एक नादान इश्क और तीन व्यक्तियों की हत्या मैं लगभग एक महीने से होस्टल मैं नहीं थी। घर से फ़ोन आया था कि बाबा की तबीयत बहुत खराब हैं। बच नहीं पायेंगे।
एक नादान इश्क और तीन व्यक्तियों की हत्या
रूड़की के एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज में मैं शोध छात्रा हूं। होस्टल मैं रहती हूं। इंस्टीयूट मैं समय का अभाव होने के कारण मेरा गाइड अक्सर शाम को अपने घर बुला लेता हैं। इसमें कुछ बुरा भी नहीं हैं। ज्यादातर गाइड ऐसे ही करते हैं। मेरे होस्टल से गाइड के रैजिडेंस की दूरी लगभग दो किलोमीटर होगी। रास्ते में आम और जामुन के घने घने पेड़ हैं। घास झार झंकार भी हैं। यह सब उस छोटे से रास्ते को डराबना बना देते हैं।
लगभग दस दिन से मैं बहुत परेशान हूं। मैं जब गाइड के घर से होस्टल के लिए वापस आती हूं , तब हल्का सा अँधेरा हो जाता हैं | गाइड के रैजिडेंस से होस्टल तक एक साया मेरा पीछा करता हैं। पेड़ों की सनसनाती हुई हवा और चन्द्रमा की मद्धिम रोशनी उसे ओर भयानक बना देती हैं। मैं डरपोक लड़की नहीं हूं। मेंने पीछे मुड़ कर देखा , बास्तब में बह साया खड़ा हैं ओर मेरी ओर लाचार नज रो से देख रहा हैं । रात में जब मैं लेटती हूं ओर लाइट बंद करती हूं ऐसा लगता हैं कि बह साया मेरे पावँ के पास बैठा हैं।
मैं लगभग एक महीने से होस्टल मैं नहीं थी। घर से फ़ोन आया था कि बाबा की तबीयत बहुत खराब हैं। बच नहीं पायेंगे। कम से कम दो महीने के लिए आ जाओ। मैं गाइड से बोल कर अपने घर चली गयी। घर जाकर सब उलटा पलटा हो गया। घर बाले बोले अपनी जाती का एक लड़का हैं। भारतीय विदेश सेवा में हैं। तुझे जानता हैं। पी एच डी करने के बाद तुम उसके साथ चले जाना। जान पहचान का लड़का हैं। फिर हाथ से निकल जाएगा। मेंने घरबालो को काफी समझाने की कोशिश की। विवेक के बारे में बताया। उनको बताया कि में विवेक से प्यार करती हूं। बह आई आई टी से पास आउट हैं। और मेरे कॉलेज में प्रोफेसर हैं | उन्हों ने साफ़ कह दिया कि हमें अपनी इज्जत प्यारी हैं। तुम्हारे पास दो ऑप्शन हैं। या तो छत से कूद कर मरजाओं या हमारे बताएं लड़के से शादी कर लो। मेरे पास कोई औऱ ऑप्शन नहीं था। मैं मरना नहीं चाहती थी और मुझे शादी करनी पड़ी। एकाद फ्रैंड को बताना पड़ा और फिर यह बात पूरे कॉलेज मैं फैल गयी।
मुझे थीसिस के सम्बंद में अक्सर प्रिंट कराने और नैट पर कुछ सर्च करने कंप्यूटर डिपार्टमैंट मैं जाना पड़ता था। विवेक कंप्यूटर डिपार्टमैंट मैं प्रोफेसर था। इस तरह हम दोनों का मिलना शरू हुआ और फिर एक दूसरे के बहुत नजदीक आ गए। हम लगभग चार साल से रिलेशनशिप मैं थे। लेकिन हमारे रिलेशनशिप की कुछ सीमाएं थी। मेंने विवेक को बता दिया था कि मेरे पेरेंट्स की रजामंदी से ही शादी सम्भव हैं। अगर रजामंदी नहीं मिल पायी तो शादी सम्भव नहीं हैं। और विवेक ने कहा कि बह इन्तजार करेगा।
मेरी शादी की खबर सुनकर बह डीप्रैशन मैं आ गया और बजाय अपने आपको सम्हालने के उसने प्रोफेसर होस्टल में आत्म हत्या कर ली। पुलिस आयी। उसने उसके और मेरे बीच जो आपत्तिजनक दस्तावेज थे बह पहले ही जला दिए थे। पुलिस आत्म हत्या की वजह का पता नहीं लगा सकी। लेकिन में जानती हूं। आत्महत्या से पहले उसने मुझे होस्टल से बहुत दूर आकर मैन सिटी में पी सी ओ से फ़ोन किया था और शादी की मुबारकबाद दी थी। मेंने उससे कहा था ," विवेक सौरी , अपना ध्यान रखना "। बो यह सब अपने मोबाइल से भी कर सकता था। इस तरह से उसने मुझे बदनामी से बचा लिया।
