मैथिलीशरण गुप्त के काव्य की विशेषताएं maithili sharan gupt ki kavyagat visheshta मैथिलीशरण गुप्त की काव्य भाषा मैथिलीशरण गुप्त की भाषा शैली राष्ट्रकवि
मैथिलीशरण गुप्त की काव्यगत विशेषताएँ
मैथिलीशरण गुप्त के काव्य की विशेषताएं maithili sharan gupt ki kavyagat visheshta मैथिलीशरण गुप्त की काव्यगत विशेषताएँ मैथिलीशरण गुप्त की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए मैथिलीशरण गुप्त की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए मैथिलीशरण गुप्त की काव्य भाषा - मैथिलीशरण गुप्त जी आधुनिक युग के श्रेष्ठ कवियों मे अपना विशिष्टम स्थान रखते हैं । इनकी प्रारम्भिक रचनाओं मे द्विवेदीयुगीन इतिवृत्तात्मक कथन का रूखापन है । आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से ही गुप्तजी ने हिन्दी की खड़ी बोली मे काव्य रचना करके हिन्दी काव्य की नवीन धारा को पुष्ट कर उसमें अपना विशेष स्थान बना लिया । गुप्तजी की प्रारम्भिक पद्यबद्ध कथाओं मे सरलता का अभाव है । फिर भी इनकी भारत भारती को युग चेतना के स्वर के कारण काफी लोकप्रियता मिल चुकी है । बाद मे हिन्दी मे छायावादी युग के प्रभाव के कारण इनके काव्य मे भी लाक्षणिक विचित्रता एवं सूक्ष्म मनोभावों की मार्मिकता का समावेश हुआ है । इनके प्रबंधकाव्यों के अंतर्गत नीतिकाव्यों के समावेश से भाव सौंदर्य मे काफी अभिवृद्धि दिखलाई पड़ती है । एक ओर इनके प्रबंधकाव्यों मे गीतकाव्य की सरसता है तो दूसरी ओर गीतकाव्यों को अपनाने के कारण प्रवाह मे किसी प्रकार की शिथिलता नहीं आने पायी है ।
मैथिलीशरण गुप्त के काव्य मे निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
भक्ति भावना
गुप्तजी राम के अनन्य भक्त है ,किन्तु इनके राम कृष्ण के भिन्न नहीं है । कृष्णकाव्य के मंगलाचरण मे भी आपने राम की ही वंदना की है । राम भक्त होते हुए भी ये उदारवादी दृष्टिकोण के समर्थक हैं । साकेत मे जहां आपने राम का गुणगान किया है ,वहीं द्वापर मे कृष्ण का ,अनघ और यशोधरा मे भगवान बुद्ध का तथा काबा और कर्बला मे हसन और हुसैन के बलिदान की गाथा गायी है । इनकी राष्ट्रीयता बड़ी ही व्यापक और धर्मनिरपेक्ष है ।
आर्य भावना का समर्थन
गुप्त जी की रचना मे आर्य संस्कृति और मर्यादा का भली भाँति समर्थन हुआ है । ये भुवन सेवा को ही अपना अभीष्ट मानते हैं । आपका कथन है कि -
सन्देश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया,इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।
अथवा आकर्षण पुण्यभूमि का ऐसा, अवतरित हुआ मैं, आप उच्च फल जैसा।
जो नाम मात्र ही स्मरण मदीय करेंगे,वे भी भवसागर बिना प्रयास तरेंगे।
पर जो मेरा गुण, कर्म, स्वभाव धरेंगे,वे औरों को भी तार पार उतरेंगे।
राष्ट्रीयता की भावना
गुप्तजी राष्ट्र प्रेमी कवि हैं । इनकी रचनाओं मे राष्ट्रप्रेम कूट-कूट कर भरा पड़ा है । इनकी राष्ट्रीयता महात्मा गांधी से प्रभावित है । भारत - भारती ,साकेत आदि काव्यों मे इनकी राष्ट्रीयता के स्वर पूर्णतः मुखर हुए है । साकेत मे महात्मा गाँधी से प्रभावित असहयोग आंदोलन ,सत्याग्रह ,अनशन आदि के चित्र मिले हैं ।
समाज सुधार की प्रवृत्ति
गुप्तजी की रचनाओं मे हिन्दू मुस्लिम एकता ,अछूत उद्धार ,विधवा विवाह का समर्थन ,बाल विवाह आदि का मार्मिक वर्णन हुआ है जो इनके समाज सुधार विषयक प्रवृत्ति का परिचायक है । अछूत उद्धार के संबंध मे आपका कथन है -
इन्हें समाज नीच कहता है, पर हैं ये भी तो प्राणी,
इनमें भी मन और भाव हैं, किन्तु नहीं वैसी वाणी॥
राजनीतिक भावना
