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श्रम की महिमा कविता - भवानीप्रसाद मिश्र
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श्रम की महिमा कविता का सारांश मूल भाव
प्रस्तुत पाठ श्रम , कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी के द्वारा लिखित है। इस कविता के माध्यम से कवि बताना चाहते हैं कि परिश्रम और साधना का फल जरूर मिलता है। काम कोई भी हो, उससे कोई ऊँचा-नीचा, छोटा या बड़ा नहीं होता है। वर्तमान युग में हम श्रम के महत्व को भूल रहे हैं। हाथ से काम करने की आदत को छोड़ रहे हैं। ऐसा करना ठीक नहीं है। कर्म करने की शिक्षा तो गीता में स्वयं भगवान ने दी है। कर्म से ही जीवन का अस्तित्व है, कोई भी कार्य छोटा नहीं होता। अपनी जगह हर काम महत्वपूर्ण है। गाँधी जी इतने बड़े महात्मा होकर भी अपना सारा काम स्वयं करते थे। आश्रम में सुत काटना, कपड़ा बुनना, कपास बुनना, अनाज से कंकड़ चुनना, चक्की पीसना, प्रतिदिन शौचालय साफ करना ये सभी काम गाँधी जी किया करते थे । हमे श्रम से दूर नहीं भागना चाहिए। श्रम तो ईश्वर की तरह पूजनीय है...||
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श्रम की महिमा कविता की व्याख्या अर्थ
वह सड़क झाड़ता है
तुम व्यापारी
वह धरती में बीज गाड़ता है।
एक आदमी घड़ी बनाता
एक बनाता चप्पल
इसीलिए यह बड़ा और वह छोटा
इसमें क्या बल।
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रम , कविता से लिया गया है | यह कविता कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि काम कोई भी हो, उससे कोई ऊँचा-नीचा, छोटा या बड़ा नहीं होता है। तुम लोग कागज पर लिखते हो, सफाई करने वाला सड़क पर झाड़ू लगता है। व्यापारी व्यापार करता है, किसान जमीन में बीज बोकर फसल उगता है और एक वह व्यक्ति जो घड़ी की मरम्मत करता है, साथ ही वह व्यक्ति जो चप्पल बनाता है। ये सब काम एक ही है इस आधार पर कोई छोटा या बड़ा नहीं हो सकता है अर्थात् इस बात में कोई बल नहीं है, यह बात महत्वपूर्ण नहीं है |
सूत कातते थे गांधी जी
कपड़ा बुनते थे,
और कपास जुलाहों के जैसा ही
बुनते थे
चुनते थे अनाज के कंकर
चक्की पिसा करते थे
आश्रम के अनाज याने
आश्रम में पिसते थे
जिल्द बाँध लेना पुस्तक की
उनको आता था ।
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रम कविता से लिया गया है, यह कविता कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि गाँधी जी अपने आश्रम में अपने सारे काम अपने हाथ से किया करते थे। गाँधी जी अपने आश्रम में सुत काटकर खुद ही कपड़ा बुनते थे। वे जुलाहों की तरह ही कपास बुनते थे। गाँधी जी आश्रम में चावल से कंकड़ चुनते थे, खुद ही चक्की पिसा करते थे। आश्रम के अनाज को स्वयं ही आश्रम में पीस लेते थे। वे पुस्तकों की जिल्द भी बनाना जानते थे। गाँधी जी अपने काम करने के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहते थे |
शौचालय की साफ-सफाई
नित करना भाता था।
ऐसे थे गाँधी जी
ऐसा था उनका आश्रम
गाँधी जी के लेखे
पूजा के समान था श्रम।
भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रम कविता से लिया गया है, यह कविता कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी के द्वारा रचित है। इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहते हैं कि गाँधी जी श्रम को ही ईश्वर की पूजा मानते थे। वे प्रतिदिन आश्रम में पाखाना की सफाई करते थे | उनको यह काम करना अच्छा लगता था। उनका आश्रम साफ और सुन्दर था, उनके आश्रम में अपना काम स्वयं ही करते थे, ऐसे थे गाँधी जी और उनका आश्रम। गाँधी जी कहते हैं श्रम ही ईश्वर की पूजा है, उनके आश्रम में श्रम को ही ईश्वर की पूजा मानते थे |
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श्रम की महिमा कविता के प्रश्न उत्तर
बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रत्येक प्रश्न के लिए चार विकल्प दिए गए हैं। सही विकल्प का चयन करके बॉक्स में लिखिए ---
1.कर्म की शिक्षा किस प्राचीन ग्रन्थ से मिलती है ?
