जो तुम छोड़कर गए हो तेरे ना होने से, खाली हूं इतना। कि तेरे तस्वीर के सामने आने से भी, डर लगता है।
जो तुम छोड़कर गए हो
तेरे ना होने से,
खाली हूं इतना।
कि तेरे तस्वीर के सामने
आने से भी,
डर लगता है।
2. बाहर की हलचलें
मेरे हादसों का जश्न है।
कई रोज हो गये है,
मुझे!
घर की खिड़कियां खोले।
3.मैं थक गया हूं,
अपने आप से।
मेरे तन्हाइयों में अब भी
हांफ रही है,
तुम्हारी सांसें....!
4.अब कोई न सम्हाले
मेरे कंधे को!
मैं अंतिम बार लड़खड़ाना,
चाहता हूं...
तुम्हारे आगोश में।
5.अब मैं बिखरना
चाहता हूं।
जलते लोहे के ऊपर
पानी की तरह।
6.जो तुम छोड़कर गये हो
हमारे घर में,
अपनी चीजें।
मेरे दिल में,
तुम्हारी मौजूदगी की तरह
खटकती है।
7.मुझे आज भी
घेरे है तुम्हारी अस्थियों का धुआं।
मेरे अस्तित्व में घने कोहरे की तरह,
जिसे मैं पार करना चाहता हूं...
धीरे-धीरे।
8.आजकल धमनियों से होकर
गुजरती है मेरे!
तुम्हारी कही हुई
एक-एक बात।
जो मेरे अकेलेपन में
मुझसे गुफ्तगू कर जाते है।
9.आज मेरे घर में
फिर से चुप्पी है।
घर के लोगों ने मुझे फिर समझाया
और अपने-अपने हिस्से की,
तकलीफों में खामोश हो गये।
10.तुम्हारे दुःखों से
मैं निकल ही नही पाता हूं,
जब-जब तुम्हें!
आंसुओं में ज़िन्दा रखने की
आख़िरी कोशिश करता हूं।
11.ऐ ख़ुदा तेरे जलजलों से
मैं हमेशा डरता हूं।
कि मैं आज भी किसी से
प्यार करता हूं।
12.गला मेरा भर जाता है
आंखें मेरी डबडबा जाती है
जब छोटी बेटी मेरी!
मुझे मां कहने की कोशिश करती है।
तुम लौटकर क्यों नही आ जाते?
जब कि,
मुझे मालूम है,
अब तुम नही आ सकते।
13.तुम्हारे खालीपन में
धीरे-धीरे विक्षिप्त सा हो गया हूं..
अब मुझे शर्ट पहननें में भी,
काफी वक्त लगता है.….
एक मंज़र में!!!
अंजाना सफ़र कर रहा हूं!
एक ठहराव का....!
15.मंज़र!!!
यह जो लफ्ज़ है न!
आजकल मेरे लिए...
चिर-परिचित
अपना-अपना सा लगता है।
16.सबकुछ तो मिला मुझे
व्यथा,कथा,दर्द,पीड़ा,
थी बस तुम्हारी कमीं
जिसे मैं अब,
अपने सच का मुकम्मल समझ लिया।
17.देखा था एक ख्वाब
मैंने,
तुम्हारे लिए...
तुमसे वो असर जोड़ दूंगा!
कि एक दिन,
मेरी उफनती सांसों से तुम!
जाग जाया करोगी।
18.झांक कर देखता हूं,
जब भी तेरे वजूद में।
मेरा नामों-निशां मिटा-मिटा सा
दिखता है।
जिसे मैं फिर से,
अंधेरों में लिखना चाहता हूं।
19.सच कहूं तो,
तुम्हारी आख़िरी सासों तक..
मुझे उम्मींद थी कि तुम!
मेरे पास लौट आओगे।
क्योंकि उस वक्त मुझे लगा था,
तुम्हारे बिना,
मैं क्या था?
20.घर के सभी,
जब कभी
तुम्हारे खुशनुमा बातों को याद कर,
क्षण भर मुस्कुराते है,
मैं उस जगह से उठकर
कहीं और चला जाता हूं
अपने खामोश हृदय को
पलभर एक आवाज देने,
कि मैं अभी जिंदा हूं।
21.कहीं दूर से आती हुई
कोई आवाज।
मेरे ख्यालों में!!!
तुम्हारी परछाई नजर आती रही,
कोई है जो नदी के उस तरफ
कपकपी माउथआर्गन बजा रहा है।
22.कमजोर हो गई है
बांहें मेरी,
एक सुनेपन में!
कई शाम गुजर गयी,
तुम्हें शिद्दत से गले लगाए।
23.एक साॅ॑झ पलती है,
मेरे आंखों तले।
तुम्हारे लिए!!!
इस वक्त चली आती हो जो तुम,
मेरी आंखों में झांकने।
24.मेरे स्वरयंत्र में
झनझनाती रहती है।
क्षण-क्षण तुम्हारा वो नाम!
जो मैंने तुम्हें,
प्रथम भेंट पर दिया था।
25.मैं सिद्धांतों से लबरेज
एक तहज़ीबी शिक्षक था
तुमनें मुझे सहज बना दिया
मुझे मालूम था
प्रेम की शुरुआत,
किसी वसूलों पर नही होती है।
26.पिघल कर...
मेरे अन्तर्वाहिनी में।
निरन्तर बह रही है...
ख्वाबों की राख तुम्हारी।
27.ऐ ख़ुदा मेरे!
बस कर मुझे ज़िन्दा रखना।
तु जितना ही मुझे,
ज़िन्दगी देता रहेगा।
वो उतना ही मेरे करीब
आती रहेगी।
बस कर मुझे ज़िन्दा रखना
तु जितना ही मुझे,
सफ़र देता रहेगा।
वो धूप बनकर,
मेरे साये के साथ रहेगी।
28.हां!
मुझे याद है वो घड़ी
जब आख़िरी बार देखा था
तुम्हारी आंखों में,
बंद होने से पहले,
मैं उसी तरह सच था।
जैसे तथागत का चार आर्य सत्य।
29.बस!
अब,
समय के पत्थरों से टकरा कर
तुम्हारे स्मृतियों को लहूलुहान
करता हूं,
प्रतिदिन।
हां बस!
अब,
समय के पत्थरों से टकरा कर
तुम्हारे खालीपन को लहूलुहान
करता हूं,
दिन-दिन,
प्रतिदिन।
- राहुलदेव गौतम
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