अधिकार का रक्षक एकांकी

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अधिकार का रक्षक एकांकी adhikar ka rakshak in hindi एकांकी का उद्देश्य एकांकी का मूल प्रतिपाद्य शीर्षक की सार्थकता सेठ घनश्याम दास का चरित्र चित्रण

Adhikar Ka Rakshak Upendranath Ashk 


धिकार का रक्षक एकांकी adhikar ka rakshak in hindi अधिकार का रक्षक एकांकी का उद्देश्य अधिकार का रक्षक एकांकी का मूल प्रतिपाद्य adhikar ka rakshak ekanki adhikar ka rakshak ekanki upendranath ashk अधिकार का रक्षक - उपेन्द्रनाथ अश्क Adhikar Ka Rakshak Upendranath Ashk मौलिक अधिकारों का रक्षक 


अधिकार का रक्षक एकांकी का सारांश

अधिकार का रक्षक प्रसिद्ध एकांकीकार उपेन्द्रनाथ अश्क जी द्वारा लिखित एक जीवंत एकांकी नाटक है। सेठ घनश्यामदास के माध्यम से एक ऐसे अवसरवादी नेता का चित्र प्रस्तुत किया गया है जिसकी करनी और कथनी में जमीन आसमान का अंतर है। जनता के अधिकारों का हिमायती बनने वाला यह नेता घोर स्वार्थी तथा अवसरवादी है। समाज को धोखा में डालकर वह स्वयं अपना उल्लू सीधा करने की ताक में रहता है। 

एकांकी के कथानक के मुख्य केंद्रबिंदु सेठ घनश्यामदास एक समाचार पत्र के संचालक और प्रांतीय एसेंबली के
अधिकार का रक्षक एकांकी
अधिकार का रक्षक
उम्मीदवार है। इनके बाहरी और भीतरी व्यक्तित्व में बड़ा अंतर है। बाहर अपने प्रचार के लिए समाचार निकालते है। हरिजनों की सहायता की बात करके उनका सच्चा सेवक होने का दंभ भरते हैं। शिक्षा की बात करके अघाते नहीं है। बच्चों के दंड के विरोधी हैं ,परन्तु स्वयं अपने बच्चों को मारते हैं। सेठ जी जब अपने कमरे में बैठे समाचार पत्र पढने में व्यस्त रहते हैं ,उसी समय हरिजन सभा के मंत्री का फ़ोन आता है। सेठ जी उनसे हरिजनों के सर्वागीण विकास की बात करते हैं और हर प्रकार से उनकी रक्षा का आश्वासन देते हैं। परन्तु स्वयं अपने जमादारिन को दो माह से सफाई का पैसा नहीं दिए हुए हैं। 

सेठजी ने असेम्बली का चुनाव जीतने के लिए ही इन कलाओं को अपनाया है। हौजरी यूनियन को भी टेलीफ़ोन पर यह यह सूचित करते हैं कि मैं मजदूरों के अधिकारों का सबसे बड़ा रक्षक हूँ। अपने चुनाव घोषणापत्र में वह छापते हैं - मैं असेम्बली में जाते ही मजदूरों की स्थिति को सुधारने का प्रयत्न करूँगा ,ऊपर से वह मजदूरों के वेतन वृद्धि के प्रबल समर्थक हैं ,परन्तु अपने घर के नौकरों का तीन महीनों का वेतन रोके हुए हैं। वेतन मांगने पर अपने नौकरों को गाली देते हैं। इस प्रकार जनता के बीच लुभावनी बातें करके उनका ह्रदय वह जीत लेते हैं ,परन्तु असेम्बली में जाकर सब भूल जाते हैं। 

नवजवान युवक और छात्र भावुक होते हैं। सेठजी की बातें सुनकर वे सेठजी की ओर आकर्षित होते हैं और कहते हैं कि आपके भाषण की सर्वत्र चर्चा है। आपके विचारों से प्रभावित होकर हमलोग आपके साथ हैं। छात्रों के अधिकारों और समस्याओं की बात सेठजी अपने समाचार पत्र में छपवाने की बात करते हैं। अतः छात्र भी उनके समर्थक हो जाते हैं। छात्र अपने प्रधानाचार्य के विरुद्ध कुछ छपवाना चाहते हैं। सेठजी पूरा आश्वासन देते हैं परन्तु उनके चले जाने के बाद संपादक से कहते हैं कि छात्रों की कोई बात न छापी जाए। 

