क्या पुरखों की जमीन कोई बेचता है ? हमारा गांव जिला मुरादाबाद से पच्चीस किलोमीटर तहसील मुरादाबाद में काँकर खेड़ा नाम से हैं। शहर आने के लिए स
क्या पुरखों की जमीन कोई बेचता है ?
हमारा गांव जिला मुरादाबाद से पच्चीस किलोमीटर तहसील मुरादाबाद में काँकर खेड़ा नाम से हैं। शहर आने के लिए सीधी सड़क नहीं हैं। आपको सात किलो मीटर पैदल चलना होता हैं तब बस पकड़ना होता हैं। बड़े भाई साहब हम से दस साल बड़े हैं। अगर में उन को पिता कंहू तो ज्यादा उचित होगा। जब हम बहुत छोटे थे ,तभी पिता जी का स्वर्गबास हो गया था। हमारी देखभाल बड़े भाई साहब ने की। उन्हों ने ही हम को पढ़ा या। ऐम ए करने के उपरान्त रेलवे में क्लर्क की नौकरी हम को मिल गयी। शादी हो गयी ,बच्चे हो गए। धीरे धीरे हम अपनी बीबी और बच्चो में मस्त होते चले गए और भाई साहब से दूर होते गए या कहो भूलते चले गए। आप सोचेंगे की हम बहुत अहसान फरामोश हैं जो देवता समान भाई को भूल गए। बस जिंदगी की आपा धापी , नौकरी में ट्रांसफ़र , बच्चो की एजुकेशन की टेंशन , बच्चो का कर्रिएर इन सब में उलझ कर गोल गोल घूमते रहे और इन सब चीजों में सि-मित होकर जिंदगी ढलती गयी। आप कह सकते हैं जिंदगी ढल गयी।
हमने बरेली में एक मकान बना लिया और बच्चो ने बंगलौर में फ्लैट खरीद लिए। दो भाई एक साथ बंगलौर में फ्लैट ले सकते थे। मगर दोनों के फ्लैट एक दूसरे से इतनी दूर लिए हैं जितनी दूरी बरेली से रामपुर की हैं। ऐसे से आप अंदाजा लगा सकते हैं की आज की जनरेशन के दो सगे भाई में कितना प्यार हैं? जब बच्चो ने बंगलौर में फ्लैट खरीदा तो पत्नी जी ने बड़ा दबाब बनाया कि गांव की जमीन बेच कर उसका पैसा बच्चो को दे दो। तब मुझे बह गहरा राज जो मेरे मन में दबा था। परिवार को बताना पड़ा।
हुआ ऐसा था की जब मेरी पोस्टिंग रामपुर में थी | गांव का एक व्यक्ति मिला था। उसने बताया कि आपके भाई साहब की हालत बहुत खराब हैं। आज कल खेती की हालात बहुत खराब हैं। उनके पास जो कुछ जमा पूंजी थी बह तुम्हारी पढ़ाई और शादी में लगा दी। तुम्हारे भाई ने अपनी बेटी की शादी तय कर दी हैं और उनके पास पैसा की कमी हैं। तुम तो उनको भूल ही गए हो। तुम्हें अपने भाई की मदद करनी चाहिए।
उस रात बह सो नहीं पाया था। पूरी रात बड़े भाई साहब का चेहरा ,उनके द्वारा किये गए अहसान याद आते रहे। सुबह उठा। बिना किसी को बताये अपने गांव पहुँच गया। मुझको देख कर बड़े भाई साहब ऐसे खुश हुए ,मानो उनको कोई बहुत बड़ा खजाना मिल गया हो।
उसने भावी के हाथ का खाना बहुत दिन बाद खाया। पूरा गांव घूमा। फिर बड़े भाई साहब से बोला ," मुझे आज ही वापस जाना हैं। छुट्टी नहीं हैं। शादी में आऊंगा। मेंने जमीन का अपना हिस्सा आपके नाम करा दिया हैं और उस को रजिस्टर्ड भी करा दिया हैं। अब उसमे कुछ हो नहीं सकता हैं। मेरी जमीन का हिस्सा बेच कर भतीजी की शादी में लगा दो। यह कह कर में चल पड़ा। भाई साहब मुझे जाते हुए तब तक देखते रहे जब तक में उनकी आँखों से ओझल ना हो गया।
भतीजी की शादी में में पूरे परिवार के साथ गया। लेकिन ना तो मेंने पूछा और ना ही मेरी पूछने की हिम्मत हुई और ना ही भाई साहब ने बताया कि उन्हों ने जमीन बेची या नहीं।
जमीन के बारे में जब परिवार को बताया और उसके बाद जो भूचाल आया बह मेरे लिए अप्रितियाशित नहीं था और उस को झेलने के लिए में पूरी तरह तैयार था। मेंने अपने परिवार के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा ,''आप लोग जितना मुझे लल्लू समझते हो। उतना में हूं नहीं । बह मेरी जमीन थी मेंने दे दी। मेरे उनसे क्या रिश्ता हैं बह आप लोगो की समझ में नहीं आएगा । आप लोगो के मेरी जिंदगी में आने से पहले भाई साहब मेरी जिंदगी में थे और अगर बे मेरी जिंदगी में मदद नहीं करते तो में यहाँ नहीं होता। किसी को भी चूँ चपड़ करने की जरूरत नहीं हैं "।
यह दुर्भाग्य की बात हैं कि जिस दिन उस का सेवानिवृत्ति दिवस था ,उसी दिन भावी का स्वर्गवास हो गया और बह भावी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाया। उसके बाद बह गांव गया। भाई साहब बड़े कमजोर और उदास दिखाई दे रहे थे। मेंने उनसे कहा कि जब कुछ मन शांत हो जाए तो बरेली या बंगलौर आना .
