें मिली थीं। इसमें से 182 बी.जे.पी. की थीं। वहीं कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को 165 सीटों पर संतोष करना पड़ा।

क्यों कराना पड़ा इतनी जल्दी चुनाव ?

1996 में ही सरकार के पांच साल के कार्यकाल पूरे होने के बाद चुनाव हुए थे लेकिन 1998 में फिर से चुनाव की स्थिति बन गई। इन दो सालों के दौरान तीन बार प्रधानमंत्री बदले ऐसे में राजनीति में स्थिरता नहीं आ सकी। पहले 13 दिन के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने सरकार बनाई लेकिन बहुमत न साबित कर पाने की वजह से वह सरकार नहीं चला पाए और तब नैशनल फ्रंट के नेता एच.डी. देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने। 18 महीने के भीतर ही कांग्रेस ने एच.डी. देवगौड़ा का साथ छोड़ दिया और वह दूसरे फ्रंट के साथ चली गई। फिर इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बनाए गए। दरअसल यूनाइटेड फ्रंट में कई क्षेत्रीय पार्टियां थीं। डी.एम.के. भी इस गठबंधन का हिस्सा थी। डी.एम.के. पर श्रीलंका के विद्रोही संगठन L.T.T.E. का सहयोग करने का आरोप था। इस संगठन पर ही राजीव गांधी की हत्या का आरोप था। कांग्रेस ने इंद्र कुमार गुजराल से डी.एम.के.  को छोड़ देने को कहा लेकिन गुजराल नहीं माने। ऐसे में कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई।

विदेशी निवेश बनाम राष्ट्रवाद

सरकार के विरोध में कांग्रेस (इंदिरा) के अलावा भारतीय जनता पार्टी थी। राजनीतिक स्थिरता को ही बी.जे.पी. ने चुनाव का मुद्दा बनाया। बी.जे.पी. ने चुनाव प्रचार में भ्रष्टाचार को खत्म करने और देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बात की। एक तरफ कांग्रेस विदेशी निवेश को बढ़ावा देने की बात कर रही थी तो दूसरी तरफ बी.जे.पी. ने राष्ट्रवाद को ढाल बनाकर घरेलू उद्योगों को उनका अधिकार दिलाने की बात की। इसके अलावा सभी पार्टियों ने बिजली, सड़क, पानी और रोजगार को भी अपना चुनावी मुद्दा बनाया। चुनाव में देशभर में 4,750 उम्मीदवार मैदान में थे जिनमें 271 महिलाएं थीं।

सोनिया गांधी का राजनीति में प्रवेश

पहले सोनिया गांधी राजनीति में कदम नहीं रखना चाहती थीं। 1997 में कांग्रेस पार्टी की कमान सीताराम केसरी के हाथों में थी। 1997 में ही सोनिया गांधी ने राजनीतिक दबाव के बीच कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ली और कुछ ही दिनों के भीतर सीताराम केसरी को हटाकर सोनिया गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। बी.जे.पी. ने कांग्रेस के इस कदम की काफी आलोचना की और उनके विदेशी होने के बावजूद अध्यक्ष बनने पर सवाल उठाए। 1998 का चुनाव सीताराम केसरी के ही नेतृत्व में लड़ा गया लेकिन चुनाव के तुरंत बाद कांग्रेस ने सोनिया गांधी को कांग्रेस की कमान दे दी गई।

चुनाव का परिणाम

चुनाव में 61.97 फीसदी मतदान हुआ। चुनाव के बाद बी.जे.पी. 182 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी और

