ज्ञान चतुर्वेदी का नया उपन्यास ' स्वांग' और जानीमानी लेखिका निवेदिता मेनन की विचारोतेजक पुस्तक 'नारीवादी निगाह से' लेकर आया है ।
राजकमल ने पेश की दो नई किताबें
राजकमल प्रकाशन अपने पाठकों के लिए वरिष्ठ व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी का नया उपन्यास ' स्वांग' और जानीमानी लेखिका निवेदिता मेनन की विचारोतेजक पुस्तक 'नारीवादी निगाह से' लेकर आया है । ये दोनों नई किताबें ऐसे समय प्रकाशित की गयी हैं जब कोरोना की दूसरी लहर के मद्देनजर जारी लॉकडाउन में क्रमशः ढील दी जाने लगी है और जनजीवन फिर से पटरी पर लौटने की दिशा में अग्रसर है।
नई किताबें मुहैया कराना प्राथमिकता
राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, श्रेष्ठ साहित्य के रूप में लोगों को स्वस्थ और रचनात्मक मानसिक खुराक उपलब्ध कराना हमारी प्राथमिकता है। कोरोना ने असामान्य परिस्थितियां पैदा की हैं. लॉकडाउन ने तमाम कार्यों पर असर डाला। लेकिन अपने पाठकों के लिए नई और श्रेष्ठ पुस्तकें तैयार करने के काम में हम जुटे रहे। 'स्वांग' और 'नारीवादी निगाह से' का प्रकाशन इसी का परिणाम है।विडम्बनापूर्ण बदलाव की कथा स्वांग
'स्वांग' ज्ञान चतुर्वेदी का नया उपन्यास है, एक गांव के बहाने समूचे भारतीय समाज के विडम्बनापूर्ण बदलाव की कथा इस उपन्यास में दिलचस्प ढंग से कही गयी है। यह बुंदेलखंड पर आधारित उनकी उपन्यास त्रयी की अंतिम कृति है। त्रयी के पहले दो उपन्यास 'बारामासी' और 'हम न मरब' राजकमल से पहले ही प्रकाशित हो चुके हैं।
'स्वांग' में ज्ञान चतुर्वेदी ने कोटरा गांव के जनजीवन के जरिये दिखलाया है कि किसी समय मनोरंजन के लिए किया जाने वाला स्वांग अर्थात अभिनय अब लोगों के जीवन का ऐसा यथार्थ बन चुका है जहां पूरा समाज एक विद्रूप हो गया है। सामाजिक, राजनीतिक, न्याय और कानून, इनकी व्यवस्था का सारा तंत्र ही एक विराट स्वांग में बदल गया है। एक नकलीपना हर तरफ हावी है, इस रूप में यह उपन्यास न केवल बुंदेलखंड के बल्कि हिंदुस्तान के समूचे तंत्र के एक विराट स्वांग में तब्दील हो जाने की कहानी है। परिवेश का तटस्थ अवलोकन, मूल्यहीन सामाजिकता का सूक्ष्म विश्लेषण और करुणा से पगा निर्मम व्यंग्य जिस तरह इस उपन्यास में मौजूद है, वह ज्ञान चतुर्वेदी की असाधारण लेखकीय क्षमता और उनके हमारे समय का प्रतिनिधि व्यंग्यकार होने का प्रमाण है।
नारीवाद के सिद्धांत और व्यवहार
निवेदिता मेनन की किताब ' नारीवादी निगाह से' में नारीवादी सिद्धातों की जटिल अवधारणएं और व्यावहारिक प्रयोग स्पष्ट और सहज भाषा में प्रस्तुत किए गए हैं। यह बतलाती है कि नारीवाद पूरे समाज के लिए ज़रूरी मसला है, यह सिर्फ महिलाओं का सरोकार नहीं है।
यह निवेदिता की खासी चर्चित पुस्तक ' सीईन्ग लाइक अ फेमिनिस्ट' का अनुवाद है, जो नारीवाद को पितृसत्ता पर अन्तिम विजय का जयघोष साबित करने के बजाय समाज के एक क्रमिक लेकिन निर्णायक रूपान्तरण पर ज़ोर देती है। नारीवादी निगाह से देखने का इसका आशय है मुख्यधारा तथा नारीवाद, दोनों की पेचीदगियों को लक्षित करना. इसमें जैविक शरीर की निर्मिति, जाति-आधारित राजनीति द्वारा मुख्यधारा के नारीवाद की आलोचना, समान नागरिक संहिता, यौनिकता और यौनेच्छा, घरेलू श्रम के नारीवादीकरण तथा पितृसत्ता की छाया में पुरुषत्व के निर्माण जैसे मुद्दों की पड़ताल की गई है।
राजकमल प्रकाशन ने पाठकों को इन दोनों किताबों के लिए एक विशेष ऑफर दिया है। इसके तहत वे एक साथ दोनों किताबें 30 फीसदी छूट पर एक विशेष उपहार के साथ हासिल कर सकते हैं. यह ऑफर 20 जून तक के लिए है।
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