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यह मेरा यह मीत का - आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
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yah mera yah meet ka summary
प्रस्तुत पाठ या कहानी / संस्मरण यह मेरा यह मीत का , लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के द्वारा लिखित है इस पाठ में द्विवेदी जी ने अपने शिक्षक द्वारा सुनाई गई एक कहानी का वर्णन किया है, जिस कहानी को सुनकर उनके बहुत सारे सहपाठी विद्या प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं ⃒ बच्चे एक-दूसरे का सहयोग करते हुए - यह मेरा : यह मीत का, इस उपाय का अनुसरण करके सीखते-सिखाते हैं प्रस्तुत पाठ के अनुसार, लेखक कहते हैं कि हमारे शिक्षक हार्ड टास्क मास्टर श्रेणी के शिक्षक थे ⃒ उनके डर से हमलोग अपना-अपना पाठ पूरा कर लेते थे ⃒ लेकिन जो दो-तीन बालक बताई हुई विद्या को स्मरण नहीं रख पाते थे, उनके लिए अध्यापक जी को एक उपाय सूझी और वह भी एक कहानी, जिस कहानी को मैं अब तक नहीं भुल पाया ⃒
कहानी के अनुसार, एक गाँव में दो बालकों के मध्य बहुत गहरी दोस्ती थी ⃒ दोनों बालक एक-दूसरे को मीत कहके पुकारते थे और एक ही गुरु के पास पढ़ने जाते थे ⃒ उन दोनों की दोस्ती को देखकर लोग हैरान रहते थे ⃒ दोनों बालकों में से एक गरीब पिता का बेटा था ⃒उसके पास न खाने के लिए पर्याप्त अनाज था और न ही पहनने के लिए कपड़े ⃒ दूसरा बालक एक धनी व्यापारी का बेटा था ⃒ उसका घर भरा-पूरा था और साथ ही उसके पास अपने मीत के लिए एक दिल भी था ⃒ एक दिन वह अपने गरीब मीत या दोस्त के लिए अपने पिता के सामने बिलकुल अड़ गया – यदि गरीबी के कारण मेरा मीत पढ़-लिख नहीं सकता तो मैं भी नहीं पढूँगा, उसकी तरह मैं भी अनपढ़ और गरीब ही रहूँगा ⃒ अतः इस प्रकार उसने अपने मीत के लिए खाने-पहनने और पढ़ाई-लिखाई के सारे खर्चे की व्यवस्था अपने पिता जी से करा ली ⃒
दूसरा बालक कुछ वर्षों तक पढ़-लिख लेने के पश्चात् अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा, किन्तु अपने मीत को वे सारे खर्च दिलाता रहा, जिससे उसका गरीब मीत निरंतर प्रगति करता रहा ⃒ आगे चलकर वह गरीब बालक राजनीति, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास, साहित्य, ज्योतिष आदि अनेक विद्याओं का अध्ययन करके अत्यधिक विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित हुआ ⃒उसकी ख्याति से प्रभावित होकर उस राज्य के राजा ने अपने दरबार में उसका स्वागत किया और उसकी विद्वता पर मुग्ध होकर उसे अपना मंत्री बना लिया ⃒इसके विपरीत व्यापारी घोर संकटों से घिर गया ⃒ अचानक एक रात डाकुओं ने उसकी सारी संपत्ति लूट ली और जान बचाने के लिए जब उसके परिवार के लोग घर के बाहर निकल आए, तो डाकुओं ने उसका घर जला दिया ⃒ इसी शोक में व्यापारी स्वर्ग सिधार गया ⃒ अंततः उसका पुत्र दाने-दाने का मोहताज हो गया अर्थात् अत्यंत गरीब हो गया ⃒ परिवार के भरण-पोषण के लिए उसके सामने भीख माँगने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह गया ⃒
