लीक पर वे चलें कविता का सारांश व्याख्या भावार्थ प्रश्न उत्तर

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लीक पर वे चलें सर्वेश्वरदयाल सक्सेना 


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लीक पर वे चलें कविता का सारांश

प्रस्तुत पाठ लीक पर वे चलें , कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी के द्वारा लिखित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने परम्परागत रास्ते पर चलना छोड़कर अपने प्रयत्न से बनाए गए रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी है। यह कविता जीवन में कुछ अलग करने की सीख देती है। वे कहते हैं कि जो लोग कमजोर होते हैं, जिंदगी से हारे हुए होते हैं | वे लोग पुराने रीति-रिवाज के बल पर आगे बढ़ते हैं, परंतु जो कर्मवीर होते हैं वे अपना रास्ता स्वयं ही बना लेते हैं। इस कविता में कवि कहते हैं, आगे बढ़ते रहने से रास्ते में बहुत सारे प्रेरणास्रोत हैं, जिनसे हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। पेड़-पौधे, नदियाँ, झरने, आकाश, बादल सभी हमारे साथ आगे बढ़कर हमें निरन्तर आगे बढ़ने की सीख देते हैं। कवि ने इस कविता में जीवन की सच्चाई को उजागर कर पाठकों के लिए बहुत सुंदर और प्रेरणादायक सीख दी है | आज के नए युग में बहुत जरूरी है कि पुरानी परम्पराओं को भूलकर एक नया रास्ता तय करें, जो बहुत ही आवश्यक हो गया है । यह कविता सरल , सहज और पाठकों के लिए एक सन्देशप्रद कविता है...|| 

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लीक पर वे चलें कविता का भावार्थ व्याख्या


लीक पर वे चलें कविता का सारांश व्याख्या भावार्थ प्रश्न उत्तर

लीक पर वे चलें जिनके 
चरण दुर्बल और हारे हैं, 
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने 
ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं। 
साक्षी हों राह रोके खड़े 
पीले बाँस के झुरमुट, 
कि उनमें गा रहा है जो हवा 
उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं।

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ  लीक पर वे चलें  कविता से उद्धृत हैं | यह कविता कवि 'सर्वेश्वर दयाल सक्सेना' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि पुरानी परंपराओं के आधार पर वे चलते हैं, जिनके चरण कमजोर और हार गए हैं। हमें तो स्वयं के द्वारा बनाए गए रास्ते पर चलना अच्छा लगता है, जो अभी बना नहीं है। ये बॉस की झाड़ियाँ इस बात का गवाह बनकर हमारा रास्ता रोक रही हैं | ये हवा गीत गाते हुए हमारे सपनों के साकार होने की प्रमाण दे रही है। इन हवाओं में लिपटी हुई हमारे सपने, परंपराओं से बंधे हुए नहीं है | 

शेष जो भी हैं— 
वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ; 
गर्व से आकाश थामे खड़े 
ताड़ के ये पेड़, 
हिलती क्षितिज की झालरें; 
झूमती हर डाल पर बैठी 
फलों से मारती 
खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा;

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ  लीक पर वे चलें  कविता से उद्धृत हैं | यह कविता कवि 'सर्वेश्वर दयाल सक्सेना' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि रास्ते में बचे हुए जितने भी है आम के हिलते हुए डाल, ताड़ के बड़े-बड़े पेड़ यह सब ऐसा लगता है जैसे आकाश को थाम के खड़े हों। उसके हिलते हुए पत्ते ऐसे लगते हैं, जैसे क्षितिज में झलारें लटक रही हों, इनकी झूमती हुई डालों पर बैठी खिलखिलाती हुई , चंचल मस्त हवा फलों को हिला रही है | 


गायक-मंडली-से थिरकते आते गगन में मेघ, 
वाद्य-यंत्रों-से पड़े टीले, 
नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे 
शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल; 
सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास 
जो संकल्प हममें 
बस उसी के सहारे हैं। 
लीक पर वे चलें जिनके 
चरण दुर्बल और हारे हैं, 

भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ  लीक पर वे चलें  कविता से उद्धृत हैं | यह कविता कवि 'सर्वेश्वर दयाल सक्सेना' जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि आकाश से बादल किसी गायक मंडली की तरह थिरकते हुए आ रहें हैं। रास्ते के टीले ऐसे लग रहे हैं कि जैसे वह कोई बड़ा-सा बाजा हो। सूखे हुए तलाब में स्थित एक अंजली जल जो फिर से नदी बनने का इंतजार कर रही हो | ये सभी साक्षी होकर हमें भरोसा दिला रहे हैं कि हम अपने संकल्प से ही आगे बढ़ें, परम्परागत रास्ते पर तो कमजोर और हारे हुए इंसान चलते हैं । मनुष्य को अपने जीवन में संकल्प के साथ निरन्तर आगे बढ़ना चाहिए | 

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लीक पर वे चलें कविता के प्रश्न उत्तर


प्रश्न-1 कवि लीक पर चलने के लिए किन्हें कह रहा है ?

