स्वाभिमान हिंदी कहानी सुषमा एक गरीब घर में पली है। समाज के दुष्कर्मों को जानकर परिवार में लड़कियों के लिए कठिन नियम थे।
स्वाभिमान
सुषमा एक गरीब घर में पली है। समाज के दुष्कर्मों को जानकर परिवार में लड़कियों के लिए कठिन नियम थे। ज्यादा वक्त या देर रात बाहर रहने की इजाजत नहीं थी। पढ़ने भी इसी शर्त पर भेजा गया कि घर से स्कूल और स्कूल से घर का सफर ही तय होगा। घूमने फिरने, पार्कों में जाने, सिनेमा देखने की तो सख्त मनाही थी। ऐसे तनावपूर्ण माहौल में भी सुषमा ने अपनी पढ़ाई पर ध्यान दिया और अच्छे नंबरों से पास होती गई। स्कूल के बाद कालेज जाने में बड़ी परेशानी हुई। घर वाले मानने को तैयार ही नहीं थे। किसी तरह कई तरह के बंधन मानकर सुषमा ने कालेज में दाखिला लिया। सुषमा ने बी ए में अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होकर बी एड में दाखिला लिया । उसे किसी भी हाल में आगे की पढ़ी इजाजत नहीं मिली। वह एम ए करना चाह रही थी किंतु वह चाह ही रह गई।
बी एड की परीक्षाफल आते ही परिवार में सुषमा की शादी की बात चल पड़ी। कुछ ही समय में मनोहर से सुषमा की शादी हो गई। फिर क्या था भरे पूरे ससुराल के चूल्हा-चौकी का भार सुषमा को कंधों पर आ पड़ी। पति एक निजी संस्थान में कार्यरत थे। स्थाई नौकरी नहीं होने के कारण उसमें बड़ी समस्याएँ थीं। महीने मे 20-25 दिन टूर में रहना पड़ता था। बाजार की हालातों के अनुसार कभी-कभी तो नौकरी पर भी आँच आ जाती थी। नौकरी छूटने पर दो-चार महीने तो नई नौकरी खोजने-पाने में लग जाते थे। इस बीच घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगती थी।
कुछ समय ऐसा ही बीता। फिर सुषमा ससुराल के बड़ों से इजाजत लेकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर कुछ आमदनी करती थी । अब सुषमा घर के काम, बच्चों की ट्यूशन दोनों के बोझ तले थी। फलस्वरूप उसकी सेहत पर ज्यादा असर दिखा।
कुछ समय बाद परिवार में बेटे अनुराग का पदार्पण हुआ। इससे घर के खर्चे बढ़ेऔर घर की हालत फिर पहले जैसी होने लगी। हालात को सँभालने के लिए, बच्चे के थोड़ा बड़ा होने पर , सुषमा ने एक और कदम आगे बढ़ाया। किसी तरह ससुराल वालों को मना कर एम ए में दाखिला लिया। बच्चे की परवरिश,बच्चों की ट्यूशन, घर की चूल्हा चौकी के बाद रात पढ़कर, उसने एम.ए. भी अच्छे नंबरों से पास कर लिया।
अब तक ससुराल पक्ष सुषमा की काबिलियत से परिचित हो चुका था। सुषमा के आग्रह पर परिवार की आर्थिक परिस्थिति को सुधारने के लिए शिक्षिका की नौकरी के लिए आवेदन करने की मंजूरी दे दी गई। बदकिस्मती से इन्हीं दिनों सुषमा के पति की नौकरी चली गई। अब सुषमा को सख्त जरूरत थी एक नौकरी की। उसने आवेदन करना शुरु किया और तकदीर साथ देने के कारण एक हाईस्कूल में सुषमा को नौकरी मिल गई।
इधर घर-ससुराल का चूल्हा-चौका , बच्चों की पढ़ाई, बच्चे की परवरिश के साथ सुषमा पर नौकरी बारी पड़ने लगी। किंतु सुषमा ने हार नहीं मानी, हिम्मत के साथ सब कुछ निभाती चली गई। हालात और मजबूरियों सुषमा की सेहत को चूस कर खोखला कर दिया।
