आद्रा कहानी आद्रा कहानी की समीक्षा आद्रा कहानी का उद्देश्य aadra kahani mohan rakesh आर्दा कहानी का सारांश आर्द्रा मोहनराकेश Aadra Mohan Rakesh Hindi
आद्रा कहानी मोहन राकेश
आद्रा कहानी आद्रा कहानी की समीक्षा आद्रा कहानी का उद्देश्य aadra kahani mohan rakesh aadra kahani Mohan Rakesh ki Kahani Aadra summary आर्दा कहानी का सारांश आर्द्रा मोहनराकेश Aadra Mohan Rakesh Hindi Stories - आर्द्रा कहानीकार मोहन राकेश की बहुचर्चित कहानियों में से एक है। इसमें उस भारतीय माँ की कहानी है जो शास्वत माँ है। उसके ह्रदय में समानता का भाव है। उसके दो पुत्र हैं। दोनों को वह समान भाव से प्यार करती हैं। वह इस बात की उपेक्षा करती हैं कि कौन अच्छा है और कौन बुरा। उसका वात्सल्यमयी हाथ सदा दोनों पुत्रों के सिरों पर है। ममता की साक्षात प्रतिमा वह अपने सफल और असफल दोनों पुत्रों को समान प्यार करती है। कहानी तत्वों की दृष्टि से आद्रा का विश्लेषण निम्नलिखित रूपों में कर सकते हैं -
आद्रा कहानी का सारांश
कथावस्तु की दृष्टि से यह कहानी एक प्रभावोत्पादक भावप्रधान कहानी है। वातावरण को सजीव बनाये रखना ही कहानीकार का मुख्य लक्ष्य रहा है और इसमें संदेह नहीं है कि लेखक का प्रयत्न आंशिक रूप से सफलता के समीप है। क्रमबद्धता आर्द्रा की कथा योजना की उल्लेखनीय विशेषता है। बचन का अपने छोटे पुत्र बिन्नी के यहाँ रहना ,अपने बड़े पुत्र लाली के स्वास्थ्य के लिए चिंतित रहना ,लाली के यहाँ रहते हुए उसका फिर अपने छोटे पुत्र बिन्नी के लिए चिंतित रहना और बिन्नी के पास बम्बई चल देना ,बस ये तो इसके कथानक की मुख्य घटनाएँ हैं। प्रसंगतः ये सभी घटनाएं स्पष्ट सुसंबद्ध है ,क्रम से आई हैं। अतः कथानक संगठन की इस सुसम्बद्धता ने कहानी के प्रभाव को बनाये रखने का प्रयत्न किया है। वस्तुतः सामाजिक यथार्थ की आधार शिला पर लिखित यह कहानी जीवन सन्दर्भों से परिपूर्ण है। अतः उसके सहजता और स्वाभाविकता का सफल निर्वाह हुआ है। कहानीकार ने कुछ भी आरोपित नहीं किया है। सम्पूर्ण कहानी एक तरल प्रभाव सी बन पड़ी है।
आर्द्रा कहानी के प्रमुख पात्र
आर्द्रा एक चरित्र विश्लेषणात्मक कहानी है। इसमें कहानीकार ने एक सरल ह्रदय माता के मन में उठने वाले ममत्व और स्नेह को पूरी कुशलता के साथ चित्रित किया है। इस प्रकार की कहानियों में कहानीकार ने पात्रों के मनोभावों को निकट से पढने का सफल प्रयास किया है। मनोवैज्ञानिक ढंग का विश्लेषण भी किया है। आर्द्रा में राकेश जी ने बचन के मातृहृदय की सूक्ष्म से सूक्ष्म रेखाओं का अंकन किया है। इस कहानी में कहानीकार ने मनोवैज्ञानिक विश्लेषण,घात -प्रतिघातों ,द्वंदों और आंतरिक प्रवृत्तियों की व्याख्या की है। इस दृष्टि से मातृहृदय का एक भव्यचित्र दृष्टव्य है -
