लोहे का स्वाद कविता का अर्थ व्याख्या मूल भाव प्रश्न उत्तर dhoomil ki rachnaye Lohe Ka Swad Kavita लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो उस घोड़े से पूछो जिसक
धूमिल की कविता लोहे का स्वाद
लोहे का स्वाद कविता लोहे का स्वाद कविता के कवि कौन हैं लोहे का स्वाद कविता का अर्थ dhoomil poetry dhoomil kavita dhoomil ki rachnaye Lohe Ka Swad Kavita dhoomil ki kavita Lohe Ki swad dhoomil dwara Rachit Lohe ki Swad Kavita लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो उस घोड़े से पूछो जिसके मुँह में लगाम है
लोहे का स्वाद कविता का अर्थ व्याख्या भावार्थ
शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज है या
मिट्टी में गिरे हुए खून
का रंग
लोहार से मत पूछो
उस घोड़े से पूछो
जिसके मुँह में लगाम है ।
व्याख्या - प्रस्तुत कविता में प्रसिद्ध कवि सुदामा प्रसाद धूमिल जी द्वारा रचित लोहे के का स्वाद कविता में वर्तमान शोषण व्यवस्था की पीड़ा का बयान किया गया है। इसमें कवि कहता है कि हे मानव ! यदि तुम यह जानना चाहते हो कि कवि किस प्रकार शब्दों से कवितायें रचते हैं ,तो उस आम आदमी के जीवन का अध्ययन करो जिसके आधार पर कवितायें रची जाती है। उस आदमी के जीवन में तुम देखोगे कि या तो वहां घोर परिश्रम की कहानी सुनाई देगी या उनके भयंकर शोषण की गाथा सुनाई देगी। शोषण की पीड़ा का असली अनुभव जानना चाहते हो शोषकों से मत पूछों बल्कि शोषण की पीड़ा को सहने के लिए मजबूर दलितों से पूछों। वे ही तुम्हें असली शोषण की पीड़ा बतलायेंगे क्योंकि उन्होंने उसका स्वाद लिया है।
इस कविता का सौन्दर्य प्रतीकों के कुशल प्रयोग में हैं। कवि ने प्रत्येक भाव प्रतीकों और संकेतों में व्यक्त किया है। ये संकेत अत्यंत सशक्त हैं। अक्षरों के बीच गिरा हुआ आदमी आम आदमी है। लोहे की आवाज मेहनतकश का श्रम है। मिटटी में गिरे हुए खून का रंग शोषण का आतंक है। लोहे का स्वाद शोषण की पीड़ा हैं। लोहार शोषक है। घोडा और लगाम क्रमशः शोषित और अंकुश है। इस प्रतीकों से शोषण व्यवस्था की पीड़ा साकार हो उठी है।
लोहे के का स्वाद कविता का सारांश मूलभाव
लोहे का स्वाद कविता शोषितों के प्रति सहानुभूति प्रकट करती है। कवि के अनुसार ,आज शोषित मजदूर कानून ,नियम और मालिकों के जाल में जकड़ा हुआ है। वह चाहते हुए भी अपनी स्थिति में सुधार नहीं ला सकता है। वह सदा शोषण के आतंक और कठोर मेहनत में पिसता रहता है। उसकी पीड़ा को वही जाना सकता है ,शोषक नहीं। कवि का आशय यह है कि उसकी पीड़ा को समझ कर उसे दूर करने का यत्न करना चाहिए।
लोहे के का स्वाद कविता के प्रश्न उत्तर
प्र. कवि के अनुसार शब्द कविता किस तरह बनते हैं ?
उ. कवि के अनुसार ,जब जीवन का गहरा दर्द सामने आता है ,शोषितों की पीड़ा सामने आती है ,तो कवि के शब्द कविता रूप में प्रकट हो जाते हैं।
प्र. कवि ने दलित वर्ग की तुलना उस घोड़े से क्यों की है जिसके मुंह में लगाम है ?
उ. कवि ने दलितों की तुलना उस घोड़े से की है जिसके मुंह में लगाम है। यह इसीलिए ,क्योंकि शोषितों को भी बिना बोले ,चुपचाप शोषकों के आदेशों और अंकुशों को सहकर शोषण की पीड़ा सहनी पड़ती है।
प्र. लोहे का स्वाद कविता मे कवि लोहे का स्वाद लोहार से न पूछकर घोड़े से पूछने को क्यों कहता है ?
उ. कवि कहता है कि दर्द की अनुभूति दर्द भोगने वाले को होती है ,दर्द देने वाले को नहीं । लोहार दर्द देने वाला है ,चोट करने वाला है ,जबकि घोडा उस लोहे का दर्द अनुभव करता है ।अतः लोहे का स्वाद घोड़े से पूछना चाहिए ,लोहार से नहीं।
प्र. लोहे के स्वाद और घोड़े की लगाम मे संबंध स्थापित करते हुए हुए कवि ने क्या कहना चाहा है ?
उ. लोहे के स्वाद और घोड़े के लगाम मे संबंध स्थापित करके कवि ने यह कहा है कि शोषण का असली दर्द उसे भोगने वाले शोषित को होता है ,दर्द देने वाले शोषक को नहीं।
COMMENTS