भारतीय आम चुनाव 1998
N.D.A. के पास कुल 252 सीटें थीं। कांग्रेस को सहयोगी पार्टियों के साथ कुल 165 सीटें हाथ लगीं। ज्यादातर सांसद जिन्होंने दोबारा चुनाव करने की मांग की थी वे हार गए थे। तीसरे नंबर पर C.P.M. को 32 और समाजवादी पार्टी को 20 सीटों पर जीत हासिल हुई। खास बात यह थी कि चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बी.जे.पी. से लगभग 1 फीसदी ज्यादा था। 15 मार्च को राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया। 41 पार्टियों के गठबंधन के साथ बी.जे.पी. ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई। हालांकि यह सरकार भी 13 महीने के बाद ही गिर गई। 17 अप्रैल 1999 को लोकसभा में प्रस्ताव पर बहस हुई और इसके बाद वोटिंग हुई। वायपेयी सरकार एक वोट की वजह से गिर गई। साल 1998 देश में 12वें लोकसभा चुनाव का गवाह बना। इससे पहले,  1996 के आम चुनाव में भा.ज.पा. सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। अटल बिहारी वाजपेयी 13 दिन तक प्रधानमंत्री रहे और बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद, संयुक्त मोर्चा गठबंधन सरकार का गठन हुआ लेकिन, यह सरकार भी 18 महीने से ज्यादा नहीं चली। बाद में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनी और इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। 1998 में देश मध्यावधि चुनाव के मुहाने पर आ खड़ा हुआ। 16 फरवरी से 28 फरवरी 1998 के बीच तीन चरणों में चुनाव संपन्न हुए और किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला।

13 महीने ही चली अटल सरकार

इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 182 सीटें मिली। जबकि कांग्रेस के खाते में 141 सीटें आईं। सी.पी.एम. ने 32 सीटें जीती और सी.पा.आई. के खाते में सिर्फ 9 सीटें आई। समता पार्टी को 12, जनता दल को 6 और ब.स.पा. को 5 लोकसभा सीटें मिली। क्षेत्रीय पार्टियों ने 150 लोकसभा सीटें जीतीं। भारतीय जनता पार्टी ने शिवसेना, अकाली दल, समता पार्टी, ए.आई.ए.डी.एम.के. और बिजू जनता दल के सहयोग से सरकार बनाई और अटल बिहार वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। लेकिन इस बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 महीने में ही गिर गई। ए.आई.ए.डी.एम.के. ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया और देश फिर से एक बार मध्यावधि चुनाव के मुहाने पर आ खड़ा हुआ।                        1998 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने 17 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में सीटें जीतीं। जबकि भा.ज.पा. ने 17 राज्यों और 4 केंद्र शासित क्षेत्रों से सीटें जीतीं। 1996 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 26 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों से घटकर 20 पर रह गई। कांग्रेस के मत फीसदी में भी गिरावट आया। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने छोटे से कार्यकाल में परमाणु परीक्षण का एलान किया। देश में पहली बार राजस्थान के पोखरन से परमाणु परीक्षण हुआ।

इला पंत से हारे एन.डी. तिवारी

अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ से चुनाव जीते। उन्होंने स.पा. के मुजफ्फर अली को 2 लाख से ज्यादा वोटो से हराया। अमेठी में गांधी परिवार के नजदीकी सतीश शर्मा को भा.ज.पा. के संजय सिंह ने पराजित किया। नैनीताल क्षेत्र में कांग्रेस के एन.डी. तिवारी को हार का सामना करना पड़ा। वह भा.ज.पा. की प्रत्याशी इला पंत से चुनाव हार गए। चुनाव में पीलीभीत से मेनका गांधी निर्दलीय चुनाव जीतीं। रामपुर में भा.ज.पा. से मुख्तार अब्बास नकवी चुनाव जीते। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में कलकत्ता दक्षिण सीट पर मा.क.पा. के प्रशांत सूर को हराया।

