भारत के पहले लोकसभा चुनाव की कहानी लोकसभा और विधानसभाओं के लिए पहला आम चुनाव सम्पन्न कराना कितना बड़ा कार्य था |
पहला लोकसभा चुनाव : जब नए-नए आजाद हुए भारत ने दुनिया को हैरान किया
15 अगस्त 1947 को जब भारत ब्रितानवी हुकूमत की गुलामी से आजाद हुआ था, तब किस ने सोचा होगा कि संसदीय लोकतंत्र अपना कर देश दुनिया की सब से बड़ी चुनाव प्रक्रिया वाला राष्ट्र बन जाएगा ? लगभग हर आम चुनाव के समय भारतीय नागरिक सब से बड़े मतदाता समूह और चुनावी ढांचे वाले देश के रूप में चिन्हित किए जाते हैं | चुनाव प्रणाली और लोकतंत्र की चाहे जितनी खामियां निकाली जाएं, लेकिन जब अतीत मे लौट कर विचार करें तो इसे अविश्वसनीय उपलब्धि ही कहा जा सकता है l वास्तव में आजादी के बाद भारत का पहला आम चुनाव इसी रोमांचक सामूहिक मनोविज्ञान में संपन्न हुआ था | पहले आम चुनाव में लोकसभा की 489 तथा राज्य विधानसभाओं की 3,283 सीटों के लिए भारत के 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 मतदाताओं का पंजीयन हुआ था | इनमें से 10 करोड़ 59 लाख लोगों ने, जिनमें करीब 85 फीसद निरक्षर थे, अपने जनप्रतिनिधियों का चुनाव कर के पूरे विश्व को आश्चर्य में डाल दिया था | 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक यानी करीब चार महीने चली उस चुनाव प्रक्रिया ने भारत को एक नए मुकाम पर ला कर खड़ा किया | यह अंग्रेजों द्वारा लूटा-पीटा और अनपढ़ बनाया गया कंगाल देश जरूर था, लेकिन इस के बावजूद इस ने स्वयं को विश्व के घोषित लोकतांत्रिक देशों की कतार में खड़ा कर दिया |
25 अक्टूबर, 1951 को जैसे ही पहला वोट हिमाचल प्रदेश की चिनी तहसील में पड़ा, नए युग की शुरुआत हो गई | आजादी के संघर्ष के कारण देश के आम जनमानस में तो कांग्रेस का ही नाम बैठा था | इसलिए कांग्रेस ने 364 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत प्राप्त किया | भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 16 सीटें जीत कर दूसरी सब से बड़ी पार्टी के रूप में उभरी | आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण और डॉ. राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व वाली सोशलिस्ट पार्टी को 12, आचार्य जे.बी. कृपलानी के नेतृत्व वाली किसान मजदूर प्रजा पार्टी को 09, हिंदू महासभा को 04, डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जनसंघ को 03, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी को 03 और शेड्यूल कास्ट फेडरेशन को 02 सीटें मिलीं | कांग्रेस ने कुल 4,76,65,951 यानी 44.99 % वोट हासिल किए | उस वक्त एक निर्वाचन क्षेत्र में एक से अधिक सीटें भी हुआ करती थीं, लिहाजा 489 स्थानों के लिए 401 निर्वाचन क्षेत्रों में ही चुनाव हुआ | 1960 से इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया | एक सीटों वाले 314 निर्वाचन क्षेत्र थे | 86 निर्वाचन क्षेत्रों में दो सीटें और एक क्षेत्र में तीन सीटें थीं | दो सदस्य आंग्ल-भारतीय समुदाय से नामांकित हुए थे |
चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ही स्टार प्रचारक थे | उन्होंने अपने चुनाव प्रचार अभियान के तहत 40 हजार किलोमीटर की यात्रा करते हुए करीब साढ़े तीन करोड़ लोगों को संबोधित किया था | यह तब असाधारण कार्य था | हालांकि विपक्षी पार्टियों के लिए काम करने के अवसर थे, उनके पास तेजस्वी नेता भी थे लेकिन उनके पास संगठन, संसाधन और कार्यकर्ता ऐसे नहीं थे कि वे इतना व्यापक अभियान चला पाते | उस समय मीडिया का भी इतना विस्तार नहीं था कि उसके माध्यम से अपनी बात लोगों तक पहुंचाई जा सके | तब भी अलग-अलग क्षेत्रों और राज्यों में कांग्रेस से इतर पार्टियां आजाद भारत के पुनर्निर्माण, जीवन यापन, आम नागरिकों के अधिकार, राजनीतिक पार्टियों के ढांचे, अर्थव्यवस्था, समाज, संस्कृति आदि मुद्दों को लेकर जनता के बीच गईं | इसी का परिणाम था कि करीब 31 फीसद वोट इन पार्टियों को मिले |
