दूसरा आम चुनाव 1957दूसरी लोकसभा की ४९४ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ४२१ सीटों पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने, ३१ सीटों पर राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों ने
दूसरा आम चुनाव 1957 : जब पहली बार बूथ कैप्चरिंग का गवाह बना देश
पहली लोकसभा ने अपना कार्यकाल पूरा किया और 1957 में देश का दूसरा आम चुनाव हुआ । तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने एक बार फिर प्रचंड जीत हासिल करते हुए सरकार बनाई । कांग्रेस ने कुल 494 सीटों में से 371 पर जीत का परचम लहराया । ये चुनाव कई मायनों में विशेष रहे । भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार संसद पहुंचे थे । पहली बार इसी साल बूथ कैप्चरिंग की घटना भी घटी ।
दूसरा आम चुनाव 1957 में 24 फरवरी से 9 जून तक यानी करीब साढ़े 3 महीने तक चला । पहले आम चुनाव में सीटों की कुल संख्या 489 थी, जो दूसरे आम चुनाव में बढा कर 494 कर दी गई थी । कुल रजिस्टर्ड वोटरों में 45.44 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया । दूसरे आम चुनाव में 4 राष्ट्रीय दलों-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, भारतीय जन संघ (आगे चल कर वही बी.जे.पी.बना) और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने हिस्सा लिया । इसके अलावा 11 राज्य स्तर की पार्टियों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में अपने उम्मीदवार उतारे । इस बार भी बड़ी तादाद में निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव मैदान में ताल ठोकी । दूसरे आम चुनाव में कुल 403 संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के कुल 494 सांसदों को चुना गया । 91 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे, जहां से 2 सांसद चुने गए- एक सामान्य वर्ग का तो दूसरा एस.सी.-एस.टी. समुदाय का । 312 संसदीय क्षेत्र इकलौते सांसद वाले रहे । हालांकि,
दूसरा आम चुनाव 1957 |
इसी आम चुनाव के बाद एक संसदीय क्षेत्र से 2 प्रतिनिधियों के चुने जाने के प्रावधान को खत्म कर दिया गया । दूसरे आम चुनाव के दौरान ही देश पहली बार बूथ कैप्चरिंग जैसी घटना का गवाह बना । यह घटना बिहार के बेगूसराय जिले में रचियारी गांव में हुई थी । यहां के कछारी टोला बूथ पर स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया । इसके बाद तो अगले तमाम चुनावों तक बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं आम हो गईं, खास कर बिहार में, जहां राजनीतिक पार्टियां इसके लिए माफिया तक का सहारा लेने लगीं । इस चुनाव में सिर्फ 45 महिला उम्मीदवार मैदान में थीं, जिनमें से 22 ने जीत हासिल की । उत्तर भारत की 85.5 प्रतिशत सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की, लेकिन इसी के बाद कांग्रेस का उत्तर भारत में धीरे-धीरे जनाधार खिसकना शुरू हो गया । 1957 के लोकसभा चुनाव में ही अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार संसद पहुंचे । उन्होंने यू.पी. की बलरामपुर सीट से जीत हासिल की । जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय जीवन की शुरुआत इसी आम चुनाव से हुई थी । उन्होंने उत्तर प्रदेश की तीन सीटों से एक साथ चुनाव लड़ा था। वे बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से तो जीत गए थे लेकिन लखनऊ और मथुरा में उन्हें हार का सामना करना पड़ा । मथुरा में तो उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी । लखनऊ से कांग्रेस के पुलिन बिहारी बनर्जी ने उन्हें हराया था, जबकि मथुरा से निर्दलीय उम्मीदवार राजा महेंद्र प्रताप की जीत हुई