कॉंग्रेस सब से बड़े दल के रूप में सामने आई। ५२० सीटों के लिए हुए इस चुनाव में कॉंग्रेस के ५१६ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इन में से २८३ उम्मीदवार
चौथा आम चुनाव 1967: इंदिरा युग की शुरुआत और राज्यों पर कांग्रेस की ढीली पड़ी पकड़
1967 का चौथा आम चुनाव भारतीय राजनीति के लिहाज से बहुत ही ज्यादा अहम था । पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरू की अनुपस्थिति में चुनाव हुआ । चुनाव बाद कांग्रेस लगातार चौथी बार सरकार बनाने में तो सफल रही लेकिन उसका प्रदर्शन पिछले चुनावों के मुकाबले फीका रहा । आम चुनाव के साथ होने वाले राज्य विधानसभा चुनावों में तो कांग्रेस को और तगड़ा झटका लगा और 6 राज्य उससे छिन गए । यह चुनाव इंदिरा युग की शुरुआत का भी चुनाव था । इंदिरा गांधी अपने दिवंगत पति फिरोज की सीट रायबरेली से पहली बार चुनाव लड़ीं और जीत हासिल कीं । चुनाव बाद वह दूसरी बार प्रधानमंत्री बनीं ।
तीसरी लोकसभा का कार्यकाल युद्ध, खाद्यान्न की कमी, सामाजिक तनाव और राजनीतिक उथल-पुथल के दौर के रूप में याद किया जाता है । 1962 के भारत-चीन युद्ध से 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का राग छिन्न-भिन्न हो चुका था । इसके अलावा 1965 की भारत-पाक जंग भी हो चुकी थी । भारत-चीन युद्ध के सदमे से बीमार हुए नेहरू का 1964 में देहांत हो गया तो 1966 में ताशकंद में लाल बहादुर शास्त्री की मौत हो चुकी थी । हिंदुस्तान 1962 से 1966 के बीच ही 4-4 प्रधानमंत्रियों का गवाह बन चुका था- पंडित जवाहर लाल नेहरू, गुलजारी लाल नंदा (दो बार), लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ।
राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर लड़ाई
उस वक्त की प्रमुख विपक्षी पार्टी सी.पी.आई. का 1964 में विभाजन हो चुका था । वहीं, कांग्रेस के भीतर अंदरूनी घमासान मचा हुआ था । जबलपुर और राउरकेला में देश के विभाजन के बाद के सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगे हो चुके थे । 1965 की जंग में पाकिस्तान का साथ पक्ष लेने वाले पश्चिमी जगत ने भारत को मदद रोक दी थी । महंगाई बेतहाशा बढ़ गई थी । बढ़ते राजकोषीय घाटा और तेल के ऊंचे दाम को देखते हुए चौथे आम चुनाव से 7 महीने पहले जून 1966 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रुपये के अवमूल्यन का ऐलान कर दिया था । स्पष्ट है कि चौथा आम चुनाव राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक हर मोर्चे पर उथल-पुथल की पृष्ठभूमि में लड़ा गया था । 1963 में परिसीमन के बाद 1967 में लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या बढ़कर 520 हो गई थी । कुल 25 करोड़ वोटरों में से 61.3 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया । कांग्रेस ने करीब 41 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 283 सीटों पर जीत दर्ज की । खास बात यह थी कि सी.पी.आई. को पछाड़कर सी. राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी । उसने 8.67 वोट प्रतिशत के साथ 44 सीटों पर जीत हासिल की । तीसरे नंबर पर भारतीय जन संघ (मौजूदा बी.जे.पी. का पूर्ववर्ती रूप) रहा, जिसके खाते में 35 सीटें आईं । सी.पी.आई. 23 सीटों पर सिमट गई, जबकि उसके विघटन के बाद बनी सी.पी.एम. ने 19 सीटों पर जीत हासिल की । डी.एम.के. ने भी 25 सीटों पर परचम लहराकर शानदार प्रदर्शन किया ।
राज्यों पर कांग्रेस की पकड़ हुई ढीली