समय अपनी गति से चलता रहा। बच्चा अनुराग बड़ा होने लगा था। उसने स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली। अनुराग अब अपनी आमदनी का साधन खोजने लगा। उसे अब माँ से अपने खर्चे की रकम माँगने में हिचक होती थी। अपने पढ़ाई और काबिलियत के अनुसार कई जगह आवेदन भी किया , पर की ढ़ंग का जवाब नहीं मिल पा रहा था, न ही कोई सही नौकरी हाथ आई। यहां वहां इज्जतदार नौकरी से जो आमदनी संभव थी , उसी को सहारा बनाया। लेकिन यह अनुराग को तसल्ली नहीं दे रही थी। हाँ , उसका अपना खर्च निकल जाता था। कभी-कभार माँ से थोड़े बहुत रुपए ले भी लेता था , पर वह बहुत कम था।
इधर सामाजिक कारणों से मनोहर की नौकरी मिलती रही और छूटती रही। अनुराग के मालिकों के रवैये भी बदलते रहे। उनके पैसे देने में परेशानी थी। वे सोचते थे कि वह सीख रहा है तो उसे तनख्वाह देने की क्या आवश्यकता है ? इस कारण अनुराग को पैसों की तंगी थी और उसे मजबूरन मम्मी से अब आए दिन पैसे माँगने पड़ते थे। यह उसे पसंद नहीं था, पर हालात मजबूर करते थे।
सुषमा की अकेली तनख्वाह पर पूरा घर-परिवार का खर्च चल रहा था । करोना ने शिक्षकों की तनख्वाह पर अतिरिक्त कटौती का बोझ डाल दिया था। खर्च बढ़ रहे थे और आमदनी घट रही थी । सुषमा को मुट्ठी बाँधनी पड़ रही थी, जिससे कि आमदनी से घर चलाया जा सके। फिर भी चेहरे पर शिकन न लाते हुए यथासंभव खर्चे अनुराग को दिया करती थी किंतु उसकी माँग की भरपाई नहीं कर पाती थी।
कुछ समय में ही अमर भाँप गया कि मां पैसे देने में कंजूसी कर रही है किंतु उसे आर्थिक तंगी का एहसास नहीं हो रहा था। उसे खीझ होने लगी और वह धीरे-धीरे बढ़ने लगी। वह मम्मी से बहुत प्यार करता था इसलिए वह माँ के सामने भड़ास नहीं निकाल पाता था। अब उसे महसूस होने लगा था कि मम्मी अकेली कमाती है इसीलिए उसे घमंड हो रहा है और इसी कारण वह पैसे देने में नखरे करती है। ऐसे मेएक दिन जब मम्मी ने पैसे देने में असमर्थता दिखाई तो वह आपे से बाहर हो गया और अपनी भड़ास मम्मी पर निकालने लगा। वह कह उठा-मम्मी आप घर में अकेली कमाती हो, इसीलिए ना इतना घमंड कर रही हो ?
सुषमा ने जिस लाड़ से अनुराग को पाला था , उसने कभी सपने में भी ऐसे दिन की उम्मीद नहीं की थी कि अनुराग से ऐसी बात सुननी पड़ सकती है। उसे अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था। कुछ क्षणों के लिए तो वह सकते में आ गई। वह मूढ़-बुद्धि हो गई। काटो तो खून नहीं। समझ ही नहीं पा रही थी कि अनुराग ने यह क्या कह दिया ? वह मूक ही रह गई
और अनुराग पैर पटकते हुए बाहर निकल गया।
सुषमा परेशान होती रही कि शायद मेरी परवरिश में ही कहीं कमी रह गई होगी।
लेखक परिचय और संपर्क
माडभूषि रंगराज अयंगर
निवास – सिकंदराबाद, तेलंगाना
प्रकाशन - 6 पुस्तकें (हिंदी में)
फोन - 7780116592
WA - 8462021340
email – laxmirangam@gmail.com
Blog - www.laxmirangam.blogspot.com
कितने भी संस्कारी परिवार हों, बाहरी वातावरण और दोस्तों का असर बच्चों पर पड़ ही जाता है। हालांकि यदि संस्कारों की जड़ें गहरी हों तो चरित्र का पेड़ आँधी पानी में झुक तो सकता है, टूट नहीं सकता। बच्चों को कभी ना कभी अपनी भूल का अहसास होता ही है।
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