आर्थिक और राजनैतिक अस्थिरता का माहौल

1991 में कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने देश की अर्थव्यवस्था को उदारीकरण की राह पर डालकर नयी दिशा दी थी | लाखों नौकरियों का सृजन हुआ, देश में तरक्की हुई पर साथ ही कई सारे घोटाले भी हुए | इसकी वजह से नरसिम्हा राव को बहुत मुश्किल आई | राव की समस्या थी कि कांग्रेस पार्टी के भीतर उनके समर्थक नहीं थे | विकल्प न होने की वजह से पार्टी ने उन्हें प्रधानमंत्री चुना था | वे राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी थे | उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद अपनाकर प्रतिद्वंदियों को हटाया और अपना रास्ता निष्कंटक बनाया | पर घोटालों के प्रकरणों की वजह से सरकार की ऐसी-तैसी हो रही थी, उसकी साख गिर रही थी | यह तय दिख रहा था कि नरसिम्हा राव जैसे-तैसे कर पांच साल तो खींच लेंगे पर कांग्रेस अगले चुनावों में वापसी नहीं कर पाएगी |

विपक्ष का हाल

कांग्रेस की बदहाली का सीधा-सीधा फ़ायदा भा.ज.पा. को मिला क्योंकि अन्य कोई विपक्षी दल किसी मुद्दे को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में असफल रहा | कभी बोफ़ोर्स कांड के शोर-शराबे को उठाकर विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने थे | उन्होंने मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें लागू करने का वादा भी किया था | पर ऐसा होने से पहले ही भा.ज.पा. ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया था | इसके बाद भा.ज.पा. ने राम मंदिर के मुद्दे पर ध्रुवीकरण शुरू कर दिया जिसकी शुरुआत 1990 में ही हो गई थी | फिर, दिसंबर 1991 में कारसेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दी | देश में अयोध्या मुद्दा छाया हुआ था | ऐसे माहौल में भा.ज.पा. एक मज़बूत विपक्ष बनकर उभरी |

11वें आम चुनाव 

कांग्रेस के कार्यकाल में हुए घोटालों की वजह से विपक्षी पार्टियों को फ़ायदा था | भा.ज.पा. ने अपने घोषणापत्र में पारदर्शी सरकार, उत्तरांचल, वनांचल, छत्तीसगढ़ और विदर्भ को अलग राज्य बनाने के साथ संविधान में कश्मीर को अलग दर्ज़ा देने वाला अनुच्छेद 370 ख़त्म करने की बात कही | पार्टी ने आर्थिक सुधार प्रक्रिया को और तेज़ करने जैसे वादे भी किए | उधर, कांग्रेस ने ‘ग़रीबी हटाओ’ के नारे की तर्ज़ पर लगभग साढ़े छह करोड़ नयी नौकरियों, कृषि सुधार, लोकपाल, पब्लिक सेक्टर कंपनियों के पुनर्गठन और जांच एजेंसियों को स्वायत्तता देने की बात कह रही थी | उसके नेता अपनी चुनावी रैलियों में कहते फिरते कि ‘अनुभव कहता है बारम्बार, कांग्रेस ही दे स्थिर सरकार’ | सुभाष चंद्र बोस के प्रसिद्ध नारे की तर्ज़ पर नरसिम्हा राव ने कहा, ‘तुम मुझे स्थिरता दो, मैं तुम्हें संपन्नता दूंगा |’ कांग्रेस ने पांच लाख ऐसे प्रचारक तैयार किये जो गांव-गांव जाकर सरकार की बात रख रहे थे | उधर, भा.ज.पा. ने पिछले चुनाव की तरह ही इस बार भी राम मंदिर का कार्ड खेला | उसने और भी आक्रामकता के साथ राम मंदिर बनाने के नारे लगवाए | पार्टी ने ‘परिवर्तन’ की हुंकार भरते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा | उसका नारा था कि ‘हमें स्थायी सरकार के साथ जवाबदेह सरकार चाहिए’ | ‘अबकी बारी- अटल बिहारी’ के नारे से देश गूंज उठा |

