यदि मैं राष्ट्रपति होता पर निबंध Agar Main Rashtrapati Hota Yadi main rashtrapati hota essay in hindi मैं यदि राष्ट्रपति बना तो राष्ट्र की गरिमा
यदि मैं राष्ट्रपति होता पर निबंध
यदि मैं राष्ट्रपति होता पर निबंध Agar Main Rashtrapati Hota Yadi main rashtrapati hota essay in hindi मानव कल्पना करता है लेकिन उनका पूरा होना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। कुछ ही भाग्यशाली लोग है जिनके सपने पूरे होते हैं। मेरे मन में कुछ और विधाता के कुछ और ,विधाता ही जब दयालु होता है तब वह मानव की अभिलाषाओं को पूरी करता है।
राष्ट्रीयता की भावना
यदि मैं राष्ट्रपति होता - अरे ! यह मैं क्या सोचने लगा। राष्ट्रपति होना कोई खाला का घर है क्या ? राष्ट्रपति कितना बड़ा ,कितना महत्वपूर्ण ,कितना गौरव -शाली और कितना महिमामयी पद है। बहुत से लोग इस पद पर पहुँचने के लिए आजीवन तरसते रहते हैं। इस शब्द को सुनते ही एक ओर तो कई तरह के दायित्वों का अहसास कर उनके निरंतर पड़े रहने वाले बोझ के कारण मस्तक अपने आप झुकने लगता है ,जबकि दूसरी ओर स्वयं ही एक अनजाने गर्व से उठकर तनने भी लगता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली का देश है। इस शासन में राष्ट्रपति राष्ट्र का बेताज बादशाह होता है। Agar Main Rashtrapati Hota उनकी आज्ञा ही कभी कभी कानून बन जाती है ,बाद में भले ही मंत्रिमंडल की राय अवश्य हो। भारत जैसे देश का राष्ट्रपति बनना बहुत बड़े गर्व और गौरव की बात है ,इस तथ्य से भला कौन इनकार कर सकता है। इस पद पर पहुँचने के लिए वैसे तो किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती ,लेकिन इतना गौरवशाली पद क्या किसी अनुभवहीन व्यक्ति के हाथ में देकर राष्ट्र कल्याण की कल्पना की जा सकती है। कदापि नहीं। राष्ट्रपति बनने के लिए जनकार्यों का प्रत्यक्ष अनुभव रहना बहुत ही आवश्यक हुआ करता है। इस पद पर पहुँचने वाले व्यक्ति का जीवन देशभक्ति ,राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण हो और वह कूटनीति प्रवण तथा किसी प्रकार के दबाव में न आकर कार्य करने वाला भी न हो। ऐसा मैं हूँ या हो सकूँगा ,यह भविष्य बताएगा।
यदि मैं राष्ट्रपति होता तो सबसे पहले राष्ट्र की सुरक्षा और शांति की व्यवस्था करता। इसके लिए देश की स्थल ,नभ और जल सेना को हर प्रकार से शक्तिशाली बनाता।इसे शक्तिशाली बनाने का मुख्य उद्देश्य मात्र अपनी सीमा की सुरक्षा ही रहता। किसी पडोसी देश की अखंडता को खंडित करना नहीं। हम किसी की सीमा को छेड़ते नहीं लेकिन जो भी पडोसी राष्ट्र हमारी सीमाओं पर आँख लगाता या भारत माँ के पावन आँचल को छूने की धृष्टता करता उसे सही पाठ पढ़ा देता।
राष्ट्र का प्रधान
राष्ट्र का प्रधान होने के कारण राष्ट्रपति के अधिकारों की संख्या अधिक है। किसी ने तो यहाँ तक कह दिया है कि राष्ट्रपति के अधिकार बन्दूक में भरी गोली के समान हैं ,जिसका प्रयोग देश के नागरिकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की समाप्ति दोनों के लिए किया जा सकता है। बात बिलकुल उचित है। संकटकाल की घोषणा कर राष्ट्रपति पूरे देश का शासन अपने हाथ में ले सकता है। उस समय उसकी आज्ञा ही देश का कानून बन जाती है। उसे ऐसा कदम उठाने के पहले हज़ार बार सोचना होगा। किसी भी देश से संधि या युद्ध की घोषणा राष्ट्रपति ही कर सकता है। ऐसा निर्णय लेकर राष्ट्र को युद्ध की आग में झोंकने का कार्य मैं कदापि नहीं करूँगा। संकटकाल की घोषणा करना विवेकशीलता नहीं होगी। बहुत आवश्यक होने पर ही मैं ऐसा कदम उठाता और ऐसा करने के पूर्व मंत्रीमंडल और प्रधानमंत्री की सलाह भी अवश्य लेता। आर्थिक मामलों के लिए राष्ट्रपति की जिम्मेदारियाँ कम नहीं है। कोई भी आर्थिक बिल बिना उसकी परामर्श के सदन में नहीं रखा जा सकता है। राष्ट्रपति के लिए यह आवश्यक है कि वह राष्ट्र की आर्थिक स्थिति के प्रति हमेशा सचेष्ट रहे। Agar Main Rashtrapati Hota उसकी मनमानी के कारण राष्ट्र का आर्थिक ढाँचा चरमरा सकता है और उसके विवेक से राष्ट्र आर्थिक संकट से बच सकता है। यदि ईश्वर की कृपा से मुझे यह गौरवशाली पद मिला तो मैं बहुत सोच समझ कर कार्य करूँगा और पद तथा राष्ट्र के गौरव को कलंकित नहीं होने दूंगा।
राष्ट्रपति का पद जितना महत्वपूर्ण है उसका कार्य क्षेत्र भी उतना ही उत्तरदायित्व से परिपूर्ण हैं। वह देश की तीनों ही सेनाओं का प्रधान सेनापति होता है। सेना की शक्ति पर ही राष्ट्र की सुरक्षा और स्वतंत्रता निर्भर करती है। इसीलिए सेना को आधुनिक अस्त्र -शस्त्रों से पूर्ण सुसज्जित करने का प्रयास करूँगा। यदि राष्ट्रनायक ही ईमानदार और नैतिकतापूर्ण आचरण वाला नहीं होगा तो वह अपनी मर्यादा तो खोएगा ही ,राष्ट्र को दुनिया की निगाहों में गिरा देगा। मैं यदि राष्ट्रपति बना तो राष्ट्र की गरिमा को बढ़ाने के लिए प्राण प्रण चेष्टा करूँगा।
अधिकारों का सदुपयोग
अधिकार पाकर कोई व्यक्ति महान नहीं हो जाता है। वह अपने अधिकारों के लिए सदुपयोग के कारण बनता है। यदि उसने अपने राष्ट्र के विकास के लिए कार्य किया तो आनेवाला समय उसे पूज्य मानेगा। मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगा जिससे हमारे राष्ट्र की दुनिया के समक्ष लज्जित होना पड़े। राष्ट्रीय हितों ,एकता ,समानता की रक्षा ,नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा में ही अपना कार्यकाल पूरा करने का प्रयास करूँगा। न्यायाधीश और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर किसी व्यक्ति को नियुक्त करते समय किसी प्रकार के लोभ अथवा दबाव में नहीं आकर उसकी योग्यता ,देशभक्ति ,ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा का ही ध्यान रखूँगा।
विडियो के रूप में देखें -
COMMENTS