आज इस बात की कल्पना करना कठिन है कि लोकसभा और विधानसभाओं के लिए पहला आम चुनाव सम्पन्न कराना कितना बड़ा कार्य था | घर-घर जाकर मतदाताओं का निबंधन करना ही अपने आप में इतिहास बनाना था | बहुमत मतदाता की निरक्षरता का ध्यान रखते हुए ही पार्टियों और उम्मीदवारों के लिए चुनाव चिन्ह की व्यवस्था की गई, किंतु तब मतपत्र पर नाम और चिन्ह नहीं थे | हर पार्टी के लिए अलग मतपेटी थी, जिन पर उनके चुनाव चिन्ह अंकित कर दिए गए थे | इसके लिए लोहे की दो करोड़ बारह लाख मतपेटियां बनाई गई थीं और करीब 62 करोड़ मतपत्र छापे गए थे | मतपेटियों और मतपत्रों को संबंधित मतदान केंद्रों तक पहुंचाना भी उस समय एक चुनौतीपूर्ण कार्य था | आवागमन के साधन भी आज की तरह विकसित नहीं हुए थे | ऐसी स्थिति में पहाड़ों, जंगलों, मैदानी इलाकों में नदी-नालों को पार करते हुए, पगडंडियों से गुजरते हुए नियत स्थान तक पहुंचने के लिए चुनाव कार्य में लगे अधिकारियों-कर्मचारियों को कितनी मशक्कत करनी पड़ी होगी ? इसकी आसानी से कल्पना की जा सकती है | इस सबके दौरान कई लोग बीमार पड़ गए, कुछ की मृत्यु भी हो गई और कुछ लूट के शिकार भी हुए | कहा जाता है कि पूर्वोत्तर में म्यांमार की सीमा से लगे मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में तो स्थानीय लोगों को यह कह कर तैयार किया गया कि, आप इस मतदान सामग्री को नियत स्थानों पर पहुंचाने में मदद करें, बदले में आपको एक-एक कंबल तथा बंदूक का लाइसेंस दिया जाएगा | इस तरह अलग-अलग क्षेत्रों में अलग तरीके अपनाए गए |
उस समय सुकुमार सेन मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त हुए थे | मतदाताओं के पंजीकरण से लेकर, राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों का निर्धारण एवं साफ सुथरा चुनाव कराने के लिए योग्य अधिकारियों के चयन का काम उन्होंने बखूबी किया | वे सरकारी खजाने के पैसे की कितनी चिंता करते थे, इसका उदाहरण था- मतपेटियों को सुरक्षित रखना | उन्होंने जितना संभव हुआ मतपेटियों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था की और 1957 के दूसरे आम चुनाव में इस कारण करीब साढ़े चार करोड़ रुपये सरकारी खजाने के बचाए | कुल मिला कर कहने का आशय यह है कि जिस चुनावी ढांचे के जरिए संसदीय लोकतंत्र का जो लंबा सफर हम ने अभी तक तय किया है उस के लिए स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही नहीं बल्कि स्वाधीनता के बाद भी लाखों लोगों ने इस में अपना योगदान दिया |
1951-52 के पहले लोकसभा चुनाव पर दुनियाभर की नजर थी। लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों की विधानसभाओं के भी चुनाव हुए। नए-नए आजाद हुए भारत ने तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन की अगुआई में ऐतिहासिक चुनाव को सफलतापूर्वक अंजाम दे कर पूरी दुनिया को चौंका दिया था। 