थी । आगे चलकर वह न सिर्फ देश के प्रधानमंत्री बने बल्कि पहले ऐसे गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने सफलतापूर्वक कार्यकाल पूरा किया । इस चुनाव का दिलचस्प पहलू यह रहा कि पहले आम चुनाव की तरह इस बार भी चुनाव के बाद जो लोकसभा गठित हुई उसमें किसी एक विपक्षी दल को इतनी सीटें भी नहीं मिल पाई कि उसे सदन में आधिकारिक विपक्षी दल की मान्यता दी जा सके । इस कारण सदन बिना नेता विरोध दल के ही रहा । ऐसा 1952 के चुनाव में भी हुआ था । उसमें भी किसी राजनीतिक दल को आधिकारिक विरोधी दल का दर्जा नहीं मिल पाया था ।
जो दिग्गज लोकसभा में पहुंचे
लोकसभा का दूसरा (1957) आम चुनाव एक लिहाज से महत्वपूर्ण रहा । इस चुनाव में पहली बार ऐसे चार बड़े नेता चुनाव लड़े और जीते जो आगे चलकर भारतीय राजनीति के शीर्ष पर पहुंचे । इलाहाबाद से कांग्रेस के टिकट पर लालबहादुर शास्त्री जीते । सूरत से कांग्रेस के ही टिकट पर मोरारजी देसाई जीते थे । इसी चुनाव में बलरामपुर संसदीय क्षेत्र से जनसंघ के टिकट पर जीतकर अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार लोकसभा मे पहुंचे थे । बाद में ये तीनों देश के प्रधानमंत्री बने । इसी चुनाव में मद्रास की तंजावुर लोकसभा सीट से आर. वेकटरमन चुनाव जीते जो बाद में देश के राष्ट्रपति बने । ग्वालियर राजघराने की विजया राजे सिंधिया भी गुना से 1957 में ही पहली बार चुनाव जीती थीं । ताउम्र संघ परिवार से जुड़ी रहीं विजया राजे ने अपना यह पहला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और जीता था । 1952 में चुनाव हार चुके प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के दिग्गज आचार्य जे.बी. कृपलानी 1957 का चुनाव बिहार के सीतामढ़ी संसदीय क्षेत्र से जीते । इसी तरह 1952 में हारे दिग्गज कम्युनिस्ट नेता श्रीपाद अमृत डांगे को भी 1957 में जीत मिली । वे मुंबई (मध्य) से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के टिकट पर जीते थे । भारतीय राजनीति में दलबदल की बीमारी नई नहीं है । 1952 में किसान मजदूर प्रजा पार्टी से चुनाव जीतने वाली सुचेता कृपलानी 1957 में नई दिल्ली सीट से कांग्रेस के टिकट पर जीतीं । फूलपुर से जवाहरलाल नेहरू के अलावा कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने भी इस लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी । नेहरू के दामाद फिरोज गांधी रायबरेली से जीते थे । आंध्रप्रदेश की चित्तूर सीट से एम. अनंतशयनम आयंगर जीते तो गुड़गांव सीट से मौलाना अबूल कलाम आजाद विजयी रहे थे । तेनाली (आंध्र प्रदेश) से एन.जी रंगा. जीते थे । मुंबई (उत्तरी) से वी.के. कृष्ण मेनन, गुजरात के साबरकांठा से गुलजारी लाल नंदा, पंजाब के जालंधर से स्वर्णसिंह, बिहार के सहरसा से ललित नारायण मिश्र, पश्चिम बंगाल के आसनसोल से अतुल्य घोष, उत्तर प्रदेश के बस्ती से के.डी. मालवीय, बांदा से राजा दिनेश सिंह और मध्यप्रदेश के बालौदा बाजार (अब छत्तीसगढ़ में) से विद्याचरण शुक्ल भी चुनाव जीतने मे सफल रहे थे । सुप्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता ए.के. गोपालन केरल के कासरगौड़ा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीते थे। बिहार के बाढ़ से तारकेश्वरी सिन्हा, पश्चिम बंगाल के बशीरहाट से रेणु चक्रवर्ती और अंबाला से सुभद्रा जोशी भी दोबारा चुनाव जीतने मे सफल रही थीं । सीतापुर से उमा नेहरू भी चुनाव जीती थीं । जाने-माने समाजवादी नेता बापू नाथ पई महाराष्ट्र के राजापुर से और हेम बरुआ भी गुवाहाटी से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते थे ।
डॉ. लोहिया, वी.वी. गिरि, चंद्रशेखर, रामधन हारे
