विज्ञापन का हमारे जीवन पर प्रभाव पर निबंध essay on advertisement and our life in Hindi विज्ञापन और हमारा जीवन विज्ञापन की दुनिया पर निबंध विज्ञापन ही
विज्ञापन का हमारे जीवन पर प्रभाव पर निबंध
विज्ञापन और हमारा जीवन पर एक निबंध vigyapan aur hamara jeevan nibandh विज्ञापन और हमारे जीवन पर निबंध essay on advertisement and our life in Hindi विज्ञापन और हमारा जीवन पर हिंदी में निबंध essay on effect of advertisement in our life विज्ञापन की दुनिया पर निबंध आज का युग पूर्ण रूप से विज्ञापन का युग बनकर रह गया है। आज चाहे जिस क्षेत्र में हमारी दृष्टि जाती है ,विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई दे रहा है। चाहे सड़क पर चल रहे हो या किसी दूकान या जलपान गृह में बैठे हो अथवा अपने घर में बैठकर दूरदर्शन का कोई कार्यक्रम देख रहे हो विज्ञापन किसी न किसी प्रकार से सारे वातावरण में छाया हुआ है। हमें तो ऐसा लगता है कि आज संसार की हर जड़ या चेतन वस्तु किसी न किसी वस्तु का विज्ञापन बनकर रह गयी है। विज्ञापन के कारण हर वस्तु का एक नया मूल्य उमड़ रहा है ,जो उसके आज के मूल्य से सर्वथा भिन्न है ,जो उसके रूप को बिलकुल ही बदल दे रहा है। मतलब यह है कि जहाँ रहें जैसे रहे आप विज्ञापनों की लपेट से नहीं बच सकते हैं। विज्ञापन ने आज के मानव को कर्त्तव्य विहीन बनाकर रख दिया है। अच्छी और बुरी वस्तु की पहचान वह विवेक से नहीं बल्कि विज्ञापनों को देखकर या पढ़कर करने के लिए लाचार हो उठा है। आज आम आदमी की जिंदगी व्यक्तिगत नहीं है - उसे विज्ञापन दाताओं के परामर्श से ही जिया जा सकता है।
विज्ञापन की हमारे जीवन में क्या भूमिका है?
विज्ञापन विष को अमृत ,असत्य को सत्य ,अनुपयोगी को उपयोगी और बेकार को साकार सिद्ध करने में लगा है। आज का आम आदमी विज्ञापनों के इस चक्कर में उलझता जा रहा है। विज्ञापन आम आदमी के लिए बहुत बड़ी मुसीबत बन चुका है। आज दूरदर्शन पर कोई कविता ,गीत ,भजन सुन रहे हैं या कोई नाटक या चलचित्र देख रहे हैं तब तक सुनाई पड़ेगा - "क्या आप सर दर्द से परेशान हैं ? क्या आपके पीठ में दर्द है ? तो कमर दर्द या सर दर्द से छुटकारा पाइए और अमुक दवा का प्रयोग कीजिये। आज कोई वस्तु ऐसी नहीं हैं जो किसी न किसी वस्तु का विज्ञापन न हो। देश के पुराने मंदिर या किले आज एक विशेष प्रकार के सीमेंट की मजबूती के प्रतिक बन गए हैं। तात्पर्य यह है कि आज का आदमी विज्ञापनों के बीच जी रहा है।
आज की नारी के लम्बे केश उसके सौन्दर्य के बोधक नहीं बल्कि किसी सैम्पू अथवा तेल के विज्ञापन बन कर रह गए हैं। जयशंकर प्रसाद के नाटक यह बताने के लिए छपते हैं कि देश के किस प्रेस की छपाई सबसे अच्छी हैं। तात्पर्य यह है कि विधाता ने इतनी सावधानी से जो धरती बनायीं है और मनुष्य ने विज्ञापन के आश्रय से जो उसमें चार चाँद लगायें हैं वे इसीलिए है कि विज्ञापन के लिए उपयुक्त भूमि मिल सके। उत्तरी ध्रुव से दक्षिण धुव तक कोई कोना ऐसा नहीं बचा होगा जिसका किसी न किसी चीज़ के विज्ञापन के लिए उपयोग न किया जा रहा हो।
विज्ञापन का क्या उद्देश्य है ?
विज्ञापन कला की उन्नति को देखते हुए मैं भविष्य के लिए चिंतित हो उठा है। लगता है वह युग आने वाला है ,जब विज्ञापन संस्कृति ,संस्कार साहित्य और शिक्षा का प्रयोग केवल विज्ञापन के लिए ही रह जाएगा। मैं आज हर चेहरे ,हर नाम और हर आवाज को किसी न किसी का विज्ञापन मान रहा हूँ।
आज विज्ञापन कला इस तरह ख्याति पाती जा रही है कि लगता है विज्ञापन के बिना मानव कुछ भी करने में असमर्थ हो जाएगा। किसी भी वस्तु को खरीदने के लिए उसे विज्ञापन की सूचि देखनी पड़ेगी। आज का आम आदमी विस्तरे से उठने और सोने तक विज्ञापन से घिरा रहता है। सर दर्द दूर करने वाले विज्ञापन सर दर्द के कारण बनते जा रहे हैं। जीवन में विष घोलने वाली वस्तुएं का विज्ञापन भी इतना सजा - धजा कर दिखाया जाता है कि आज का मानव समाज भूल - भुलैया में पड़ गया है। सिगरेट ,पान पराग और शराब जैसी वस्तुओं का भी विज्ञापन हो रहा है और सरकार आँखें बंद कर सब कुछ अनदेखी कर रही है। कभी कभी तो इतने गंदे विज्ञापन आते हैं कि विवेकशील और आदर्श नागरिक अपने नेत्र बंदकर लेने के लिए विवश हो जाते हैं। फैशन परेड में अर्ध नग्न नारी को देखकर किसकी आँखें शर्म से नहीं झुक जायेगी।
मानव जीवन पर विज्ञापनों का असर
विज्ञापनों की बढती हुई दुनिया ,इस दुनिया को एक न एक दिन विनष्ट कर देगी और हमारा आनेवाला समाज हमें दोषी करार करेगा। आवश्यकता इस बात की है कि हम सही विज्ञापनों को ही पनपने दें। यदि ऐसा नहीं हुआ तो मानव विज्ञापनों के प्रलोभनों में भटक कर रह जाएगा। आवश्यकता इस बात कि हम ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगायें जो झूठे प्रलोभन पैदाकर समाज को छलने का प्रयास करते हैं।
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bhak
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