लक्षद्वीप चर्चा के केंद्र में क्यों हैं ? लक्षद्वीप : कश्मीर की राह पर एक नजर में लक्षद्वीप समूह लक्षद्वीप के इतिहास पर एक नज़र प्रफुल्ल खोड़ाभाई पटेल
लक्षद्वीप : कश्मीर की राह पर
लक्षद्वीप भारत का ऐसा प्रदेश हैं जो इस से पहले शायद ही कभी इतना चर्चा में रहा हो मगर आज यही लक्षद्वीप आज चर्चा का केंद्र बना हुआ हैं l इस की मुख्य वजह हैं लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल के फैसले l इन फैसलों को केरला हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई हैं l याद रहे की लक्षद्वीप में उच्च न्यायालय नहीं हैं और यह प्रदेश केरला उच्च न्यायालय के अधीन आता हैं l पिछले दिनों ही केरला की असेंबली ने प्रफुल्ल पटेल का विरोध करते हुए उन्हें वापस बुलाने हेतू प्रस्ताव भी पारित किया l लक्षद्वीप आज उसी राह से गुज़र रहा हैं जिस राह से कश्मीर गुज़रा था l कश्मीर और लक्षद्वीप में एक समानता हैं और वो समानता यह हैं कि दोनों भी जगह मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक हैं l कश्मीर में 1980 के दशक तक सब ठीक चल रहा था l 1989 में वी. पी. सिंह सरकार के समय जगमोहन मल्होत्रा को कश्मीर का गवर्नर बना कर भेजा गया l उस समय कश्मीर में सियासी रस्साकशी शुरू थी और यह सियासी खींचातनी अन्य राज्यों की तरह ही आम खींचातनी थी l उस समय जगमोहन मल्होत्रा ने कई ऐसे कदम उठाए जिस के विरोध में वहाँ की जनता सड़कों पर उतर आई l इन आंदोलकों पर गोलीया बरसाई गई और फिर बर्फ से ढके इस जन्नत नुमा राज्य में शुरू हुई खून की होली जो अब तक जारी हैं l वही आसार लक्षद्वीप में भी नज़र आ रहे हैं l इस से पहले लक्षद्वीप के जो 35 प्रशासक गुज़रे वे रिटायर्ड आला अधिकारी थे परंतु विद्यमान सरकार ने इस परंपरा को भंग करते हुए एक राजनेता को इस प्रदेश का प्रशासक नियुक्त किया जिन के फैसलों का भारत भर में विरोध हो रहा हैं l आइये विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं लक्षद्वीप और वहाँ के हालात को l
एक नजर में लक्षद्वीप समूह
भारत का सबसे छोटा संघ राज्यक्षेत्र लक्षद्वीप एक द्वीपसमूह है, जिस में 32 द्वीपों के क्षेत्र में 36 द्वीप हैं और यहां का कुल क्षेत्रफल 32.69 वर्ग किलोमीटर है। लक्षद्वीप की आबादी 2011 की जनगणना के अनुसार 64,473 है। लक्षद्वीप की साक्षरता दर 91.82% है। प्रशासनिक आधार पर लक्षद्वीप को एक जिला माना जाता है। लक्षद्वीप में पहले चार तहसील थी, लेकिन अब 10 राजस्व उपखंड यानी रेवेन्यू सब डिवीजन बनाए गए हैं। लक्षद्वीप में निवास योग्य 10 द्वीप ग्राम पंचायत हैं। यह एक यूनी-जिला संघ राज्य क्षेत्र है और इस में 12 एटोल, 03 रीफ, 05 जलमग्न बैंक और 10 बसे हुए द्वीप हैं। राजधानी कवरत्ती है और यह लक्षद्वीप का प्रमुख शहर भी है। यहाँ की 96 % आबादी मुस्लिम हैं जिन में से अधिकांश शाफई मसलक (school of thought) के मानने वाले हैं l लक्षद्वीप में 10 पंचायतें हैं जिन की सदस्य संख्या 79 हैं हैं और इन 79 सदस्यों में 30 महिलाएँ हैं l 10 में से 04 पंचायतों का अध्यक्ष पद महिलाओं पास हैं l लक्षद्वीप में एक जिला पंचायत हैं जस की सदस्य संख्या 22 हैं, जिन में से 12 