अधिकार का रक्षक एकांकी adhikar ka rakshak in hindi एकांकी का उद्देश्य एकांकी का मूल प्रतिपाद्य शीर्षक की सार्थकता सेठ घनश्याम दास का चरित्र चित्रण
Adhikar Ka Rakshak Upendranath Ashk
अधिकार का रक्षक एकांकी का सारांश
अधिकार का रक्षक प्रसिद्ध एकांकीकार उपेन्द्रनाथ अश्क जी द्वारा लिखित एक जीवंत एकांकी नाटक है। सेठ घनश्यामदास के माध्यम से एक ऐसे अवसरवादी नेता का चित्र प्रस्तुत किया गया है जिसकी करनी और कथनी में जमीन आसमान का अंतर है। जनता के अधिकारों का हिमायती बनने वाला यह नेता घोर स्वार्थी तथा अवसरवादी है। समाज को धोखा में डालकर वह स्वयं अपना उल्लू सीधा करने की ताक में रहता है।अधिकार का रक्षक |
अधिकार का रक्षक एकांकी शीर्षक की सार्थकता
अधिकार का रक्षक एकांकी का उद्देश्य
उद्देश्य की दृष्टि से अधिकार का रक्षक एकांकी अत्यंत सफल रचना है। इसके माध्यम से दोहरे चरित्र वाले नेताओं की कथनी - करनी पर प्रहार किया गया है। इनसे सतर्क तथा सावधान रहने का निर्देश दिया गया है कि समाज सुधार तथा अधिकार की रक्षा दिलाने के नाम पर ये नेता अथवा समाज सुधारक केवल अपने स्वार्थग्रस्त अधिकार का ही पोषण करते हैं। समाज के सभी वर्गों के प्रति ये मीठे - मीठे आश्वासन देकर अंततः उनका शोषण ही करते हैं। इस शोषण में इन्हें अपने पराये का अंतर भी दिखाई नहीं पड़ता है। इनका शोषण समाज के अलग - अलग वर्गों के लिए अलग - अलग प्रकार का होता है। अतः समाज के उत्थान तथा राष्ट्रहित की दिशा में यह एकांकी आज भी प्रासंगिक तथा महत्वपूर्ण है।सेठ घनश्याम दास का चरित्र चित्रण
अधिकार का रक्षक एकांकी के प्रमुख नायक सेठ घनश्यामदास जी है ,क्योंकि प्रधान पात्र के रूप में इस एकांकी की सभी प्रमुख घटनाएँ अंत तक इन्ही से सम्बद्ध है तथा उनके चरित्र का उद्घाटित करने में पूर्ण समर्थ है। एकांकी के अन्य पात्र सेठ घनश्यामदास के व्यक्तित्व तथा चरित्र को उजागर करते हैं। एकांकी के फल भोक्ता वही हैं ,क्योंकि कथनी और करनी के अंतर का नतीजा भी उन्हें अवश्य भोगना पड़ेगा।इस प्रकार अधिकार का रक्षक एकांकी में सेठ घनश्यामदास को केंद्रबिंदु मानकर वर्तमान समय में जन नेताओं के सही रूप में उनके व्यक्तित्व का अध्ययन कर सकते हैं। इस प्रकार अश्क जी अपने इस एकांकी के माध्यम से सीधे - साधी जनता को ऐसे जननेताओं के व्यक्तित्व से सावधान किया है।
अधिकार का रक्षक एकांकी की मूल संवेदना
अधिकार का रक्षक एकांकी एक व्यंग प्रधान एकांकी है। इसके प्रमुख पात्र सेठ घनश्याम दास राजनीति के मँजे हुए खिलाडी है। एक तरह से वे आज के राजनेताओं के ही प्रतिरूप हैं। सेठजी की कथनी और करनी में वही अंतर हैं जो की आज के राजनेताओं में उनके दैनिक कार्यकलापों में देखने को मिलता है। देश और जनता चूल्हे भाड़ में आज्ये ,अपना उल्लू सीधा करना ही उनका प्रमुख ध्येय और प्रेम होता है। वास्तव में एकांकीकार का इस एकांकी का लिखने के पीछे यही उद्देश्य लगता है कि वह आज के नेताओं के चरित्र उद्घाटन सेठ घनश्याम दास के चरित्र के माध्यम से करना चाहता है। आज की राजनीति ही अवसरवाद की राजनीति है। आज के राजनेता कुर्सी से इस प्रकार चिपके हुए हैं कि जनता की उन्हें न परवाह है न ही अपने क्षेत्र के बारे में सोचनें का उन्हें समय है। कुर्सी के अधिकार के लोभ में अपने सभी सिधान्तों को उन्होंने ताक पर रख दिया है।
आज की राजनीति में झूठ और छद्मवेश का एकछत्र राज्य है। सेठ घनश्यामदास उसी का सहारा लेकर अपनी इच्छा की पूर्ति चाहते हैं। वे एक समाचार पत्र के मालिक है। वे अपनी जीत के लिए राजनीति के उन सभी दाँव पेचों को अपनाते हैं जो आज के राजनितिक नेता अपनाते रहते हैं। अधिकार का रक्षक एकांकी आज के राजनेताओं पर व्यंग हैं। लेखक ने ऐसे नेताओं से जनता को सजग और सावधान रहने की सलाह दी है जिनकी कथनी और करनी में साम्य नहीं है। साथ ही एकांकीकार ने उन भष्ट्र राजनेताओं को भी सावधान किया है जो जनसेवक बनने के स्थान पर स्वपोषक बन गए हैं और जनता को गुमराह कर अपना स्वार्थ साध रहे हैं। जनतंत्र शासन व्यवस्था में जन नेताओं का विशेष महत्व होता है। उनका आचरण ,व्यवहार ,कर्म जनउपयोगी होना आवश्यक है।
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