पहली बार कांग्रेस को 6 राज्यों में सत्ता से हाथ धोना पड़ा, जिनमें तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे अहम राज्य शामिल थे । पिछले आम चुनाव में तमिलनाडु (तत्कालीन मद्रास प्रांत) में 7 सीटें जीतने वाली डी.एम.के. ने इस बार 25 सीटों पर जीत हासिल की । लोकसभा के साथ हुए तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में डी.एम.के. ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया । कांग्रेस के लिए यह कितना तगड़ा झटका था, यह इसी से पता चलता है कि उसके बाद से पार्टी सूबे की सत्ता में आजतक वापस नहीं आ पाई । इसी तरह, कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में भी बहुत बड़ा झटका लगा, जहां लेफ्ट फ्रंट ने उसे सत्ता से बेदखल कर दिया । सूबे में पहली बार गैरकांग्रेसी सरकार बनी । तमिलनाडु की तरह ही पश्चिम बंगाल की सत्ता में तब से कांग्रेस आज तक वापस नहीं आ पाई ।
सिंडिकेट का सूपड़ा साफ कर कुर्सी पर काबिज होने में कामयाब रहीं इंदिरा
27 मई 1964 को जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने और इंदिरा गांधी ने उनके मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री का पदभार संभाला । शास्त्री की मृत्यु के बाद 1966 में इंदिरा देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं और 1977 तक इस पद पर रहीं । 54 साल पहले भारत के चौथे लोकसभा चुनाव के वक्त इंदिरा गांधी पचास साल की होने वाली थीं । यह ऐसा वक्त था जब पूरा सिंडिकेट इंदिरा के खिलाफ था । लोहिया कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने का आवाह्न कर रहे थे और इंदिरा चुनावी मैदान में वीरांगना की तरह जुटी हुई थीं । उस वक्त इंदिरा के खिलाफ वरिष्ठ नेताओं का एक गुट सक्रिय था । इसे ही सिंडिकेट कहा जाता था । रुपए के अवमूल्यन के फैसले को लेकर सिंडिकेट इंदिरा को खुलेआम धमका रहा था । 6 जून 1966 को किए गए रुपए के अवमूल्यन ने इंदिरा को सबकी नजरों में गिरा दिया था । कांग्रेस कार्य समिति ने भी इसके विरुद्ध निंदा प्रस्ताव पारित किया था । इंदिरा के सामने जनता का भरोसा फिर से पुख्ता करने की चुनौती थी । उनके वामपंथी रुझान वाले मित्र उन्हें फौरन समाजवादी-राष्ट्रवादी नीतियों को फिर से अपनाने की सलाह दे रहे थे ताकि जनता के भरोसे को फिर से पुख्ता किया जा सके और अमेरिका की पिट्टू बनने के आरोप का मुकाबला किया जा सके । पार्टी के भीतर से लेकर बाहर तक राजनीतिक माहौल ही इंदिरा के खिलाफ था ।
गोरक्षक आंदोलन उग्र हो रहा था और इंदिरा के लिए हल्ला बोल की नौबत आ गई
चौथा आम चुनाव 1967 |
रुपए के अवमूल्यन के फैसले में विश्वास में नहीं लिए जाने से कामराज आग-बबूला थे और दोनों के रास्ते जुदा हो गए थे । कामराज किसी जमाने में नेहरू के करीबी मित्र थे । नेहरू भी उनसे सलाह लिया करते थे । इन सब चुनौतियों के बीच इंदिरा चौथे लोकसभा चुनाव के लिए धुआंधार चुनाव प्रचार कर रही थीं । भुवनेश्वर की एक रैली में भीड़ की तरफ से मारे गए पत्थर की वजह से इंदिरा की नाक की हड्डी टूट गई थी । इन सब चुनौतियों के बावजूद इंदिरा ने 1967 का चौथा लोकसभा चुनाव जीता और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुईं । सिंडिकेट का सूपड़ा साफ हो गया था और कामराज को द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी के 28 साल के युवा नेता से मात खानी पड़ी थी । एस. के. पाटील को बंबई में जॉर्ज फर्नांडीज ने पटखनी दी थी । इंदिरा गांधी रायबरेली से भारी बहुमत से जीतीं । कांग्रेस को 283 सीटें मिली और पार्टी मामूली बहुमत के साथ सदन में जीत कर आई । 13 मार्च 1967 को लगातार दूसरी बार इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई । कांग्रेस को पहले, दूसरे और तीसरे लोकसभा चुनाव के मुकाबले झटका लगा था । यह पहली बार था जब स्वतंत्र भारत में कांग्रेस के आधिपत्य को गंभीर चुनौती मिली थी । इसी साल लोकसभा चुनावों के साथ ही विधानसभा चुनाव भी हुए और केरल, पंजाब, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, तमिलनाडु, बिहार और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमर टूट गई ।
