मुक्तिबोध की कविताओं की मुख्य विशेषता muktibodh ki kavya drishti मुक्तिबोध की काव्य चेतना मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताएँ काव्य संवेदना काव्य भाषा शैली
मुक्तिबोध की कविताओं की मुख्य विशेषता
मुक्तिबोध की कविताओं की मुख्य विशेषता मुक्तिबोध की आलोचना दृष्टि muktibodh ki kavyagat visheshta मुक्तिबोध की कविताओं की मुख्य विशेषता क्या है Muktibodh Gajanan Madhav Muktibodh मुक्तिबोध रचनावली muktibodh ki kavya drishti मुक्तिबोध की काव्य चेतना मुक्तिबोध की काव्यगत विशेषताएँ गजानन माधव मुक्तिबोध की काव्य संवेदना - गजानन माधव मुक्तिबोध का सृजन केवल एक कवि की प्रतिष्ठा का सृजन नहीं है ,अपितु वह एक पीठी का ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। युवा पीठी के लिए वह परम्परा की अस्वीकृति की परंपरा है। मुक्तिबोध का रचनाकाल छायावाद से लेकर नयी कविता तक फैला है। मुक्तिबोध की कविता यात्रा सुविधाओं से भरी मात्रा नहीं रही है। छायावादी काव्य संस्कारों से मुक्त होकर प्रगतिवाद की कमियों पर पैनी दृष्टि रखते हुए उन्होंने नयी कविता को दुर्लभ आयाम दिए हैं। मुक्तिबोध आनंद और उल्लास के कवि नहीं हैं और न ही उनकी कविता संतुलन और सामंजस्य का कोई सन्देश देती है ,वे तो रक्ताल जीवन यथार्थ के भोक्ता कवि हैं और चूँकि यथार्थ सीधा ,सरल ,सपाट नहीं होता ,अतः अपनी कविताओं की तुलना उन्होंने सांप और हिडिम्बा से की है। कविता लिखते हुए कविता से निकली हुई दूसरी कविता के पीछे भागना ,कविता से पागलपन की सीमा तक उनके लगाव को व्यंजित करता है। दूसरी बात जो स्पष्ट होती है वह यह है कि एक एक कविता पर वे एक इतना श्रम करते थे कि कविता उनके लिए एक कष्ट साध्य अनिवार्यता हो जाती थी ,आवेग में डूबे क्षणों का उच्छ्वास नहीं है।
मुक्तिबोध की कविताओं की मुख्य विशेषता निम्नलिखित रूपों में देख सकते हैं -
मुक्तिबोध का आत्मसंघर्ष
मुक्तिबोध में छायावादी कवियों की भाँती जीवन संघर्ष से घबराकर पलायन करने की प्रवृत्ति नहीं है ,पर उनके अंतर्मन में पलायन को लेकर द्वन्द तथा शंकाएं अवश्य हैं। विमलधारा कविता में जीवन में सुख दुःख को स्वाभाविक ढंग से ग्रहण किया जाए अथवा पलायन की राह पर आगे बढ़ा जाए ,यह द्वन्द स्पष्ट मुखरित हुआ है -
हम तर चलें , री ! बह रही है दुःख की यह विमल धारा
फूल के इस हास में है अश्रु का भी हास प्यारा ।
इस देश के हैं हम नहीं , यह जगत - नन्दन छोड़ दें क्या ?
बह चलें इस धार में भी ,पुलिस बंधन तोड़ दे क्या ?"
तार सप्तक के प्रकाशन से पूर्व ही हिंदी कविता में आशंका ,भय ,कुंठा और संत्रास जैसी भावनाएं ,द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका से आक्रांत मनुष्य की सामान्य भावनाएं हो गयी थी। प्रयोगवादी कवियों ने मध्यवर्ग की इन आशंकाओं की व्यापक अभिव्यक्ति की है। मुक्तिबोध में उपयुक्त भावनाएं व्यक्तिगत जीवन में प्राप्त असुरक्षा के कारण अधिक प्रमाणिक और गहन अभिव्यक्ति पा सकी हैं। मुक्तिबोध के काव्य की विशेषता मुक्तिबोध के जीवन की परिस्थितियां और उनके जीवन से सम्बंधित संस्मरणों से यह तथ्य पूरी तरह उजागर हो जाता है कि वे भयानक बेचैनी ,संत्रास और शंका में जीते थे। उनकी कविताओं में आशंका आदि स्थायीभाव नहीं तो एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति के रूप में अवश्य उपस्थित है -
बियावान रात
जरुर कहीं होगी आज वारदात
भयानक बात। "
अँधेरे में कविता का रचनाकाल ,उनकी पुस्तक भारत - इतिहास और संस्कृति को प्रतिबंधित किये जाने का काल है। अतः इस कविता में आशंका और असुरक्षा की अत्यंत सघन अभिव्यक्ति मिलती है -
रात के दो हैं,
दूर-दूर जंगल में सियारों का हो-हो,
पास-पास आती हुई घहराती गूँजती
किसी रेल-गाड़ी के पहियों की आवाज़!!
