ऐसा भी हो सकता है ? आज ‘कोलफील्ड सफाई विभाग’ हजारीबाग़, (झारखंड) के सफाई विभाग के एक साधारण हाल कक्ष सफाई कर्मचारी श्रीमती परबतिया देवी की सेवानिवृति
ऐसा भी हो सकता है ?
सफाई विभाग के ही एक क्लर्क श्री श्यामल गौतम आगे बढ़ कर कहने लगे, - ‘हम सब की प्यारी सफाई बहन श्रीमती परबतिया देवी आज से तीस वर्ष पहले हमारे विभाग में एक सफाई कर्मचारी के रूप में नियुक्त हुई थी और आज अपने कार्य के तीस वर्ष और अपने जीवन का 60 वर्ष पूर्ण कर अपनी सेवा से निवृत हो रही हैं I मैं श्रीमती परबतिया देवी के कार्य को नमन करता हूँ I’ - हाल में ताल्लियों की गड़गड़ाहट हुई और श्रीमती परबतिया देवी मेज के पीछे की लगी टीन की कुर्सी पर से उठी और सबको हाथ जोड़ कर पुनः कुर्सी पर बैठ गयी I
श्री श्यामल गौतम ने आगे कहा, - ‘जैसा कि आप सभी जानते हैं कि श्रीमती परबतिया देवी विगत तीस वर्षों से लगातार टाउनशिप की गलियों और सड़कों की सफाई करती रहीं और और टाउन शिप के निवासियों को स्वस्थ वातावरण उपलब्ध करती रहीं हैं I अतः उनके योगदान को स्मरण करते हुए अपने विभाग के पर्शनल मैनेजर श्री हंसदा से निवेदन करता हूँ कि आप श्रीमती परबतिया देवी को शाल ओढ़ाकर उनके के प्रति आभार प्रगट करें ......... I’
तभी आफिस का एक कर्मचारी बहुत ही तेजी से हाँफते हुए हाल में प्रवेश किया, सीधे श्री हंसदा के कान में कुछ फुसफुसाया I श्री हंसदा कुछ घबराए I चहरे पर उभर आये पसीने की बूंदों को अपने रुमाल से पोंछे I खड़े होकर सबको सूचना दी, - ‘प्रिय साथियों! हम सब अपनी संगकर्मिनी श्रीमती परबतिया देवी की सेवानिवृति समारोह को कुछ समय के लिए स्थगित कर दे रहे हैं I फिर श्रीहंसदा उपस्थित आफिस कर्मचारी को हाल और व्यवस्था को ठीक करने की बात समझकर चले गए I लोगों में काना-फूसी तेज हो गईं I
कुछ ही समय में एक साथ तीन बड़े अधिकारियों की शानदार नौकरशाही चमचमाती तीन गाड़ियाँ कोलफील्ड के इस साधारण दफ्तर के प्रांगण में सायरन बजाती हुई प्रवेश कीं I एक गाड़ी के आगे चीफ इंजीनियर, पूर्व-मध्य रेलवे, (धनबाद), दूसरी गाड़ी के आगे मुख्य चिकित्सक, PMCH, पटना, (बिहार सरकार) और तीसरी गाड़ी के सामने अभी भी नीली बत्ती जल रही थी, उसके सामने ही लिखा हुआ था, जिला कलक्टर, सिवान, (बिहार) I उनके साथ ही आये उनके खाकी वर्दीधारी अंगरक्षक आगे बढ़े और उनके पीछे तीनों अर्थात चीफ इंजिनियर, मुख्य चिकित्सक और जिला कलक्टर I दफ्तर के कई अधिकारी लोग लगभग दौड़ पड़े I जबकि कई तो स्वयं व्यवस्था में लग गए, किसी को कुछ भी कहने की फुर्सत ही कहाँ थी? अनेक लोग तो अभी तक की स्थिति को समझ भी न पाए थे I तीनों शानदार चाल से डेंगे नापते उस समारोह कक्ष में पहुँचे I सामने श्रीमती परबतिया देवी को देखते ही तीनों उसके पास पहुँच कर उसके चरणों को स्पर्श किये I परबतिया देवी के चहरे पर मधुर मुस्कान फ़ैल गई I वे तीनों दर्शक दीर्घा की साधारण टिन की कुर्सियों पर जा बैठे I सभा कक्ष में इस अनहोनी घटना के चश्मददीद गवाह बने लोग अभी भी हैरान थे I एक साधारण सफाई कर्मचारी की विदाई समारोह में तीन बड़े अधिकारी! पर्शनल मैनेजर श्री हंसदा हाथ जोड़े तीनों के पहुँचे और लगभग गिड़गिड़ाते हुए बोले, - ‘सोरी सर! आप सब के अनुकूल हम कोई व्यवस्था न कर पाए हैं I क्षमा करेंगे I सर ! सर ! आप लोग आगे टेबल की कुर्सियों पर आइये I’