उत्तर- प्रस्तुत कविता के अनुसार, कवि कमज़ोर और हारे हुए लोगों को लीक पर चलने के लिए कह रहा है | 

प्रश्न-2 कवि ने अपने द्वारा बनाए मार्गों का साक्षी किसे कहा है ? 

उत्तर-  कवि ने अपने द्वारा बनाए मार्गों का साक्षी पीले बाँस के झुरमुट को कहा है | 

प्रश्न-3 कवि को आकाश के मेघ कैसे लग रहे हैं ? 

उत्तर- कवि को आकाश के मेघ गायक मंडली की तरह थिरकते हुए से लग रहे हैं | 

प्रश्न-4 कवि को किस प्रकार के पंथ प्यारे हैं ? 

उत्तर- कवि को ऐसे पंथ प्यारे हैं, जो उन्होंने स्वयं बनाए हैं और जिनका अस्तित्व पहले से नहीं था | 

प्रश्न-5 कवि के सपने किससे लिपटें हैं ? 

उत्तर- कवि के सपने पीले बाँस के झुरमुट में गाती हवा से लिपटे हैं | 

प्रश्न-6 कविता में ताड़ के पेड़ों की तुलना किनसे की गई है ? 

उत्तर- कविता में ताड़ के पेड़ों की तुलना क्षितिज की लटकती झालरों से की गई है | 

प्रश्न-7  सही उत्तर पर √ लगाइए --- 

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है - 

(क)- गीत गा रही है 
(ख)- ताड़ के पेड़ 
(ग)- शुष्क ताल का एक अँजुरी जल 

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भाषा से 
प्रश्न-8 काव्य में रेखांकित शब्दों के पर्याय लिखकर वाक्य फिर से लिखिए --- 

(क)- कवि को स्वयं बनाए रास्ते प्यारे हैं | 

उत्तर- कवि को स्वयं बनाए मार्ग प्यारे हैं | 

(ख)- जो गर्व से गगन थामे खड़े हैं | 

उत्तर- जो गर्व से आसमान थामे खड़े हैं | 

(ग)- शाखा पर पक्षी चहचहा रहे हैं | 

उत्तर- डाल पर पक्षी चहचहा रहे हैं | 

(घ)- डाकू गौतम बुद्ध के चरणों में गिर गया | 

उत्तर- डाकू गौतम बुद्ध के कदमों में गिर गया | 

(ड.)- रात मैंने एक डरावना स्वप्न देखा | 

उत्तर- रात मैंने एक डरावना ख़्वाब देखा | 

(च)- सरिता का साफ पानी ही मनुष्य को जीवन देता है | 

उत्तर- नदी का शुद्ध जल ही मनुष्य को जीवन देता है | 


प्रश्न-9 कुछ शब्द उपसर्ग और प्रत्यय दोनों के योग से बनते हैं --- जैसे -- पर + अधीन + ता  = पराधीनता 

आप भी इस प्रकार के शब्द बनाइए --- 

उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है - 

• सम् + कल्प + ना  = संकल्पना 
• स्व + तंत्र + ता  = स्वतंत्रता 
• सम् + विधान + इक  = संवैधानिक 
• दुर् + बल + ता  = दुर्बलता 
• स + फल + ता  = सफलता 
• अ + विश्वास + अनीय  = अविश्वसनीय 

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लीक पर वे चलें कविता के शब्दार्थ 

• लीक - पुरानी परंपरा
• अनिर्मित - जो बना नहीं है 
• पंथ - रास्ता
• साक्षी - गवाह
• झुरमुट - पेड़ों का समूह
• शेष - बचा हुआ
• अमराइयाँ - आम की डालियाँ
• शोख - चंचल, शरारती
• अल्हड़ - लापरवाह
• टीले - ऊँचे जमीन
• अँजुरी - मुठ्ठीभर
• संकल्प - इक्छा , विचार, प्रयोजन |

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