1947 में ब्रितानी हुकूमत से आजादी मिलने के बाद पहली बार 1951-52 में भारत में आम चुनाव हुए। यह चुनाव सिर्फ इसलिए बेहद अहम नहीं था कि यह ऐतिहासिक चुनाव था, स्वतंत्र भारत का पहला चुनाव था बल्कि इसलिए भी अहम था कि सारी दुनिया की निगाह इस पर टिकी थी। सबके मन में यह सवाल था कि नया-नया आजाद हुआ भारत क्या लोकतंत्र की इतनी बड़ी कवायद को सफलतापूर्वक अंजाम दे पाएगा ? लोकसभा के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं के भी चुनाव होने थे। मुख्य चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन के कुशल नेतृत्व में जब चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुए तो दुनिया हैरान रह गई।
एक ऐसा देश जहां औसतन हर 10 में बमुश्किल 2 लोग भी शिक्षित नहीं थे, वहां सफलतापूर्वक चुनाव कराना टेढ़ी खीर थी। 21 साल या उस से ऊपर के सभी महिला-पुरुषों को मताधिकार था। घर-घर जाकर 17.3 करोड़ वोटरों को पंजीकृत करना ही अपने आप में बेहद चुनौतीपूर्ण था। ऐसी भी महिलाएं थीं, जो नाम पूछने पर अपना परिचय फलां की पत्नी या फलां की मां के तौर पर देती थी l इस चुनौती से निपटने के लिए चुनाव से पहले चुनाव आयोग की तरफ से बड़े पैमाने पर जन जागरूकता अभियान चलाया गया था। पोलिंग बूथ पर पार्टियों या स्वतंत्र उम्मीदवारों के चुनाव चिह्न वाले अलग-अलग बैलट बॉक्स रखे गए ताकि वोटर अपने मतपत्र को संबंधित बैलट बॉक्स में डाल सकें। तब परिवहन के सीमित संसाधन थे, ऐसे में पोलिंग बूथों तक बैलट बॉक्स पहुंचाना कितनी बड़ी चुनौती रही होगी ? इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। आखिरकार इन सभी चुनौतियों से पार पाते हुए सुकुमार सेन के नेतृत्व में चुनाव आयोग ने इस ऐतिहासिक चुनाव को सफलतापूर्वक संपन्न कराया।
पहला आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक करीब 4 महीनों में और 68 चरणों में संपन्न हुआ। उस समय लोकसभा की कुल 489 सीटें थीं लेकिन संसदीय क्षेत्र 401 ही थे। 314 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे, जहां से सिर्फ एक-एक प्रतिनिधि चुने जाने थे। 86 संसदीय क्षेत्र ऐसे थे जहां एक साथ 2 लोगों को सांसद चुना जाना था। इनमें से एक सामान्य वर्ग से और दूसरा सांसद एस.सी./एस.टी. समुदाय से चुना गया। एक संसदीय क्षेत्र नॉर्थ बंगाल तो ऐसा भी रहा, जहां से 3 सांसद चुने गए। पहले आम चुनाव में कुल 1874 उम्मीदवारों ने अपना दम दिखाया। मतदाता के लिए तब न्यूनतम उम्र 21 वर्ष थी और कुल 36 करोड़ आबादी में करीब 17.3 करोड़ मतदाता थे। जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में कांग्रेस के अलावा श्रीपाद अमृत डांगे के नेतृत्व में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भारतीय जन संघ (जो बाद में बी.जे.पी. बना), आचार्य नरेंद्र देव, जे.पी. और लोहिया की अगुआई वाली सोशलिस्ट पार्टी, आचार्य कृपलानी के नेतृत्व में किसान मजदूर प्रजा पार्टी समेत कुल 53 छोटे-बड़े दल मैदान में थे। इस पहले आम चुनाव में कुल 45.7 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।
कांग्रेस की एकतरफा जीत
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अगुआई में कांग्रेस ने इन चुनावों में एकतरफा जीत हासिल की। फूलपुर लोकसभा सीट से जवाहर लाल नेहरू ने विशाल अंतर से जीत हासिल की। साधारण बहुमत के लिए 245 सीटों की जरूरत थी, लेकिन कांग्रेस ने कुल 489 सीटों में से 364 पर अपना परचम लहराया। दूसरे नंबर पर सी.पी.आई. रही, जिसके खाते में 16 सीटें आईं। 