रथचक्र कहानी हिमांशु जोशी नूतन गुंजन पाठमाला

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रथचक्र कहानी हिमांशु जोशी


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रथचक्र कहानी का सारांश

प्रस्तुत पाठ  रथचक्र  लेखक हिमांशु जोशी जी के द्वारा लिखित है। यह एक कहानी है जिसमें लेखक अपने जीवन चक्र की कहानी को बताते हैं। रथचक्र तीन पीढ़ी की ऐसी कहानी है, जिसमें दादा अपने बेटे की मृत्यु के बाद उनके नन्हें-नन्हें बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। समय का चक्र अपनी जगह पे घूमता रहता है | इस कहानी में समय के चक्र ने लेखक की जिंदगी कैसे बदल दी, यही जोशी जी ने इस पाठ में उल्लेख किया है । 
रथचक्र कहानी हिमांशु जोशी नूतन गुंजन
रथचक्र

लेखक कहते हैं कि मैं आज वर्षों बाद घर आया हूँ। पीले-पीले धूप निखर कर सामने आ गई है, चीड़ के लंबे-लंबे वृक्ष और भी लंबे लग रहें हैं। बर्फ से ढंकी पहाड़ों की चोटियों में पिघलते हुए बर्फ सोने की तरह चमक रहें हैं। इतने सालों बाद भी बचपन की सारी यादें आज भी ताजी है, जिसमें सुख और दुख की यादें बिखरी पड़ी है । जब पिता जी का स्वर्गवास हुआ, तब हम बहुत छोटे थे | माँ का बिलख-बिलख कर रोने, दीदी के कभी न रुकने वाले आँसू, बाबा का कोरा-कागज सा चेहरा आज भी बहुत मुझे कांपने पर मजबूर कर देती है। अजीब सी सिरहन होती है। मैं बहुत छोटा था माँ देहरी पर सिर झुकाए बैठी थी । बाबा गुमसुम थे दीदी मुझे गोद में उठाए रो रही थी। पिता जी के चले जाने के बाद बाबा और भी बूढ़े हो गए थे | बहुत थक चुके थे | हाथ-पाँव ठीक से नहीं चलता था | बातें करते-करते बहक जाते थे | अब याददास्त ने भी साथ छोड़ दिया था। और सारे परिवार वालों के साथ छोड़ दिया, यही नहीं बल्कि बाबा से उधारी के नाम पर ज्यादा-ज्यादा पैसे माँगने लगे थे। कोई जमीन दबा रहा था, तो कोई जायजाद के लिए खड़े हो गए थे | 


एक दिन बड़े भैया से बाबा ने कुछ कहा वे उदास थे, फिर शाम को मुझसे कहा कि जीतू मैं पढाई करने अल्मोड़ा जाऊँ तो तू घर का काम सम्भाल लेगा । लेकिन मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। भैया ने कहा कि दिन भर तू इधर-उधर घूमता रहता है, दोस्तों के साथ मस्ती करता है। बाबा बहुत बूढ़े हो चुकें हैं। इतना बड़ा कारोबार है। दुकान का काम सम्भलता नहीं है | मुनीम बहुत चोरी-चमारी में लगा रहता है। इसलिए तू स्कूल से सीधे घर आ के बाबा के साथ काम में हाथ बटा देना। उनका स्वर भीग चुका था और आगे बोले हम किसी और से सहायता भी नहीं ले सकते, पिता जी हमें खूब पढ़ाना चाहते थे। बाबा कहते हैं मैं खूब पढूं इसलिए बाबा का दिल नहीं दुखाना है पिता जी जैसे चाहते थे वैसा ही होगा। मैं खूब परिश्रम करूँगा। तू भी पढ़ने में मेहनत कर बेकार का घूमना-फिरना छोड़ के समय पर घर आ जाना । 