महिलाएँ हैं l यहाँ से एक सांसद भी चुना जाता हैं l लक्षद्वीप समूह में अगर सार्वजनिक सुविधाओ की बात करें तो यहाँ 13 अतिथि गृह, 10 अस्पताल, 10 डाकघर, 13 बिजली केंद्र, 13 बैंक और 14 समुद्री जहाज टिकटिंग काउंटर हैं l सभी द्वीपों को केरल के तटीय शहर कोच्ची से 220 से 440 किमी दूर, पन्ना अरब सागर में स्थित हैं। यहाँ के सभी द्वीपों (मिनिकॉय को छोड़कर) में मलयालम भाषा बोली जाती है, यहाँ के स्थानीय लोग महल बोली बोलते हैं जो दिवेही लिपि में लिखी जाती है और यह मालदीव में भी बोली जाती है । सभी स्वदेशी आबादी को उन के आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के कारण अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है । इस केंद्रशासित प्रदेश में कोई अनुसूचित जाति नहीं है l
लक्षद्वीप के इतिहास पर एक नज़र
इन द्वीपों के बारे में, इन के पूर्व इतिहास के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। माना जाता है कि पहले-पहल लोग आ कर अमीनी, अनद्रौत, कावारत्ती और अगात्ती द्वीपों पर बसे। पहले यह विश्वास किया जाता था कि द्वीप में
आ कर बसने वाले मूल लोग हिंदू थे और लगभग 14वीं शताब्दी में किसी समय अरब व्यापारियों के प्रभाव में आ कर मुसलमान बन गए। परंतु हाल में पुरातत्वीय खोजों से पता चलता है कि लगभग छठी या सातवीं शताब्दी के आसपास यहां बौद्ध रहते थे। सर्वप्रथम इस्लाम धर्म को अपनाने वाले जिन लोगों और निवासियों का पता चलता है वे हिजरी वर्ष 139 (आठवीं शताब्दी) के समय के मालूम होते हैं। इस तारीख का पता अगात्ती में हाल में खोजे गए मकबरों के पत्थरों पर खुदी तारीखों से लगता है। स्थानीय परंपरागत मान्यताओं क अनुसार, इस द्वीप में अरब सूफी उबैदुल्लाह हिजरी सन 41 में इस्लाम को ले कर आए।शायद 16वीं शताब्दी तक स्वतंत्र इन द्वीपों में बसने वाले लोगों को पुर्तगालियों के उपनिवेशों के आधिपत्य से मुक्ति पाने के लिए चिरक्कल के राजा की सहायता लेनी पड़ी। इससे वह यहां अपना प्रभुत्व जमा सका और बाद में इन द्वीपों को कन्नानूर में मोपला समुदाय के प्रमुख अली राजा को जागीर के रूप में सौंप दिया, जो बाद में स्वतंत्र शासक बन बैठा। अरक्कल शासन लोकप्रिय नहीं हुआ और 1787 में टीपू सुल्तान ने इन द्वीपों पर कब्जा करने की उत्तर के द्वीपवासियों की याचिका को स्वीकार कर लिया। टीपू सुल्तान के पतन के बाद ये द्वीप ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार में दे दिए गए, परंतु इन पर कन्नानूर के शासक वस्तुत: तब तक शासन करते रहे जब तक कि अंतत: बीसवीं शताब्दी के आरंभ में अंग्रेजों ने इन पर कब्जा नहीं कर लिया। 1956 में इन द्वीपों को मिला कर केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया और तब से इस का शासन केंद्र सरकार के प्रशासक के माध्यम से चल रहा है। सन 1973 में लक्का दीव, मिनीकाय और अमीनदीवी द्वीपसमूहों का नाम लक्षद्वीप कर दिया गया। लक्षद्वीप का अर्थ होता हैं एक लाख द्वीप l
कौन हैं प्रफुल्ल खोड़ाभाई पटेल
