एक बाबा का उसकी पोती के तीसरे जन्मदिन पर लिखा पत्र जो पोती को दस बे जन्मदिन पर पढ़ना हैं प्रिय मायरा शुभ आशीष एवं ढेर सारा प्यार ।
एक बाबा का उसकी पोती के तीसरे जन्मदिन पर लिखा पत्र जो पोती को दस बे जन्मदिन पर पढ़ना हैं
प्रिय मायरा शुभ आशीष एवं ढेर सारा प्यार ।
मैं तुम्हारी तीसरी बर्थ डे पर यह खत लिख रहा हूं। अभी तुम बहुत छोटी हो और मैं चाहता हूं की यह खत तुम अपनी दसबी बर्थ डे पर पढ़ो। तुम सोचो गी कि जब खत दसबी बर्थ डे पर पढ़ना हैं तो उस को तीसरी बर्थ डे पर लिखने की क्या जरूरत हैं। तब इसके दो कारण हैं।
पहला इस बात की बहुत कम सम्भावना हैं कि तुम्हारी दसबी बर्थ डे पर तुम्हारा बाबा इस दुनिया में होगा और दूसरा अपने बिचारो को रोकना नहीं चाहिए जैसे ही बोह आपके मस्तिष्क में आये उनेह कागज़ पर लिख लेना चाहिए।
जब तुम इस दुनिया में आयी में उस समय तुम्हारे पास नहीं था। तुम बंगलौर में पैदा हुई और उस समय में बरेली में था। तुम्हारे पैदा होने के दो घंटे बाद मुझे पता चला। मैं बहुत खुश हुआ पर मैं थोड़ा भयभीत भी हुआ। मुझे लगा कि मैं ज्यादा से ज्यादा दस बरस ही अपनी पोती के साथ खेल पाउँगा और उसे कुछ संस्कार दे पाउँगा। किन्योकि तुम्हारे पैदा होने के समय में साठ बरस का था। फिर मेंने सोचा कि दस बरस कम नहीं होते हैं और बहुत से बाबा तो बगैर अपने पोतों पोती को देखे इस दुनिया से चले गए। मैं कोशिश करता हूं कि मैं अधिक से अधिक तुम्हारे साथ खेल सकू और अपना समय बिता सकू। अब ये कोशिश कितनी कामयाब होती हैं और कब तक होती हैं। यह ईश्वर के आधीन हैं।
दूसरे दस बरस में आप समझधार हो जायेगी और दुनिया को अपनी नजर से देखने लगो गी और तब कभी कभी कन्फूशन अंसमंस ,चिरचिरा पन और गुस्सा महसूस करो गी। ऐसे समय में तुम्हें अपने दादा की आबयशकता महसूस होगी और उस समय तुम्हारा दादा तुम्हारे नजदीक नहीं होगा तब तुम्हारे लिए यह पत्र उपयोगी साबित होगा।
दस बरस की उम्र में तुम महसूस करो गी कि एक माता पिता और एक बच्चे के बीच कोल्ड वार की स्थिति सी हो जाती हैं और यह अब-श्यामभाभी हैं। तुम्हारे माता पिता भी कहें गे ," यह मत करो , बोह मत करो , यह कपड़े पहनो ,बोह कपडे मत पहनो। ऐसे पढ़ो , इतना पढ़ो । यहाँ जाओ बंहा मत जाओ और पता नहीं क्या क्या "। मैं यह नहीं कह रहा कि तुम उनकी सारी बातें मानो । मैं सिर्फ यह कह रहा हूं कि तुम उनकी बातों पर भी ध्यान दो। बोह तुम्हारे माता पिता हैं और तुम्हारे सबसे क़रीबी मित्र हैं। तुमको लेकर ,तुम्हारे भविष्य को लेकर बोह बहुत चिंतित हैं।