सेठजी समाज सुधार का व्रत लेते हैं। परन्तु अपने ही घर को सुधार नहीं पाते हैं। उनकी पत्नी और बच्चे उचित स्नेह नहीं पाते हैं। वह अपनी पत्नी को प्रायः मारा-पिटा करते हैं। परन्तु महिला संघ की मंत्री श्रीमती सरला देवी से कहते हैं कि आप निश्चय रखें मैं जी जान से स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करूँगा। महिलाओं के अधिकारों का मुझसे बेहतर रक्षक आपको वर्तमान उम्मीदवारों में नज़र नहीं आएगा। 

अधिकार का रक्षक एकांकी शीर्षक की सार्थकता

यह एकांकी आज की वर्तमान स्वार्थग्रस्त राजनीति और नेताओं की कुत्सित चित्र प्रस्तुत करती है। जनता के अधिकारों के हिमायती बनने वाले नेता स्वयं उनके अधिकार प्राप्ति के विरोधी है। समाज के घोर धोखे में रखकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। सेठ घनश्यामदास के माध्यम से लेखक ने इस प्रकार के नेता के व्यक्तित्व का चित्रण करके आधुनिक समाज के नेताओं तथा समाज सुधारकों की लुभावनी बातों से बचने का सुझाव दिया है। लेखक द्वारा प्रस्तुत कथावृत यथार्थमूलक है। समाज के सभी वर्गों के अधिकारों की रक्षा की सेठजी बात करते हैं। उनकी बात में इतना आकर्षक है कि सभी वर्ग के लोग उन पर विश्वास करते हैं। परन्तु वास्तव में ऐसा कभी होता नहीं है। हरिजन वर्ग ,मजदूर वर्ग ,छात्र वर्ग ,महिला संघ सबके अधिकारों के वह रक्षक और समर्थक हैं। परन्तु यह समर्थन केवल जनता का और उस वर्ग का मत प्राप्त करने के लिए करते हैं। व्यवहार में वह किसी के पक्षधर और समर्थक नहीं है। उनके सामने उनका स्वार्थ है ,चुनावी भाषण है। यदि वह मजदूरों के अधिकारों के रक्षक होते तो क्या वह अपने मजदूरों के अधिकारों के रक्षक होते तो क्या वह अपने मजदूरों का वेतन न देते और वेतन मांगने पर उलटे गाली गलौज करते। घर की सफाई करने वाली भंगिन की दो माह से मजदूरी रोक रखें हैं। इस एकांकी से यह सिद्ध होता है कि अधिकार का रक्षक शीर्षक एक व्यंग है। इस शीर्षक के राजनीति और राजनेताओं के स्वार्थ और अवसरवाद का पर्दाफाश किया गया है। इस अर्थ में शीर्षक अत्यंत सार्थक और महत्वपूर्ण है। 

अधिकार का रक्षक एकांकी का उद्देश्य

उद्देश्य की दृष्टि से अधिकार का रक्षक एकांकी अत्यंत सफल रचना है। इसके माध्यम से दोहरे चरित्र वाले नेताओं की कथनी - करनी पर प्रहार किया गया है। इनसे सतर्क तथा सावधान रहने का निर्देश दिया गया है कि समाज सुधार तथा अधिकार की रक्षा दिलाने के नाम पर ये नेता अथवा समाज सुधारक केवल अपने स्वार्थग्रस्त अधिकार का ही पोषण करते हैं। समाज के सभी वर्गों के प्रति ये मीठे - मीठे आश्वासन देकर अंततः उनका शोषण ही करते हैं। इस शोषण में इन्हें अपने पराये का अंतर भी दिखाई नहीं पड़ता है। इनका शोषण समाज के अलग - अलग वर्गों के लिए अलग - अलग प्रकार का होता है। अतः समाज के उत्थान तथा राष्ट्रहित की दिशा में यह एकांकी आज भी प्रासंगिक तथा महत्वपूर्ण है। 

सेठ घनश्याम दास का चरित्र चित्रण

अधिकार का रक्षक एकांकी के प्रमुख नायक सेठ घनश्यामदास जी है ,क्योंकि प्रधान पात्र के रूप में इस एकांकी की सभी प्रमुख घटनाएँ अंत तक इन्ही से सम्बद्ध है तथा उनके चरित्र का उद्घाटित करने में पूर्ण समर्थ है। एकांकी के अन्य पात्र सेठ घनश्यामदास के व्यक्तित्व तथा चरित्र को उजागर करते हैं। एकांकी के फल भोक्ता वही हैं ,क्योंकि कथनी और करनी के अंतर का नतीजा भी उन्हें अवश्य भोगना पड़ेगा। 