चीफ इंजिनियर वीरेन हाथ जोड़े खड़ा हुआ और कहा, - ‘क्षमा तो हमें आप सब से माँगना चाहिए I कृपया आप हमें क्षमा करेंगे I बिना कोई पूर्व सूचना के ही हम आ गए I क्या करते हम? हम अपने आप को अपनी दृढ़ निश्चयी माता की सेवानिवृति समारोह में आने से रोक ही नहीं पाए I सर! आप कार्यक्रम को आगे बढ़ाइए I’ – वीरेन वहीं कुर्सी पर बैठ गया I
‘श्री हंसदा साहब! मेरा कठोर व्रत था कि मैं अपने बेटों को आप जैसे बड़ा साहब बनते देखूँ I और देखिये आज मेरे तीनों बेटे आपके सामने इंजिनियर, डॉक्टर और कलक्टर साहब के रूप में बैठे हैं I मेरे बेटों ने मुझे कई बार कहा कि माँ अब तुम यह सफाई का काम छोड़ दो I अब हमारे पास कुछ की भी कमी नहीं है I पर मैं उन्हें बराबर यही कहती रही हूँ कि मेरी सफाई करने की यह कोई मामूली नौकरी नहीं है, इसी नौकरी ने ही तुम तीनों को इतनी ऊँचाई पर पहुँचाया है I इसे भला कैसे छोड़ दूँ? फिर तो लोग यही न कहेंगे कि परबतिया घमंडी हो गई है, अमीरी को देखकर अपने आधार को ही छोड़ दी I काम कैसा भी हो, वह एक पूजा है I मैंने वही पूजा निरंतर की है और उससे प्राप्त फल आप सबके सामने हैं I’ – माँ परबतिया देवी टेबल के पास ही खड़ी होकर अपनी बातें कही I सभा में ताल्लियों की गडगडाहट हुई I
अब बारी थी श्रीमती परबतिया देवी के बेटे को अपने शब्द रखने की I यह मौका अन्य दोनों बड़े भाइयों ने सम्मिलित रूप से छोटे भाई मोहन, जिला कलक्टर, सिवान, (बिहार) को हवाले कर दिया I मोहन कुछ कदम आगे बढ़कर टेबल के पास आया और कहीं किसी अतीत में खोये हुए कहने लगा, - ‘मुझे तो अपने दुःख के समय का बहुत कुछ स्मरण नहीं है, पर माँ और भैया के मुँह से ही सुना है, कि हम कभी-कभी एक ही रोटी के चार टुकड़े कर के खा कर पानी पी कर सो जाया करते थे I मैं भूखा न रह जाऊँ, इसलिए माँ और मेरे दोनों भैया अपने हिस्से से कुछ न कुछ भाग छूपा कर रख देते थे और मुझे खिलाया करते थे I’ – मोहन का गला अवरूद्ध हो गया, वह कुछ रुका I आगे फिर कहना शुरू किया, - माँ और मेरे दोनों बड़े भैया ने मुझे हमेशा छोटा कहकर घर सम्बन्धित सारे दायित्वों को अपने कंधों पर उठाये रहें I जिम्मेवारी और बोझ क्या होता है, मैं उसे आज तक न जान पाया हूँ I मुझे गर्व है अपनी माता पर, जिसका एक बेटा रेलवे का चीफ इंजिनियर है, दूसरा मुख्य चिकित्सक और तीसरा जिला कलक्टर I पर ऐसी माननीया माँ को किसी से कुछ न चाहिए, बस सफाई कार्य की नौकरी की पूर्णता I माँ प्रतिदिन अपने कार्य पर निकलने के पहले पूजा करती हुई अक्सर कहा करती थी, कि हे भगवान! मेरी सेवानिवृति के पहले मुझ से मेरा यह काम