चुनावी आंकड़े

कांग्रेस को कुल 136 सीटें मिलीं | नेशनल फ़्रंट और लेफ़्ट फ्रंट के गठबंधन को 111 और भा.ज.पा. और उसके समर्थक दलों को सबसे ज़्यादा 186 सीटें मिलीं | इन चुनावों में सबसे अहम बात यह रही कि क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व बढ़ा | सभी क्षेत्रीय दलों ने मिलाकर 101 सीटें जीतीं | नेहरू परिवार पर कांग्रेस की निर्भरता का ही खामियाज़ा था कि मई 1991 में राजीव गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस बेहद कमज़ोर हो गई | 1996 तक सोनिया गांधी ने भी राजनीति से दूरी बनाकर रखी हुई थी | इन चुनावों में कांग्रेस का कुछ वैसा ही हाल था जैसा 1977 में हुआ था | वह अब राष्ट्रव्यापी पार्टी होने का दावा नहीं कर सकती थी |

13 दिन की वाजपाई सरकार

चूंकि 186 सीटें लेकर भा.ज.पा. सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी इसलिए राष्ट्रपति ने उसको सरकार बनाने का न्योता दिया | यह उसके लिए इस तरह का पहला मौका था | 1980 में अपने वजूद में आने के बाद पहली बार भा.ज.पा. की सरकार बनने जा रही थी | पर दिक्कत इस बात की थी कि उसके पास बहुमत नहीं था | इसे संसद में सिद्ध करने के लिए उसे 13 दिन का समय दिया गया | भा.ज.पा. ने जी तोड़ कोशिश करके क्षेत्रीय पार्टियों को मिलाने की कोशिश की | पार्टी के मैनेजरों को एकबारगी यकीन भी हो गया कि उनके पास वह जादुई आंकड़ा आ गया है | पर तमाम विपक्षी पार्टियों ने मानो एकजुट होकर भा.ज.पा. को 272 का आकंड़ा नहीं छूने दिया | 28 मई, 1996 को सरकार गिर गई |

यूनाइटेड फ़्रंट की सरकार

भा.ज.पा. की सरकार गिरने के बाद राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने यूनाइटेड फ़्रंट को सरकार बनाने का न्यौता दिया | उसे कांग्रेस ने समर्थन दिया | एच.डी. देवगौड़ा प्रधानमंत्री बने | हालांकि इस समीकरण में तनानती चलती रही और देवगौड़ा के बाद इंद्र कुमार गुजराल ने प्रधानमंत्री पद संभाला | यह सरकार लगभग दो साल चली | 1998 में कांग्रेस ने लेफ़्ट फ़्रंट की सहयोगी पार्टी डी.एम.के. का राजीव गांधी हत्याकांड में नाम आने से समर्थन वापस ले लिया | इससे सरकार गिर गई | चूंकि किसी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं था, इसलिए अगले आम चुनाव की घोषणा हो गई | ग्यारहवीं लोकसभा का कार्यकाल 15 मई, 1996 से लेकर चार दिसम्बर, 1997 तक रहा |

1998 और बारहवीं लोकसभा का चुनाव

चुनावी आंकड़ों के हिसाब से देश में कुल 65 करोड़ मतदाता प्रत्याशियों की क़िस्मत का फैसला करने वाले थे | तकरीबन 61 फीसदी मतदान हुआ | 543 सीटों के लिए 176 पार्टियों के 4,750 प्रत्याशी मैदान में थे | राष्ट्रीय स्तर की सात और बाकी स्थानीय पार्टियां थीं | औसतन 8.75 प्रत्याशी हर सीट पर थे | 1998 में एक बार फिर भा.ज.पा. को सबसे ज़्यादा (182) सीटें मिलीं | यूं तो कांग्रेस और भा.ज.पा. का वोट प्रतिशत करीब-करीब समान रहा, पर भा.ज.पा. को 41 सीटें ज़्यादा मिलीं |

