एक बूढ़ा आशिक सजदा करता हुआ नारी के बिना पुरूष का बचपन असहाय है, युवास्था सुख रहित हैं और बुढ़ापा सांत्वना देने वाले सच्चे और वफ़ादार साथी से रहित हैं
एक बूढ़ा आशिक सजदा करता हुआ
एक पुरानी कहा वत हैं 'हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती " लेकिन लोग चमक ने बाली चीज से ही प्रभाबित होते हैं| आपकी आउटर पर्सनालिटी ही दूसरे के सामने आपको प्रस्तुत करती हैं भले ही आप की इंटरनल पर्सनालिटी कितनी भी अच्छी किंयो ना हो। किसी व्यक्ति की पर्सनालिटी उन चीजों ,उस वातावरण से बनती हे जिसमें बह अपने जन्म से पन्द्रह बीस साल रहता हैं ।बाद में पर्सनालिटी में परिस्थिति में चेंज होने पर थोड़ा बहुत ही परिवर्तन होता हैं।
मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मेरी आउटर पर्सनालिटी लोगो को आकर्षित नहीं करती हैं। में इस मामले में बहुत ही बदनसीब हूं। में एक ऐसे गॉवं में पैदा हुआ जंहा हर आदमी घमंडी , जोर जोर से बोलने बाला , झगड़ा करने बाला और बदतमीज था। पढ़े लिखे होने के बाबजूद में इन अबगुणो से बच नहीं पाया।
मैं “ स्त्री और प्यार “ इन दोनों मामलों में अभागा और बदनसीब हूं। मेरे जीवन में दो ही स्त्री आई और दोनों ही मेरी नजर में बुद्धिमान , बहुत सुंदर , अदुतित्य और अनुपम हैं। दोनों को मैं बहुत प्यार करता हूं । पर एक को में बोल पाता उससे पहले ही बोह इस दुनिया से चली गयी और दूसरी को पेर्सनलिटी डिफेक्ट होने के कारण आज तक नहीं बोल पाया कि में उसे बहुत प्यार करता हूँ | इसमें पहली औरत मेरी माँ और दूसरी औरत मेरी प्रेयसी मेरी धर्मपत्नी मंजू हैं।
किसी ने सटीक कहा हैं ," नारी के बिना पुरूष का बचपन असहाय है, युवास्था सुख रहित हैं और बुढ़ापा सांत्वना देने वाले सच्चे और वफ़ादार साथी से रहित हैं.” स्त्री क्या होती हैं और उसकी बजती हुई पेजाबे के संगीत का क्या महत्ब हैं। उसकी मुस्कराती हुई हंसी का क्या महत्ब है यह बात मुझसे ज्यादा कौन जान सकता है। जब मेरी माँ की मृत्यु हुई। मैं मात्र उन्नीस बरस का था। उस समय मेरे दो छोटे भाई थे जो बारह और आठ बर्ष के थे , दो बहने छ: और चार बर्ष की थी। ऐसे समय में जब एक परिवार को एक युवा नारी की आवश्यकता थी ,ईश्वर के कोप से उसका परिवार वंचित था । हम लोग विशेष कर में घर में जवान औरत की मधुर आवाज और उसकी पायल की आवाज को सुनने के लिए तरस गए थे।जिस घर में स्त्री नहीं होती हैं , उस घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता हैं और दुख से घिरा रहता हैं.| हमारे साथ भी ऐसा हो रहा था | ऐसा लगता था कि हम सब मरे हुए लोग हैं जो अपना अपना काम कर रहे हैं। ना तो किसी के चेहरे पर हंसी होती थी और ना ही किसी के चेहरे पर मुस्कराहट |
रात कितनी भी बड़ी , काली, अंधेरी और डराबनी हो , उसका अंत होना निशिचत होता हैं और हमारे साथ भी ऐसा हुआ। सात साल बाद रात का अंत होते हुए हमारे जीवन में सुबह आयी | ऐम एस सी का रिज़ल्ट आ नहीं पाया था , उससे पहले ही हमारी सरकारी नौकरी लग गयी। फिर मेरे परिवार की जिंदगी में और मेरी जिंदगी में एक ऐसी लड़की आयी जिसने मेरे मिट्टी के घर को सोने का घर बना दिया। । जिसने हमारे घर को नरक से स्वर्ग बना दिया। हमारी दुखभरी जिंदगी को सुख से भर दिया। में और मेरा परिवार नाचने ,गाने और झूम ने लगा। उसके के घर में प्रवेश करते ही हम अपने सारे कष्ट, सारे दुःख और सारे दर्द भू लने लगे
मंजू जी के सहयोग से मेरे परिवार का उद्धार होता चला गया। अपने परिवार को तो सब पाल लेते हैं। मंजू जी ने मेरे पिताजी के परिवार को पाला। उनकी सादगी ,काम के प्रीति जिम्मेदारी , सबका ख्याल रखना का में बहुत कायल हूं।
ईश्वर के बाद हम सबसे अधिक ऋणी स्त्री के हैं, पहले तो स्वयं अपने जीवन के लिए और फिर इस जीवन को जीने योग्य बनाने के लिए। लेकिन मुझसे एक बात जो मिस होती रही। बो थी मंजू जी के सामने अपनी भावनाओं का इजहार ना करना। काम की आपा धापी ,सबकी चिंता , सबका कर्रिएर की चिंता में मुख्य काम मंजू जी की तारीफ़ करना , मंजू को को आई लव यू बोलना भूल ही गया। और मंजू जी को भी मेरे से यही शिकायत हैं। मेंने दूसरे कामों में ज्यादा ध्यान दिया और उसमे कम।
अब मेरी उम्र बासठ साल की हो रही हैं। मंजू जी पोती पोते बाली हो गयी हैं। अब बहुत देर हो गयी हैं। अब उनसे कहूंगा और अपने गुनाह के लिए माफी मा गूंगा तो बह सब में कहें गी ,"बुड्ढा सटिया गया हैं और पागल हो गया हैं”।
में दो चीजों पर बिश्वास करता हूं। सुबह का भटका हुआ अगर शाम को घर आ जाये तो उसे भटका नहीं कहते हैं और हर समस्या का समाधान सम्भव हैं। इस लिए हमने मंजू जी का एक फोटो फ्रेम करा लिया हैं और उस पर नीचे लिखी लाइन लिखबा दी हैं। उनके फोटो बाले फ्रेम को अपने तकिया के नीचे रख कर सोते हैं। अब जिंदगी का ज्यादा भरोसा नहीं हैं। मधु मेह , उच्च रक्तचाप और पता नहीं कितनी बीमारी हो गयी हैं। जीते ना सही कम से कम हमारे मरने के बाद मंजू जी हमारी भावनाओं को समझ सके -
हमारे इश्क का इम्तहान मत लो ।
हम वों हैं ,जो जमी पर तुम्हारा चित्र बनाते हैं।
और एक नमाजी की तरह उस पर सजदा करते हैं।
यह सही हैं कि हम एक अच्छे आशिक ना बन सके |
किन्योकी कई ओर किरदार हम को थे निभाने ||
फिर भी हम अपने गुनाह को मानते हैं और शर्मिन्दा हैं |
जाने अनजाने में उनका जो दिल हमने दुख या हैं ||
उस गुनाह के लिए ईश्वर हमें दंड दे और आग से जला दे |
ताकि हमारे बदन की राख उनकी आँखों का काजल बन सके ||
- अशोक कुमार भटनागर ,
रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी,
रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार
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