आचार्य चतुरसेन शास्त्री की जयंती हिन्दी साहित्य के एक प्रमुख गौरवरत्न ‘आचार्य चतुरसेन शास्त्री’ को उनकी 128 वीं जयंती पर सादर हार्दिक नमन I
आचार्य चतुरसेन शास्त्री की जयंती
अपनी रचनाओं को इतिहास, राजनीति, धर्मशास्त्र, समाजशास्त्र, युगबोध, दीन-दुखियों के प्रति करुण भाव से सम्पृक्त करने वाले बड़े ही भावुक, संवेदनशील और स्वाभिमानी प्रकृति व्यक्तित्व सम्पन्न हिन्दी साहित्य के एक प्रमुख गौरवरत्न ‘आचार्य चतुरसेन शास्त्री’ को उनकी 128 वीं जयंती पर सादर हार्दिक नमन I
आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त 1891 को उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले के एक छोटे से गाँव औरंगाबाद चंडोक में हुआ था। उनका बचपन का नाम चतुर्भुज था। चतुर्भुज की शिक्षाएँ सिकंद्राबाद के एक स्कूल से होती हुई जयपुर के संस्कृत कॉलेज से आयुर्वेद और शास्त्री में आयुर्वेद की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने आयुर्वेद विद्यापीठ से ‘आयुर्वेदाचार्य’ की उपाधि भी प्राप्त की थी।
अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद चतुरसेन शास्त्री आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में अपना अभ्यास शुरू किया I इस कार्य में वह दिल्ली, लाहौर, अजमेर आदि स्थानों पर भटकते रहे I आयुर्वेदिक चिकित्सक के कार्य में उन्हें कोई विशेष सफलता न मिल पाई I लेकिन आयुर्वेदिक औषधालयों में काम करते हुए, अपनी किशोरावस्था से ही हिन्दी में कहानी और गीतिकाव्य लिखने की प्रवृति को मांजना शुरू किया था और जल्द ही अपने आप को एक कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में स्थापित कर चुके थे। उन्होंने जीवन के संघर्षो के बीच अपनी रचनाधर्मिता जारी रखी। बाद में उनका साहित्य-क्षितिज फैलता गया और वे उपन्यास, नाटक, जीवनी, संस्मरण, इतिहास तथा धार्मिक विषयों पर लिखने लगे।
चतुरसेन शास्त्री की पहली रचना ‘आभा’ को माना जाता है जबकि उनका पहला उपन्यास ‘हृदय-की-परख’ 1918 में प्रकाशित हुआ था, जिसमें उन्हें कोई विशेष पहचान नहीं मिल पाई थी। उनकी दूसरी पुस्तक ‘सत्याग्रह और असहयोग’ 1921 में प्रकाशित हुई थी। चुकी सत्याग्रह और असहयोग तत्कालीन राजनीति मंच के विशिष्ट व्यक्तित्व महात्मा गाँधी के लड़ाई के अस्त्र होने के कारण यह रचना काफी चर्चित हुई और इसने लोगों का ध्यान इनकी ओर आकर्षित किया I
आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने 2 फरवरी 1960 को अपनी अंतिम सांस ली।
आचार्य चतुरसेन शास्त्री एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे I अतः इनके लेखन-क्रम को साहित्य की किसी एक विशिष्ट विधा में बाँधा नहीं जा सकता। इनकी रचनाओं में प्राचीन काल के आदर्शवादी के साथ ही ग्रामीण, नगरीय, राजसी जीवनशैली की व्यापक झलक देखने को मिलती है। उन्होंने उपन्यास, नाटक, जीवनी, संस्मरण, इतिहास, चिकित्सा तथा धार्मिक विषयों से सम्बन्धित पचास वर्षों के अपने लेखकीय जीवन में 32 उपन्यास के साथ 450 से अधिक कहानियाँ और अनगिनत विविध विषयक रचनाओं से हिन्दी साहित्य की सम्पदा को श्रीवृद्धि किया है I जिनमें - वैशाली की नगरवधू , सोमनाथ, वयंरक्षामः, गोली, सोना और खून (तीन खंड), रक्त की प्यास, हृदय की प्यास, अमर अभिलाषा, अपराजिता, धर्मपुत्र (उपन्यास) राजसिंह, छत्रसाल, गांधारी, श्रीराम, अमरसिंह, क्षमा (नाटक), हृदय की परख, अंतस्तल, अनुताप, माँ गंगी, अनूपशहर के घाट पर, चित्तौड़ के किले में, स्वदेश (गद्यकाव्य) मेरी आत्मकहानी (आत्मकथा), हिन्दी भाषा और साहित्य का इतिहास (सात खंड), रजकण, वीर बालक, मेघनाद, सिंहगढ़ विजय, दुखवा मैं कासों कहूं सजनी, सोया हुआ शहर, धरती और आसमान, आरोग्य शास्त्र, अमीरों के रोग, छूत की बीमारियां, सुगम चिकित्सा, सत्याग्रह और असहयोग, गांधी की आंधी, मौत के पंजे में जिन्दगी की कराह, सत्यव्रत हरिश्चंद्र, अष्ट मंगल (एकांकी संग्रह ) आदि प्रसिद्ध हैं।
आचार्य चतुरसेन शास्त्री के उपन्यास ‘धर्मपुत्र’ को केंद्र कर हिंदी फिल्म, धर्मपुत्र (1961) बना और इसने हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। वह बचपन से ही आर्य समाज से प्रभावित थे I अतः उन्होंने अनाज मंडी शाहदरा के पास का अपना का घर ‘दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी बोर्ड’ को दान कर दिया था, जिसमें आजकल एक विशाल लाइब्रेरी है।
आचार्य चतुरसेन शास्त्री का व्यक्तित्व एक राष्ट्रवादी का रहा था I भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू उनके मित्र थे, लेकिन उन्होंने उनके धर्मनिरपेक्ष भारत के प्रस्ताव का खुलकर विरोध किया। इसके लिए बाद में नेहरू जी ने उनकी रचनाओं पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की और आचार्य चतुरसेन पर हिंदू और मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ाने का भी आरोप लगाया था।
अपनी समर्थ भाषा शैली के कारण आचार्य चतुरसेन शास्त्री जी ने अद्भुत लोकप्रियता हासिल करते हुए एक जन साहित्यकार के गौरवशाली पद पर सदैव आसीन रहेंगे I
श्रीराम पुकार शर्मा,
24, बन बिहारी बोस रोड,
हावड़ा – 711101,
(पश्चिम बंगाल)
सम्पर्क सूत्र – 9062366788, ई-मेल सूत्र – rampukar17@gmail.com
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