1957 का लोकसभा चुनाव कई दिग्गजों की हार का भी गवाह बना । दिग्गज समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया को कांग्रेस ने हराया तो वी.वी. गिरी को एक निर्दलीय से हार का मुंह देखना पड़ा । उत्तरप्रदेश की चंदोली लोकसभा सीट से डॉ. लोहिया को कांग्रेस के त्रिभुवन नारायण सिंह ने हराया था । कांग्रेस के टिकट पर आंध्र प्रदेश के पार्वतीपुरम लोकसभा क्षेत्र से वी.वी. गिरि मात्र 565 वोट से चुनाव हार गए थे । उन्हें निर्दलीय डॉ. सूरीदौड़ा ने हराया था । एक अन्य समाजवादी नेता पट्टम थानु पिल्ले केरल की त्रिवेन्द्रम लोकसभा सीट से चुनाव हारे थे । उन्हें निर्दलीय प्रत्याशी ईश्वर अय्यर ने हराया l चंद्रशेखर ने भी पहला चुनाव 1957 में ही पी.एस.पी. के टिकट पर लड़ा था । तब बलिया और गाजीपुर के कुछ हिस्से को मिला कर रसड़ा संसदीय सीट थी । चंद्रशेखर ने इसी सीट से चुनाव लड़ा था और तीसरे नंबर पर रहे थे । जीत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सरयू पांडेय की हुई थी । युवा तुर्क के रूप में मशहूर रहे एक और नेता रामधन ने भी आजमगढ़ से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था लेकिन वे कांग्रेस उम्मीदवार के मुकाबले हार गए थे ।
इस चुनाव की यह भी विशेषता रही कि पहली बार कम से कम पांच बड़े क्षेत्रीय दल अस्तित्व में आए थे । तमिलनाडु में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़घम (द्र.मु.क.), ओडिशा में गणतंत्र परिषद, बिहार में झारखंड पार्टी, संयुक्त महाराष्ट्र समिति और महागुजरात परिषद जैसे क्षेत्रीय दलों का गठन इसी चुनाव में हुआ था । 1957 के दूसरे आम चुनाव में सिर्फ दो ही पार्टियां दहाई का आंकड़ा छू पाईं । ये दो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी थीं । उस वक्त भारत में 13 राज्य और 4 केंद्र शासित प्रदेश थे । यह चुनाव इन 17 राज्यों के 403 निर्वाचन क्षेत्रों की 494 सीटों पर हुआ था । चुनाव में 15 पार्टियों और कई सौ निर्दलीय उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया था ।
दूसरी लोकसभा चुनाव की मुख्य बातें
*दूसरी लोकसभा के लिए जब चुनाव हुए तब साल था १९५७ का । ये चुनाव २० दिन तक अर्थात २४ फरवरी से १५ मार्च तक चले । दूसरी लोकसभा के लिए उस समय १३ राज्यों और ०४ केंद्रशासित प्रदेशों के ४०३ चुनावक्षेत्रो में ४९४ सीटों के लिए चुनाव हुए ।
*देश की दूसरी लोकसभा ०५ एप्रिल १९५७ को अस्तित्व में आई ।
*दूसरी लोकसभा के चुनाव हेतु २,२०,४७८ चुनाव केंद्र स्थापित किए गए थे ।
*उस समय मतदाताओं की कुल संख्या १९.३७ करोड़ थी ।
*उस समय केवल ४७.७६ % मतदान हुए थे ।*दुसरी लोकसभा के लिए ४९४ सीटों के लिए हुए चुनाव में कुल १५१९ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे जिन में से ४९४ उम्मीदवारों की deposit राशि ज़ब्त हुई थी।
*दूसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में १२ उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीत कर लोकसभा में पहुँचने में सफल हुए थे ।
*इस चुनाव में कुल ४५ महिला उम्मीदवार चुनाव लड़ रही थी जिन में से २२ महिला उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुई ।
*४९४ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ७६ सीटे अनुसूचित जाती के लिए और ३१ सीटे अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित रखी गई थी ।
*दूसरी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में १५ राजनीतिक दलों ने भाग लिया था जिन में से राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की संख्या ०४ और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की संख्या ११ थी ।
*राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने कुल ९१९ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, जिन में से १३० उम्मीदवारों की deposit राशि ज़ब्त हुई थी और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के ४२१ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे । इस चुनाव में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को कुल वोटों में से ७३.०८ % वोट मिले थे ।
*इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों ने कुल ११९ उम्मीदवार खड़े किए थे। रिकॉर्ड के अनुसार इन ११९ प्रत्याशीयों में से ४० प्रत्याशीयों की deposit राशि ज़ब्त हुई थी और ३१ प्रत्याशी लोकसभा में पहुंचे थे। इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से ७.६० % वोट मिले थे।
*इस चुनाव में कुल ४८१ निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इन ४८१ निर्दलीय उम्मीदवारों में से ४२ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे। कुल वोटो में से १९.३२ % वोट निर्दलीय उम्मीदवारों ने प्राप्त किए थे जबकि ३२४ निर्दलीय उम्मीदवारों की जमा राशि ज़ब्त होने का रिकॉर्ड मौजूद है।
*इस चुनाव में कॉंग्रेस सब से बड़े दल के रूप में सामने आई। ४९४ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में कॉंग्रेस के ४९० उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इन में से ३७१ उम्मीदवार जीत दर्ज करा कर लोकसभा पहुँचने में सफल हुए तो वही ०२ उम्मीदवारों की जमा राशि ज़ब्त होने का उल्लेख भी रिकॉर्ड में मौजूद है। इस चुनाव में कॉंग्रेस को कुल वोटो में से ४७.७८ % वोट मिले थे।
*कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI) दूसरी सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI) ने कुल ११० उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। इन ११० उम्मीदवारों में से १६ उम्मीदवारों की जमा राशि जब्त हुई थी जबकि २७ उम्मीदवार लोकसभा पहुँचने में सफल हुए थे। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI) को कुल वोटों में से ८.९२ % वोट मिले थे।
*उस समय के और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उस समय दूसरी लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के फूलपुर चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे थे।
*सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि दूसरी लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में ५,९०,००,००० (०५ करोड़ ९० लाख) रुपये की राशि खर्च हुई थी।
*उस समय श्री सुकुमार सेन भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे, जिन्होंने ये चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
*दूसरी लोकसभा ३१ मार्च १९६२ को विसर्जित की गई।
*इस चुनाव के बाद दूसरी लोकसभा के लिए १०-११ मई १९५७ को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया था।
*दुसरी लोकसभा के सभापती पद हेतु ११ मई १९५७ को चुनाव हुए और एम. ए. अय्यंगार को सभापती और हुकुम सिंह को उपसभापती के रूप में चुना गया।
*दूसरी लोकसभा के कुल १६ अधिवेशन और ५८१ बैठके हुई। इस लोकसभा में कुल ३२७ बिल पास किए गए थे जिस का रिकॉर्ड मौजूद है।
*दुसरी लोकसभा की पहली बैठक १० मई १९५२ को हुई थी।
*दूसरी लोकसभा की ४९४ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ४२१ सीटों पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने, ३१ सीटों पर राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों ने जबकि ४२ सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की।
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