लोकसभा का कार्यकाल 2024 में समाप्त होना है l इन 17 आम चुनावों में भारतीय राजनीति में कई उतार चढ़ाव आए l कई नेता आए और समय की आगोश में गुमनाम हो गए l कई
लोकसभा : एक परिचय
लोकसभा, भारतीय संसद का निचला सदन (lower house) है। भारतीय संसद का ऊपरी सदन (upper house) राज्य सभा है। लोक सभा सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर लोगों द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों से गठित होती है। भारतीय संविधान के अनुसार सदन में सदस्यों की अधिकतम संख्या ५५२ तक हो सकती है, जिस में से ५३० सदस्य विभिन्न राज्यों का और २० सदस्य केन्द्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। सदन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं होने की स्थिति में राष्ट्रपति यदि चाहे तो आंग्ल-भारतीय समुदाय के २ प्रतिनिधियों को लोकसभा के लिए मनोनीत कर सकता था मगर 25 जनवरी 2020 के बाद से एंग्लो इंडियन के आरक्षण को बढ़ाया नहीं गया और वह समाप्त हो गया ।
लोकसभा का इतिहास
पहली लोकसभा का गठन 1952 में हुए पहले आम चुनाव के बाद हुआ। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 364 सीटों के साथ जीत हासिल कर के सत्ता में पहुँची। इस के साथ ही जवाहर लाल नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को लगभग 45 प्रतिशत वोट मिले थे।
राज्यों के अनुसार सीटों की संख्या
भारत के प्रत्येक राज्य को उस की जनसंख्या के आधार पर लोकसभा सदस्य मिलते है। वर्तमान मे यह 1971 की जनसंख्या पर आधारित है। अगली बार लोकसभा के सदस्यों की संख्या वर्ष 2026 मे निर्धारित की जाएगी । इस से
लोकसभा |
वर्तमान स्थिती में राज्यों की जनसंख्या के अनुसार वितरित सीटों की संख्या के अनुसार उत्तर भारत का प्रतिनिधित्व, दक्षिण भारत के मुकाबले काफी कम है। जहां दक्षिण के चार राज्यों, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल को जिन की संयुक्त जनसंख्या देश की जनसंख्या का सिर्फ 21% है, को 129 लोक सभा की सीटें आवंटित की गयी हैं जब कि, सबसे अधिक जनसंख्या वाले हिन्दी भाषी राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार जिन की संयुक्त जनसंख्या देश की जनसंख्या का 25.1% है के खाते में सिर्फ 120 सीटें ही आती हैं। वर्तमान में अध्यक्ष और आंग्ल-भारतीय समुदाय के दो मनोनीत सदस्यों को मिलाकर, सदन की सदस्य संख्या 545 है।
लोकसभा का कार्यकाल
यदि समय से पहले भंग ना किया जाये तो, लोकसभा का कार्यकाल अपनी पहली बैठक से ले कर अगले पाँच वर्ष तक होता है उस के बाद यह स्वत: भंग हो जाती है। लोकसभा के कार्यकाल के दौरान यदि आपातकाल की घोषणा की जाती है तो संसद को इस का कार्यकाल कानून के द्वारा एक समय में अधिकतम एक वर्ष तक बढ़ाने का अधिकार है, जबकि आपातकाल की घोषणा समाप्त होने की स्थिति में इसे किसी भी परिस्थिति में छ: महीने से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता।
लोकसभा की विशेष शक्तियाँ
- मंत्री परिषद केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। अविश्वास प्रस्ताव सरकार के विरूद्ध केवल यहीं लाया जा सकता है।
- धन बिल पारित करने मे यह निर्णायक सदन है।
- राष्ट्रीय आपातकाल को जारी रखने वाला प्रस्ताव केवल लोकसभा मे लाया और पास किया जायेगा।
लोकसभा के पदाधिकारी
लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर)
लोकसभा अपने निर्वाचित सदस्यों में से एक सदस्य को अपने अध्यक्ष (स्पीकर) के रूप में चुनती है। कार्य संचालन में अध्यक्ष की सहायता उपाध्यक्ष द्वारा की जाती है, जिसका चुनाव भी लोक सभा के निर्वाचित सदस्य करते हैं। लोक सभा में कार्य संचालन का उत्तरदायित्व अध्यक्ष का होता है। वर्तमान मे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला है।