गुप्तजी के वक संहार मे अंग्रेजों के अत्याचारों का सांकेतिक वर्णन है ।अधिकारों को प्राप्त करना ये अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं । इनकी प्रजातन्त्र की कल्पना बड़ी मार्मिक है -
राजा प्रजा का पात्र है ,वह लोकप्रतिनिधी मात्र है ,
यदि वह प्रजा पालक नहीं तो त्याज्य है ,
हम दूसरा राजा चुने जो सब तरह सबकी सुने
कारण प्रजा का ही असल में राज्य है़।
प्रकृति चित्रण
गुप्तजी ने अपने काव्य मे प्रकृति के आलंबन और उद्दीपन दोनों रूपों का चित्रण किया है ।आलंबन रूप का एक चित्रण देखिये -
उत्फुल्ल करौंदी-कुंज वायु रह-रहकर
करती थी सबको पुलक-पूर्ण मह-महकर।
वह चन्द्रलोक था, कहाँ चाँदनी वैसी,
प्रभु बोले गिरा, गम्भीर नीरनिधि जैसी।
छायावादी प्रभाव के कारण गुप्तजी ने अपने गीतों मे प्रकृति के मानवीकरण पर भी ज़ोर दिया है ।यथा -
जितना मांगे पतझड़ दूँगी मैं इस निज नंदन में।
सखी कह रही, पांडुरता का क्या अभाव आनन में।
तो मोती-सा मैं अकिंचना रखूँ उसको मन में।
नारी के प्रति श्रद्धा और सहानुभूति
गुप्तजी ने अपने काव्य मे उर्मिला और यशोधरा जैसी परित्यक्ता नारियों के जीवन को अत्यंत ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी ढंग से चित्रित किया है । यशोधरा के प्रति उनकी सहानुभूति देखिये -
अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी,
आंचल में है दूध और आंखों में पानी।
मैथिलीशरण गुप्त की भाषा शैली
गुप्तजी की भाषा शुद्ध और परिष्कृत खड़ी बोली है । उसमें ब्रजभाषा की भांति माधुर्य एवं सरसता है ।कहीं -कहीं संस्कृत के तत्सम शब्दों के कारण दुर्बोधता अवश्य आ गयी है । फिर भी भाषा के प्रवाह मे किसी प्रकार का अंतर नहीं दिखलाई पड़ता है । उनकी भाषा मे विषयानुसार ओज ,प्रसाद और माधुर्य तीनों गुणों का समावेश है । कहीं कहीं आंचलिक और देशज शब्दों का प्रयोग हुआ है । लोकोकित्यों और मुहावरों के प्रयोग से भाषा मे विशेष सजीवता दिखलाई पड़ती है । तुकों के आग्रह पर इनहोने कहीं कहीं शब्दों को तोड़ने मरोड़ने का प्रयास भी किया है ।
मैथिलीशरण गुप्त |
गुप्तजी के काव्यों मे तुकांत और अतुकांत दोनों प्रकार के छंद प्राप्त होते है । गीतिका और हरिगीतिका इनके प्रिय छंद है । भावात्मक कविताओं मे गीतों का प्रयोग हुआ है । रचनाओं मे विशेषकर मात्रिक छंदों की ही प्रधानता है ।
अनुप्रास ,रूपक , उपमा, उत्प्रेक्षा ,श्लेष ,अतिशयोक्ति आदि अलंकारों का गुप्तजी के काव्य मे विशेष प्रयोग हुआ है ।
गुप्तजी युगीन चेतना और उसके विकसित होते हुए स्वरूप मे प्रति विशेष सजग और सचेष्ट थे । इसकी स्पष्ट झलक उनके काव्य मे मिलती है । राष्ट्र की आत्मा को जीवन देने के कारण वे राष्ट्रकवि कहलाए और आधुनिक हिन्दी काव्य धारा के साथ विकासपथ पर चलते हुए प्रतिनिधि कवि के रूप मे स्वीकार किए गए । उनकी चरित्र कल्पना मे कहीं भी अलौकिकता के लिए स्थान नहीं है । उनके सारे चरित्र मानवीय है । उनमें देव और दानव नहीं है । साकेत के राम तुलसी के राम की भांति आराध्य अवतारी पुरुष नहीं है । वे एक साधारण मानव है । उनकी भावव्यंजना मे भी गंभीर अनुभूतियों के दर्शन होते हैं । उनकी कल्पनाएं और भाव अभिव्यक्ति कहीं भी मानव स्वभाव का अतिक्रमण नहीं करती है । इस प्रकार गुप्तजी जातीय परम्पराओं के उपस्थापक ,राष्ट्रीय गौरव के संदेशवाहक और भाषा के नवीन स्वरूप मे प्रतिस्थापक तुलसी सूर के बाद हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं ।
Hi
जवाब देंहटाएंMathili saran gupat ke baare mai
जवाब देंहटाएंशीक्षा का महत्व
जवाब देंहटाएंगुप्त जी का काव्य परिचय
जवाब देंहटाएं