किसी अनपेक्षित
असंभव घटना का भयानक संदेह,
अचेतन प्रतीक्षा,
कहीं कोई रेल-एक्सीडेण्ट न हो जाय।
चिन्ता के गणित अंक
आसमानी-स्लेट-पट्टी पर चमकते
खिड़की से दीखते।
उनके काव्य में भय तथा संत्रास की अभिव्यक्ति संश्लिष्ट रूप में प्राप्त होती है। जिस बात से कवि काँप उठता है वह एक स्थायी दृश्य की तरह उसके सम्मुख छाई रहती हैं। काँप उठा दिल कविता में विषम जीवन स्थितियों से आक्रांत अपनी मन स्थिति को वे इस प्रकार चित्रित करते हैं -
काँप उठता दिल अरे
जिस बात से
वह दृष्टि बनकर छा गयी
दुःख ,निराशा ,क्षय ,विवश सी वेदना
तस्वीर बनकर आ गयी
मुक्तिबोध की कविताओं में जीवन यथार्थ के ज्ञानात्मक संवेदन को अभिव्यक्ति प्रदान की गयी है। साथ ही एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी प्राप्त होता है। यह सही है कि मुक्तिबोध का काव्य यथार्थ और पीड़ा के संघर्ष का काव्य है ,पर यह संघर्ष एकान्तिक नहीं हैं ,इसमें ज्ञान और संवेदन का महत्वपूर्ण योग है। यही कारण है कि उनके आत्म संघर्ष में विचारों का संघर्ष भी निहित है। इस संघर्ष में वैज्ञानिक विश्लेषण पद्धति और तार्किक दृष्टिकोण उनकी बौद्धिकता के प्रमाणस्वरूप देखे जा सकते हैं। ब्रह्म राक्षस कविता में वे तर्कसंगत समीकरण को ही अंतिम संघर्ष के रूप में स्वीकार करते हैं -
वे भाव-संगत तर्क-संगत
कार्य सामंजस्य-योजित
समीकरणों के गणित की सीढ़ियाँ
हम छोड़ दें उसके लिए।
उस भाव तर्क व कार्य-सामंजस्य-योजन- शोध में
सब पण्डितों, सब चिन्तकों के पास
वह गुरू प्राप्त करने के लिए भटका!!
मुक्तिबोध की काव्य चेतना
मुक्तिबोध की काव्य चेतना संघर्ष को अनिवार्य मानते हुए उसे मानवीय दायित्व के रूप में प्रस्तुत करती है। जन -जन को संघर्ष के क्रांतिकारी मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए उद्बोधित करते हुए वे कहते हैं -
मेरा हृदय दृढ़ होकर धड़कता है
कि मैं तो एक आयुध
मात्र साधन
प्रेम का वाहन
तुम्हारे द्वार आया हुआ मैं अस्त्र-सज्जित रथ
मेरे चक्र दोनों अग्र गति के लिए व्याकुल हैं
व मेरी प्राण-आसंदी तुम्हारी प्रतीक्षा में है
यहाँ बैठो, विराजो,
आत्मा के मृदुल आसन पर
हृदय के, बुद्धि के ये अश्व तुमको ले उड़ेंगे और
शैल-शिखरों की चढ़ानों पर बसी ठंडी हवाओं में
मुक्तिबोध |
एक सफल क्रांतिकारी की भाँती वे क्रांति के लिए उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करते हैं तथा अपने लक्ष्य के प्रति सदैव सजग रहते हैं। सुलेखचन्द्र शर्मा ने उनकी इस प्रतिबद्धता और समर्पित लक्ष्यों के प्रति अंध आसक्ति को रेखांकित करते हुए उचित ही लिखा है - एक गहन आत्मीयता और तरल आस्था की सर्वगामी चेतना मुक्तिबोध की संवेदना को एक संभाव्य मनोमय आदर्श से सदैव जोड़े रखती हैं। मुक्तिबोध के काव्य की विशेषता किन्तु उस संभाव्य के मूल में निहित द्वन्द चेतना को परखने में कवि की दृष्टि कभी धोखा नहीं खाती ,फलतः उसके भविष्य स्वपन ,रोमानी रंग छायाओं के कुहरिल परिवेश में घूल नहीं जाते ,एक यथार्थपरक समष्टि निष्ठा के द्वार पर अनवरत दस्तक देते रहते हैं।