लोकसभा अध्यक्ष के दो कार्य है-
- लोकसभा की अध्यक्षता करना एवं उस में अनुसाशन, गरिमा तथा प्रतिष्ठा बनाये रखना। इस कार्य हेतु वह किसी न्यायालय के सामने उत्तरदायी नहीं होता है।
- वह लोकसभा से संलग्न सचिवालय का प्रशासनिक अध्यक्ष होता है किंतु इस भूमिका के रूप में वह न्यायालय के समक्ष उत्तरदायी होगा।
स्पीकर की विशेष शक्तियाँ
- दोनो सदनों का सम्मिलित सत्र बुलाने पर स्पीकर ही उसका अध्यक्ष होगा। उस की अनुपस्थित होने पर डिप्टी स्पीकर तथा उसके भी न होने पर राज्यसभा का उपसभापति अथवा सत्र द्वारा नांमाकित कोई भी सदस्य सत्र का अध्यक्ष होता है
- धन बिल का निर्धारण स्पीकर करता है। यदि धन बिल पर स्पीकर साक्ष्यांकित नहीं करता तो उस बिल को धन बिल नहीं माना जायेगा। स्पीकर का निर्णय अंतिम तथा बाध्यकारी होता है।
- सभी संसदीय समितियाँ उसकी अधीनता में काम करती हैं। उसके किसी समिति का सदस्य चुने जाने पर वह उसका पदेन अध्यक्ष होगा l
- लोकसभा के विघटन होने पर भी स्पीकर पद पर कार्य करता रहता है। नवीन लोकसभा के चुने जाने पर ही वह अपना पद छोड़ता है।
कार्यवाहक अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर)
जब कोई नवीन लोकसभा चुनी जाती है तब राष्ट्रपति उस सदस्य को कार्यवाहक स्पीकर नियुक्त करता है जिसको संसद मे सदस्य होने का सबसे लंबा अनुभव होता है। वह राष्ट्रपति द्वारा शपथ ग्रहण करता है।
उसके दो कार्य होते हैं-
1. संसद सदस्यों को शपथ दिलवाना, एवं
2. नवीन स्पीकर चुनाव प्रक्रिया का अध्यक्ष भी वही बनता है।
उपाध्यक्ष
लोकसभा के सदस्य अपने में से किसी एक का उपाध्यक्ष के रूप में चुनाव करते हैं। यदी संबंधित सदस्य का लोकसभा की सदस्यता खत्म हो जाती है तो उसका अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद भी खत्म हो जाता है। उपाध्यक्ष अपना त्याग पत्र अध्यक्ष को संबोधित करते हुए देता है। लोकसभा के उपस्थित सदस्यों के बहुमत से संमत किये हुए प्रस्ताव के अनुसार अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पदच्युत (पद से निकाला जाना) किया जा सकता है।
लोकसभा के सत्र
संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार संसद सदैव इस तरह से आयोजित की जाती रहेगी कि संसद के दो सत्रों के मध्य 6 मास से अधिक अंतर न हो। पंरपरानुसार संसद तीन नियमित सत्रों तथा विशेष सत्रों मे आयोजित की जाती है। सत्रों का आयोजन राष्ट्रपति की विज्ञप्ति से होता है।
1. बजट सत्र वर्ष का पहला सत्र होता है l सामान्यत: यह सत्र फरवरी-मई के मध्य चलता है l यह सबसे लंबा तथा महत्वपूर्ण सत्र माना जाता है l इसी सत्र मे बजट प्रस्तावित तथा पारित होता है एवं सत्र के प्रांरभ मे राष्ट्रपति का अभिभाषण होता है l
2. मानसून सत्र जुलाई-अगस्त के मध्य होता है l
3. शरद सत्र नवम्बर-दिसम्बर के मध्य होता है l यह सबसे कम समयावधि का सत्र होता है l
-विशेष सत्र : इस के दो भेद है
1. संसद के विशेष सत्र
2. लोकसभा के विशेष सत्र
संसद के विशेष सत्र :- प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति इनका आयोजन करता है l ये किसी नियमित सत्र के मध्य अथवा उस से पृथक आयोजित किये जाते है l एक विशेष सत्र मे कोई विशेष कार्य चर्चित तथा पारित किया जाता है यदि सदन चाहे भी तो अन्य कार्य नही कर सकता l