वाजपेयी को दूसरा मौका

एक बार फिर राष्ट्रपति ने भा.ज.पा. को सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया | सहयोगी दलों की मदद से वह इस मकसद में कामयाब हुई | भा.ज.पा. आज की तरह तब भी एन.डी.ए. का मुख्य घटक दल थी | 1998 में इसके साथ अन्य दल थे- समता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, बीजू जनता दल, शिवसेना, नेशनल तृणमूल कांग्रेस, जनता पार्टी, मिज़ो नेशनल फ़्रंट, एन.टी.आर. तेलगु देशम पार्टी (एल.पी.), हरियाणा विकास पार्टी, ए.आई.ए.डी.एम.के. और तमिलनाडु की ही पी.एम.के. | कुल मिलाकर यह 24 पार्टियों की सरकार थी जिसके मुखिया अटल बिहारी वाजपेयी थे | इतने सारे दलों को साथ लेकर चलना कोई आसान काम नहीं होता | हर पार्टी का अपना मिज़ाज था | यह वाजपेयी का व्यक्तित्व ही था जो इसे संभाल रहे थे | पर एक रोज़ ए.आई.डी.एम.के. की सर्वेसर्वा जयललिता ने किसी बात पर एन.डी.ए. से बाहर निकलने का फ़ैसला कर लिया | इससे एन.डी.ए. गठबंधन अल्पमत में आ गया | अटल बिहारी वाजपेयी को संसद में बहुमत सिद्ध करने को कहा गया | उनके सबसे विश्वस्त पॉलिटिकल मैनेजर प्रमोद महाजन की ज़मीन-ओ-आसमान मिलाने की कोशिश बेकार हुई | वोटिंग होने से पहले वाजपेयी ने सांसदों को अंतरात्मा की आवाज़ पर वोट देने को कहा | लेकिन राजनीति में अंतरात्मा सब कुछ नहीं होती | 13 महीने पुरानी सरकार एक वोट से गिर गई | अटल बिहारी वाजपेयी पहले 13 दिन के लिए और अब महज़ 13 महीनों के लिए प्रधानमंत्री रह पाए | इसके बाद के.आर. नारायण ने कांग्रेस से फ्लोर टेस्ट को कहा | सोनिया गांधी ने इससे इनकार कर दिया | 10 मार्च, 1998 को शुरू हुई बारहवीं लोकसभा 27 अप्रैल, 1999 को भंग हो गई और अगले आम चुनाव की घोषणा हो गई | इस बार भाजपा की अगुवाई वाले एन.डी.ए. ने सरकार चलाने लायक बहुमत हासिल किया और तब पांच सालों के लिए सरकार चल पाई |

चुनाव की मुख्य बातें

*१२वी लोकसभा के लिए जब चुनाव हुए तब साल था १९९८ का ।  ये चुनाव ०४  दिन तक चले। १६ फरवरी से २८ फरवरी तक मतदान हुए। १२वी लोकसभा के लिए उस समय २५ राज्यों और ०७ केंद्रशासित प्रदेशों में ५४३ सीटों के लिए चुनाव हुए ।

*देश की १२वी लोकसभा १० मार्च १९९८ को अस्तित्व में आई ।

*१२वी लोकसभा के चुनाव हेतु ७,७२,६८१ चुनाव केंद्र स्थापित किए गए थे । 

*उस समय मतदाताओं की कुल संख्या ६०.५९ करोड़ थी । 

*उस समय ६१.९७ % मतदान हुए थे । 

*१२वी लोकसभा के लिए ५४३ सीटों के लिए हुए चुनाव में कुल ४७५० उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे जिन में से ३४८६ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी। 

*इस चुनाव में कुल २७४ महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ रही थी जिन में से ४३ महिला उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुई । 

*५४३ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ७९ सीटे अनुसूचित जाती के लिए और ४१ सीटे अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित रखी गई थी । 