(क) महाभारत
(ख) गीता
(ग) रमायण
(घ) बाइबिल
उत्तर- (ख) गीता
2.जुलाहों का परम्परागत काम क्या है ?
(क) घड़ी बनाना
(ख) खेती करना
(ग) कपड़ा बुनना
(घ) अनाज बीनना
उत्तर- (ग) कपड़ा बुनना
3.इस कविता में सुत कातता कौन दिखाई देता है ?
(क) व्यापारी
(ख) आदमी
(ग) जुलाहा
(घ) गाँधी जी
उत्तर- (घ) गाँधी जी
4.इस कविता में पूजा के समान श्रम की महत्ता कौन बतलाता है ?
(क) भवानी प्रसाद मिश्र
(ख) जुलाहा
(ग) व्यापारी
(घ) गाँधी जी
उत्तर- (घ) गाँधी जी
5.चक्की का प्रयोग किस काम में होता है ?
(क) घड़ी बनाने
(ख) कपास बुनने
(ग) चप्पल बनाने
(घ) अनाज पीसने
उत्तर- (घ) अनाज पीसने
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लिखित
1.इस कविता में किसका महत्व बताया गया है ?
उत्तर-इस कविता में श्रम का महत्व बताया गया है |
2. श्रमिक क्या-क्या काम करते हैं ?
उत्तर-श्रमिकों के लिए कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता | वे सभी काम करते हैं, जैसे गाड़ी रिपेयरिंग, घड़ी बनाना, चप्पल बनाना, बर्तन बनाना, रोजी मजूरी करना, किसी के घर मजदूरी करना, नाली साफ करना, सड़क में काम करना आदि |
3.हम आदमी को छोड़ा-बड़ा किस आधार पर मानते हैं ?
उत्तर-हम आदमी को छोटा-बड़ा उसके काम के आधार पर मानते हैं | लेकिन यह महत्वपूर्ण नहीं है, कोई भी काम ऊँचा-नीचा या छोटा-बड़ा नहीं होता, सब काम बराबर होता है |
4.महात्मा गाँधी स्वयं क्या-क्या काम करते थे ?
उत्तर-गाँधी जी इतने बड़े महात्मा होकर भी अपना सारा काम स्वयं करते थे। आश्रम में सुत काटना, कपड़ा बुनना, कपास बुनना, अनाज से कंकड़ चुनना, चक्की पीसना, प्रतिदिन शौचालय साफ करना ये सभी काम गाँधी जी स्वयं ही किया करते थे |
5.गाँधी जी के लिए श्रम किसके समान था ?
उत्तर-गाँधी जी के लिए श्रम ईश्वर को पूजने के समान था |
6.बताओ, ये लोग क्या काम करते हैं ?
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
• किसान - किसान अनाज उगाने का काम करता है।
• जुलाहा - जुलाहा कपास बुनने का काम करता है |
• जिल्दसाज - पुस्तक बाँधने का काम |
• सफाई कर्मचारी - साफ-सफाई करता है |
• मोची - जूते-चप्पल बनाने का काम करता है |
• कुम्हार - मिट्टी के बर्तन बनाते हैं |
• घड़ीसाज - घड़ी बनाता है |
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भाषा संरचना
1. बहुवचन रूप लिखिए ---
उत्तर- निम्नलिखित उत्तर है -
• व्यापारी - व्यापारियों
• बीज - बीजों
• घड़ी - घड़ियों
• पुस्तक - पुस्तकों
• चप्पल - चप्पलों
• जुलाहा - जुलाहों
• कंकर - कंकरों
• आश्रम - आश्रमों
2. क्रिया-पदों के नीचे रेखा खींचो ---
(क)- तुम कागज पर लिखते हो।
उत्तर - तुम कागज पर लिखते हो।
(ख)- वह सड़क झाड़ता है।
उत्तर- वह सड़क झाड़ता है।
(ग)- एक आदमी घड़ी बनाता है।
उत्तर- एक आदमी घड़ी बनाता है।
(घ)- जुलाहों के जैसा ही बुनते थे।
उत्तर- जुलाहों के जैसा ही बुनते थे।
(ङ)- उन्हें सफाई करना भाता था।
उत्तर- उन्हें सफाई करना भाता था।
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श्रम की महिमा कविता के शब्दार्थ
• व्यापारी - व्यवसायी, सौदागर
• कपास - रुई
• आश्रम - कुटिया, साधु भवन
• शौचालय - पाखाना
• श्रम - मेहनत
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