लोकसभा का विशेष सत्र :- अनु. 352 मे इस का वर्णन है किंतु इसे 44 वें संशोधन 1978 से स्थापित किया गया है l यदि लोकसभा के कम से कम 1/10 सद्स्य एक प्रस्ताव लाते है जिसमे राष्ट्रीय आपातकाल को जारी न रखने की बात कही गयी है तो नोटिस देने के 14 दिन के भीतर सत्र बुलाया जायेगा l
सत्रावसान :- मंत्रिपरिषद की सलाह पर सदनों का सत्रावसान राष्ट्रपति करता है l इस मे संसद का एक सत्र समाप्त हो जाता है तथा संसद दुबारा तभी सत्र कर सकती है जब राष्ट्रपति सत्रांरभ का समन जारी कर दे l सत्रावसान की दशा मे संसद के समक्ष लम्बित कार्य समाप्त नही होते l
स्थगन :- किसी सदन के सभापति द्वारा सत्र के मध्य एक लघुवधि का अन्तराल लाया जाता है इस से सत्र समाप्त नही होता ना उसके समक्ष लम्बित कार्य समाप्त होते है l यह दो प्रकार का होता है
1. अनिश्चित कालीन l
2. जब अगली मीटिंग का समय दे दिया जाता है l
लोकसभा का विघटन:- राष्ट्रपति द्वारा मंत्रि परिष्द की सलाह पर किया लोकसभा का विघटन किया जा सकता है। इस से लोकसभा भंग हो जाती है। इस के बाद आम चुनाव होते है। विघटन के बाद सभी लंबित कार्य जो लोकसभा के समक्ष होते है समाप्त हो जाते है, किंतु वे बिल जो राज्यसभा मे लाये गये हो और वही लंबित होते है समाप्त नही होते या वे बिल जो राष्ट्रपति के सामने विचाराधीन हो वे भी समाप्त नही होते।
संसद मे लाये जाने वाले प्रस्ताव
अविश्वास प्रस्ताव
लोकसभा के क्रियांवयन नियमों में इस प्रस्ताव का वर्णन है l विपक्ष यह प्रस्ताव लोकसभा में मंत्रिपरिषद के विरूद्ध लाता है l इसे लाने हेतु लोकसभा के 50 सदस्यों का समर्थन जरूरी है l यह सरकार के विरूद्ध लगाये जाने वाले आरोपों का वर्णन नही करता है केवल यह बताता है कि सदन मंत्रिपरिषद में विश्वास नही करता है l एक बार प्रस्तुत करने पर यह प्रस्ताव सिवाय धन्यवाद प्रस्ताव के सभी अन्य प्रस्तावों पर प्रभावी हो जाता है l इस प्रस्ताव हेतु पर्याप्त समय दिया जाता है l इस पर चर्चा करते समय समस्त सरकारी कृत्यों एवं नीतियों की चर्चा हो सकती है l लोकसभा द्वारा प्रस्ताव पारित कर दिये जाने पर मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को त्याग पत्र सौंप देती है l संसद के एक सत्र मे एक से अधिक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाये जा सकते l
- विश्वास प्रस्ताव :- लोकसभा नियमों में इस प्रस्ताव का कोई वर्णन नहीं है l यह आवश्यक्तानुसार उत्पन्न हुआ है ताकि मंत्रिपरिषद अपनी सत्ता सिद्ध कर सके l यह सदैव मंत्रिपरिषद लाती है l इस प्रस्ताव के गिर जाने पर मंत्रीपरिषद को त्याग पत्र देना पडता है l
- निंदा प्रस्ताव :- लोकसभा मे विपक्ष यह प्रस्ताव लाकर सरकार की किसी विशेष नीति का विरोध/निंदा करता है l इसे लाने हेतु कोई पूर्वानुमति जरूरी नहीं है यदि लोकसभा में यह प्रस्ताव पारित हो जाये तो मंत्रिपरिषद निर्धारित समय में विश्वास प्रस्ताव लाकर अपने स्थायित्व का परिचय देती है l उसके लिये यह अनिवार्य है।
- काम रोको प्रस्ताव :- लोकसभा मे विपक्ष यह प्रस्ताव लाता है यह एक अद्वितीय प्रस्ताव है जिसमे सदन की समस्त कार्यवाही रोक कर तात्कालीन जन महत्व के किसी एक मुद्दे को उठाया जाता है l यह प्रस्ताव पारित होने पर सरकार पर निंदा प्रस्ताव के समान प्रभाव छोड़ता है।
फ़िलहाल यह 17वी लोकसभा है l इस लोकसभा का कार्यकाल 2024 में समाप्त होना है l इन 17 आम चुनावों में भारतीय राजनीति में कई उतार चढ़ाव आए l कई नेता आए और समय की आगोश में गुमनाम हो गए l कई सरकारे बनी और गिरी l इस लेख माला में हम विस्तार से हर आम चुनाव पर चर्चा करेंगे l प्रस्तुत लेख इस लेख माला का पहला लेख है ताकि पाठकों का लोकसभा से परिचय हो जाए l
COMMENTS