और एक दिन भैया चले गए बड़े भैया को छोड़ने दादा जी गए थे | भैया से कुछ बातें कर रहे थे। भैया उम्र में मुझसे तीन साल ही बड़े थे लेकिन पिता जी के अकाल मृत्यु ने उन्हें उम्र से बड़ा बना दिया था। बाबा ने दिन रात खूब मेहनत की कहीं कुछ भी कमी न आने दी अब सारे रिश्तेदार भी पहले की तरह घर आने-जाने लगे थे बाबा उनकी पिता जी की तरह ही सेवा सत्कार करते थे। पहले की भांति ही चंदा दिया जाता था गरीबों को खाना खिलाया जाता था सब पहले की तरह ही चल रहा था। साल भर बाद भईया का परीक्षा का परिणाम आया । भैया ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। उन्हें छात्र वृति भी मिलने लगी थी बाबा बहुत खुश थे उन्होंने भैया की खूब तारीफ की | मैं स्कूल जाता घर, खेत और दुकान का भी काम करता और समय निकाल कर पढ़ाई भी करता | बाबा कहते थे कि दोनों बच्चे बहुत होनहार निकल गए, जिंदगी भर की तपस्या सफल हो गई। 

आस-पड़ोस के लोग बगीचा लगा रहे थे | बाबा ने भी गड्ढे खुदवाए थे। वे सब को अच्छे फलों की पौध लगाने को कहते थे। एक बार भइया छुट्टियों में घर आये थे, तब बाबा ने सेब और अनानस पत्ती के पौध लगाए थे वे कह रहे थे कि इनके फलने-फूलने तक मैं जिंदा नहीं रहूँगा लेकिन बच्चे तो खाएँगे। बड़े भैया फौज में चले गए उनकी पद्दोन्नति हो गई | मैं नौकरी करने दिल्ली चला गया |  इसी बीच बाबा चल बसे | माँ घर में अकेली हो गई। मैं जब आया था तो माँ से मैंने पूछा तू अकेली क्यों रहती है। तब उसने कहा तो क्या करूँ तपन का तो भरोसा नहीं, आज यहाँ तो कल वहाँ | तू शादी करता नहीं, मुझे यहीं रहना अच्छा लगता है | अब जिन्दगी में क्या रखा है, जो बची है वह भी यहीं बीत जाए। मैंने माँ से कहा तू अपनी पसन्द की बहू ढूंढ़ ले, अगली बार आऊँगा तो जरूर शादी करूँगा | तब तक भैया भी आ जायेंगे। पूरा परिवार एक साथ होगें।

बड़े भैया ने तो अपने ही अफसर की बेटी से शादी कर ली थी भाभी केरल से थी | उन्हें पहाड़ों की जिंदगी के बारे में कुछ पता नहीं था | अम्मा एक बार वहाँ गई थी, लेकिन वहाँ का रहन-सहन उन्हें रास नहीं आया। मेरे दिल्ली जाने के कुछ महीने बाद माँ का खत आया, माँ ने लिखा था तेरे लिए चाँद सी बहू देख ली है | तपन को भी खत लिख दिया है | वह चैत माह में आएगा तभी शादी होगी।  

लेकिन समय का चक्र देखो चैत से पहले ही देश की हालत बिगड़ गई पाकिस्तान से युद्ध शुरू हो गया था। भैया उन दिनों बांग्लादेश के मोर्चे पर थे जस्सूर कि तरफ। युद्ध में जाने से पहले भैया मुझसे मिलने आये थे | एक दिन मेरे साथ रहे रात भर नहीं सोए । मेरे लिए कपड़े खरीदे अपने हाथों में पहनी बहुमुल्य घड़ी उतारकर  मुझे दे दी | भाभी और बच्चों से जान बूझ कर नहीं मिले बोलने लगे इससे दिल कमजोर होता है। मैं भैया को छोड़ने रेलवे स्टेशन गया | बहुत देर तक भैया ने मेरा हाथ नहीं छोड़ा, उन्होंने जाते-जाते कहा जीतू तू बहुत कमजोर है अपना ध्यान रखा कर | जाते वक्त उनके चहरे पर अजीब सा भाव था। युद्ध की खबर आते ही भारतीय सैनिक आगे बढ़ रहे थे | मेरी आँखों से न जाने दिन कहाँ गायब हो गई थी। एक दिन हमें तार मिला लिखा था तपनकुमार ढाका के पास ही किसी मोर्चे में शत्रु से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। यह भयंकर दुख असहनीय था। माँ का रो-रो कर बुरा हाल था जब मैं घर आया तो भाभी और बच्चे भी साथ थे मैंने माँ से कहा तुम्हें बहू चाहिए थी न ! लो भाभी आ गई साथ में बच्चे भी हैं | भइया नहीं रहे तो क्या हुआ हम तो हैं। इनकी परवरिश हम करेंगे । इस तरह से लेखक तीन पीढ़ियों के लगाए हुए फ़लों की पेड़ों की तुलना करते हुए रूपक बांधता है की अब पौधे मुझे रोपने है। इस कहानी में जिस तरह से सरलता और सच्चाई से कर्तव्यनिष्ठा की बात हुई है, वह सचमुच अनुकरणीय है। छोटे भाई ने अपने कर्तव्यों का पालन पूरी निष्ठा के साथ किया लेखक ने समय के इस चक्र को तीन पीढ़ियों के साथ बखान किया है जो अविस्मरणीय है...|| 

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रथचक्र कहानी के प्रश्न उत्तर 


प्रश्न-1 कहानी में 'मैं' शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है ? 

