जीवन में प्रेम की सार्थकताशिमला की माल रोड पर चर्च के पास राजकीय महिला डिग्री कॉलेज हैं। यहाँ पर एक बहुत बड़ा बोर्ड लगा हुआ हैं , डा राधा भटना
जीवन में प्रेम की सार्थकता
आज महाविधालय में बहुत काम था। जुलाई का महीना शुरू हो गया हैं। एड मिशन चल रहे हैं। बह कुछ थकान महसूस कर रही हैं। जब भी बह थकान महसूस करती हैं , चर्च में आकर बैठ जाती हैं। यहाँ आकर उसे बड़ी शांति मिलती हैं। ईसा मसीह का सूली बाला चित्र उसे जीवन की कठिनता और कठोरता के बारे में सोचने को मजबूर करता हैं।
चर्च के पीछे जाने पर एक पहाड़ी पड़ती हैं और उसके बाद घना जंगल। बहा कोई आता जाता नहीं हैं। बंहा पर गुलाब का एक छोटा सा बगीचा हैं। मुश्किल से दस बारहा गुलाब के फूल खिलते रहते हैं ,मुरझा जाते हैं , फिर खिल जाते हैं ,फिर मुरझा जाते हैं। मुझे गुलाब का इस तरह खिलना और मुरझा जाना बहुत परेशान करता हैं और उस व्यक्ति पर बड़ा गुस्सा आता हैं जिसने यह बगीचा लगाया। फूल की सार्थकता तब ही हैं जब बह किसी स्त्री के बाल में लगाया जाए। किसी प्रेमी द्वारा प्रेमिका को दिया जाए। किसी मंदिर में ,किसी शहीद के कफ़न पर चढ़े या किसी की शादी या किसी फंक्शन में काम आये। लेकिन इन गुलाब के फूलों के साथ ऐसा कुछ नहीं हो रहा हैं। बह इन गुलाब के फूलों के जीवन की सार्थकता समझ नहीं पाती हैं।
बचपन में जब बह बहुत छोटी थी उसकी दादी परी की एक कहानी सुनाती थी । उसमे गलती से परी के देश की राजकुमारी उनके गॉवं में पैदा हो जाती हैं। जब बह परी बड़ी होती हैं उसका रूप और बुद्धि प्रखर और प्रखर हो जाती हैं। उस को प्यार करने बाला ,उस को किश करने बाला ,उस को छूने बाला कोई पुरुष नहीं मिलता हैं और बह परी एक दिन मर जाती हैं। उस समय तो बह इस कहानी का अर्थ समझ नहीं पाई। आज बह महसूस करती हे कि उस परी , इन फूलों और उसकी किस्मत एक ही व्यक्ति द्वारा लिखी गयी हैं।
उसी मनुष्य का जीवन सार्थक हैं , जिस ने अपने जीवन में प्रेम का वरण किया हैं ।उसे भी लगता हैं की उसका जीवन भी इन गुलाब के फूलों की तरह हैं। उसे भी कोई प्यार नहीं कर सका। उसकी जबानी भी इन गुलाब के फूलों की तरह आयी और चली गयी। बह भी चाहती थी की उसका पति हो जो उसे प्यार करे। उसकी भी बेटी हो जो उसकी हम शक्ल हो उसके साथ खेले ,उसकी सहेली बने और उसके मरने के बाद उसकी छवि के रूप में बह इस दुनिया में रहे |
इसी उधेड़बुन में बह गुलाब के फूलों के बीच बैठी थी कि अचानक बारिश की बूँदे पड़ने लगी। बह हड़बड़ा कर उठी और अपने होस्टल की और जाने लगी। होस्टल तक पहुंचने में बह काफी भीग गयी थी। उसने होस्टल में अपना रूम खोला। होस्टल की नौकरानी आकर बोली। मेम में आपके लिए चाय ले कर आती हूं। एक व्यक्ति सुबह से कई बार आ चुका हैं। बह बार बार आपको पूछता हैं। मेंने उस से उसका नाम और आने का कारण पूछा। इस पर उसने कहा कि बह मेम को ही बताए गा। मेंने उस से यह भी कहा कि बह प्रिंसिपल रूम में मिल ले। लेकिन उसने कहा कि उसे कोई जल्दी नहीं हैं।
पहाड़ पर बारिश के मौसम में सूर्य विलुप्त हो जाता हैं और अँधेरा जल्दी छा जाता हैं । आज भी ऐसा ही हुआ हैं। उसने कमरे में चाय की चुस्की लेते हुए अपने कपडे बदले और ना ईट गाउन पहन लिया। ना ईट गाउन पहनते हुए उसने एक नजर सामने मिरर पर डाली और उसे महसूस हुआ कि बह अभी भी जवान हैं और हल्की सी मुस्करा दी।
कुर्सी पर बैठे बैठे बह उस आगुन्तक के बारे में सोचने लगी जो उससे मिलने आया था। उसका तो कोई भी नहीं हैं। मां बाप तो पहले ही मर गए थे। उसका कोई भाई भी नहीं था और ना ही बह किसी रिश्तेदार को जानती थी। बस एक विकास था उस से भी पांच साल से मुलाकात नहीं हुई हैं। बह विकास से बहुत प्यार करती थी और चाहती थी कि बह इंडिया में रह कर ही पीएचडी करें और हम दोनों शादी कर लें। जबकि उसके पेरेंट्स चाहते थे कि बह बिदेश से पीएचडी करे और बंही से टल हो जाये। फिर बही हुआ उसने पेरेंट्स की बात मान ली और प्यार एक बार फिर नाकाम हो गया। उसने मुझसे कहा था कि में उसके साथ बिदेश चलू और हम बहा शादी करके से टल हो जायें गे। लेकिन में उसके लिए तैयार ना हो सकी।
कुछ समय तक तो उसके फ़ोन आते रहे। फिर बह शिमला आ गयी। विकास को शिमला का पता भी नहीं मालूम हैं। उसने भी ज्यादा कोशिश नहीं की किन्योकि जिस मंजिल का अंत दुखदायी हो उसे समाप्त करना ही बेहतर हैं।
बह यह सब सोचती हुई गुम सुम अवस्था में बैठी थी कि किसी के कमरे में आने की आहट हुई। इससे पहले बह कुछ समझ पाती उस आगंतुक ने उसे अपने सीने से बुरी तरह चिपका लिया और माथे को किश करते हुए बोला ,"जाने मन , हम सब कुछ छोड़ के बिदेश से आपके साथ रहने के लिए शिमला आ गए हैं और यही शिमला में इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर हो गए हैं। अब हमें कोई अलग नहीं कर पाये गा। और में उसकी बांह में सिमटी जा रही थी।
- अशोक कुमार भटनागर
रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी
रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार
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