प्रफुल्ल खोड़ा पटेल एक भारतीय राजनेता हैं, जो वर्तमान में 3 केंद्र शासित प्रदेशों लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव के प्रशासक हैं। प्रफुल्ल खोड़ा पटेल एक पूर्व भाजपा नेता हैं, जिन्होंने नरेंद्र मोदी के शासन काल में गुजरात में दो साल तक गृहमंत्री के तौर पर कार्य किया, जब वह मुख्यमंत्री थे। एनडीए सरकार द्वारा 2016 में उन्हें दोनों केंद्र शासित प्रदेशों (दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव) का प्रशासक नियुक्त किया गया था, जो केवल आईएएस अधिकारियों को पद पर नियुक्त करने की पहले की प्रथा से हट कर था। प्रफुल्ल खोड़ा पटेल लक्षद्वीप के प्रशासक के रूप में नियुक्त होने वाले एकमात्र राजनेता हैं। सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा धारक पटेल राजनीति में आने से पहले एक सड़क ठेकेदार हुआ करते थे। प्रफुल्ल खोड़ाभाई पटेल ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2007 से गुजरात में एक विधायक के रूप में की थी l 2010 में जब अमित शाह को सीबीआई ने गिरफ्तार किया तो प्रफुल्ल पटेल को गुजरात का होम मिनिस्टर बना दिया गया था l फिर 2014 में जब मोदी देश के प्रधानमंत्री बने तो प्रफुल्ल पटेल को दमन-दीव का एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया गया था l दमन-दीव में भी पहले आईएएस, PCS ऑफिसर को ही अपॉइंट किया जाता था l
2016 में दादरा एवं नगर हवेली का एडमिनिस्ट्रेटर भी प्रफुल्ल पटेल को बना दिया गया था l मतलब ये दो केंद्रशासित प्रदेशों के एडमिनिस्ट्रेटर थे l यहाँ ये सवाल खड़ा होता है क्या देश में अच्छे ब्यूरोक्रेट्स बचे ही नहीं हैं जो एक नेता को दो दो यूनियन टेरेटरी का एडमिनिस्ट्रेटर बना दिया गया ? पटेल कई बार विवादों के केंद्र में रहे हैं l अप्रैल 2019 में इन दोनों यूनियन टेरेटरी में जब चुनाव होने थे तो इलेक्शन कमीशन ने पटेल को नोटिस भेजा था l नोटिस इसलिए था क्योंकि पटेल ने दादरा एवं नगर हवेली के उस समय कलेक्टर रहे के. गोपीनाथन से एक कोएर्सिव रिक्वेस्ट की थी और कुछ महीनों बाद के. गोपीनाथन ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था l
दिसंबर 2019 को दोनों यूनियन टेरेटरी दमन-दीव और दादरा एवं नगर हवेली को मर्ज कर दिया गया और एक सिंगल यूनियन टेरेटरी बना दिया गया l अब यहाँ रहने वाली जनता को विश्वास था कि उन को एक अलग राज्य का दर्जा दे दिया जायेगा ताकि उन के वहां भी कोई मुख्यमंत्री हो जिसे वे खुद वोट दे कर चुन सकें जैसे गोवा को मिला था, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ l
दादरा एवं नगर हवेली के MP ने की थी आत्महत्या
बात करते हैं इस साल की तो फ़रवरी 2021 में दादरा एवं नगर हवेली के 7 बार MP रहे मोहन डेलकर ने मुंबई के एक होटल में आत्महत्या कर ली थी l जहाँ से 16 पेज का सुसाइड नोट भी मिला था, जिसमें प्रफुल्ल खोड़ाभाई पटेल का नाम सामने आया था l मोहन डेलकर के बेटे ने आरोप लगाया था कि उनके पिता को टॉर्चर किया जा रहा था और 25 करोड़ मांगे जा रहे थे, न देने पर फर्जी केस में फंसाने की धमकी दी गई थी l
लक्षद्वीप चर्चा के केंद्र में क्यों हैं ?
पूर्व में गुजरात के गृहमंत्री रहे एवं वर्तमान में लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ाभाई पटेल द्वारा पेश मसौदे में ये प्रमुख नियम हैं ...
- लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन 2021 (LDAR) का मसौदा पेश किया गया, जो प्रशासक को विकास के उद्देश्य से किसी भी संपत्ति को जब्त करने और उस के मालिकों को स्थानांतरित करने या हटाने की अनुमति देता है।ऐसा ही विवादित भू संपादन क़ानून मोदी सरकार को विरोध के चलते 2015 में लोकसभा में वापस लेना पड़ा था l ये कानून नई शकल में लक्षद्वीप में लाया गया l ना किसी से चर्चा की गई ना ही लक्षद्वीप के नागरिकों की आशंकाओं को दूर करने का कोई प्रयास किया जा रहा हैं l लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल पटेल लोकतांत्रीक भारत में तानाशाह की तरह बरताव कर रहे हैं l लक्षद्वीप में बसने वाले लोगों को डर हैं कि कही उन की ज़मीनें औने पौने दामों में उद्योगपतियों को ना बेच दी जाए l दूसरा डर जो लक्षद्वीप के लोगों को ता रहा हैं वो हैं वहाँ की डेमोग्राफी के बदलने का डर l अगर उन का डर हकीकत में बदल गया तो वहाँ जो स्थिती पैदा होगी वो आगे चल कर भारत के लिए नासूर बन सकती हैं और यह ऐसे प्रदेश में होगा जो सामरिक और रक्षा के दृष्टीकोण से बेहद अहम प्रदेश हैं l
- असामाजिक गतिविधियों की रोकथाम के लिए प्रिवेंशन ऑफ एंटी-सोशल एक्टीविटीज (PASA) एक्ट भी पेश किया है, जो किसी व्यक्ति को सार्वजनिक रूप से गिरफ्तारी का खुलासा किए बिना सरकार द्वारा एक साल तक हिरासत में रखने की अनुमति देता है।इस आदेश एवं कानून के खिलाफ केरला हाईकोर्ट में याचिका दायर की जा चुकी हैं जिसे केरला उच्च न्यायालय ने सुनवाई के लिए दाखिल कर लिया हैं l यह कानून ऐसे प्रदेश में लाया गया हैं जहाँ 2019 तक हत्या और बलात्कार का एक भी केस नहीं था l नेशनल क्राइम ब्यूरों की रिपोर्ट के अनुसार भी यहाँ अपराध की दर बिलकुल ना के बराबर हैं l आखिर क्या कारण हैं कि लक्षद्वीप जैसे शांतीप्रिय प्रदेश में यह कानून लाया गया ? ऐसा कानून तो उन प्रदेशों में भी नहीं हैं जहाँ अपराध का दर सब से ज़्यादा हैं l लोगों में डर हैं कि सरकार उन से काले कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने का लोकतांत्रीक अधिकार भी छीन लेना चाहती हैं l आखिर क्या वजह हैं कि प्रफुल्ल पटेल अपने द्वारा लाए गए कानूनों पर ना वहाँ की जनता से बात करते हैं और ना उन की आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करते हैं ? यह लोकतांत्रीक देश के लिए खतरे की घंटी हैं और प्रशासक का यह रवैय्या शांतीप्रिय लक्षद्वीप को बारूद के ढेर पर खड़ा कर देगा l
- इसके अलावा, मसौदा पंचायत चुनाव अधिसूचना भी है जो किसी ऐसे व्यक्ति को पंचायत चुनाव लड़ने से रोकती है जिस के दो से अधिक बच्चे हैं।यह भी लक्षद्वीप की जनता के साथ एक भद्दा मज़ाक हैं l आंकड़े गवाह हैं कि भाजपा के 96 ऐसे सांसद हैं जिन के तीन या तीन से अधिक बच्चे हैं l फिर लक्षद्वीप की जनता पर ऐसे कानून क्यों थोपे जा रहे हैं ? क्या ये कानून चिराग तले अँधेरा कहावत का मूर्त रूप नहीं हैं ? लक्षद्वीप की जनता में भय हैं कि इस कानून से उन के राजनीतिक सहभाग को सीमित किया जा रहा हैं और प्रशासक अपने ओपन सीक्रेट अजेंडे पर काम कर रहे हैं l