मैं जानता हूं और मानता हूं कि ना तो हर व्यक्ति सही होता हैं और ना ही सच्चा किन्तु तुम्हें सीखना होगा पहचान करना कि कौन अच्छा हैं और कौन बुरा |तुम्हें सीखना होगा कि दुश्मनों के साथ साथ मित्र भी होते हैं और हर विरूपता के साथ साथ सुंदर चित्र भी होते हैं। किन्तु तुम्हें पहचान करना सीखना होगा कि कौन मित्र हैं और कौन दुश्मन। तुम्हें सीखना होगा कि कौन सियार की खाल में भेड़िया हैं और तुम्हें ऐसे लोगो से बच कर रहना होगा।
समय भले ही लग जाए पर तुम्हें सीखना होगा कि पाए हुए सो रुपए से बेहतर हैं स्वंय के दस रुपए कमाना। तुम्हें सीखना होगा कि धोखे से सफलता पाने से असफल होना सम्मान जनक हैं। तुम्हें सीखना होगा कि मिली हुई हार को कैसे झेले और जीत की खुशिया कैसे मनाएं । जितना हो सके तुम्हें ईर्ष्या और द्वेष से दूर रहना होगा और जीवन में छिपी मौन मुस्कान का पाठ और उसके महत्व को सीखना होगा। तुम्हें देखना होगा किताबों में छिपा खजाना।
तुम्हें बख़्त देना हैं आकाश में उड़ते पक्षिओ के लिए , हरी भरी पहाड़िया के लिए , समुद्र के लिए और फसलों से लहराते खेतों के लिए , सूर्य के लिए , चन्द्रमा के लिए और आकाश में चमकते तारो के लिए |
तुम्हें रहना होगा दयालु के साथ दयालु और कठोर के साथ कठोर और लकीर का फकीर बन कर उस भीड़ के साथ ना भागना होगा जो निरर्थक करती हैं शोर। तुम्हें सीखना होगा कि सब की सुनते हुए अपने मन की भी सुन सको , दुःख में भी मुस्करा सको। घनी वेदना से आहत होने पर भी खुशी के गीत गए सको।
तुम्हें यह सीखना होगा कि आँसू बहते हैं तो बहने दो , इसमें कोई शर्म नहीं , कोई कुछ कहता हे तो कहने दो। तुम्हें तपना होगा , बहुत बहुत मेहनत करनी होगी अपने लक्ष्य को पाने के लिए किन्योकि तप तप कर ही लोहा खरा बनता हैं और तप पाकर ही सोना निखरता हैं।
तुम्हें भीड़ में भी अपनी पहचान बरकरार रखनी हैं। तुम्हें खुद को ऐसा बनाना हैं की ना तो कोई शत्रु और ना ही कोई मित्र तुम्हें सताने का , तुम्हें कष्ट पहुंचाने का साहस रख सके। तुम्हें खुद पर बिश्बास करना हैं और हर बार हारने के बाद पुनः प्रयास करना हैं और तब तक करना हैं जब तक सफलता हासिल नहीं होती हैं।
तुम खुद को कभी अकेली मत समझना , तुम्हारा दादा दूर आकाश में बैठा तुमको देख रहा होगा।
अशोक कुमार भटनागर
रिटायर वरिष्ठ लेखा अधिकारी
रक्षा लेखा विभाग , भारत सरकार
श्री अशोक कुमार भटनागर जी,
जवाब देंहटाएंआपका यह लेख पढ़ा। बच्ची को सीख देने के उद्देश्य से लिखी इस पाती के भाव और विचार उत्तम लगे।
ऐसा लगा कि आपने स्वविवेक-निर्णय से जान-बूझ-समझकर पाती की भाषा को ऐसा रखा है जिससे यह लगे कि गाँव में बसे दादाजी की हिन्दी में व्याकरणिक त्रुटियाँ हैं। किंतु भाव और भाषा की सामंजस्यता में मुझे एक कमी सी महसूस हुई।
मेरे विचार से पत्र की भाषा शुद्ध हिन्दी होती तो और भी अच्छा होता।
लेख आपका है और अंतिम निर्णय भी आपका ही होगा।
सादर,
रंगराज अयंगर।