रिटायरमैंट के बाद पत्नी जी ने कहा ," सारी जिंदगी इधर उधर परेशान होकर घूमते रहे हैं। अब कुछ समय बेटो के पास शांति से आराम करेंगे। बहू बेटे भी कई बार कह चुके हैं। और फिर ना चाहते हुए भी हम बंगलौर आ गए। बड़े शहर अगर हमें कुछ देते हैं तो बहुत कुछ छीन भी लेते हैं। हर चीज बरेली से तीन गुनी या चार गुनी दामों पर मिलती हैं। मकान छोटे और महँगे हैं। बेटे के पास दो कमरे और एक छोटा सा स्टोर रूम या स्टडी रूम हैं। बेटे की बेटी बड़ी हो रही हैं और रात भर पढ़ाई करती रहती हैं। इसलिए हमने उस छोटे रूम जिसे आप स्टडी रूम कह सकते हैं रहने का फैसला किया।
उस कमरे में दो फोल्डिंग पलंग आना सम्भव ना था। एक फोल्डिंग पलंग और एक चटाई नीचे जमीन पर बिछा कर गुजारा होने लगा।अभी दो महीने ही हुआ था कि एक दिन बड़े भाई साहब का फ़ोन आ गया और उन्हों ने कहा ,"मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती हैं। तुम सब लोग एक साथ गांव आ नहीं सकते। में ही बंगलौर आ रहा हूं। कोई एयरपोर्ट पर आ कर ले जाना।
भाई साहब का बंगलौर आना किसी को भी पसंद नहीं आया , यहाँ तक कि मुझको भी नहीं। कारण रहने की समस्या। भाई साहब एक हफ्ता रहे ,सब से मिलें और फिर चल दिए । मैं स्वंय उनको एयर पोर्ट छोड़ने गया । एयर पोर्ट पर भाई साहब ने मुझ से कहा ,"अरे ,में बड़ा भुलक्कड़ हो गया हूं। में तुमेः यह लिफाफा देने लाया था। पर देना भूल गया। यह रख लो। घर जा कर खोलना। " इतना कह कर बे आँखों से ओझल हो गए।
मेंने घर आकर भाई साहब का ले टर खोला। ले टर को खो लते ही बह चौंक गया। उसमे दो करोड़ का चेक और छोटा सा हाथ से लिखा हुआ एक पत्र था। पत्र में लिखा था ," प्रिय भाई अशोक , मेंने तुमेः हमेशा ही अपना बेटा माना। तुम जो जमीन मेरे नाम कर आये थे। मेंने बेचा नहीं। भला पुर खो की जमीन कोई बेचता है। मेंने जमीन को गिरंबी रख कर और कुछ पैसे उधार ले कर शादी कर दी और बह कर्ज भी निपटा दिया।
हमारी जमीन अब सरकार ने अधिग्रह कर ली हैं। सरकार ने अच्छे पैसे दिए हैं। और लोगो ने इस पैसे से दूसरी जगह जमीन खरीद ली हैं। मेरे लिए जमीन खरीदना बेकार हैं। ना तो तुम और ना ही तुम्हारे बेटे यहाँ आ पायेंगे। मेंने इन पैसा से कुछ पैसे बेटी को देना चाहा तो उसने मना कर दिया। बह बोली कि उसके पास तो बहुत जमीन हैं। भाई लोगो को पैसे की आवश्यकता हैं। उन लोगो ने लोन ले कर फ्लैट खरीदे हैं। उनका लोन चुकता हो जाएगा। बस भाई लोगो से कहना कि रक्षाबंदन और भाई दूज पर फ़ोन कर लिया करे। इन दो दिन मायके की बहुत याद आती हैं और आपके जाने के बाद तो मेरा मायका ख़त्म हो जाएगा।
प्रिय भाई अशोक में आपके सामने बता नहीं सकता था बह यह हैं कि मुझे पैंक्रिएटिक कैंसर हैं। में सिर्फ दो या तीन महीने ही जीबित रह पाउँगा । मेंने गांव के प्रधान को बोल दिया हैं। बह मेरे मरने के बाद तुमको फ़ोन करेगा , बस तुम मेरे शरीर को आग लगाने आ जाना। गांव के पंडित कहते हैं कि जब तक कोई अपना मर्त शरीर को आग नहीं लगाता हैं , मिर्त आत्मा को शांति नहीं मिलती हैं।
दूसरा काम यह हैं कि जब तक तुम हो और तुम्हारे बाद तुम्हारे बेटे मेरी बेटी का हाल चाल लेते रहे , तीज त्यौहार उस को फ़ोन करते रहे किन्योकी मायके का दर्द क्या होता हैं ? यह एक बेटी ही जानती हैं।
दो करोड़ का चेक टेबल पर पड़ा हैं और हम सब गांव जाने की तैयारी कर रहे हैं। अब हम जब तक बड़े भाई साहब हैं गांव में ही रहेंगे।
अशोक कुमार भटनागर
रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी
रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार
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