विद्रोह मुक्तिबोध के काव्य का स्थायी स्वर है। लाल रंग का प्रचुरता से किया गया प्रयोग यह स्वतः प्रमाणित कर देता है कि कवि विद्रोह को स्थायी महत्व देना चाहता है। लाल चिता की रुधिर मणि और प्रकाश दीप जैसे शब्दों का प्रयोग उनकी इस प्रवृत्ति का परिचायक है। अँधेरे ,श्यामल और काजली रंगों के साथ लाल रंग का प्रयोग यह सिद्ध करता है कि अन्धकार पर विजय का एक मार्ग वे क्रांति मानते थे। इस सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि लाल रंग हमेशा काले रंग पर भारी पड़ा है -
घुसती है लाल लाल मशाल अजीब सी
अंतराल विवर के तम में
लाल लाल कोहरा
कोहरे में सामने रक्तालोक स्नात पुरुष एक
रहस्य साक्षात
जन के प्रति यह प्रतिबद्धता उनके लिए किसी पार्टीलाइन का अध्यादेश न होकर उनकी रगों मे खौलता हुआ एक ज्वालामुखी है ,जिसने उनके विद्रोह और संघर्ष को प्रमाणिकता प्रदान की है। निसंदेह वे आधुनिक युग के सर्वाधीक प्रगतिशील ,शोषितों के पक्षधर और वर्ग संघर्ष को गति प्रदान करने वाले आलोकस्नात कवि हैं।
मुक्तिबोध की फैंटेसी
मुक्तिबोध ने जिस फैंटसी को अपने प्रमुख काव्यशिल्प के रूप में प्रस्तुत किया है वह रहस्य से घिरी हुई यथार्थआधारित फैंटसी है। उनकी फंतासी में यथार्थ इस प्रकार घुलमिल गया है कि उसे अलग करना संभव नहीं है। इसके अतिरिक्त उनकी फैंटसी सौद्देश्य है ,वह काल्पनिक लोक में हमें भटका नहीं देती ,वरन भयानक सत्यों से हमारा परिचय देती है और कहीं न कहीं हमें आहत भी करती है। भ्रष्ट व्यवस्था पर प्रहार करने के अतिरिक्त वह समाज के सड़े गले रूप को भी प्रस्तुत करती है। मूल्यहीनता और आत्मनिर्वासन की स्थिति को भी मुक्तिबोध फैतासी के माध्यम से सफलतापूर्वक व्यक्त करते हैं।
मुक्तिबोध की काव्य भाषा शैली
मुक्तिबोध का काव्य व्यक्तित्व बहुत जटिल है। वे एक जटिल यथार्थवादी रचनाकार रहे हैं। इनकी भाषा भी इनके जीवन की भाँती ही अनेक विशिष्टताओं से युक्त है। मुक्तिबोध के काव्य की विशेषता मुक्तिबोध की भाषा पर जगदीश गुप्त जी का कथन है - मैं उनकी कविताओं को पढ़कर इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति के अनुरूप रूपकों ,प्रतीकों ,बिम्बों की परिकल्पना करते हुए भाषा गढ़ी है। "
एक यथार्थवादी कवि होने के कारण मुक्तिबोध ने अपनी भाषा को अपने यथार्थ अभिव्यक्ति के रूप में ही प्रस्तुत किया है। मुक्तिबोध की भाषा विभिन्न शब्दवाली का मिश्रित रूप है। मुक्तिबोध ने भावानुरूप संवेदनानुसार शब्द क्रम शैली का प्रयोग किया है। मुहावरों का प्रयोग भी प्रचुर मात्रा में प्राप्त हुआ है।
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२७-0६-२०२१) को
'सुनो चाँदनी की धुन'(चर्चा अंक- ४१०८ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत ज्ञानवर्द्धक आलेख
जवाब देंहटाएंगजानन माधव मुक्तिबोध जी पर सुंदर समालोचना ।
जवाब देंहटाएंविस्तृत जानकारी ।
विहंगम दृष्टि कोण।
बेहतरीन आलेख।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी आलेख.
जवाब देंहटाएंbahut upyogi he ye aalekh hamare liye
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