लक्ष्मी का स्वागत एकांकी का सारांश कथावस्तु लक्ष्मी का स्वागत एकांकी शीर्षक की सार्थकता लक्ष्मी का स्वागत एकांकी का उद्देश्य प्रमुख पात्र का चरित्र
लक्ष्मी का स्वागत एकांकी - उपेन्द्रनाथ अश्क़
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लक्ष्मी का स्वागत एकांकी का सारांश कथावस्तु
अश्क़ जी अपनी एकांकियों की विषयवस्तु अपने इर्द गिर्द के निम्नमध्यमवर्गीय परिवेश से उठाते हैं। हास्य व्यंग और यथार्थ चित्रण के माध्यम से वे व्यक्ति और समाज की विसंगतियों ,मिथ्यादंभ ,शोषण ,उत्पीडन और बेबसी को उद्घाटित करते हैं।
जालंधर के निम्नमध्यम वर्गीय मोहल्ले में एक मकान के भीतर प्रस्तुत एकांकी से सम्बंधित सारी घटनाएं घटित होती है। एक सुरक्षित युवक रोशन अपनी पत्नी की असामयिक तथा आकस्मिक मृत्यु से बहुत ही दुखी दिखाई देता है। पत्नी के देहांत के पश्चात दुखी रोशन का सब ध्यान अब अपने बीमार बेटे पर सिमट आया है। वह अपना एक एक क्षण उसे बचाने तक उसकी देख भाल में बिता रहा है। उसके इस काम में उसका छोटा भाई भाषी और मित्र सुरेन्द्र उसको पूरा सहयोग करते हैं। रोशन के बेटे अरुण को डिप्थीरिया नाम की बीमारी हुई है। उसके इलाज के लिए बाज़ार से दावा लाना ,डॉक्टर को बुलाना आदि कामों में भाषी और सुरेन्द्र काफी तत्परता दिखलाते हैं। तेज़ वर्षा ,तूफ़ान में भी अरुण को बचाने में रोशन के साथ भाषी और सुरेन्द्र घर - बाहर एक किये हुए हैं। किसी तरह का प्रमाद या असावधानी को पास नहीं फटकने देता है। फूंक फूंक कदम रख रहे हैं। रोशन अपने बीमार बेटे अरुण का इलाज डॉक्टर जीवाराम से भी करवाता है ,किन्तु उससे लाभ नहीं होता है। हालत पहले से भी अधिक ख़राब हो जाती है इसीलिए रोशन भाषी को भेजकर दूसरे डॉक्टर को बुलाता है। डॉक्टर आता है और जांच करके इंजेक्शन लगाता है ,नुक्सा लिख देता है और बाज़ार से दवाई लाकर समय समय पर देते रहने की सलाह देता है। वह रोशन को धैर्य से काम लेने के लिए कहता है और सावधानी से बीमार अरुण की देखभाल करने की हिदायत देता है।
इसी बीच माँ सुरेन्द्र से अरुण का हालचाल पूछती है और सुरेन्द्र के यह कहने पर की उसकी हालत और बिगडती जा रही है ,माँ डॉक्टरों और रोशन पर बरस पड़ती है। कहती है कि ये डॉक्टर जो न करें ,थोडा है। लाख मना करने के बाद भी रोशन ने डॉक्टर को बुलवा भेजा है ,बहु सरला को तो इन लोगों ने मार ही डाला ,अब अरुण के पीछे भी हाथ धोकर पड़े हुए हैं। उसे जरा बुखार है ,छाती जम गयी होगी ,बस मैं घुट्टी दे देती तो ठीक हो जाता ,पर वह मुझे बच्चे को हाथ नहीं लगाने देते हैं ,कहता है ,बच्चे से प्यार नहीं है। इसके बाद जाने के लिए उद्दत सुरेन्द्र को रोककर वह रोशन की दूसरी शादी की चर्चा शुरू कर देती है। माँ कहती हैं ,तुम रोशन के मित्र हो ,उसे किसी तरह दूसरी शादी के लिए तैयार करो क्योंकि सियालकोट वाले अपनी लड़की का शगुन लेकर आये हुए हैं। फिर माँ सुरेन्द्र से राम प्रताप की दूसरी शादी का उदाहरण देकर रोशन को तैयार करने की जिम्मेदारी सुरेन्द्र पर छोडती है। किन्तु सुरेन्द्र ऐसी नाजुक परिस्थिति में रोशन से दूसरी शादी की चर्चा करने को अनुचित मानते हुए मना कर देता है। रोशन भी अपने माता -पिता के इस प्रस्ताव पर नाराजगी प्रकट करता है और उन्हें अपने बेटे अरुण का शत्रु मानता है।
इसी बीच अरुण का मृत्यु से संघर्ष भी समाप्त हो जाता है और उसेक प्राण पखेरू अनंत में विलीन हो जाते हैं। इधर अरुण का मरना और उधर रोशन के पिता का शगुन लेना लगभग साथ - साथ होता है। किन्तु अरुण के मरने से रोशन के माता -पिता हक्के - बक्के हो जाते हैं और सुरेन्द मृत अरुण को शमशान ले जाने की तैयारी में लग जाता है।
लक्ष्मी का स्वागत एकांकी की समीक्षा