न छूट जाय I इस काम ने ही मुझे सब कुछ दिया है, मान-सम्मान और इज्जत I मुझे ख़ुशी और गर्व इस बात की है कि हम तीनों ऐसी माननी माँ की संतान हैं और हम तीनों अपनी माँ की इच्छा पर खरे उतर सके हैं I मेरी माँ के संगी-साथी और कर्मी आप सभी को मेरा करबद्ध प्रणाम I धन्यवाद I’ – अपने जेब से रुमाल निकल कर अपनी आँखें पोंछता हुआ मोहन अपने भाइयों के बीच बैठ उनके कंधों से लग कर सुबकने लगा I जबकि उसके दोनों बड़े भाई भी मौन-मूक अश्रूजल टपका रहे थे I
यही दशा तो सभा में उपस्थित लगभग सभी की ही थी I परबतिया देवी अपने संगियों-कर्मियों के साथ घिरी हुई थी I सबके आश्चर्य को शांत करने की कोशिश रही थी I तीनों बेटे जो अक्सर सबसे घीरे रहते थे, आज तीनों ही एकांत में चुपचाप बैठे अश्रुजल प्रवाहित कर अपनी माता को नमन कर रहे थे I
आज के समाचार की मूल तो तीनों बेटों की माँ परबतिया देवी ही थी I मानो राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संवाददाताओं से घिरी सबसे सवालों को बहुत ही शान्ति के साथ उत्तर दे रही हो I यह देख कर आज तीनों बेटों के हृदय में एक सुखद सकून मिल रहा था I आज हर एक के जेहन में इस समय एक ही सवाल था, - ‘क्या ऐसा भी हो सकता है?’ उसका जवाब भी तो सबके सामने ही था I ‘हाँ! ऐसा हो सकता है!’
अपने हाथ में फूलों का गुच्छा लिए अपने तीनों अधिकारी बेटों के साथ परबतिया देवी उस सभाकक्ष से बाहर अपना कदम रखी और जा पहुँची आज से तीस वर्ष पहले की अभावग्रस्त अपने अतीत में I आज भी पूर्व की भांति ही सुबह नौ बजे से ही अपनी गोद में अपने तीन वर्षीय छोटे बेटे मोहन को लिये, उसी हाथ में अपने स्वर्गीय पति की मृत्यु की अनुकम्पा से नौकरी की मांग सम्बन्धित कागज-पत्रों को लिये और दूसरे हाथ से अपने छः वर्षीय मंझले बेटे धीरेन के हाथ थामे ‘कोलफील्ड के टाउन एडमिनिस्ट्रेटिव आफिस’ के एक-एक करके कई कमरों का चक्कर लगा ली I उनके पीछे-पीछे उसका नौ वर्षीय बड़ा लड़का वीरेन भी रहा है I
निर्दयी काली और नीली स्याही के आदेश पर चलने वाले बाबुओं और उनके विविध दफ्तरों के चक्कर काटती हुई परबतिया देवी अपने तीनों बच्चों को लिये ‘टाउन एडमिनिस्ट्रेटिव बिल्डिंग’ के सामने ही एक पेड़ के नीचे बैठकर अपने साथ लायी नमक लगी एक-एक रोटी अपने तीनों बेटों को थमा दी और स्वयं भी एक रोटी खाने लगी I अभी तो रोटी के कुछ ही टुकड़ों को उसके बच्चें और वह स्वयं अपने गले के नीचे ठीक से उतार ही नहीं पाए थे कि बड़े बाबू की सफेद गाड़ी आस-पास की धूल और सूखे पत्तों को उड़ाती ‘एडमिनिस्ट्रेटिव बिल्डिंग’ की ओर जाती दिखाई दी I वह हड़बड़ा उठी I अपने हाथ की रोटी के टुकड़ों को, फिर निर्मोही अपने तीनों भूखे मासूम बच्चों के हाथ से भी रोटी के टुकड़ों को छिन्न जल्दी से अपने पास के एक मैले-कुचैले पालीथीन बैग में रख ली I बड़का वीरेन और मंझला धीरेन तो चुप ही रहा, पर उसका छोटका मोहन बेटा रो-रो करके विरोध प्रगट किया I पर वह बिलकुल ही ध्यान न दी I बड़े बाबू