'चूल्हे से उतरती हुई रोटी के लिए जब वे आपस में छीना-झपटी करने लगते, तो उसे आन्तरिक प्रसन्नता का अनुभव होता था। परन्तु प्राय: उसकी दाल की पतीली खाली हो जाती थी और यह देखकर कि उन लोगों की खाने की कामना अभी बनी हुई है, उसे घर का अभाव अपना अपराध प्रतीत होता था। ऐसे समय उसकी आँखों में नमी छा जाती और वह ध्यान बँटाने के लिए अन्य काम करने लगती। वे लोग रुखी नमकीन रोटियों की फ़रमाइश करते तो वह चुपचाप बना देती, परन्तु उन्हें खिलाने का उसका सारा उत्साह समाप्त हो चुका होता।
स्वाभाविकता आर्द्रा कहानी के चरित्रांकन की प्रमुख विशेषता है। इस कहानी के सभी पात्र - लाली हो चाहे बिन्नी या बचन - सहज स्वाभाविक हैं। ये सभी यथार्थ जीवन के सुपरिचित मानव जैसे हैं और यही कारण है कि उनमें पर्याप्त प्रभावोत्पादकता विद्यमान है।
कथोपकथन
आर्द्रा कहानी के कथोपकथन सोउद्देश्य हैं और पैने भी है। इसके कथोपकथन पात्रों के चरित्रों की बारीकियों का विश्लेषण करते हैं और साथ ही साथ कहानी के कथानक को गति भी देते हैं। चरित्रांकन की दृष्टि से निम्नलिखित कथोपकथन देखिये -
''सोने से पहले उसके सिर में बादामरोगन डाल दिया करो,'' वह कहती।
''मैं कई बार कहती हूँ, पर वे डलवाते ही नहीं,'' कुसुम जैसे रटा-रटाया उत्तर देती।
''मुझे बुला लिया करो, मैं आ कर डाल दूंगी''
''डालने को नौकर है मगर वे डलवाते ही नहीं''
इस प्रकार हम देखते हैं कि आर्द्रा में आये हुए कथोपकथन आकर्षक सजीव,कौतुहलबर्धक ,पात्रोचित ,संक्षिप्त और उद्देश्यपूर्ण हैं।
देशकाल और वातावरण
आर्द्रा कहानी का वातावरण सामाजिक और पारिवारिक परिवेश के बीच बिखरा हुआ है जो पूर्णरूपेण यथार्थवादी है। कहानीकार ने अंतर्मन के चित्रण के माध्यम से भी वातावरण को उभारने का प्रयास किया है। इसमें लबें चौड़े दृष्योंन की गुंजाईश नहीं है ,पर कहानीकार ने प्रसंग और परिस्थिति पर प्रकाश डालने के लिए कतिपय स्वाभाविक दृश्यों की योजना की है।
आद्रा कहानी की भाषा शैली
आर्द्रा कहानी की भाषा सहज ,स्वाभाविक तथा प्रवाहमयी है। वर्णनात्मक तथा नाटकीय शैली का प्रयोग स्वाभाविक रूप में हुआ है। यत्र तंत्र आलंकारिक और विश्लेषण शैली का प्रयोग हुआ है।
आद्रा कहानी का उद्देश्य
प्रत्येक कहानी के पीछे एक उद्देश्य छिपा रहता है। इस कहानी में कहानीकार ने मध्यवर्गीय समाज की एक ऐसी माता - बचन की कहानी कही है जो अपने एक समृद्ध पुत्र लाली और एक गरीब ,बेकार पुत्र बिन्नी के बीच अत्यंत आर्द्र जीवन जी रही है। उसका सच्चा यथार्थ चित्रण ही यहाँ कहानीकार का उद्देश्य है। उद्देश्य की चर्चा करते हुए एक समीक्षक ने लिखा है कि आर्द्रा में कहानीकार ने यथार्थवादी चित्रण किया है। यथार्थ की बहुत ही सतहें होती है ,हो सकती हैं पर श्री मोहन राकेश ने सिर्फ सामान्य यथार्थ ही पेश किया है। इसमें न तो लिजलिजा यथार्थ है और न पाठक को चौकानेवाला आदर्श। यह हमारे जीवन का यथार्थ है जो हमारे मध्यमवर्गीय जीवन में देखने को मिलता है और जिसे कहानीकार ने खूबी से पकड़ा है।
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