आदमी कुछ करता हैं और ईश्वर उसका उलटा कर देता हैं। और फिर हम असफल होने पर खुद को दोषी मानते हैं। तमाम तरह के कारण खोजते हैं और पूरी जिंदगी
प्यार की कसक ,मिलन और विरह
जुलाई का महीना चल रहा हैं। मानसून आ गया हैं। बरेली में लगातार चार पांच दिन से बारिश हो रही हैं। बरसाती नादान कीड़े पंखों के साथ इधर उधर इतराते हुए घूम फिर रहे हैं। यह बेचारे नादान बरसाती कीड़े नहीं जानते कि बोह इस दुनिया में कुछ दिन या कुछ घंटों के मेहमान हैं और उनको यहां से विदा लेनी होगी। यही उनकी नियति ,उनकी किस्मत हैं I
आदमी कुछ करता हैं और ईश्वर उसका उलटा कर देता हैं। और फिर हम असफल होने पर खुद को दोषी मानते हैं। तमाम तरह के कारण खोजते हैं और पूरी जिंदगी इसी दुःख में निकाल देते हैं। मुझे दुःख के मामले में कृष्णा का जीवन बहुत कुछ सिखाता हैं। श्रीकृष्ण, हिन्दू धर्म में भगवान हैं। वे विष्णु के 8वे अवतार माने गए हैं। भगवान होने के बाबजूद उनका पूरा जीवन दुःख और बिरह में बीता। कृष्ण वसुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे। मथुरा के कारागार में उनका जन्म हुआ। कंस के डर से वसुदेव ने नवजात बालक को रात में ही यमुना पार गोकुल में यशोदा के यहाँ पहुँचा दिया। गोकुल में उनका लालन-पालन हुआ था। यशोदा और नन्द उनके पालक माता-पिता थे। मतलब पैदा किसी और ने किया और पालन किसी ओर ने किया। बाद में गोकुल छोड़कर नंद गाँव आ ग। इसके बाद मथुरा में आ गए। । सौराष्ट्र में द्वार का नगरी की स्थापना की और वहाँ अपना राज्य बसा या। राजा के घर पैदा होने के बाबजूद ,राजकुमार होने के बाबजूद एक साधारण ग्वाले का जीवन बिता या। श्री कृष्ण के जीवन में जो जो आते रहे ,वो बिछड़ते गए ओर उन लोगो के प्यार का गम ,उनसे बिछरने का गम लेकर बिना किसी शिकायत के श्री कृष्ण जीवन के सफर में आगे बढ़ते गए।
इन्ही बिचारो में खोया हुआ में खाट पर लेटा हुआ हूं। सत्तर साल कि उम्र हो गयी हैं। जिंदगी की आपा धापी में जिंदगी को समझने का अब सर ही नहीं मिला या आप कह सकते हैं कि इस और ध्यान ही नहीं गया। अब जब सत्तर बरस के हो गए हैं और जिंदगी ब्रद्धावस्ता से मौत की और जाने लगी हैं तो लगता हैं कि कुछ अंदर से टूटने लगा हैं। कुछ हैं जो चाहिए ,लेकिन बोह क्या हैं ,पता नहीं हैं। मन अजीब सा रहता हैं उदास उदास सा |अकेलापन एवं असुरक्षा का अनुभवहोने लगता हैं |मृत्यु का भय आदि बहुत डराने लगता हैं|अब समझ में आया कि यह जिंदगी को सही से समझ ना पाने की कीमत हैं |
योगेश्वर कृष्ण ने विषाद में फंसे अर्जुन को गीता का ज्ञान देते हुए 'जातस्य हि धु्रवो मृत्यु:' कह कर जिसका भी जन्म हुआ हैं उसकी मृत्यु को अवश्यंभावी बताया। जीवन का सबसे बड़ा सत्य हैं मृत्यु जिसे कोई टाल नहीं सकता हैं। जो मृत्युलोक में आया हैं उसे एक दिन अपने शरीर को छोड़कर जाना ही हैं।
श्री कृष्ण की तरह मेरे जीवन में जो आते गए बोह मुझसे दूर जाते गए। कैरियर के चक्कर में गॉवं छूटा ,संगी साथी छूटे।धीरे धीरे भाई नौकरी के चक्कर में दूर चले गए। एक बेटा बैंगलोर से टल हो गया ओर दूसरा बेटा अमेरिका से टल हो गया। सब कहते हैं कि हमारे पास आकर रहो ओर में कहता हूं कि बो कम से कम बरेली के आस पास जैसे गरुग्राम दिल्ली ओर नोएडा आदि में रहे ताकि में उनसे मिलता रहू। इसी कशमकश में जिंदगी समाप्त हो रही हैं। कोई एक दूसरे की बात नहीं मान रहा हैं। अब तो लगता हैं कि मौत कुछ समय बाद आने ही बाली हैं। मौत के समय का अनुभव कैसा होता हैं ओर उस समय व्यक्ति कैसा महसूस करता हैं यह कोई नहीं बता सकता हैं । फिर भी हम मौत का शांत चित्त से इन्तजार कर सकते हैं। इस लिए मेंने फैसला कर लिया हैं कि अब मैं बरेली से बैंगलोर चला जाऊंगा ओर बाकी जिंदगी अपनी पोती मायरा जो की इस समय लगभग तीन बरस की हैं ,उसके साथ बिताऊंगा। मैं मरते समय उसके मुस्कराते चेहरे ओर उसकी शरारती आँखों में देखना चाहता हूं। ताकि मेरे जाने के बाद उस को कोई बता सके कि उसका बाबा उसे बहुत प्यार करता था।
- अशोक कुमार भटनागर
रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी
रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार
COMMENTS