आ गए हैं न! देर हो जाने से काम बिगड़ जायेगा न! ढाई-तीन महीने से विभिन्न दफ्तरों के चक्कर लगाते हुए परबतिया देवी अब इन बातों को समझने लगी थी Iरोते हुए छोटे मोहन को चुप कराने की कोई कोशिश भी न कर, उसे पुनः अपनी गोद में उठा कर कागज-पत्रों को उसी हाथ में थामें मंझले धीरेन के हाथ को पकड़े तेज क़दमों से आगे बढ़ चली I बड़ा लड़का वीरेन भी अपनी माँ के पीछे-पीछे हो लिया I बड़े बाबू के दफ्तर में ढुकने के पूर्व ही बाहर बैठा चपरासी बिगड़ गया, - साहब अभी पहुँच ही रहे हैं, कि तुम आ फटकी I अभी बाहर बैठो I बाद में जाना I’
‘भैया! मेरे भूखे बच्चों को देखो I आज तीन दिनों से भूखे हैं I तुम तो देख ही रहे हो, भैया! सब कुछ छोड़-छाड़कर आज महीनों से रोज इस दफ्तर में आ रही हूँ I कभी बाबू नहीं आते हैं, तो कभी बाबू बाहर चले जाते हैं I भैया! आज हमको बाबू से मिल लेने दो I शायद तुम्हरे आशीर्वाद से मेरे इन भूखे बच्चों को निवाला मिल जाय I’ – परबतिया देवी गिड़ागिड़ाने लगी I शायद दरवाजे पर बैठे चपरासी को दया आ गयी I उसने समझाते हुए कहा, - तुम घबराओ नहीं, बहन! आज बाबू से तुमको जरुर मिलवायेंगे I बस तुम थोड़ी देर तुम रूक जाओ I’
गरीब के मन में दूसरे गरीब के लिए दया-भाव उत्पन्न हो गया I गरीब के आश्वासन पर गरीब ने भरोसा भी कर लिया I विद्युत् ट्यूब लाइट की दुधिया रौशनी में नहाती उसी गलियारी में एक किनारे की दीवार से सट कर वह दुखिया अपने बच्चों सहित खड़ी हो गई I इसके बीच वह देर तक उस दरवाजे में प्रवेश करने वाले और बाहर निकलने वाले तमाम नेत्रों की घृणा की पात्र बनी रही I पर कुछ तो अधिकार और कुछ बच्चों की भूख ने उसे निरंतर संघर्षों करने के लिए नई शक्ति प्रदान कर रही थी I परिस्थितियाँ ही व्यक्ति-विशेष को परिस्थिति के अपने अनुकूल निर्माण कर देती है I लगभग एक घंटे बाद ही वह चपरासी परबतिया देवी को इशारे से पास बुलाया और धीरे से कहा, - ‘अभी बाबू खाली हैं, जाओ I उनके पैर ही पकड़ लेना I छोड़ना ही नहीं I इन बच्चों को भी लेते ही जाओ I ठीक ही रहेगा I’
दुःख की मारी बेचारी परबतिया देवी ने वही की I पहले तो बाबू नाराज हो गए, पर स्थिति की गम्भीरता को समझते हुए उन्होंने उसके सभी कागजों को देखा और फिर अपने उसी चपरासी को बुलाया I चपरासी तुरंत हाजिर I हाथ जोड़ कर एक किनारे खड़ा हो गया I परबतिया के मृत पति की अनुकम्पा पर उसे सफाई विभाग में नौकरी पर रखने का आर्डर लेटर उसे थमाते हुए कहा, - घनश्याम! तुम इस स्त्री को भी अपने साथ लेते हुए ‘पर्शनल सेक्शन’ चले जाओ I वहाँ पर मिस्टर विश्वास को यह कागज देना और कहना कि मैंने भेजा है I क्या उन्हें दीखता नहीं है, कि बिन बाप के बच्चों की क्या स्थिति होती जा रही है? अगर उन्हें कोई परेशानी हो, तो मुझसे बात करने के लिए कहना I जाओ I’ - फिर परबतिया देवी को आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा, - ‘जाओ, तुम्हारा काम हो जायेगा I जाओ I’ – बाबू ने बहुत ही विनम्र स्वर में कहा I