उपेंद्रनाथ 'अश्क' की लक्ष्मी का स्वागत एकांकी एक सामाज पर आधारित एकांकी है। इस एकांकी में इन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त परंपराओं, रूढ़िवादी मान्यताओं का सहारा लेकर मनुष्य की अपनी स्वार्थ सिद्धि का स्पष्ट चित्रित किया है-
- कथावस्तु - प्रस्तुत एकांकी की कथावस्तु जिला जालंधर के एक मध्यमवर्गीय परिवार की है। इस कथावस्तु का प्रमुख पात्र रौशन के विधुर होने एवं उसके पुत्र अरुण की गंभीर बीमारी से शुरू होकर पुत्र की मृत्यु के पश्चात् उसके माता-पिता द्वारा धन की लालसा में पुनर्विवाह के प्रस्ताव की स्वीकृति तक होता है जो पाठकों को मर्मस्पर्शी पीड़ा से भर देता है।
- सरल भाषा व संवाद -एकांकी में छोटे-छोटे संवाद एवं सरल भाषा के प्रयोग द्वारा चित्रित किया गया है। अभिनेयता की दृष्टि से यह विशेषता उपयुक्त है क्योंकि इससे अभिनेताओं को विचार सम्प्रेषण में किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं होती है। कुछ स्थान पर रौशन व उसकी माँ के प्रसंग बहुत आवश्यक हैं, जो परिस्थितियों के अनुरूप एवं सटीक है।
- स्वाभाविक विकास - प्रस्तुत कथा का विकास स्वाभाविक रूप में होता है। एकांकीकार ने जिस पुनर्विवाह की समस्या को इसमें वर्णित किया है उसे एक दूषित सामाजिक मान्यता बनाकर प्रस्तुत किया है। कथा की शुरुआत रौशन की पत्नी-वियोग के कारण दुःखद स्थिति और उसी अन्तराल में उसके पुत्र की बीमारी की चिंता से होता है। अपने पुत्र के लिए एक तरफ रौशन की चिंता का बढ़ना एवं दूसरी तरफ उसके माता-पिता का अधिक धन के लोभ में उसके पुनर्विवाह के अथक प्रयासों से इस कथा का विकसित होता है।
- चरम सीमा व अंत- डॉक्टर के अत्यन्त प्रयासों के बाद भी अरुण की बिगड़ती हुई हालत एवं उसकी स्थिति की उपेक्षा करके उसके दादा-दादी का उसके पिता के विवाह पर विचार-विमर्श करना इस एकांकी की चरमसीमा है और अंत में अरुण की मृत्यु हो जाती है तथा उसके दादा-दादी उसके पिता के विवाह का शगुन लेकर खुशी से फूले नहीं समाते । दहेज के लोभ के लिए मानवता की इस संवेदन-शून्यता की कल्पना भी पाठक को असह्य होती है तथा इस घृणित सत्य को पाठक की आत्मा यथार्थरूप में परख लेती है।
- संकलन त्रय - समय, स्थान एवं कार्य (संकलन-त्रय) का निर्वाह बेहतर रूप से किया गया है। एकांकी के प्रारंभ में ही 'अश्क' ने यह स्पष्ट कर दिया है कि-स्थान जालंधर के मध्यम श्रेणी के मकान का दलान समय सुबह के नौ-दस बजे, कार्य- बच्चे की बीमारी व पिता के द्वारा विधुर पुत्र के विवाह की तैयारी। इसलिए व्यवस्था की दृष्टि से यह एकांकी एक सफल एकांकी है। यह एकांकी मंच एवं रेडियो दोनों के लिए उपयुक्त है। एकांकी पर पाश्चात्य शैली का प्रभाव है, जिसका कथानक सहज, प्रभावशाली व यथार्थवादी तथा इसका अंत दुखांत है।
लक्ष्मी का स्वागत एकांकी शीर्षक की सार्थकता
प्रस्तुत एकांकी का शीर्षक लक्ष्मी का स्वागत सर्वथा सटीक एवं सार्थक है। एकांकी की सारी घटनाएं इसी शीर्षक पर केन्द्रित है। उधर रोशन की पत्नी की असामयिक मृत्यु हो जाती है ,उसका बेटा अरुण डिप्थीरिया नाम के रोग से पीड़ित मृत्यु शय्या पर पड़ा जीवन की अंतिम साँसे ले रहा है ,उसके चलाचली का समय निकट आ गया है ,तो इधर उसके माता - पिता ने उसकी दूसरी शादी करने की मन में ठान रखी है। पिता का यह कथन - " घर आई लक्ष्मी का निरादर नहीं कर सकता। " कितना हास्यास्पद तथा उपहासजनक प्रतीत होता है। इस प्रकार एकांकीकार अश्क़ जी ने व्यक्ति के मन में अवस्थित धन की लोलुपता को उक्त शीर्षक के माध्यम से बड़ी सूक्ष्मता के साथ दिखलाया है। अतः लक्ष्मी का स्वागत शीर्षक शत प्रतिशत उचीत एवं उद्देश्यपूर्ण है।
लक्ष्मी का स्वागत एकांकी का उद्देश्य