उत्तर- कहानी में 'मैं' शब्द का प्रयोग छोटे भाई के लिए किया गया है | 

प्रश्न-2 बड़े भैया पढ़ने कहाँ गए ? 

उत्तर- बड़े भैया पढ़ने अल्मोड़ा गए | 

प्रश्न-3 बड़े भाई कहाँ नौकरी करते थे ? 

उत्तर- बड़े भाई फौज में नौकरी करते थे | 

प्रश्न-4  घर पर माँ अकेली क्यों रह गई थीं ? 

उत्तर- 
घर पर माँ इसलिए अकेली रह गई थी, क्योंकि बड़े भैया फौज में नौकरी करने चले गए। छोटा भाई दिल्ली चला गया और बाबा का स्वर्गवास हो गया। 

प्रश्न-5 'रथचक्र' शब्द से लेखक का क्या तात्पर्य है ? 

उत्तर- 
'रथचक्र' शब्द से लेखक का तात्पर्य 'जीवन चक्र' से है। लेखक के अनुसार जीवन निरन्तर रथ के पहिए की भांति घूमता रहता है। जीवन में सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। लेकिन जीवन चक्र कभी नहीं रुकता वह सदा चलता ही रहता है | 

प्रश्न-6 फलों के जो वृक्ष बाबा तथा बड़े भैया ने लगाए थे, उनका क्या हुआ ? 

उत्तर- 
फलों के जो वृक्ष बाबा तथा बड़े भैया ने लगाए थे, वे समय के साथ बड़े हो गए थे और वह फूलने-फलने लगे थे। उसके फल परिवार वालों ने खाये। बाबा और बड़े भैया के मेहनत का फल परिवार वालों को मिला। 
हिमांशु जोशी
हिमांशु जोशी

प्रश्न-7 
'अब उनमें पौधे मुझे रोपने हैं'- इन शब्दों द्वारा लेखक क्या कहना चाह रहा हैं ? 

उत्तर- 
'अब उनमें पौधे मुझे रोपने हैं'- इन शब्दों द्वारा लेखक अपने कर्तव्य को निभाने की बात कह रहे हैं, भैया के शहीद होने के बाद घर-परिवार, माँ-भाभी और बच्चों की देखभाल अब मुझे ही करना है | जिस प्रकार से पिता जी के गुजर जाने के बाद बाबा ने हम सबको सम्भाल लिया था। अब मुझे अपना कर्तव्य पूरा करना है | 

प्रश्न-8 माँ ने फिर कभी अपनी होनेवाली बहु का जिक्र क्यों नहीं किया ? 

उत्तर- 
माँ ने फिर कभी अपनी होने वाली बहु का जिक्र इसलिए नहीं किया क्योंकि बड़े भैया के वीरगति को प्राप्त हो जाने के बाद भाभी और बच्चे घर आ गए थे उनकी जिम्मेदारी छोटे बेटे के ऊपर थी। अब उनके आ जाने से माँ का अकेला पन भी दूर हो गया। और छोटे बेटे ने सारी जिम्मेदारी उठा ली थी। 

प्रश्न-9 बड़े भाई को छोड़ने आते समय बाबा ने उनसे क्या-क्या बातें की होगी ? 

उत्तर- बड़े भाई को छोड़ने आते समय बाबा ने उनसे कहा होगा कि बेटा अच्छे से पढ़ाई करना, हमारी फिक्र मत करना और अपने स्वस्थ का ध्यान रखना | समय-समय पर पत्र के द्वारा अपनी खबर देते रहना | किसी के साथ बुरा व्यवहार मत करना | किसी से लड़ाई-झगड़ा मत करना आदि | 

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प्रश्न-10 सही उत्तर पर √ लगाइये --- 

क. बड़े भैया जीतू को जिम्मेदारी क्यों सौंप रहे थे ?