मेरे साथ विवेक की चचेरी बहिन सीमा भी शोध कर रही हैं । मेरे और विवेक के रिश्ते को लेकर उससे कई बार झगड़ा हो चुका हैं । सीमा ने उससे कई बार चीख चीख कर कहा ,' अगर तू मेरे भाई से शादी नहीं कर सकती हैं , तो उसकी भाबनाओ से मत खेल। बोह सीधा साधा इमोशनल लड़का हैं। तुझ पर बहुत ज्यादा फ़िदा हैं। अगर तू ना मिली तो या तो बह आत्महत्या कर लेगा या पागल हो जाएगा। में जानती हूं कि तेरे घर बाले विवेक से शादी कभी नहीं करेंगे। तेरे चक्कर में उसकी शादी की उम्र निकलती जा रही हैं। बह थर्टी सेवन का हो गया हैं।
इसी उधेड़बुन में में कैनटीन के कोने में बेटी हुई सोच रही थी कि सीमा आ गयी। बह कटी ली मुस्कराहट में बोली ," हेलो , क़ातिल हसीना , तू अपने उद्देश्य में कामयाब हो गयी। मेरे भाई को खा गयी। मेरे बार बार मना करने पर भी तू नहीं मानी। यह सा ले भाई लोग भी कैसे होते हैं। इनके मां बाप इन्हें पैदा करते हैं। अपना पेट काट कर इन्हें पढ़ाते हैं और सोचते हैं कि उनका बेटा बुढ़ापे में उनके काम आएगा। उनका बेटा उनका बुढ़ापा सुधार देगा। तीस साल की उम्र आते आते इन भाई लोगो को इश्क का भूत सबार हो जाता हैं और किसी नागिन क़ातिल हसीना की जुल्फों में मदहोश होकर लटक कर आत्म हत्या कर लेते हैं और इन्हें अपने बूढ़े माँ बाप का भी बिलकुल ख्याल नहीं आता हैं कि ब बे चारे कैसे रहेंगे। और तो और मरने से पहले अपने माँ बाप को बताते भी नहीं हैं। अरे भाई आपका माँ बाप से पच्चीस या तीस या पैंतीस वर्ष का साथ रहा हैं। उनको बता दो , उनसे पच्चीस या तीस या पैंतीस मिनिट बात कर लो। उनको बता दो कि बे अकेले रहने की आदत डाल लें। उन्हों ने जो ख़्वाब उनके लिए देखे हैं ,जला दें “ |
सीमा लगातार चीख चीख कर बोली जा रही थी ,"तुम जैसी लड़कियां विदेशी कल्चर अपना कर जो इश्क करने लगती हो। अपने माँ बाप को भी बताया करो। जितना समय अपने आंशिक के साथ लगाती हो , उसका एक प्रति सत अपने माँ बाप को भी इश्क के फायदे बताया करो। खुद तो मॉडर्न बनने की कोशिश करती हो और माँ बाप बही पुराने ख्याल के। अगर इश्क करो तो शादी करने का भी जज्बा रखो। चाहे माँ बाप तैयार हों या नहीं "
अब मेरी तबीयत खराब होती जा रही हैं। अब मेरी समझ में आ रहा हैं कि बह साया विवेक ही हैं। अब बह मुझे उजाला में भी दिखाई देने लगा हैं। किसी प्रोफेसर को ,किसी साथ बाले मित्र को ज़रा भी उसके फेस को देखती हूं। बह मुझे विवेक दिखाई देता हैं। इसी लिए में सबसे दूर एक पेड़ के नीचे बेटी थी। पता नहीं कंहा से सीमा आ जाती हैं बह आते ही गुस्से में बहुत जोर से चीख कर बोली ,' मुबारक हो क़ातिल हसीना , तुम एक बार फिर कामयाब हो गयी इस बार तुमने विवेक की माँ को मार दिया । जब विवेक के पिता विवेक का सामान लेने ट्रेन से बरेली से रूड़की होस्टल आ रहे थे , तभी विवेक की माँ ने आत्महत्या कर ली। बे चारी बहुत ही बुरी तरह मरी। तीन दिन तक उसकी लाश पंखे से झूलती रही। जब विवेक के पिता वापस बरेली पहुचें , तो उन्हों ने लाश को पंखे से उतारा। सूना हैं विवेक की माँ के हाथ में पंखे में लटकते समय एक हाथ में विवेक और तुम्हारी तस्वीर थी और दूसरे हाथ में किसी छोटे बच्चे की तस्वीर लिए थी। पुअर मदर। यह माँ भी बड़ी अजीब होती हैं। जैसे ही इनका लड़का जबानी की देहलीज पर कदम रखता हैं , यह पता नहीं क्या क्या सपने देखने लगती हैं।