सेठ घनश्याम दास के मनोभावों का विश्लेषण करते हुए एकांकीकार ने अधिकार के रक्षक का यथार्थवादी चित्र खींचा है। केवल सेठजी असेम्बली में स्थान प्राप्त करने हेतु उचित -अनुचित सारे कलापों को अपनाते हैं ,चुनाव सभाओं में जाकर वे लम्बे लम्बे भाषण तथा हरिजनों को अधिकार प्रदान करने की बात करते हैं। हरिजनों के बच्चों की शिक्षा - दीक्षा पर वह विशेष जोर देते हैं। मजदूरों के वेतन में वृद्धि के हिमायती बनते हैं ,परन्तु उन्होंने स्वयं अपने घर का कूड़ा साफ़ करने वाली जमादारिन का वेतन दो महीने से नहीं दिया है। नौकर का वेतन तीन महीने से रुका है और नौकरों से बात - बात में गाली गलौज दिया करते हैं। सेठजी तो समाज के गरीब पीड़ित वर्गों की प्रशंसा करके केवल वोट के लिए करते हैं। जनता के बीच में तो वे लम्बी - लम्बी बातें करके उनके मन को मोहित कर लेते हैं ,परन्तु असेम्बली में जाकर वे सब कुछ भूल जाते हैं। जिनके मत से वे विजयी होते हैं ,उनसे बात करना भी वे अपमान समझते हैं। आज समाज में ऐसे लोग अधिक हैं जो अपने आप को जनता का रक्षक बताकर उनका भक्षण करते हैं। सेठजी ऐसे ही एक विशेष वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। 

इस प्रकार अधिकार का रक्षक एकांकी में सेठ घनश्यामदास को केंद्रबिंदु मानकर वर्तमान समय में जन नेताओं के सही रूप में उनके व्यक्तित्व का अध्ययन कर सकते हैं। इस प्रकार अश्क जी अपने इस एकांकी के माध्यम से सीधे - साधी जनता को ऐसे जननेताओं के व्यक्तित्व से सावधान किया है। 


अधिकार का रक्षक एकांकी की मूल संवेदना 

अधिकार का रक्षक एकांकी एक व्यंग प्रधान एकांकी है। इसके प्रमुख पात्र सेठ घनश्याम दास राजनीति के मँजे हुए खिलाडी है। एक तरह से वे आज के राजनेताओं के ही प्रतिरूप हैं। सेठजी की कथनी और करनी में वही अंतर हैं जो की आज के राजनेताओं में उनके दैनिक कार्यकलापों में देखने को मिलता है। देश और जनता चूल्हे भाड़ में आज्ये ,अपना उल्लू सीधा करना ही उनका प्रमुख ध्येय और प्रेम होता है। वास्तव में एकांकीकार का इस एकांकी का लिखने के पीछे यही उद्देश्य लगता है कि वह आज के नेताओं के चरित्र उद्घाटन सेठ घनश्याम दास के चरित्र के माध्यम से करना चाहता है। आज की राजनीति ही अवसरवाद की राजनीति है। आज के राजनेता कुर्सी से इस प्रकार चिपके हुए हैं कि जनता की उन्हें न परवाह है न ही अपने क्षेत्र के बारे में सोचनें का उन्हें समय है। कुर्सी के अधिकार के लोभ में अपने सभी सिधान्तों को उन्होंने ताक पर रख दिया है। 

आज की राजनीति में झूठ और छद्मवेश का एकछत्र राज्य है। सेठ घनश्यामदास उसी का सहारा लेकर अपनी इच्छा की पूर्ति चाहते हैं। वे एक समाचार पत्र के मालिक है। वे अपनी जीत के लिए राजनीति के उन सभी दाँव पेचों को अपनाते हैं जो आज के राजनितिक नेता अपनाते रहते हैं। अधिकार का रक्षक एकांकी आज के राजनेताओं पर व्यंग हैं। लेखक ने ऐसे नेताओं से जनता को सजग और सावधान रहने की सलाह दी है जिनकी कथनी और करनी में साम्य नहीं है। साथ ही एकांकीकार ने उन भष्ट्र राजनेताओं को भी सावधान किया है जो जनसेवक बनने के स्थान पर स्वपोषक बन गए हैं और जनता को गुमराह कर अपना स्वार्थ साध रहे हैं। जनतंत्र शासन व्यवस्था में जन नेताओं का विशेष महत्व होता है। उनका आचरण ,व्यवहार ,कर्म जनउपयोगी होना आवश्यक है। 


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