जमींदोज तरन्नुम ने पहली मरतबा एक अजीब सा लड़का देखा था। अच्छी कद काठी थी लेकिन अत्यंत दुर्बल काया वाला लड़का था। वह लड़का आज ही नियुक्त किया गया था उसी व
जमींदोज
तरन्नुम ने पहली मरतबा एक अजीब सा लड़का देखा था। अच्छी कद काठी थी लेकिन अत्यंत दुर्बल काया वाला लड़का था। वह लड़का आज ही नियुक्त किया गया था उसी विभाग में जहाँ तरन्नुम भी नियुक्त थी। लड़के का नाम आरिफ़ था। पूरे संगठन में उसकी चर्चा ऐसे हो रही थी जैसे शादी के लिए कोई लड़का ढूंढने के बाद रिश्तेदारी में उसके तारीफों के पुल बाँधें जाते हैं। और उसकी माँगें ठीक उसी तरह मानी जा रही थी जैसे कोई दामाद वर्षों के बाद ससुराल आया हो और ससुराली उसकी ख़ातिरदारी में कसर न रखना चाहते हो। तरन्नुम यह सब देखकर स्तब्ध थी कि आखिर इस सब के पीछे का कारण क्या था। शायद वो निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं को कभी समझ ही न सकी हो कि अपनी ज़रुरत होने पर नियोक्ता झुककर ही नहीं, दण्डवत लेटकर भी नमस्कार कर लेते हैं कर्मचारी को और काम निकलने के बाद उसी कर्मचारी के पैर छूने के बहाने पैर पकड़ कर खींच कर उन्हें गिरा भी देते हैं। आरिफ़ भी ऐसे ही समय उस संगठन से जुड़ा था जब उस संगठन को उसकी बहुत ज़रुरत थी और वो आवभगत उसी का परिणाम था।
आरिफ़ यूँ तो बहुत शांत स्वभाव का और मस्ती मज़ाक वाला शख्स था लेकिन अत्यन्त क्रोधी भी था। शायद अत्यंत क्रोधी प्रवृत्ति उसके स्वच्छ ह्रदय और निर्मल मन का परिचायक थी। लड़कियों से कम बात करना थोड़ा दूर दूर रहना आरिफ़ के स्वभाव में था या कहिए नया मुलाज़मीन था तो बाकी पुराने मुलाज़मीनों से थोड़ा फ़ासला बना रहा था। तरन्नुम भी बिना आरिफ़ को एहसास करवाए उसकी एक एक गतिविधि पर नज़रे रखी हुई थी। आरिफ़ इस सब से बेपरवाह अपने कामों में डूबा रहता था। आरिफ़ की बातें भी बड़ी अटपटी होती थी वह खुद को एक समाज सेवक के तौर पर बताते हुए बड़े बड़े सरकारी अधिकारियों के ज़िक्र और मुलाक़ातों के वो दौर बताया करता था जब उन अधिकारियों को आरिफ़ ने आयना दिखाते हुए उन्हें सही राह पर लाया। लेकिन ये सब सुनकर जैसे बाकी पुराने मुलाज़मीन उसका मन ही मन मज़ाक उड़ाते थे, दूर बैठी तरन्नुम भी यह सोचती थी कि ये कैसे संभव है। आरिफ़ हमेशा पुराने मुलाज़मीनों को पूरा सम्मान दिया करता था। कुर्सी छोड़कर कर खड़े हो जाना, या अपनी कुर्सी सामने वाले को दे देना उसके विचारों का परिणाम था। और यही वो लम्हा था जब तरन्नुम के मन में आरिफ़ को, आरिफ़ के परिवेश और जीवन को जानने की ख़्वाहिश हुई।
इसी बीच तरन्नुम का जन्मदिन (सालगिरह) आया। उस दिन उसके विभाग में उस वक़्त तक केवल तरन्नुम और आरिफ़ ही आए थे जब आरिफ़ ने बड़े शालीनतापूर्ण ढंग से उसे सालगिरह की मुबारक़बाद दी। तरन्नुम ने भी मुस्कुरा कर आरिफ़ का शुक्रिया अदा किया। तरन्नुम उस मुबारकबाद के बाद से आरिफ़ को मन से एक अच्छा दोस्त मान चुकी थी। लेकिन आरिफ़ इस सब से भी बेपरवाह था। इसी बीच तरन्नुम को हैज़ आया। तरन्नुम बहुत दर्द में थी। आरिफ़ भी कोई छोटा नहीं था जो ये समझ न सके। आरिफ़ तरन्नुम को बोला मोहतरमा आप बैठिये आपके जो भी काम है मुझे बोलिये मैं करूँगा। आरिफ़ ने ये सब महज़ मानवता में कहा था बाकि उसका इस सब में कैसा कोई भी स्वार्थ नहीं था। लेकिन तरन्नुम के ज़ेहन में आरिफ़ की ये भलाई बखूबी घर कर गई थी।