कुछ लोग कामराज प्लान को इंदिरा के चतुर दिमाग की दूरगामी सोच की उपज भी मानते हैं । यह भी कहा जाता है कि नेहरू के आखिरी दिनों में राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को ठिकाने लगाने के लिए इंदिरा ने ही इस प्लान को अंजाम दिया था । हालांकि इंदिरा गांधी इस बात को नकारती रहीं थीं । कामराज प्लान के तहत छह कैबिनेट मंत्रियों और छह सबसे ताकतवर मुख्यमंत्रियों ने अपने पदों को त्याग दिया । मोरारजी देसाई, लाल बहादुर शास्त्री, जगजीवन राम, कामराज, बीजू पटनायक और एस.के. पाटील अपने पदों से इस्तीफा देकर पार्टी के लिए काम करने चले गए । हालांकि, लाल बहादुर शास्त्री को फिर से नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया था । इस योजना का नामकरण कुमारस्वामी कामराज के नाम पर हुआ । कामराज तब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थे । 1963 में वे कांग्रेस अध्यक्ष भी बने । कामराज ने कांग्रेस के अनुभवी बुजुर्ग नेताओं के साथ मिलकर एक गुट बनाया जो सिंडिकेट कहलाया । इस तरह कांग्रेस की सत्ता सिंडिकेट के हाथों केंद्रित हो गई थी और नेहरू के मृत्यु के बाद ये ही लोग भाग्यनियंता हो गए । इस सिंडिकेट में क्षेत्रीय वर्चस्व अव्वल था । सिंडिकेट के साथ एन. संजीव रेड्डी से लेकर अतुल्य घोष, सिद्धवनहल्ली निजलिंगप्पा और सदाशिव कानोजी पाटील (एस.के) शामिल थे । ये ही सिंडिकेट 1967 के चुनाव में इंदिरा के खिलाफ था और 1966 के उनके फैसलों को लेकर इंदिरा के खिलाफ आक्रमक भी था ।
चौथा आम चुनाव 1967 की मुख्य बातें
*चौथी लोकसभा के लिए जब चुनाव हुए तब साल था १९६७ का । ये चुनाव १३ दिन तक अर्थात १५ फरवरी से २८ फरवरी तक चले । चौथी लोकसभा के लिए उस समय १७ राज्यों और १० केंद्रशासित प्रदेशों में ५२० सीटों के लिए चुनाव हुए ।
*देश की चौथी लोकसभा ०४ मार्च १९६७ को अस्तित्व में आई ।
*चौथी लोकसभा के चुनाव हेतु २,४३,६९३ चुनाव केंद्र स्थापित किए गए थे ।
*उस समय मतदाताओं की कुल संख्या २४.९० करोड़ थी ।
*उस समय ६१.३३ % मतदान हुए थे ।
*चौथी लोकसभा के लिए ५२० सीटों के लिए हुए चुनाव में कुल २३६९ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे जिन में से १२०३ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी।
*चौथी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में ०५ उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीत कर लोकसभा में पहुँचने में सफल हुए थे ।
*इस चुनाव में कुल ६८ महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ रही थी जिन में से २९ महिला उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुई ।
*५२० सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ७७ सीटे अनुसूचित जाती के लिए और ३७ सीटे अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित रखी गई थी ।
*चौथी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में २५ राजनीतिक दलों ने भाग लिया था जिन में से राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की संख्या ०७ और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की संख्या १४ थी जबकि ०४ पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दल भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आज़मा रहे थे ।
*राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने कुल १३४२ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, जिन में से ३९० उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के ४४० उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे । इस चुनाव में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को कुल वोटों में से ७६.१३ % वोट मिले थे ।
*इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों ने कुल १४८ उम्मीदवार खड़े किए थे। रिकॉर्ड के अनुसार इन १४८ प्रत्याशीयों में से ५८ प्रत्याशीयों की ज़मानत ज़ब्त हुई थी और ४३ प्रत्याशी लोकसभा में पहुंचे थे। इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से ९.६९ % वोट मिले थे।
*इस चुनाव में पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों ने १३ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। इन १३ उम्मीदवारों में से ०८ उम्मीदवार अपनी ज़मानत बचाने में भी विफल रहे जबकि ०२ उम्मीदवार लोकसभा तक पहुँचने में सफल हुए। इस चुनाव में पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से ०.३९ % वोट मिले थे।
*इस चुनाव में कुल ८६६ निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इन ८६६ निर्दलीय उम्मीदवारों में से ३५ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे। कुल वोटो में से १३.७८ % वोट निर्दलीय उम्मीदवारों ने प्राप्त किए थे जबकि ७४७ निर्दलीय उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने का रिकॉर्ड मौजूद है।
*इस चुनाव में कॉंग्रेस सब से बड़े दल के रूप में सामने आई। ५२० सीटों के लिए हुए इस चुनाव में कॉंग्रेस के ५१६ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इन में से २८३ उम्मीदवार जीत दर्ज करा कर लोकसभा पहुँचने में सफल हुए तो वही ०७ उम्मीदवारों की ज़मानत ज़ब्त होने का उल्लेख भी रिकॉर्ड में मौजूद है। इस चुनाव में कॉंग्रेस को कुल वोटो में से ४०.७८ % वोट मिले थे।
*स्वतंत्र पार्टी दूसरी सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी। स्वतंत्र पार्टी ने कुल १७८ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। इन १७८ उम्मीदवारों में से ८७ उम्मीदवारों की ज़मानत जब्त हुई थी जबकि ४४ उम्मीदवार लोकसभा पहुँचने में सफल हुए थे। स्वतंत्र पार्टी को कुल वोटों में से ८.६७ % वोट मिले थे।*उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस समय चौथी लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के रायबरेली चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंची थी।
*सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि चौथी लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में १०,७९,६९,००० (०१ अरब, ०७ करोड़ ९६ लाख, ९ हज़ार) रुपये की राशि खर्च हुई थी ।
*उस समय श्री के. व्ही. के. सुंदरम भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे, जिन्होंने ये चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
*चौथी लोकसभा २७ दिसंबर १९७० को विसर्जित की गई।
*इस चुनाव के बाद चौथी लोकसभा के लिए १६-१७ मार्च १९६७ को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया था।
*चौथी लोकसभा के सभापती पद हेतु १७ मार्च १९६७ को चुनाव हुए और नीलम संजीव रेड्डी को सभापती और आर. के. खाडिलकर को उपसभापती के रूप में चुना गया।
*चौथी लोकसभा के कुल १२ अधिवेशन और ४६९ बैठके हुई। इस लोकसभा में कुल २१६ बिल पास किए गए थे जिस का रिकॉर्ड मौजूद है।
*चौथी लोकसभा की पहली बैठक १६ मार्च १९६७ को हुई थी।
*चौथी लोकसभा की ५२० सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ४४० सीटों पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने, ४३ सीटों पर राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों ने, ०२सीटों पर पंजीकृत अनधिकृत राजनीतिक दलों ने जबकि ३५ सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की।
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