एक दिन राजधानी के मार्ग पर अपने पुराने मीत को फटेहाल भिक्षुक के रूप में देख मंत्री को बहुत दुःख हुआ ⃒ मंत्री अपने मीत को घर ले गया और मीत के परिवार को भी बुलवा लिया ⃒ कुछ दिन तक अपने साथ ही सबको खिलाता-पिलाता रहा ⃒ एक दिन व्यापरी मीत मंत्री से बोला – इस तरह हम कब तक तुम्हारे मेहमान बने रहेंगे ! मुझे कुछ धन उधार दे दो, मैं फिर से व्यापार शुरू करना चाहता हूँ ⃒ लेकिन राज्य का मंत्री होते हुए भी उसने इतना धन एकत्र नहीं किया था, जिससे वह अपने मीत की तत्काल मदद कर सके ⃒ तत्पश्चात् मंत्री ने व्यापारी मीत से कहा कि विपत्ति में घबराते नहीं मीत ! हमारे महाराज प्रत्येक पूर्णिमा के दिन याचकों को दान देते हैं ⃒ जो याचक सबसे पहले सामने आता है, महाराज उसे सौ मुद्राएँ देते हैं ⃒ इस तरह दो दिन बाद आने वाली निकट पूर्णिमा के दिन मंत्री की व्यवस्था से व्यापारी मीत को सौ मुद्राएँ मिल गई ⃒ वह प्रसन्न होकर घर लौटा ⃒ उसके पास व्यापार का अनुभव तो था ही, उसने अपनी पूरी शक्ति और बुद्धि व्यापार में झोंक दी ⃒ परिणाम यह निकला कि उसका व्यापार चमक उठा ⃒
मंत्री संपन्न होते हुए भी सुखी नहीं था, जिसका कारण था कि उसका बेटा बहुत नालायक था ⃒ मंत्री की बहुत कोशिशों के बाद भी वह पढ़-लिख नहीं पा रहा था और न ही किसी सिखाई हुई विद्या को वह स्मरण रख पा रहा था ⃒ एक रोज मंत्री अपने बेटे के साथ अपने व्यापारी मीत से मिलने गया ⃒ व्यापारी मीत लखपति हो गया था ⃒ उसने मंत्री का शानदार स्वागत किया ⃒ दोनों दोस्तों की आपसी बात-चीत के दौरान व्यापारी मीत ने मंत्री के बेटे के बारे में जानकारी प्राप्त कर ली ⃒ तभी व्यापारी मीत ने मंत्री के पुत्र को संबोधित करते हुए कहा कि बेटे ! तुम जानते हो, पाँच वर्ष पहले मेरा क्या हाल था ? तो उसके जवाब में मंत्री के बेटे ने बोला कि जी जानता हूँ, आप एक दरिद्र याचक थे ⃒ तत्पश्चात पुनः व्यापारी कहता – देखो, तुम्हारे पिता की सहायता से मैंने एक सौ मुद्राएँ राजा से याचक बनकर लीं ⃒ उन मुद्राओं से मैंने पुनः व्यापार आरंभ किया ⃒ व्यापार में मैंने शक्ति, भक्ति और बुद्धि लगाई ⃒ लाभ होने लगा ⃒ हर बार मैं लाभ के दो भाग कर देता और कहता – यह मेरा है, यह मेरे मीत का ⃒ मैं दोनों भागों को अलग-अलग व्यापार में लगाता ⃒ इस तरह व्यापार बढ़ता गया, लाभ बढ़ता गया ⃒ अगर इसी तरह तुम भी एक-एक विद्या और गुण को अपना समझ लो और अपने लिए तथा अपने मित्रों के लिए दिल और दिमाग़ में रखते जाओ तो छ वर्षों में तुम क्या बन जाओगे ? व्यापारी की बात सुनकर मंत्री का पुत्र तुरंत बोला कि मैं ज्ञान और गुण का लखपति हो जाऊँगा ⃒ तभी व्यापारी उसे शाबाशी देते हुए कहता है कि हम सब लोग भी यही चाहते हैं कि तुम गुण का लखपति बन जाओ ⃒
तत्पश्चात्, मंत्री का पुत्र अपने पिता से आग्रह करने लगा कि आप जल्दी राजधानी चलिए, मैं आज से ही पढ़ाई में लग जाऊँगा ⃒ बेटे की बात सुनकर मंत्री समझ गया कि लड़के की बुद्धि खुल गई है ⃒ उसने मुस्कुराते हुए अपने मीत से विदा ली ⃒ लड़का मन लगाकर पढ़ने लगा और आने वाले समय में वह प्रकांड पंडित बन गया और आगे चलकर अपने पिता का उत्तराधिकारी बना ⃒
लेखक कहते हैं कि गुरु जी यह कहानी सबको सुनाते ⃒ विशेष रूप से उन शिष्यों को जिनका मन पढ़ाई में लगता ही नहीं था ⃒ इस कहानी को सुनकर सभी बच्चों में पढ़ाई के प्रति उत्साह जाग जाता था...||
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yah mera yah meet ka question answer
प्रश्न-1 – लेखक ने अपने शिक्षक को ‘हार्ड टास्क मास्टर’ क्यों कहा है ?