तरन्नुम की अम्मी का इंतेक़ाल हो चुका था और अब्बा सरकारी मुलाज़मीन थे। वहीँ आरिफ़ की अम्मी घरेलू महिला और अब्बा वज़ीफ़ा याब मुलाज़िम, सेवानिवृत्त पेंशनर, थे। इसी बीच ईद आई। तरन्नुम ने अपनी अम्मी को याद करते हुए सूरह अल बक़राह की आयत 22-29 जिसमें, "सर्व साधारण लोगों को अपने पालनहार की आज्ञा का पालन करने के निर्देश दिये गये है। और जो इस से विमुख हों उन के दुराचारी जीवन और उस के दुष्परिणाम को, और जो स्वीकार कर ले उन के सदाचारी जीवन और शुभपरिणाम को बताया गया है" इंटरनेट के माध्यम से सांझा करते हुए लिखा कि आप बहुत याद आती हो अम्मी, अब तो हमें हमारी साँसों का भी वज़न जिंदगी पर जान पड़ता है। आरिफ़, धर्म से बेशक इस्लामिक था, लेकिन उसकी उतनी ही रूचि और श्रद्धा हिन्दू धर्म में भी थी अतः आरिफ़ ने तरन्नुम को उत्तर दिया, "नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥" आगे लिखा मोहतरमा आप व्यर्थ चिंतित हो रही हो आपकी अम्मी आपके पास ही हैं। अब तो तरन्नुम ने मन ही मन आरिफ़ को एक अच्छे दोस्त से ऊपर मान लिया। तरन्नुम भी अब सामने से आरिफ़ से गुफ़्तगू करने लगी और ये दौर ऐसे ही परवान चढ़ता रहा। आरिफ़ भी अब तरन्नुम के साथ एक दोस्त की तरह रहने लगा था।
इसी बीच वो दौर आया कि तरन्नुम और आरिफ़ वापस अपने विभाग में अकेले बैठे थे, कि तरन्नुम ने आरिफ़ से पूछा कि अगर वह बोले तो आरिफ़ कितना सहज़ महसूस करेगा तरन्नुम को गले लगाने में। आरिफ़ भौचक्का था कि भला ये कैसा सवाल है। ऐसा सवाल पहले किसी ने उससे नहीं किया था और फिर तरन्नुम तो एक लड़की है वो भी पर्दानशीं। पर आरिफ़ को अब तरन्नुम के इरादों पर शक हो रहा था। तरन्नुम ने आरिफ़ की घोर चुप्पी तोड़ते हुए कहा बताइये जनाब, गुस्ताख़ी माफ़ हो, लेकिन अगर हम चाहें तो क्या आप हमसे गले मिलेंगे। आरिफ़ ने कहा ठीक है मोहतरमा। और आरिफ़ की इजाज़त के साथ तरन्नुम ने आरिफ़ को कस कर गले लगा लिया और कान में चुपचाप बोली, "हम आपसे बेइन्तेहाँ मोहब्बत करते हैं और आपसे निक़ाह करना चाहते हैं।" आरिफ़ तरन्नुम को झिटकते हुए बोला हमें वक़्त चाहिए और कहते हुए विभाग से बाहर चला गया। दो दिन दोनों के बीच बातें होना भी कम हो गई। तरन्नुम को लगने लगा कि शायद उसने इज़हार-ऐ-हाल करके आरिफ़ से अपनी दोस्ती के रिश्ते को भी तबाह कर दिया। वहीँ आरिफ़ इसी पशोपेश में था कि ये रिश्ते की पेशकश क़ुबूल करनी चाहिए या नहीं। हालाँकि आरिफ़ ये भी नहीं चाहता था कि जिस गुमसुम तरन्नुम को उसकी माँ के इंतेक़ाल के बाद आज उसने वापस हँसना सिखाया वो उसी ग़म के साए में वापस न चली जाए। कहीं वापस ज़िंदा लाश न बन जाए या कुछ उल्टा सीधा क़दम न उठा बैठे। पर आरिफ़ को अब भी उस लम्हें पर भरोसा नहीं आ रहा था। आखिर था क्या आरिफ़ के पास? न तो कोई अथाह धन दौलत थी, न जिस्मानी खूबसूरती और नौकरी भी बहुत साधारण सी। अब ऐसे में तरन्नुम ने आखिर क्या देखा जिस पर ऐतबार करके यूँ इज़हार-ऐ-दिल कर दिया। फिर भी अगले दिन आरिफ़ पहले की भाँति ही तरन्नुम से बातें करने लगा और तरन्नुम के उस रिश्ते की पेशकश को परवर्दिगार की उपस्तिथि में क़ुबूल कर लिया। दिन-ब-दिन उनकी मोहब्बत और परवान चढ़ने लगी। तरन्नुम अपनी हर हद को भूल आरिफ़ के साथ दो जिस्म एक जान बनने की पहल कर बैठी। आरिफ़ इस मामले में पाक साफ़ था और उसका तरन्नुम की तरफ आकर्षण उसका जिस्म हरगिज़ नहीं था। इसलिए आरिफ़ ने तरन्नुम को रोकते हुए कहा कि ये सब निकाह से पहले करना नाजायज़ होगा; अपने अब्बा से बात करो हमारे रिश्ते की अगर वो मानते हैं तो दोनों परिवारों को मिलवाओ और रिश्ता पक्का करवाओ।
तरन्नुम को ये भरोसा था कि उसके अब्बा झट से इस रिश्ते को मान जाएंगे लेकिन उनकी क़िस्मत के रंग भी अलग थे। तरन्नुम की एक बहन भी थी 'नूर' जो उससे उम्र में बड़ी थी जिस लिए तरन्नुम उसे नूर बाजी कहती थी। नूर शादीशुदा थी और कुछ वक़्त के लिए अपने शौहर से दूर मायके आई हुई थी। नूर को तरन्नुम के चाल-चलन पर कुछ शक़ होने लगा था, उसे उम्मीद थी कि हो न हो एक उम्र का रोग जिसे मोहब्बत कहते हैं वो तरन्नुम को लग चुका है। जवानी के जोश में कहीं तरन्नुम कुछ ऐसा वैसा न कर दे इसलिए नूर अपने अब्बा को तरन्नुम के निकाह का मशविरा देती है। और इसी के साथ तरन्नुम के लिए लड़के देखने शुरू किये जाते हैं। तरन्नुम एक दिन खुद से अपने और आरिफ़ के रिश्ते से सम्बंधित सब नूर बाजी को बयां कर देती है। नूर, आरिफ़ से मिलने को ऊपरी मन से बेताब होना दिखाती है पर हकीकत इसके पूरी उलट होती है। नूर की मंशा दोनों का रिश्ता तबाह करने की ही होती है। लेकिन तरन्नुम तो ऊपरी मन को देखकर अपने निकाह के सपने लिए दोनों का एक दूसरे को तारुफ़ करवाती है, "बाज़ी, आप हैं जनाब आरिफ़। दिल के अच्छे इंसान। अच्छे समाज सेवी। और जनाब आरिफ़, आप हैं हमारी बाजी, हमारी बड़ी बहन, हमारी माँ जैसी, नूर" आरिफ़ नूर से कहता है आपसे मिलकर अच्छा लगा आइये तशरीफ़ रखिये। आरिफ़ से गुफ्तगू के दौरान नूर का इरादा वो भेद, वो बातें, जानने का था जिससे इस रिश्ते को ताबूत में बंद कर ज़मींदोज़ कर सके। उसके बाद से नूर खुद को आरिफ़ का अच्छा दोस्त दिखाने लगती है। आरिफ़ मन का साफ़ नूर के बहकावे में आकर उस पर भरोसा कर लेता है। इसी बीच नूर को ये भी पता चलता है कि आरिफ़ हर दूसरे दिन की अख़बार की सुर्खियां बनता है अपने इसी समाजसेवी वाली दिलचस्पी की वजह से और आए दिन पुलिस वाले उसके घर आते जाते रहते हैं। नूर ये सब जानकार तरन्नुम को आरिफ़ के साथ रिश्ते की न कर देती है और कारण बताती है, "जिस तरह आरिफ़ सरकारी और प्रशासनिक भ्रष्टाचार पर बेबाकी से प्रहार करते हैं आज नहीं तो कल कोई रंजिश में उनकी हत्या कर सकता है फिर निक़ाह के बाद तेरा और तेरे बच्चों का क्या होगा?" तरन्नुम लाख समझाने की कोशिश करती है लेकिन नूर उसकी एक सुनने को तैयार न होती है। तरन्नुम भी ये एलान कर देती है कि नूर बाजी अब तो मेरा निकाह केवल और केवल आरिफ़ से ही होगा। तरन्नुम के बाग़ी तेवर देख कर नूर मन ही मन आरिफ़ को ठिकाने लगाने का सोच लेती है।