उत्तर- क्योंकि वो पढ़ने अल्मोड़ा जा रहे थे | 

ख. भाभी को पहाड़ की जिंदगी के बारे में कुछ भी क्यों नही पता था ? 

उत्तर- क्योंकि वे केरल की थी | 

ग. भैया ने जाने से पहले भाभी और बच्चों से ना मिलने का क्या कारण बताया?

उत्तर- इससे दिल कमजोर होता है | 

घ. इस कहानी का सही कथन है --

उत्तर- जीवन की गति किसी भी परिस्थिति में नहीं रुकती |

प्रश्न-11 पाठ से चुनकर विपरीतार्थक शब्द लिखिए --- 

उत्तर- उत्तर निम्नलिखित है - 

• सायास - अनायास 
• विषाद - हर्ष
• सह्य - असह्य
• मेजबान - मेहमान
• विफल - सफल
• अस्प्ष्ट - स्प्ष्ट
• विस्मृति - स्मृति
• हानि - लाभ
• जीवन - मृत्यु
• शांति - अशान्ति

प्रश्न-12 सन्धि-विच्छेद कीजिए --- 

उत्तर- 
उत्तर निम्नलिखित है - 
• पदोन्नति - पद + उन्नति
• वार्षिकोत्सव - वार्षिक + उत्सव
• लोकोक्ति -  लोक + उक्ति
• सर्वोत्तम - सर्व + उत्तम
• महोत्सव - महा + उत्सव
• वृक्षारोपण - वृक्ष + आरोपण 

प्रश्न-13 लिखिए ये कि वाक्य सरल हैं, मिश्रित हैं, या संयुक्त --- 

i.  जो होगा देखा जाएगा।

उत्तर - मिश्रित वाक्य

ii. मैंने दिल्ली में नौकरी कर ली। 

उत्तर - सरल वाक्य

iii. खाली समय में पढ़ता और इस तरह एक के बाद एक सीढ़ी चढ़ता चला गया।

उत्तर - संयुक्त वाक्य

iv. बर्फ से ढंकी पहाड़ों की चोटियाँ पिघलते सोने की तरह चमक रही थीं।

उत्तर - सरल वाक्य

प्रश्न-14 दिए गए वाक्यों में विशेषण या क्रिया विशेषण रेखांकित कर लिखिए --- 

क. बड़े भैया पढ़ाई में तेज थे ।

उत्तर - क्रिया विशेषण

ख. तेरे लिए चन्द-सी बहु ढूँढ़ ली है 

उत्तर- विशेषण

ग. उन्होंने अपनी बहुमुल्य घड़ी मुझे दे दी।

उत्तर - विशेषण

घ. वह देर से घर आएगा।

उत्तर - क्रिया विशेषण

ङ - मेरे सामने हरा-भरा बगीचा है।

उत्तर -  विशेषण 

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रथचक्र कहानी के शब्दार्थ


• रथचक्र - समय-चक्र, रथ का घूमता पहिया
• शैशव - बचपन
• हर्ष-विषाद - सुख और दुख
• स्मृतियाँ - यादें
• अकाल - असमय
• ठेंगा दिखा देना - देने से साफ मना करना,निराशकरना
• परिणाम - नतीजा
• वजीफा - छात्रवृत्ति
• बखान - प्रशंसा करना
• पौध - छोटे पौधे
• पदोन्नति - पद में तरक्की
• चल बसे - मृत्यु होना
• रास नहीं आयी - अच्छा न लगना
• बहुमूल्य - कीमती
• घमासान - भयंकर
• वज्रपात - भारी विपत्ति
• असहाय - जो सहन न हो  | 


                               
©  मनव्वर अशरफ़ी 

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. बेनामीजून 20, 2022 12:21 am

    I was a little child in school when I had read it first time, now I'm a graduate, preparing for civil services. it reminds me of my school days

    Rathchakra by Himanshu Joshi is really an amazing and inspirational saga, creates a realistic circumstances to think over our responsibility, our maturity......

    Most importantly, it touches the heart

    जवाब देंहटाएं
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रथचक्र कहानी हिमांशु जोशी नूतन गुंजन पाठमाला
रथचक्र कहानी हिमांशु जोशी नूतन गुंजन पाठमाला Question Answer of Rathchakra Kahani Himanshu Joshi रथचक्र शब्द से लेखक का क्या तात्पर्य है रथचक्र कहानी
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