यह सुनकर मुझे बहुत ही दुःख हुआ। सर में चक्कर आने लगा। ऐसा लगने लगा कि अभी मेरे प्राण निकल जायें गे बड़ी मुश्किल से मेंने खुद को सम्भाला। में एक बार विवेक की मां से मिली थी। हुआ ऐसा था कि में लखनऊ से रूड़की जा रही थी कि ट्रेन बरेली में पहले लेट हुई और बाद में कैंसिल हो गयी। मेंने सोचा चलो विवेक के घर चलते हैं। में रिक्शा करके उसके घर पहुंची । एक बहुत ही सुन्दर स्त्री ने मेरा स्वागत किया। उसके बॉल बड़े बड़े थे। आँखों में काजल था और आँखें बड़ी बड़ी थी। चेहरे पर बहुत ही प्यारी मुस्कराहट थी। इतनी प्यारी महिला मेंने पहले कभी ना देखी थी। में उनेह देख कर हड़बड़ा गयी और हक ला केर बोली ,"आप विवेक की रिश्ते की कोई बहिन ?" बह खिलखिला हंस पड़ी और बोली ," नहीं में विवेक की माँ हूं। अक्सर लोग कन्फुज़ हो जाते हैं। जब में विवेक के साथ जाती हूं ,लोग उसकी बड़ी बहिन समझते हैं और जब इनके साथ जाती हूं तो लोग इनकी बड़ी बेटी समझते हैं। " फिर बे मुझे ड्राइंग रूम में ले गयी और बहा पहुँच कर में दंग रह गयी। मेरी तस्वीर लगी हुई थी। उन्हों ने बड़े प्यार से खाना खिला या और विवेक तथा मेरे बारे में पूछती रही। ऐसी महिला का आत्महत्या करना मुझे अंदर तुक झकझोर गया।
में अपने अन्तर्द्वन्द से लड़ रही हूँ । मेरा मस्तिष्क शून्य होता जा रहा हैं । मेंने साइकेट्रिस्ट को दिखाया । उसने कहा कुछ दवाएं लिख रहा हूं। ठीक होने में समय लगेगा। एक एक्सरसाइज बताता हूं। उससे आराम मिलेगा। तुम सारी घटना को लिख लो। तुम खुद को दोषी क्न्यो मानती हो लिखो। और फिर उन तर्कों को ढूंढो जिससे तुम्हारा दोष नहीं हैं। मेंने साइकेट्रिस्ट से कहा कि में विवेक के पापा से मिलना चाहती हूं। डाक्टर ने नकारात्मक मुद्रा में सर हिला या।
लेकिन मेंने तय कर लिया की में विवेक के फादर से मिलने बरेली जरूर जायेगी। में रूड़की से बरेली ट्रेन से पहुँच गयी। विवेक के घर की घंटी बजाई। घर से जो व्यक्ति निकल कर आया उस को देख कर मेरा पूरा शरीर थर थर कांप ने लगा। बड़ी बड़ी दाढ़ी , चेहरे पर भयानक दुःख। मानो जीता जागता कोई मुर्दा इंसान हैं ।
में उसी ड्राइंग रूम में घुसी जिसमें एक बार जा चुकी हूँ मेरी फोटो उसी तरह लगी हुई हैं । में बड़ी मुश्किल से बोल पायी , " अक़ल ,कैसे हो "। बो कुछ नहीं बोले। सिर्फ रोते रहे।
बहार आकर मेंने रेलवे स्टेशन का रिक्शा पकड़ा। मेरी मानसिक अवस्था बहुत खराब सी हो रही हैं | हर बुजुर्ग पुरुष मुझे विवेक का पिता दिखाई दे रहा हैं । हर बुजुर्ग महिला मुझे विवेक की माँ दिखाई दे रही हैं । और में बुरी तरह बड़ बड़ा रही हूं ," मेरे नादान इश्क ने तीन लोगो की हत्या कर दी हैं।”
- अशोक कुमार भटनागर ,
रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी,
रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 11 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआज की बदलती सभ्यता का यही सच है। सभ्यता की कमान तो युवा पीढ़ी के हाथ में आ गयी है, लेकिन संस्कृति का सूत्र अभी भी समाज के उसी दोगले चेहरे के पास है जिसके अंदर कुछ है और बाहर कुछ। बस एक पीढ़ी की और देर है, फिर सब कुछ पटरी पर आ जायेगा। हाँ, लेकिन तब तक न जाने समाज कितना 'विवेक-हीन' हो चुका होगा! दिल को छूने वाली दास्तान।
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