तरन्नुम अपने और नूर के बीच हुए गर्मागर्मी को आरिफ़ के साथ साँझा नहीं करती है। हमेशा की तरह दोनों एक पार्क में मुख़ातिब होते हैं। तरन्नुम का दिल बहुत उदास होता है नूर से झगडे की वज़ह से। तरन्नुम आरिफ़ का हाथ थाम कर कहती है आज दिल बहुत मायूस है, जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि हम दोनों कहीं बिछड़ न जाए। आरिफ़ तरन्नुम को समझा रहा होता है कि ये सब नियति का काम है उसे करने दो कि अचानक एक तेज ध्वनि होती है और इसी के साथ तरन्नुम का पूरा शरीर ख़ून से रंग जाता है और उस पार्क में अफ़रा-तफ़री मच जाती है। तरन्नुम ज़ोर से चिल्लाना चाहती है लेकिन उसकी तमाम कोशिशों के बाद भी उसके मुँह से आवाज़ तक नहीं निकल पाती है। तरन्नुम की आँखों से आँसू बराबर बह रहे होते हैं और आरिफ़ की लाश सच में ज़मींदोज़ है। तरन्नुम मुँह घुमाती है तो सामने कोई और नहीं, उसकी अपनी बाजी, नूर बाजी, हाथ में बन्दूक लिए होती है, जिसे पुलिस गिरफ़्तार कर लेती है।
आरिफ़ हमेशा कहता था कि मैं ज़मीन से जुड़ा रहता हूँ और आज साक्षात आरिफ़ ज़मीन पर पड़ा था। हर दिन अच्छा काम करके न जाने कितनों के जीने का कारण बनने वाला आरिफ़ आज खुद मौत के गर्भ में जा चुका था। हर दूसरे दिन अपने अच्छे कामों से अख़बार की सुर्खी बनने वाला आरिफ़ कल अपनी हत्या के लिए सुर्ख़ियों में छाने वाला था। जिसे तमाम भ्रष्ट अधिकारी षड़यंत्र में फंसवा कर शिकस्त न दे सके, उसे दोस्ती में पीठ से खंजर घोंपा जा चुका था। वहीँ तरन्नुम अभी भी चीखना चाह रही थी, फूँट-फूँट कर रोना चाह रही थी लेकिन उसको इतना सदमा बैठ चुका था कि उसके मुँह से तमाम कोशिशों के बाद भी आवाज़ नहीं निकल पाती है। वह अंततोगत्वा पाग़ल हो जाती है। आरिफ़ का बचा शरीर ताबूत में दफ़न किया जाता है और उसके साथ तरन्नुम की रूह भी आरिफ़ की लाश के साथ ताबूत में दफ़न हो जाती है। तरन्नुम ज़िन्दा लाश से ज़्यादा कुछ न रह जाती। आरिफ़ की याद में...
लेखक
मयंक सक्सैना 'हनी'
पुरानी विजय नगर कॉलोनी,
आगरा, उत्तर प्रदेश – 282004
(दिनांक 31/ जुलाई/2021 को लिखी गई एक कहानी)
कुछ प्रयुक्त क्लिष्ट शब्दों का अर्थ
मुलाज़मीन : कर्मचारी/नौकर (Employee)
हैज़ : मासिक धर्म/माहवारी (menstruation)
ज़ेहन : समझ/दिमाग/मन/विचार
गुफ़्तगू : बातचीत (Gossip)
मशविरा : सलाह (Suggestion/Advice)
इज़हार-ऐ-हाल : स्तिथि को बताना
ज़मींदोज़ : ज़मीन पर गिरा हुआ/ज़मीन के नीचे से संबंधित
सुर्खियां : मुख्य बातें (Headlines)
मुख़ातिब : किसी की ओर (बात कहने या सुनने, देखने आदि को) प्रवृत्त (Face to face)
पर्दानशीं : परदे में रहने वाली (स्त्री)
तारुफ़ : पहली मुलाक़ात कराना, परिचय कराना (Introduction)
अंततोगत्वा : आखिरकार/फलस्वरूप (Ultimately/In the end)
Interesting
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