परबतिया देवी लगभग रोती हुई बाबू के चरणों को पकड़ ली और अंतरात्मा से वह बोली, - मालिक! आपका घर, बाल-बच्चा, सदा आबाद रहें I आपने हमारे बच्चों को भूखों मरने से बचा लिया I भगवान आपको हमेशा खुशहाल रखें I’ - फिर वह भी मय बच्चों के साथ उस चपरासी के पीछे-पीछे तेज क़दमों से चल दी ।
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‘‘माट’-साब! हम तो काले अक्षर भैंस बराबर हैं I अंगूठा के सहारे हमारा तो गुजारा हो ही रहा है, पर इन बच्चों का समय तो अब दूसरा ही है I पढाई लिखाई न करेगा तो, फिर इन्हें भी अपने बाप और मेरे तरह ही गलियों-नालियों की सफाई का काम छोड़कर और दूसरा क्या काम मिलेगा? हमारे साहब लोग भी कई बार मुझसे कह चुके हैं कि अगर कहो तो सफाई ठीकेदार से कह कर तुम्हारे बच्चों को भी अभी से सफाई काम में लगवा देता हूँ I अभी से दो पैसे कमाएंगे I घर में सहारा हो जायेगा I’ – परबतिया देवी नगर सफाई कर्मचारी वाली हल्की नीली पर गाढ़े लाल रंग के किनारे वाली साड़ी पहने सरकारी विद्यालय के मुख्य द्वार पर खड़ी होकर ही उस विद्यालय के मास्टर जी से विनम्रता सहित कही I
‘परबतिया बहन! तुम ऐसा हरगिज न करना I उम्मीद मत छोड़ो I तुम्हारे बच्चे तो काफी लायक हैं I देखती हो कक्षा भर में पढ़ाई में सदैव अब्बल ही रहते हैं I बड़े होकर एक दिन तुम्हारे सपनों को ये अवश्य ही पूरा करेंगे I तुम्हें समाज में मान-सम्मान प्रदान करवाएंगे I मुझसे जो कुछ भी बन पड़ेगा, मैं तुम्हारे इन होनहार बच्चों के लिए अवश्य ही करूँगा I वीरेन और धीरेन आज जब तुम स्कूल से घर लौटोगे, तो मेरे पास कुछ अच्छी पुस्तकें है, उन्हें लेते जाना, और उन्हें ध्यान पूर्वक अध्ययन करना I आगे के लिए बहुत ही मददगार साबित होंगे I बच्चों! अब तुम दोनों अपनी-अपनी कक्षा में जाओ I बहन परबतिया, इस छोटे नवाब को कब से स्कूल भेज रही हो?’ - उस सरकारी स्कूल के मास्टर साहब बहुत ही विनीत और मिलनसार हैं I वे बच्चों की जाति और उसके अभिभावकों के कार्य पर ध्यान न देकर बच्चों की बौद्धिक और मेधावी शक्ति को महत्व दिया करते हैं और उन्हें तरासा करते हैं I
‘माट’-साब! जब कहे, तब से ही इसे भी भेज देवे I ऐसे भी घर पर अपने दोनों भैया के साथ पढ़ने पर जरुर बैठता है I पाँच वर्ष का ही तो है, पर बीस तक का पहाड़ा, ककहरा-बारह-खड़ी और अंग्रेजी में उ क्या कहते हैं, न, ए-बी-सी-डी I सब पढ़ लेता है I मोहन बेटा! माट’-साब को पढ़ के सुनाओ I’ – और फिर छोटा मोहन किसी गाड़ी की गति से ‘ए’ से लेकर ‘जेड’ तक एक सुर में ही कह सुनाया I
