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पल्लवन की परिभाषा एवं विशेषताएं
पल्लवन का अर्थ पल्लवन की विशेषता इन हिंदी पल्लवन का अर्थ क्या है पल्लवन की विशेषताएं स्पष्ट कीजिए पल्लवन का महत्व पर निबंध pallavan ki paribhasha avn uski upyogita पल्लवन की परिभाषा एवं इसकी उपयोगिता लिखिए - पल्लवन का अर्थ है विस्तार। यह अंग्रेजी के Expansión शब्द का समानार्थी है। यह एक प्रकार की गद्य रचना है ,जिसमें किसी विषय या विचार को विस्तार दिया जाता है। पल्लवन में लेखक की मानसिक विचारधारा ,कल्पनाशक्ति ,मौलिक उद्भावना ,क्षमता तथा उसके भाषा सामर्थ्य का परिचय मिलता है। पल्लवन पल्लव शब्द से बना है जैसे कोई बीज ,खाद और पानी पाकर पहले अंकुरित होता है ,फिर उसमें तनें ,शाखाएं और इन शाखाओं में पल्लव आते हैं ,उसी प्रकार कोई सूत्रवाक्य ,उक्ति ,विशिष्ट विषय अथवा विचार बिंदु लेखक की अपनी कल्पनाशीलता ,मौलिकता एवं प्रवाहमयी सुललित भाषा द्वारा विस्तृत रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
पल्लवन निबंध जैसी एक रचना होती है। निबंध भी एक निश्चित विषय पर आधारित होता है ,पल्लवन का भी विषय निश्चित होता है ,पर दोनों में विस्तार का अंतर है। निबंध एक विस्तृत गद्यविधा है ,जबकि पल्लवन इसकी अपेक्षा सीमित स्वरुप वाली गद्यविधा है। दोनों में केवल ,उद्देश्य और उक्तिवैचित्र की दृष्टि से पर्याप्त अंतर है। निबंध में विषय के सभी पहलुओं का विस्तार के साथ ,आवश्यकता पड़ने पर दृष्टानतों के साथ विवेचन किया जाता है। पल्लवन की सीमा इतनी विस्तृत नहीं होती है। पल्लवनकर्ता को बहुत सारगर्भित शैली में पल्लवन के विषय को इस तरह विस्तृत करना पड़ता है कि थोड़े में ही उसका भावार्थ। पाठक की समझ में आ जाए। पल्लवन में बहुत में बहुत अधिक विस्तार या दृष्टान्त आदि प्रस्तुत करने का अवसर नहीं रहता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि पल्लवन और निबंध दोनों गद्य रचनाएँ होने के कारण जहाँ स्वरुपगत साम्य रखती हैं। वहीँ विषय और उसके निस्तारण की दृष्टि से दोनों में पर्याप्त अंतर है।
पल्लवन की विशेषताएं
पल्लवन की उपरोक्त विवेचन के आधार पर पल्लवन की निम्नलिखित विशेषताएँ दृष्टिगत है -
- गद्यात्मक रचना।
- सर्जनात्मकता।
- मौखिकता।
- केन्द्रोंमुखता।
- कल्पनाशीलता।
- शैलीगत प्रवाहमयता।
- उन्मुक्तता।
- सहजता।
- शब्दचातुर्य।
- उक्तिवैचित्रपूर्ण लालित्यभाषा।
पल्लवन एक गद्य रचना है ,यह पहले ही बताया जा चुका है परन्तु यह बहुत सीमित स्वरुप वाली गद्य रचना है। पल्लवनकर्ता को सृजनशील होना चाहिए। सृजनशीलता के लिए प्रतिभा और अभ्यास दोनों की आवश्यकता होती है ,जिसमें सर्जनात्मकता क्षमता नहीं होती है ,पल्लवन उसके सामर्थ्य के बाहर की विधा है। पल्लवन की तीसरी विशेषता केन्द्रोंमुखता है। पल्लवन कर्ता को अपने विषय की सीमा में रहना चाहिए ,उसमें यहाँ निर्द्वंद भाव विस्तार की अपेक्षा नहीं होती है। उसका ध्यान सदैव अपने विषय पर ही केन्द्रित रहना चाहिए ,ऐसा न करने से पल्लवन बिखरा सा लगेगा।
पल्लवन के प्रमुख नियम
मौलिकता नवीनता की अपेक्षा करती है अर्थात पल्लावनकर्ता को किसी का अंधानुकरण अथवा नक़ल नहीं करनी चाहिए। पल्लवन करते समय यदि समसामयिकता का वरण करने वाले विचारों का सहारा लिया जाए तो इसमें मौलिकता स्वतः आ जायेगी। सृजनशील गद्य होने के कारण पल्लवन में लेखक में कल्पनाशीलता भी होनी चाहिए। पर एक सीमा तक। कल्पना की लम्बी चौड़ी उड़ाने न भरकर लेखक को अपनी कल्पनाशक्ति के आधार पर वस्तुप्रतिपादन को सरस और रुचिकर बनाना चाहिए। उन्मुक्तता लेखक की सृजनशीलता को बढाती है। उन्मुक्तता का अर्थ है - सहजता एवं स्वाभाविकता ,किसी शास्त्र या परस्पर की टीका पकड़कर न चलना। पल्लवन के माध्यम से लेखक समाज को कुछ अपना दे ,यही उन्मुक्तता है। प्रवाहमयता और सहजता तथा भाषा लालित्य में सभी विशेषताएँ परस्पर सम्बद्ध हैं। पल्लवन की भाषा सरल एवं सहज तथा शैली प्रवाहमय होनी चाहिए ,तभी पल्लवनकर्ता की भाषा में उक्तिवैचित्र आ सकेगा।
पल्लवन की उपयोगिता
भाषा प्रयोग के सन्दर्भ में पल्लवनकर्ता को बहुत सतर्क रहना होता है। भाषा ऐसी हो जो केन्द्रीय भाव को सहज ढंग से अभिव्यक्ति दे सके ,उसमें बनावटीपन न हो ,वह कहावतों और मुहावरों के बोझ तले दबी न हो। कुल मिलाकर पल्लव की भाषा को द्राक्षापाक ( सहज ,सरल ) होना चाहिए नारिकेल पाक कठिन नहीं। जैसे अंगूर आप सहज ही खा लेते हैं ,पर नारियल का पानी पीने के लिए उसकी उपर की शख्त पर्त से आपको दो चार होना पड़ता है। भाषा की सहज और अस्वाभाविक दो शैलियों की ,ये दोनों प्रतिक हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि जब किसी यांत्रिक प्रणाली के प्रयोग से सन्देश को कई गुणा बढ़ा दिया जाता है और वह सन्देश बड़ी संख्या में लोगों तक प्रेषित हो जाता है तो उसे जनसंचार नाम दिया जाता है। समाचार पत्र , रेडिओ ,टेलिविज़न ,फिल्म ,टेप रिकार्ड ,विडिओ कैसेट ,इन्टरनेट ,सोशल मीडिया आदि जनसंचार के आधुनिक माध्यम हैं।
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