12 सीटों के साथ सोशलिस्ट पार्टी तीसरे स्थान पर रही। किसान मजदूर प्रजा पार्टी ने 9, हिंदू महासभा ने 4 और भारतीय जनसंघ व रिवलूशनरी सोशलिस्ट पार्टी को 3-3 सीटों पर जीत हासिल हुई। पहले आम चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर करीब 45 प्रतिशत रहा। कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा वोट शेयर निर्दलियों का रहा, जिन्हें कुल 16 प्रतिशत वोट मिले। सोशलिस्ट पार्टी को 10.59, सी.पी.आई. को 3.29 और भारतीय जन संघ को 3.06 प्रतिशत वोट मिले। चुनाव बाद जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस की प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनी।
कई दिग्गज हार गए चुनाव
देश के पहले ही आम चुनाव में कई दिग्गजों को हार का मुंह देखना पड़ा। देश के पहले कानून मंत्री डॉ. भीमराव आंबेडकर को बॉम्बे (नॉर्थ सेन्ट्रल) सीट पर कभी अपने ही सहयोगी रहे एन. एस. कजोलकर के हाथों शिकस्त झेलनी पड़ी। डॉ. आंबेडकर के अलावा किसान मजदूर प्रजा पार्टी के कद्दावर नेता आचार्य कृपलानी भी चुनाव हार गए। डॉ. आंबेडकर ने कांग्रेस छोड़ कर शेड्यूल कास्ट फेडरेशन का गठन किया था और बॉम्बे (नॉर्थ सेन्ट्रल) की सुरक्षित सीट से ताल ठोका था। उन्हें 1,23,576 वोट मिले और कांग्रेस के काजोलकर ने 1,38,137 वोट हासिल कर जीत हासिल की। उसके बाद डॉ. आंबेडकर राज्यसभा के जरिए संसद में पहुंचे। 1954 में जब भंडारा लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुए तो डॉ. आंबेडकर ने यहां भी ताल ठोका लेकिन एक बार फिर उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार से शिकस्त झेलनी पड़ी। देश के पहले आम चुनाव के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। उनके अलावा 2 ऐसे नेता भी चुनाव जीते जो आगे चल कर भारत के प्रधानमंत्री बने, ये थे- गुलजारी लाल नंदा और लाल बहादुर शास्त्री।
पहली लोकसभा चुनाव की मुख्य बातें
- पहली लोकसभा के लिए जब चुनाव हुए तब साल था १९५२ का । पहली लोकसभा के लिए voting १७ दिन तक अर्थात ०२ जनवरी से २५ जनवरी तक चले । पहली लोकसभा के लिए उस समय २६ राज्यों के ४०१ चुनावक्षेत्रो में ४८९ सीटों के लिए चुनाव हुए ।
- देश की पहली लोकसभा ०२ एप्रिल १९५२ को अस्तित्व में आई ।
- पहली लोकसभा के चुनाव हेतु १९६०८४ चुनाव केंद्र स्थापित किए गए थे ।
- उस समय मतदाताओं की कुल संख्या १७.३२ करोड़ थी ।
- उस समय केवल ४५.६७ % मतदान हुए थे ।
- पहली लोकसभा के लिए ४८९ सीटों के लिए हुए चुनाव में कुल १८७४ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे जिन में से ७४५ उम्मीदवारों की deposit राशि ज़ब्त हुई थी।
- पहली लोकसभा के लिए हुए चुनाव में १० उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीत कर लोकसभा में पहुँचने में सफल हुए थे ।
- ४८९ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ७२ सीटे अनुसूचित जाती के लिए और २६ सीटे अनुसूचित जनजाती के लिए आरक्षित रखी गई थी ।
- पहली लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कुल ५२ राजनीतिक दलों ने भाग लिया था जिन में से राष्ट्रीय राजनीतिक दलों की संख्या १४ और राज्य स्तरीय राजनीतिक दलों की संख्या ३८ थी ।
- राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने कुल १२१७ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे, जिन में से ३४४ उम्मीदवारों की deposit राशि ज़ब्त हुई थी और राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के ४१८ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे । इस चुनाव में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को कुल वोटों में से ७६.०० % वोट मिले थे ।
- इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों ने कुल १२४ उम्मीदवार खड़े किए थे। रिकॉर्ड के अनुसार इन १२४ प्रत्याशीयों में से ४१ प्रत्याशीयों की deposit राशि ज़ब्त हुई थी और ३४ प्रत्याशी लोकसभा में पहुंचे थे। इस चुनाव में राजयस्तरीय राजनीतिक दलों को कुल वोटो में से ८.१० % वोट मिले थे।
- इस चुनाव में कुल ५३३ निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इन ५३३ निर्दलीय उम्मीदवारों में से ३७ उम्मीदवार जीत दर्ज कराने में सफल हुए थे। कुल वोटो में से १५.९० % वोट निर्दलीय उम्मीदवारों ने प्राप्त किए थे जबकि ३६० निर्दलीय उम्मीदवारों की जमा राशि ज़ब्त होने का रिकॉर्ड मौजूद है।
- इस चुनाव में कॉंग्रेस सब से बड़े दल के रूप में सामने आई। ४८९ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में कॉंग्रेस के ४७९ उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे। इन में से ३६४ उम्मीदवार जीत दर्ज करा कर लोकसभा पहुँचने में सफल हुए तो वही ०४ उम्मीदवारों की जमा राशि ज़ब्त होने का उल्लेख भी रिकॉर्ड में मौजूद है। इस चुनाव में कॉंग्रेस को कुल वोटो में से ४४.९९ % वोट मिले थे।
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI) दूसरी सब से बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI) ने कुल ४९ उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे। इन ४९ उम्मीदवारों में से ०८ उम्मीदवारों की जमा राशि जब्त हुई थी जबकि १६ उम्मीदवार लोकसभा पहुँचने में सफल हुए थे। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (CPI) को कुल वोटों में से ३.२९ % वोट मिले थे।
- उस समय के और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उस समय पहली लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में उत्तर प्रदेश के पूर्व अलाहाबाद-पश्चिम जौनपुर चुनाव क्षेत्र से चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे थे।
- सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि पहली लोकसभा के लिए हुए इस चुनाव में १०,४५,००,००० (१० करोड़ ४५ लाख) रुपये की राशि खर्च हुई थी।
- उस समय श्री सुकुमार सेन भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे, जिन्होंने ये चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न कराने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बाद में स्वीडन ने अपने यहाँ सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न कराने हेतु श्री सुकुमार सेन को आमंत्रित किया था।
- पहली लोकसभा ०४ एप्रिल १९५७ को विसर्जित की गई।
- इस चुनाव के बाद पहली लोकसभा के लिए १३ मई १९५२ को शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया था।
- पहली लोकसभा के सभापती पद हेतु १५ मई १९५२ को चुनाव हुए और जी. व्ही. मावलंकर को सभापती और एम. ए. अय्यंगार को उपसभापती के रूप में चुना गया।
- पहली लोकसभा के कुल १५ अधिवेशन और ६७७ बैठके हुई। इस लोकसभा में कुल ३३३ बिल पास किए गए थे जिस का रिकॉर्ड मौजूद है।
- पहली लोकसभा की पहली बैठक १३ मई १९५२ को हुई थी।
- पहली लोकसभा की ४८९ सीटों के लिए हुए इस चुनाव में ४१८ सीटों पर राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने, ३४ सीटों पर राज्यस्तरीय राजनीतिक दलों ने जबकि ३ सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की।
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