‘तुम्हारे बच्चों का क्या कहना, बहन I तुम बहुत ही भाग्यवान हो, जो ऐसे होनहार बच्चे तुम्हें नसीब हुए हैं I इस छोटे को भी उन दोनों के साथ स्कूल भेज दिया करना I स्कूल आयेगा, तो कुछ अधिक सीखेगा ही I अच्छा बहन! अब तुम भी अपने काम पर जाओ और मुझे भी अपना काम करने दो I’ – मास्टर साहब हाथ जोड़ कर परबतिया देवी को विदा किये और स्वयं उस और बढ़ गए, जहाँ सभी विद्यार्थी प्रार्थना गीत गाने के लिए पंक्तिबद्ध सावधान मुद्रा में खड़े थे I मास्टर साहब को देखते ही सबसे सामने खड़ा विद्यार्थी चिल्लाया, - “शुभ प्रभात गुरुदेव I” – फिर विद्यालय के हर एक कण से “शुभ प्रभात” शब्द की सम्मिलित प्रतिध्वनि सुनाई दी I तत्पश्चात ‘वर दे वीणावादिनी वरदे’ का सम्मिलित प्रार्थना गीत गूँज उठा I पर बहुत ही लयात्मक और अनुशासित ढंग से I
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आखिर सर्द की रातें और ठंढे दिन क्रमशः प्रकृति से विदा लेने लगे I चतुर्दिक मनोरम बसंती धूप खिलने लगी I कुछ बसंती धूप और सौन्दर्य श्रीमती परबतिया देवी के उस छोटे से आँगन में भी आने लगी I घर-आँगन में छुप कर बैठी सर्द भी विदा होने लगी I बड़ा वीरेन भी बारहवीं सहित इंजीनियरिंग की परीक्षा में अपने जिले भर में सर्वोच्च अंक प्राप्त कर मास्टर साहब की प्रेरणा से राँची के सरकारी संस्था ‘NIFFT’ में ‘सिविल इंजीनियरिंग’ में एडमिशन ले लिया I घर में सभी पढ़ने वाले और आमद का मात्र एक ही स्रोत परबतिया देवी की सफाई-सेवा कार्य से प्राप्त मामूली-सा वेतन I पर वीरेन अपनी माँ को आश्वासन दे चुका है, कि उसकी पढ़ाई के लिए चिंता की कोई बात नहीं हैं I उसे सरकार की ओर से पढ़ाई-लिखाई के लिए प्रतिमाह कुछ आर्थिक मदद मिल जाया करेगी I फिर वह राँची जैसे शहर में दो-तीन ट्यूशन करके भी अपने हॉस्टल तथा अन्य खर्चों का जुगाड़ कर लिया करेगा I मन की दृढ़ता संकट की दीवार को एक-एक कर धराशायी करने लगी I
वीरेन राँची में ही जा कर बस गया I कारण बार-बार घर आने-जाने से खर्च बढ़ेगा I घर पर आर्थिक दवाब बढ़ेगा I फिर भी अपनी ट्यूशन की कमाई से प्रतिमाह कुछ रूपये अपने घर पर भेजने भी लगा I देखते-देखते तीन वर्ष कैसे गुजर गए, पता ही नहीं चला I इधर वीरेन का फाइनल वर्ष और उधर धीरेन भी अपने भैया के मार्ग का अनुसरण करके मेडिकल की परीक्षा में अपने जिले भर में कीर्तिमान स्थापित किया I आस-पास के आर्थिक सम्पन्न विद्यार्थी व लोग दाँतों तले अंगुलियाँ दबा लिये I पर यह कोई दया से प्राप्त फल न था, बल्कि यह एक अभावग्रस्त परिवार की सम्मिलित प्रयास था I जिस परिवार में आगत संकट की घात को सहने के लिए हर कोई अपनी पीठ आगे कर दे रहा था I शायद संकट को भी अपनी योग्यता पर संदेह होने लगा था I फिर सबके सम्मिलित प्रयास से धीरेन भी पटना के PMCH में चिकित्सकी पढ़ाई करने लगा I वह भी बड़े भैया की ही भांति अपना ज्यादा समय पटना में ही बिताने लगा I केवल पढ़ाई के कारण ही नहीं, बल्कि वीरेन भैया की ही भांति कुछ आर्थिक संबलता हेतु I उसने भी दो-तीन अच्छे ट्यूशन पकड़ लिये थे I पर भैया से चुपके I भैया जान जाते, तो बहुत नाराज होते और किसी भी हाल में उसे ट्यूशन कार्य की ओर न जाने देते I
