मेट्रो स्टेशन पहुँच कर वह घर जाने वाली मेट्रो ट्रेन में बैठ गया । सीट पर बैठ कर उसने अपनी आँखें मूँद लीं । उसे लगा जैसे वह बरसों बाद अपने घर वापस लौट
एक और वापसी
लोग आपने-सामने की सीटों पर ऐसे बैठे थे जैसे खेत की क्यारियों में उगी हुई गोभियाँ हों । सीट पर बैठ कर उसने सुबह का अंग्रेज़ी अख़बार निकाल लिया । भला हो इस मेट्रो ट्रेन का । नहीं तो वह बसों के धक्के खा रहा होता । कुछ साल पहले की तरह । मेट्रो के ए.सी. माहौल में वह बड़ी राहत महसूस कर रहा था । हर दिन सुबह-शाम घर से दफ़्तर और दफ़्तर से घर तक का सफ़र अब ज़्यादा आसानी से कट जाता था ।
अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी विमानों द्वारा की गई बमबारी में दर्जनों लोग मारे गए थे । इराक़ , सीरिया और पाकिस्तान में हुए बम-विस्फोटों में बीसियों लोग हताहत हुए थे । इज़राइल ने हमास पर हमला कर दिया था । फ़िलिस्तीन में खून-ख़राबा हो रहा था । ईरान लम्बी दूरी तक मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों का परीक्षण कर रहा था । रूस जार्जिया को हमले की धमकी दे रहा था । सोमालिया के तट के पास समुद्री लुटेरे जहाज़ों का अपचालन करके दर्जनों लोगों को बंधक बना रहे थे । और उन्हें छोड़ने के लिए लाखों डॉलर की फिरौती माँग रहे थे । पढ़ते-पढ़ते उसका दिमाग़ ख़राब होने लगा । वह उँगली से नाक में से गंदगी निकालते-से समय का हिस्सा नहीं बनना चाहता था ।
उसने एक बार फिर उस युवती की ओर देखा । आह , क्या अतुल्य सौंदर्य था । भगवान ने उसे बड़ी मेहनत से तराशा था । युवती को देखते-देखते उसकी जीभ पर शहद का स्वाद आ गया । उसके नाक में पके हुए चौसा आम की ख़ुशबू समा गई । अनायास ही उसने अपनी क़मीज़ का ऊपरी बटन खोल लिया । युवती साथ बैठी महिला से बातें करते हुए किसी बात पर मुस्कुराई । हाँ , मधुबाला जैसी मुस्कान थी उसकी । अचानक उसकी आँखें युवती की आँखों से मिलीं । आह , क्या नरगिसी आँखें थीं — उसने सोचा । सौंदर्य की सराहना होनी ही चाहिए । वर्ना क्या रखा था इस जीवन में । वही आतंकवाद , रोज़मर्रा की चीज़ों के बेतहाशा बढ़ते दाम ।
‘ यह क्या कर रहा है , बेवक़ूफ़ ‘ — उसके भीतर की आवाज़ ने उसे चेतावनी दी । ‘ मैं रास्ता भटक गया हूँ । गलती से ग़लत मेट्रो ट्रेन में बैठ गया हूँ ‘ — उसने अपने भीतर की आवाज़ को समझाया । लेकिन यह सच नहीं था । वह जानता था कि वह पूरे होशो-हवास में में इस युवती का पीछा कर रहा था । ‘ मैं मुखर्जी नगर में रहने वाली अपनी दूर की रिश्ते की चाची से मिलने जा रहा हूँ ‘ — उसने खुद को बेवकूफ़ बनाना चाहा । पर यह भी सच नहीं था । वह जान-बूझकर उस सुंदरी के पीछे-पीछे यहाँ तक चला आया था ।
‘ हाँ , मैं इस सुंदरी को चाहने लगा हूँ ‘ उसने मन में ही चिल्ला कर खुद से कहा । ‘ सारी दिशाएँ ग़लत हैं । केवल एक ही दिशा सही है , जिसमें यह युवती जा रही है । इस सौन्दर्यवती का पीछा मैं ब्रह्मांड के अंतिम छोर तक कर सकता हूँ ‘ — उसने खुद से कहा ।
