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संचार भाषा
संचार भाषा को समझाइए संचार भाषा की परिभाषा संचार भाषा के रूप में हिंदी संचार भाषा का महत्व संचार भाषा के उदाहरण संचार भाषा के महत्व संचार भाषा में टिप्पणी संचार भाषा का स्वरूप संचार भाषा का अर्थ संचार भाषा का परिचय - संचार भाषा का अर्थ है कि किसी बात को आगे बढ़ाना या फैलाना। इसकी मूल धातु संस्कृत की चर है जिसका अर्थ है चलना। दूसरे शब्दों में जब किसी भाव या विचार या जानकारी को दूसरों तक पहुंचाते हैं तो इसे संचार कहते हैं। संचार का उद्देश्य जानकारी या विचारों को समाज के तमाम लोगों के साथ साझा करना है जो इनसे सम्बद्ध हैं या जिन्हें यह जानकारी पहुँचाना अपेक्षित है ताकि लोग इससे अवगत होकर लाभ उठा सके।
संचार भाषा का महत्व
मानव समाज में संचार की उपयोगिता और उसके महत्व का अध्ययन करने के लिए हमें मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणियों के जीवन का भी अवलोकन करना होगा क्योंकि वास्तव में मानव भी अन्य जीवों की तरह एक प्राणी ही तो हैं। विज्ञान की अवधारणा है कि मनुष्य और अन्य जीवों में यदि कोई अंतर है तो मात्र यही कि उसमें सोचने विचारने की शक्ति है ,बोलने तथा अभिव्यक्त करने की क्षमता है। इन्ही विशेषताओं के चलते इसे विधाता की अद्वितीय कृति का दर्जा प्राप्त है। वर्ना आहार ,निद्रा ,भय ,मैथुन आदि अन्य जीवों में भी विद्यमान है। देखा तो यहाँ तक गया है कि जिन गुणों की बदौलत आदमी अपने आपको अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ समझता है ,वे गुण न्यूनतम मात्रा में अन्य प्राणियों में भी विद्यमान हैं। हाँ ,यह अवश्य है कि वे गुण मनुष्य में अन्य प्राणियों की अपेक्षाकृत विकसित अवस्था में हैं।
संचार भाषा का स्वरूप
पशु पक्षियों में संचार का कार्य किस प्रकार चलता है ,उसे बारीकी से देखा जाए तो संचार सिधान्तों के बहुत से रहस्य खुल जाते हैं। ऐसा प्रायः देखा जाता है कि खतरा दिखाई देने पर पक्षी बहुत शोर मचाना प्रारंभ कर देते हैं। पशुओं में भी संचार के अपने तरीके हैं। पशु प्रायः समूह में चलते हैं और कोई हिंसक शिकारी जानवर देखकर समूह के सभी सदस्यों को अपने संकेतों द्वारा सचेत कर देते हैं या उसका सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं। कुछ पशुओं में तो यहाँ तक देखा गया है कि उनमें से कोई कोई एक पहरा देता रहता है और शेष आराम से सो रहे या विचरण कर रहे होते हैं।
इस स्थिति के बाद अगला चरण आदिमानवों का आता है जब पृथ्वी पर गुरिल्ला ,चिम्पैंजी बंदरों आदि ने चलना प्रारंभ कर दिया था। ये जानवर अन्य जानवरों से आगे तथा मानव से कुछ ही कदम पीछे हैं ,इसीलिए इन्हें मानवों का पूर्वज भी कहा जाता है। ये हमारे पूर्वज छोटे -छोटे समुदायों या परिवारों में रहते थे। डर ,ख़ुशी या प्यार के मौके पर विभिन्न तरह की आवाजें निकाल कर अपनी मनोदशा को परिवार या समूह के अन्य सदस्य के समक्ष व्यक्त करते थे। संचार का यह तरीका एकदम लुप्त हो गया हो ,ऐसा नहीं है। सच्चाई यह है कि " अब भी कबीलों या आदिम जातियों में संचार में यह तरीके अपनाएँ जाते हैं क्योंकि उन्हें आधुनिक साधन और सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। दूसरे शब्दों में जब इन कबीलों या समुदायों को एक दूसरे को यह बताना होता है कि बाढ़ आने को है या वन्य प्राणियों के हमले का खतरा है तो ये लोग ढोल पीटते हैं या आग जलाते हैं और उसमें से काला ,नीला या बादामी रंग का धुँवा पैदा करते हैं जो गमी ,ख़ुशी ,लडाई या सुलह का घोतक माना जाता है। इस तरह अब हम संचार के उस पड़ाव के बहुत निकट आ गए हैं जहाँ से आज के मानव समाज में संचार की प्रक्रिया प्रारंभ होती हैं।
संचार भाषा के रूप में हिंदी
आज के विविध जनसंचार माध्यमों रेडियो ,टेलीवीजन, समाचार पत्र आदि द्वारा सर्वाधिक प्रयुक्त की जाने वाली भाषा हिंदी है। भारत की अधिकांश जनता इसे बोलती और समझती है। कुछ लोग इसे बोल भले ही न पायें ,पर समझते अवश्य है। फिल्मों ने हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा अवश्य दे दिया है। हिंदी की फिल्मों के दर्शक पूरे विश्व में फैलें हुए हैं। हिंदी में जितनी संख्या में छोटे और बड़े समाचार पत्र छपते हैं ,विश्व में किसी भाषा में नहीं छपते हैं। इस प्रकार हिंदी एक सशक्त संचार भाषा भी है।
Sanchar bhasha
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