शायद माँ भारती को भी अपने मनपसंद घर की तलाश पूर्ण हो गई थी, जहाँ वह काफी मान-सम्मान प्राप्त कर रही थीं I जिससे वह भी अभिभूत होकर अपनी विद्या-बुद्धि-बल से उस परिवार को निरंतर समृद्ध करने में लगी हुई थी I अब तो वह अपनी सहेली लक्ष्मी को भी न्योता दे दीं I वीरेन ‘सिविल इन्जिनियिंग’ में अपनी अब्बलता को साबित करते हुए पूर्व रेलवे के ‘धनबाद मंडल’ में चीफ इंजिनियर के उच्च पद पर आसीन हो गया I इस साल श्रीमती परबतिया देवी कोई बारह-तेरह वर्षों के बाद अपने घर में पहली बार बहुत ही धूमधाम से निर्जला कार्तिक छठ व्रत करने को ठानी I शाम के समय बड़े बेटे रेलवे के चीफ इंजिनियर वीरेन के माथे पर छठी मैया की सजी हुई ‘दउरा’, घी के जलते दीये के साथ सवार हुआ और घर के पास के ही नाथूराम के ढोल के ताल पर ‘काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये’ के सम्मिलित गीत के साथ ही दामोदर नदी के छठ-घाट पर अन्य छठ व्रतियों के साथ पहुँच गई I कमर भर ठंडे पानी में परबतिया देवी खड़ी रह कर शाम के डूबते सूरुज देव से अपने बच्चों की उन्नति की याचना करती हुई अरग दी I फिर भोर में ही सूप और दउरा सजा कर जलते दीये की मद्धिम रौशनी में परबतिया देवी अपने पुत्रों के साथ छठी-घाट की ओर चल पड़ी I अद्भुत छवि! नदी के किनारे ईख के अनेकों टुकड़े पानी में गड़े हुए I विभिन्न प्रकार के छोटे-छोटे दीये अपनी छोटी-छोटी रौशनी से ही आस-पास के अंधकार को पराजित कर सबके चहरे को पिलाभ किये हुए थे I ढेर की संख्या में स्त्री-पुरुष के साथ ही कमर भर पानी में उतर कर उदित सूरुज देव को अपनी मनोकामना सुनाती हुई व्रती परबतिया देवी सूरुज भगवान् को अरग देकर भी पानी से निकली और अपने छोटे बेटे मोहन के हाथ से एक चमच दही, धीरेन के हाथ ‘अरगउवा ठेन्कुआ’ और वीरेन के हाथ से ‘अगरउवा केला’ खा कर अपना निर्जला व्रत को पूर्णता प्रदान की और फिर अपने बेटों को छठी मैया का प्रसाद दी I
देखते-देखते धीरेन का डाक्टरी भी पूर्ण हो गई और वह भी पटना में ही PMCH का एक बेहतर डॉक्टर के रूप में कार्य भाल संभाल लिया I छोटा मोहन भी ग्रजुयेट हो गया I माँ को विश्वास में लेकर वीरेन और धीरेन दोनों भाइयों का विचार हुआ कि छोटा मोहन ‘सिविल सर्विस’ की तैयारी करेगा I मोहन भी तन-मन से ‘सिविल सर्विस’ की तैयारी में लग गया I और अपने दोनों भाइयों द्वारा प्रशस्त मार्ग पर चलकर प्रथम प्रयास में ही अपनी सफलता को स्थापित कर अपने भ्राताओं के विश्वास पर खरा उतरा I
तीनों संबल बेटों ने अपनी माता को सफाई सम्बन्धित कार्य से मुक्ति लेने का परामर्श दिए I अब घर में कमी भी क्या थी? पर परबतिया देवी का मानना थी कि वह इस सफाई की नौकरी को नहीं छोड़ सकती है I इस मामूली-सी नौकरी ने ही, तो उन्हें इंजिनियर, डाक्टर और कलक्टर जैसे साहब बनाया है I फिर काम तो आखिर काम ही है I काम में दोष कैसा? अपने काम को पूर्ण कर इज्जत से सेवानिवृति को प्राप्त करेगी I इससे अधिक कुछ भी माँ को बोल पाने की हिम्मत उन्हें प्राप्त नहीं हुई थी I परबतिया देवी अपनी नौकरी पर जाती ही रही I पर किसी के सम्मुख अपने बेटों के पदों के बारे में कभी भी एक शब्द भी न उचारी थी I