*१२वी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में १७६ राजनीतिक दलों ने भाग लिया था जिन में से राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की संख्या ०७ और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की संख्या ३० थी जबकि १३९ पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दल भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आज़मा रहे थे     । 

*राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने कुल १४९३ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, जिन में से ६३७ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के ३८७ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे । इस चुनाव में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को कुल वोटों में से ६७.९८ % वोट मिले थे ।

*इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों ने कुल ४७१ उम्मीदवार खड़े किए थे।  रिकॉर्ड के अनुसार इन ४७१ प्रत्याशीयों में से २०७   प्रत्याशीयों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी और १०१ प्रत्याशी लोकसभा में पहुंचे थे।  इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से १८.७९ % वोट मिले थे। 

*इस चुनाव में पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों ने ८७१ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। इन ८७१ उम्मीदवारों में से ७४४ उम्मीदवार अपनी ज़मानत बचाने में भी विफल रहे जबकि केवल ४९ उम्मीदवार लोकसभा तक पहुँचने में सफल हुए । इस चुनाव में पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से १०.८७ % वोट मिले थे। 

*इस चुनाव में कुल १९१५ निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे।  इन १९१५ निर्दलीय उम्मीदवारों में से केवल ०६ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुआ था ।  कुल वोटो में से २.३७ % वोट निर्दलीय उम्मीदवारों ने प्राप्त किए थे जबकि १८९८ निर्दलीय उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने का रिकॉर्ड मौजूद है।

*इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सब से बड़े दल के रूप में सामने आया। ५४३ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ३८८ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे।  इन में से १८२ उम्मीदवार जीत दर्ज करा कर लोकसभा पहुँचने में सफल हुए तो वही ५७ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने का उल्लेख भी रिकॉर्ड में मौजूद है। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को कुल वोटो में से २५.५९ % वोट मिले थे।

*कांग्रेस दूसरा सब से बड़ा दल बन कर उभरा था। कांग्रेस ने कुल ४७७ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे।  इन ४७७ उम्मीदवारों में से १५३  उम्मीदवारों की ज़मानत जब्त हुई थी जबकि १४१ उम्मीदवार लोकसभा पहुँचने में सफल हुए थे। कांग्रेस को कुल वोटों में से २५.८२ % वोट मिले थे।  

*सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि १२वी लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में ६,६६,२२,१६,००० (६ अरब, ६६ करोड़, २२ लाख, १६ हज़ार रुपये) रुपये की राशि खर्च हुई थी ।  

*उस समय श्री डॉ. एम. एस. गिल भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे, जिन्होंने ये चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।  

*१२वी लोकसभा २६ एप्रिल १९९९ को विसर्जित की गई। 

*इस चुनाव के बाद १२वी लोकसभा के लिए २३ और २४ मार्च १९९८ को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया था।  

*१२वी लोकसभा के सभापती पद हेतु २४ मार्च १९९८ को चुनाव हुए और श्री जी. एम. सी. बलयोगी को सभापती और पी. एम. सईद को उपसभापती के रूप में चुना गया।  

*१२वी लोकसभा के कुल ०४ अधिवेशन और ८८ बैठके हुई।  इस लोकसभा में कुल ६० बिल पास किए गए थे जिस का रिकॉर्ड मौजूद है। 

*१२वी लोकसभा की पहली बैठक २३ मार्च १९९८ को हुई थी।

*१२वी लोकसभा की ५४३ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ३८७ सीटों पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने, १०१ सीटों पर राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों ने, ४९ सीटों पर पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों ने जबकि ०६ सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की।




प्रा. शेख मोईन शेख नईम 
डॉ. उल्हास पाटील लॉ कॉलेज, जलगाव 
7776878784

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भारतीय आम चुनाव 1998
भारतीय आम चुनाव 1998 12वां लोकसभा चुनाव 1998: अटल बिहारी बने प्रधानमंत्री, सोनिया गांधी ने रखा राजनीति में कदम
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