प्रस्तुत एकांकी लक्ष्मी का स्वागत के माध्यम से एकांकीकार ने लोगों के मन में धन के प्रति बढ़ते हुए लोभ की भावना को बड़े ही सहज रूप में दर्शाया है। लोभ की यह लालसा इतनी तीव्र हो उठी है कि व्यक्ति समय - कुसमय को ताकपर रखकर येन केन प्रकारेण लक्ष्मी का स्वागत करने से बिलकुल संकोच नहीं करता है। वह हर कीमत पर घर आई लक्ष्मी का स्वागत करने में तत्पर दिखाई देता है ,भले ही उसके परिवार वालों पर दुखों का पहाड़ ही क्यों न टूट पड़ा हो ! इस एकांकी में भी यही दिखलाई देता है। रोशन अपनी पत्नी सरला की मौत का मातम मना रहा है ,अपने बीमार बेटे का इलाज कराने में बेचैन तथा संलग्न दिखाई देता है तो वहीँ उसके माता - पिता उसके दूसरे विवाह का शगुन लेने के लिए कटिबद्ध हैं। इसी विरोधाभास और मानसिक द्वन्द को एकांकीकार अश्क़ जी ने बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रित किया है।
लक्ष्मी का स्वागत एकांकी के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण
लक्ष्मी का स्वागत एकांकी उपेन्द्रनाथ अश्क़ जी का एक प्रमुख एकांकी है। प्रस्तुत एकांकी में आपने मध्यमवर्ग परिवार की धन से सम्बंधित दुर्बलताओं से परिचत करवाते हैं। एकांकी में रोशन अभी अपनी पत्नी की मृत्यु के सदमे से उबर भी नहीं पाया था कि उसके माता - पिता उसके दूसरे विवाह का शगुन लेकर लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए तत्पर है। लक्ष्मी का स्वागत एकांकी के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण निम्नलिखित है -
लक्ष्मी का स्वागत रोशन का चरित्र चित्रण
रोशन प्रस्तुत एकांकी लक्ष्मी का स्वागत का एक प्रमुख तथा सशक्त पात्र है। वह पढ़ा लिखा ,समझदार तथा सिद्धांतवादी युवक है। लोभ व स्वार्थ से वह कोसों दूर है। पत्नी की असामयिक मृत्यु से दुखी रोशन अपने बेटे अरुण की मरणासन्न स्थिति से काफी निराश तथा हताश दिखलाई देता है। उसका भगवान् पर से भी विश्वास उठ गया है। वह अपने बेटे अरुण की मरणासन्न स्थिति से काफी निराश तथा हताश दिखलाई पड़ता है। उसका भगवाण पर भी विश्वास उठ गया है। वह अपने बेटे की नाजुक अवस्था को देखकर भगवन तक को कैलस व क्रूर तक कह देता है। इधर उसका बेटा जीवन तथा मृत्यु से संघर्ष कर रहा है तो उधर उसके माता -पिता उसकी दूसरी शादी के लिए शगुन लेने को तत्पर व आतुर दिखलाई देते हैं। अपने माता - पिता के इस व्यवहार से वह अत्यंत आहत हो उठा है और उन्हें काफी धिक्कारता है। इस प्रकार उसके त्याग ,धैर्य तथा सचरित्र गुणों से पाठकगण प्रभावित हुए बिना नहीं रह पायेंगे।
लक्ष्मी का स्वागत माँ का चरित्र चित्रण
माँ ,रोशन की माता है। वह पुराने विचार की एक महिला है। उसकी बहु अर्थात रोशन की पत्नी की मृत्यु हो चुकी है। उसका पोता अरुण डिप्थीरिया नाम की बीमारी से जूझ रहा है। उसके बचने की बिलकुल भी आशा नहीं है और इधर वह अपने बेटे रोशन की दूसरी शादी करने पर तुली हुई है। रोशन पत्नी की मृत्यु तथा बेटे अरुण की ख़राब दशा से काफी दिमागी उलझन में उलझा हुआ है और उसकी माँ उसके दूसरे विवाह की जल्दबाजी में तत्पर एवं प्रसन्न दिखाई देती है। माँ के इस व्यवहार से रोशन और अधिक आहत होता है तथा उसकी बातों को अनुसुना कर देता है। माँ के चरित्र में ह्रदयहीनता ,धन की लोलुपता ,अव्यहरिकता ,मौकापरस्ती आदि दुर्गुण दिखलाई देते हैं।
विडियो के रूप में देखें -
Surendra ka charitra chitran
जवाब देंहटाएंकमोबेश हालात वही है. दिखावे के लिए कुछ समय का अंतर कर दिया जाता है.
जवाब देंहटाएंHhhhh
जवाब देंहटाएंLakshmi ka swagat ekanki mein patron ki sankhya
जवाब देंहटाएंLakshmi ka swagat ekanki me kul kitne patr hote hai
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