उत्तर – लेखक के शिक्षक बालकों को कठोर अनुशासन के साथ पढ़ाई-लिखाई करवाते थे ⃒ परिणाम यह होता था कि सभी विद्यार्थी प्रतिदिन अपना पाठ तैयार कर लिया करते थे ⃒ इसलिए लेखक ने अपने शिक्षक को ‘हार्ड टास्क मास्टर’ कहा है ⃒
प्रश्न-2 – मित्र की निर्धनता देखकर धनी मित्र ने पिता से क्या कहा ?
उत्तर – मित्र की निर्धनता देखकर धनी मित्र ने पिता से कहा कि यदि गरीबी के कारण मेरा मीत पढ़-लिख नहीं सकता तो मैं भी नहीं पढूँगा, उसकी तरह मैं भी अनपढ़ और गरीब ही रहूँगा ⃒
प्रश्न-3 – निर्धन मित्र राजमंत्री के पद तक कैसे पहुँचा ?
उत्तर – निर्धन मित्र अपने धनी मित्र से आर्थिक मदद पाकर निरंतर प्रगति करता रहा ⃒ आगे चलकर वह गरीब बालक राजनीति, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास, साहित्य, ज्योतिष आदि अनेक विद्याओं का अध्ययन करके अत्यधिक विद्वान के रूप में प्रतिष्ठित हुआ ⃒उसकी ख्याति से प्रभावित होकर उस राज्य के राजा ने अपने दरबार में उसका स्वागत किया और उसकी विद्वता पर मुग्ध होकर उसे अपना मंत्री बना लिया ⃒
प्रश्न-4 – व्यापारी पुत्र द्वारा मंत्री-पुत्र को दी गई शिक्षा का क्या परिणाम निकला ?
उत्तर – व्यापारी पुत्र द्वारा मंत्री-पुत्र को दी गई शिक्षा का यह परिणाम निकला कि मंत्री का पुत्र मन लगाकर पढ़ने लगा ⃒ वह अनेक प्रकार की विद्या ग्रहण करके अच्छे गुणों से संपन्न होता गया ⃒ तत्पश्चात् वह भी प्रकांड विद्वान् बना और आगे चलकर अपने पिता का उत्तराधिकारी बना ⃒
प्रश्न-5 – व्यापारी मित्र का व्यापार नष्ट कैसे हो गया ?
उत्तर – डाकुओं द्वारा व्यापारी मित्र की सारी संपत्ति लूट ली गई तथा जान बचाने के लिए जब उसके परिवार के लोग घर से बाहर निकल आए, तो डाकुओं ने उसका घर जला दिया ⃒ इसी शोक के कारण उसके पिता जी की मृत्यु हो गई और व्यापरी का सब कुछ नष्ट हो गया ⃒
प्रश्न-6 – मंत्री ने अपने मित्र की सहायता कैसे की ?
उत्तर – जब मंत्री का मित्र एक भिक्षुक के रूप में राजधानी के मार्ग पर पड़ा था, तब मंत्री ने उसे और उसके परिवार को अपने घर लाकर मान-सम्मान से रखा ⃒ तत्पश्चात् मंत्री ने अपने मित्र को राजा से धन प्राप्ति का उपाय बताकर धन दिलवाया ⃒ अतः इस प्रकार मंत्री ने अपने मित्र की सहायता की ⃒
प्रश्न-7 – इस कहानी का मुख्य संदेश क्या है ?
उत्तर – इस कहानी से यह संदेश मिलता है कि सच्चा मित्र या साथी वही है जो मुसीबत के समय अपने मित्र की तन-मन-धन से मदद करे ⃒
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प्रश्न-8 – कहानी के आधार पर हाँ / नहीं लिखिए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है -
• दो बालकों में गहरी मित्रता थी ⃒ (हाँ)
• बेचारे व्यापारी के भाग्य पर वज्रपात हो गया ⃒ (हाँ)
• मंत्री ने मीत के परिवार को भी बुलावा भेजा ⃒ (हाँ)
• मंत्री व्यापार में लग गया ⃒ (नहीं)
• मंत्री के बेटे को राजा ने समझाया ⃒ (नहीं)
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भाषा से ...