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‘माँ! आज अब अपने इन तीन मजबूत कन्धों में चुनों I तुम किस कंधे के सहारे अपने घर जाना चाहोगी?’ – सबसे छोटा मोहन कुमार, जो कलेक्टर है, उसने कहा I
‘अं - अ!’ – परबतिया देवी अचानक अपने अतीत से लौटी I तुम तीनों ही मेरे कंधे हो I मुझे अब क्या फर्क पड़ता है कि किसका कंधा है? जो चाहो अपना कंधा बढ़ा दो I मुझे तो अब किसी की सहारे की ही जरुरत है I’- माँ ने दुलार पूर्वक सबके मान को रखती हुई कही I
‘नहीं माँ! आज कोई बहाना नही I आज तुम मेरे कंधे पर घर चलोगी I मुझे छोटा-छोटा कहकर मेरे कंधे पर तुम आज तक कोई बोझ न दी हो I आज तो इस बोझ को उठाने दो I’ – छोटा मोहन मचल उठा I
‘छोटे मोहन! मेरे कंधे से तुम्हारा कन्धा इतना मजबूत कैसे हो गया रे! माँ तो मेरे कंधे पर ही घर जायेगी I’- यह था मंझला धीरेन I
‘तुम सभी चुप करो I अपने अफसरगिरी अपने आफिस में ही रखना I यहाँ तुमलोग से बड़ा मैं हूँ और बड़े के रहते हुए माँ की बोझ तुम लोग लो, यह कैसे हो सकता है? माँ मेरे कंधे पर ही घर जायेगी I’ – वीरेन ने जोश से कहा और माँ के पास आगे बढ़ा I
तभी एक साधारण लूँगी और गाढ़ी की मिर्जई पहने बैजूनाथ आगे बढ़ा I बहुत ही आदर भाव से हाथ जोड़कर सबके सामने शीश झुकाया और कहा, - ‘आप बड़े-बड़े साहब लोग! मुझे माफ़ कीजिएगा I आज माता जी मेरे साथ मेरे रिक्शे पर सवार होकर पहले मेरे घर पर जाएँगी I कल तक माताजी को मैं ही जबरन अपने रिक्शा पर बैठा कर यहाँ आफिस में लाते और ले जाते रहा हूँ I आज सबेरे भी माताजी मेरे रिक्शा पर ही सवार होकर यहाँ आई हैं I मेरी पत्नी शनिचरी आज के विशेष दिन के लिए खीर-पुड़ी बनाकर माँ जी का इंतजार कर रही है I आज इनकी सेवानिवृति के दिन मैं इनको भला कैसे भूल सकता हूँ? कदापि नहीं! माताजी के ही सहयोग से हमारे जीवन का एकमात्र सहारा ‘चन्दनवा’ आज जिन्दा है और इनकी सहायता से ही आज वह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है I अगला साल वह भी इंजीनियर हो जाएगा I फिर वह भी आपके जैसा एक दिन बड़ा साहब बनेगा I अपने बच्चे को इंजीनियरिंग में पढ़ने की मेरी कोई क्षमता भी है क्या? चलिए माता जी! आज मैंने अपने रिक्शे को नवेली पालकी की तरह खूब सजाया है I चलिए I’ – और माँ के हाथ से शाल, फूलों का गुलदस्ता व मिठाई के पैकेट को जबरन लेते हुए आगे बढ़ कर उन्हें अपने रिक्शे पर रख दिया और माँ जी के हाथ को पकड़े उन्हें जबरन अपने रिक्शे पर बैठा लिया और तीनों बड़े अफसर भाइयों की बोलती बंद कर दी I
तीनों बड़े अधिकारी बेटे पैदल आगे-आगे, उनके पीछे ढोल बजाता नाथूराम, उसके पीछे बैजू के रिक्शे पर माँ परबतिया देवी और उनके पीछे नीली बत्ती लगी कलक्टर की गाड़ी, फिर उसके पीछे चीफ इंजिनियर की, फिर उसके पीछे मुख्य चिकित्सक की गाड़ी और सबके पीछे लोगों का हुजूम I आज तक यह सड़क ऐसी विचित्र समारोह की साक्षी न बनी थी I
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