‘ और तुम्हारी पत्नी का क्या होगा जो घर पर बैठी तुम्हारा इंतज़ार कर रही है ‘ — उसके भीतर की आवाज़ ने उसे फिर टोका ।
‘ कह दूँगा , आज दफ़्तर में काम बहुत था ‘ उसने कहा । उसके भीतर की आवाज़ आज बहुत बक-बक कर रही थी ।
कहाँ वह लावण्यमयी युवती थी , कहाँ उसकी पत्नी थी । भला दोनों का कोई मेल था क्या ? यह युवती परम सुंदरी थी जबकि उसकी पत्नी की बची-ख़ुशी ख़ूबसूरती भी घर-गृहस्थी के चक्कर में दब कर ख़त्म हो चुकी थी । यह युवती दूध-सी गोरी थी जबकि उसकी पत्नी कितनी साँवली थी । यह युवती कितनी छरहरी थी जबकि उसकी पत्नी शादी के बाद से लगातार मोटी होती चली गई थी । लगता था जैसे भगवान ने इस सुंदरी को फुर्सत के समय जबकि उसकी पत्नी को ओवर-टाइम के समय बनाया था — उसने सोचा ।
मेट्रो ट्रेन अब विश्वविद्यालय के स्टेशन के पास पहुँचने वाली थी । उसने एक बार एक भरपूर निगाह उस युवती पर डाली । आह , इस युवती का सौंदर्य कितना मासूम था , कितना मनोहारी था , कितना मोहक था । कुल-वर्ण से भी वह शिक्षित , सभ्य , संभ्रांत परिवार की कुलीन संस्कारों वाली युवती लगती थी । उसके एक-एक अंग से शील टपक रहा था । उसके बदन का एक-एक अंग जैसे लाज में तराशा हुआ था — उसने सोचा । यह युवती एक दमकता हुआ हीरा थी । सुंदर हो कर भी वह कितनी सुशील थी । काश , पिताजी ने मेरी शादी में इतनी जल्दी नहीं की होती । ऐसी युवती यदि उसकी पत्नी होती तो उसका जीवन कितना सुखमय होता — उसने सोचा ।
‘ अपनी उम्र तो देखो , — उसके भीतर की आवाज़ ने उसे सलाह दी ।
‘ उम्र क्या चीज़ होती है ? इमरान खान ने जब जेमिमा से शादी की थी तो क्या उनकी उम्र एक ही थी ? पंडित रविशंकर अपनी बेटी की उम्र की युवती से शादी करके खुश थे । दुनिया में ऐसे सैकड़ों -हज़ारों उदाहरण मौजूद थे ‘ — उसने अपने भीतर की आवाज़ को डपट कर कहा ।
तभी विश्वविद्यालय का स्टेशन आ गया । लोगों की भीड़ मेट्रो के दरवाज़े की ओर बढ़ने लगी । युवती भी अब अपनी सीट से उठ खड़ी हुई । वह भी अपनी सीट से उठ गया । वह उस युवती से एक निश्चित दूरी बनाए हुए उस भीड़ में अपनी आँखों से उसे थामे रहा ।
मेट्रो स्टेशन से बाहर निकल कर युवती एक ऑटो रिक्शा में जा बैठी । अब ? उसने खुद से पूछा । जब यहाँ तक आ गया हूँ तो थोड़ी दूर और सही — उसने सोचा । ऐसी सुंदरी के लिए तो आदमी कहीं भी जा सकता है । उसने जल्दी से एक ऑटो-रिक्शा लिया और ड्राइवर को युवती के ऑटो-रिक्शे के पीछे चलने का निर्देश दिया । आगे वाला ऑटो फुदकता हुआ रिंग-रोड छोड़ कर हरी हो गई लाल बत्ती से दाईं ओर मुखर्जी नगर जाने वाली सड़क की ओर मुड़ गया । उसने अपने ऑटो को भी आगे वाले ऑटो के पीछे लगा लिया । वह खुद को उस सुंदरी के असीम आकर्षण की अदृश्य डोर से बँधा हुआ महसूस कर रहा था ।
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सुशांत सुप्रिय
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ग़ाज़ियाबाद-201014
( उ.प्र.)
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