प्रश्न-9 – दिए गए शब्दों के समानार्थक शब्द पाठ से ढूँढ़कर लिखिए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है -
• उन्नति – प्रगति
• अतिथि – मेहमान
• मदद – सहायता
• शिक्षक – गुरु
प्रश्न-10 – दिए गए शब्दों के बहुवचन लिखिए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है -
• सुविधा – सुविधाएँ
• योजना – योजनाएँ
• महिला – महिलाएँ
• कला – कलाएँ
• लता – लताएँ
• व्यवस्था – व्यवस्थाएँ
• मुद्रा – मुद्राएँ
• कथा – कथाएँ
• विद्या – विद्याएँ
प्रश्न-11 दिए गए शब्दों के वर्ण-विच्छेद कीजिए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है -
• पूर्णिमा – प् + उ + र̖ + ण̖ + इ + म̖ + आ
• व्यापारी – व् + य̖ + आ + प् + आ + र̖ + ई
• मुद्राएँ – म̖ + उ + द् + र̖ + आ + एँ
प्रश्न-12 – संयुक्त व्यंजनों (वर्णों) के रूप समझकर शब्द बनाइए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है -
• व् + य = व्य – व्यवस्था , व्यवहार , व्यस्त
• द् + र = द्र – भद्र , कद्र , आद्र
• त् + य = त्य – त्याग , सत्य , कृत्य
• क् + त = क्त – सूक्ति , मुक्ति , भक्ति
प्रश्न-13 – रेखांकित संज्ञा शब्दों के भेद लिखिए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है -
• लोगों का काम ही बुराई करना है ⃒ (जातिवाचक संज्ञा)
• दूसरा लड़का धनी व्यापारी का पुत्र था ⃒ (जातिवाचक संज्ञा)
• श्रीकृष्ण के मित्र सुदामा थे ⃒ (व्यक्तिवाचक संज्ञा)
• पुत्र अध्ययन में चौगुने उत्साह से लग गया | (भाववाचक संज्ञा)
• डाकुओं ने सारी संपत्ति लूट ली ⃒ (जातिवाचक संज्ञा)
• दोनों बालकों में गहरी मित्रता थी . (भाववाचक संज्ञा)
• गौतम बुद्ध ने डाकू को सुधारा ⃒ व्यक्तिवाचक संज्ञा)
प्रश्न-14 – रिक्त स्थानों में सही सर्वनाम लिखिए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है -
• उसकी तरह ...मैं... भी अनपढ़ और दरिद्र रहूँगा ⃒
• ...मैंने... मित्र के सारे खर्चे की व्यवस्था अपने पिता से करवा ली ⃒
• .....वह..... उसे घर ले आया ⃒
• .......तुम..... अपने पिता के विषय में बताओ ⃒
• मंत्री को मित्र की याद आई ⃒ .....वह.... उससे मिलने उसके नगर पहुँचा ⃒
• ....मुझे.... गणित विषय बहुत प्रिय है ⃒
प्रश्न-15 – अनेकार्थक शब्दों का अर्थ के अनुसार वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है -
• नाना – (1) माँ के पिता – रोहन के नाना बहुत बूढ़े हो चुके हैं ⃒
(2) घर में खाने को नाना प्रकार की चीज़ें हैं ⃒
• मत – (1) किसी को भी अंदर मत आने देना ⃒
(2) मेरा मत है कि तुम वापस चले जाओ ⃒
• लाख – (1) वहाँ पर लाखों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे ⃒
(2) लाख का इस्तेमाल चूड़ियाँ बनाने के लिए की जाती है ⃒
प्रश्न-16 – इन मुहावरों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए –
उ. निम्नलिखित उत्तर है -
• हाथ बँटाना – हमें एक-दूसरे का हाथ बँटाना चाहिए ⃒
• दाने-दाने को मोहताज़ होना – अब तो उसके दिन ऐसे आ गए हैं दाने-दाने का मोहताज़ हो गया है ⃒
• मुँह लटकाना – मन अनुकूल काम न होने के कारण कूकी का मुँह लटक गया ⃒
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यह मेरा यह मीत का कहानी के शब्दार्थ
• स्मरण – याद
• युक्ति – उपाय, तरीका
• मीत – मित्र, सखा, दोस्त
• दरिद्र – गरीब, निर्धन
• व्यवस्था – प्रबंध
• व्यवसाय – काम-धंधा
• हाथ बंटाने – कार्य में सहायता करना
• नाना – अनेक
• प्रकांड – अत्यधिक
• ख्याति – प्रसिद्धि, शोहरत
• वज्रपात – भारी मुसीबत
• अकस्मात – अचानक
• स्वर्ग सिधार गया – मृत्यु हो जाना
• दाने-दाने का मुहताज – बहुत गरीब होना
• तत्काल – तुरंत
• याचक – माँगने वाला, भिक्षुक, भिखारी
• संपन्न – धन-धान्य से पूर्ण
• बुद्धि खुल गई – बात समझ आना
• चौगुने – चार गुणा
• काल्पनिक – जो केवल कल्पना में हो
• उत्तराधिकारी – वारिस
• सहपाठियों – साथ पढ़ने वाले .
© मनव्वर अशरफ़ी
shandaar
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