- लक्षद्वीप पशु संरक्षण विनियमन भी है जो स्कूलों में मांसाहारी भोजन परोसने पर प्रतिबंध के साथ-साथ गोमांस की बिक्री, खरीद या खपत पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है।यह भी एक भोंडा मज़ाक हैं लक्षद्वीप की जनता के साथ l लक्षद्वीप 95 % से अधिक अनुसूचित जनजाती के लोग रहते हैं, जिन का मुख्य आहार मांसाहार हैं l आखिर एक लोकतांत्रीक देश में शासकों को ये तय करने का अधिकार किस ने दिया कि लोग क्या खाएगे और क्या नहीं ? क्या इस कानून से तानाशाही की बू नहीं आती ? आज भी पूर्वोत्तर के कई राज्यों और गोवा में भाजपा सत्ता में हैं और वहाँ बसने वालों की परंपराओं का आदर करते हुए भाजपा वहाँ मांसाहार और बीफ पर पाबंदी नहीं लगाती l फिर आखिर लक्षद्वीप में ही ये पाबंदी क्यों लगाईं जा रही हैं ? क्या देश के अलग अलग प्रदेशों में बसने वाले नागरिकों को अलग अलग न्याय देना उचित हैं ? आज भी देश में 71 फीसदी से ज़्यादा लोग मांसाहारी हैं l इन 71 फीसदी से अधिक लोगों का क्या कीजियेगा ? यहाँ प्रशासक प्रफुल्ल पटेल का दोगलापन देखीए l एक तरफ वह शराब पर से पाबंदी हटा रहे हैं ताकि पर्यटन को बढ़ावा मिले जबकि वही दूसरी ओर मांसाहार पर पाबन्दी लगा रहे हैं जबकि अधिकांश पर्यटक मांसाहारी होते हैं l ये तर्क भी समझ से परे हैं l
- साथ ही प्रशासक की ओर से प्रस्तावित नए मसौदा कानून के तहत लक्षद्वीप में शराब के सेवन पर से रोक हटाई गई है।
यह भी प्रशासक का दोगलापन दर्शाता हैं l प्रफुल्ल पटेल गुजरात से आते हैं, जहाँ शराब पर पाबंदी हैं l गुजरात की भाजपा सरकार लोगों की मांग पर भी शराब पर से पाबंदी नहीं हटाती l वही दूसरी तरफ जब महाराष्ट्र सरकार ने चंद्रपुर से शराब पाबन्दी हटाई तो भाजपा ने इस का भी विरोध किया l अब ये बात समझ से परे हैं कि इसी भाजपा के नेता प्रफुल्ल पटेल लक्षद्वीप की जनता की धार्मिक भावनाओं की कदर किये बिना शराब पर से पाबंदी हटाने पर क्यों आतूर हैं ? आखिर शांतीप्रिय लक्षद्वीप को प्रफुल्ल पटेल क्यों बारूद के ढेर पर ला कर खड़ा करना चाहते हैं ?
लक्षद्वीप एक शांतीप्रिय और देश की सुरक्षा की दृष्टी से अहम प्रदेश हैं जहाँ मुस्लिम समुदाय बहुसंख्या में बसता हैं l आम तौर पर जो आरोप मुस्लिम समुदाय पर लगाए जाते हैं उन आरोपों से यह प्रदेश मुक्त हैं l मुस्लिम समुदाय पर शिक्षा पर तवज्जोह ना देने के आरोप लगाए जाते हैं जबकि यहाँ का साक्षरता दर 91 फीसदी से अधिक हैं l दूसरा आरोप मुस्लिम नौजवानों पर आतंकवाद में लिप्त होने का लगाया जाता हैं मगर लक्षद्वीप में बहुसंख्यक होने के बावजूद वहाँ से अब तक ऐसी कोई खबर नहीं आई जो इस आरोप की पुष्टी करें l इस से यह साबित होता हैं कि वहाँ बसने वाले लोग कितने शांतीप्रिय हैं ? तीसरा आरोप जो मुस्लिम समुदाय पर लगाया जाता हैं वह हैं जनसँख्या जानबुझ कर बढ़ाने का l परंतू यहाँ यह आरोप भी बेमानी हो जाता हैं जो साबित करता हैं कि जनसँख्या बढ़ने का संबंध धर्म से नहीं बल्कि आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक हालात से हैं l ऐसे प्रदेश में ऐसे व्यक्ती को प्रशासक बना कर भेजना आश्चर्यचकित करने वाला फैसला हैं l अगर वहाँ की जनता को विश्वास में लिए बिना ही ऐसे फैसले लिए जाते रहे तो यह घातक सिद्ध होगा l
सुंदर प्रस्तुति
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