जीना इसी का नाम है तुम जीवन पर विजयी घोषित हुए हो। विश्व धरातल पर विजयी ध्वज फहराने में तुम पूर्ण सफल हुए हो। तुम्हारा जीवन धन्य है! तुम्हारे स्वाभिमा
जीना इसी का नाम है
अद्भुत जीवट पौधा है, जहाँ कोई व्यक्ति का रूह पल भर भी टिकने के नाम से ही काँप उठता है, वहाँ यह ‘पगला’ स्वाभिमानपूर्वक खड़ा है। सिर्फ खड़ा ही नहीं, बल्कि बाल-स्वाभाविक मुस्कान के साथ कठोर बज्र जलशून्य भूमि पर गर्म हवा के उष्ण झोकों का यह निरंतर उपहास करता प्रतीत हो रहा है।
‘कहीं तुम भी कोई मस्तमौला, घर त्यागी, अवघड़ तो नहीं हो, जो श्मशान-सा सूने एकांत में भवभूत लपेटे भूतनाथ के समान अपनी धूनी रमाये हो।‘- सुख में तो सभी मुस्कुराते हैं, पर वास्तविक विजयेता और जीवट तो वह होता है, जो विपत्तियों में भी जी भर कर अट्टहास करता है, और दूसरों के लिए भी हँसने का पर्याय बन जाता है। जैसे कि दुःख-सुख युक्त सांसारिक किनारों से अनजान यह नाजुक और नवजात पौधा! परक्या यह नाजुक है? कदापि नहीं!
किसी ने बताया है कि जीवन में एक दुरंत जीवन-शक्ति निहित रहती है, जिसने उसे पहचान लिया, फिर वही विश्व विजयी बन जाता है। स्वामी विवेकनद जीवनगत उस दुरंत जीवन-शक्ति को पहचान गए थे। अन्यथा, अनगिनत पहलवान तो अक्सर अपनी छाती ही पिटते रह जाते हैं।
भूख-प्यास की चिंता भला उसे क्यों होने लगी? उसे तो अपनी जन्मदात्री धरती माँ पर भूमिजा ‘सीता’ की भांति पूर्ण विश्वास है। वह उसे कभी भूखा न रखेगी। आस्था और विश्वास में बड़ी महिमा होती है। तभी तो लाखों-करोड़ों जीवों का जीवन यापन हो रहा है। कहा भी गया है, - ‘जिसका कोई नहीं होता है, उसका भगवान होते हैं। ऐसे अनाथों के लिए स्वयं वसुंधरा जननी के दायित्वों का निर्वाहन करती है। मातृ-पितृहीन बालक ‘रामबोला’ को स्वयं जगदम्बा आकर भोजन करा जाती थी, कि नहीं? फिर अब तो यह स्वयं भी अपने पाद-मूल से भोज्य-पदार्थ ग्रहण की क्षमता को अभिग्रहण (adopt) कर लिया है। इसी ‘अभिग्रहण’ सिद्धांत पर तो सभी जीव अपने प्राणों तक की रक्षा करते आये हैं। शायद पास में ही कुछ नीचे की ओर कोई जलश्रोत या जलयुक्त कोई गड्ढा भी है। जहाँ तक नीचे उतर कर यह अपनी तृष्णा को मिटा सकता है। पर, यह कोई मौकापरस्त इन्सान थोड़े ही है, जो अक्सर अपने क्षणिक स्वार्थ पूर्ती के लिए अपने स्वाभिमान के साथ समझौता करता फिरे। किसी के समक्ष हाथ फैलाता रहे। यह अपना शीश किसी के सम्मुख कभी नहीं झुकायेगा, कदापि नहीं। यह पूर्ण स्वाभिमानी है। अपने जीवन को साधने के लिए स्वयं उपक्रम करेगा और किया भी है। तभी तो आज यह विपरीत परिस्थिति में भी शानदार स्वरूप में जी रहा है और परावलम्बियों पर जम कर उपहास भी कर रहा है।
श्रीराम पुकार शर्मा |
‘कौन है ऐसा सहृदय, जो इससे प्रभावित न होगा।‘ - सचमुच जीने की कला सीखना हो, तो इससे सीखो। जीना हो, तो जिंदगी में आशाओं और अरमानों की रंगीन चादर बिछा दो, उस पर उम्मीद और विश्वास के कदम रखो, फिर सफलता तो शिशु बन चरणों पर आ-आ कर लोटने लगेंगी। ये आश और विश्वास की भावनाएँ ही जीवन को निरंतर गतिमान और क्रियाशील बनाये रखती हैं। ऐसे कालजयी के सम्मुख ‘काल’ के चरण भी डिग जाते हैं और पलभर के लिए उसे भी सोचने पर विवश हो जाना पड़ता है।
किसी ने कहा था कि सपने मत देखो। पर यह तो कहता है, - ‘खूब सपने देखो। जी भर कर सपने देखो। केवल बिस्तर पर ही नहीं, वरन् दिन के उजाले में भी खूब सपने देखो। केवल देखो ही नहीं, बल्कि उन्हें हकीकत का रंगीन जामा भी पहनाओ। ‘ऐसे ही सपने देखने और उन्हें हकीकत में बदलने के सामर्थ्य रखने वाले विश्व के लिए नवीन इतिहास गढ़ जाते हैं। फिर उनके पीछे लोगों पंक्ति-सी लग जाती है। क्यों ‘कलाम साहब’ का स्मरण है न।
जीवन की अजेयता का परम संदेश देने वाले, - ‘हे लघु पादप! सचमुच तुम धन्य हो। तुम्हें कोई पराजित नहीं कर सकता है। तुम्हारा मनोबल हिमालय सदृश उन्नत है। तुम जीवन पर विजयी घोषित हुए हो। विश्व धरातल पर विजयी ध्वज फहराने में तुम पूर्ण सफल हुए हो। तुम्हारा जीवन धन्य है! तुम्हारे स्वाभिमान और जीवन संघर्ष को नमन करता हूँ।‘
(चित्र दूरस्थ एक मेहमान मित्र द्वारा प्रेषित)
(आषाढ़ कृष्ण पक्ष, त्रियोदशी तिथि, शुक्रवार, विक्रम संवत् 2077, 20 अप्रेल, 2020)
श्रीराम पुकार शर्मा,
24, बन बिहारी बोस रोड,
हावड़ा – 711101
(पश्चिम बंगाल)
सम्पर्क सूत्र – 9062366788.
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