जहां सुमति तहां संपत्ति नाना चौपाई रामायण जहाँ सुमति तहँ संपति नाना जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना ramcharitmanas जहां कुमति तहाँ विपति निधाना निबंध
जहाँ सुमति तहँ संपति नाना
जहां सुमति तहां संपत्ति नाना चौपाई रामायण जहाँ सुमति तहँ संपति नाना जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना Ramcharitmanas जहां कुमति तहाँ विपति निधाना जिस परिवार मे ,समाज मे तथा राष्ट्र मे लोगों मे सुमति होगी वह परिवार समाज अथवा राष्ट्र धन - धान्य से पूर्ण होगा ।वह पर लोगों को हर प्रकार की भौतिक एवं आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त हो जाएंगी । मनुष्य और पशु मे मुख्य भेद बुद्धि या विवेक का ही है । मनुष्य जब सोच विचार कर , बुद्धि अथवा विवेक से काम लेता है तभी वह मनुष्य है नहीं तो उसमें और पशु मे क्या अंतर है । बुद्धि या विचार शक्ति भी दो प्रकार की होती है ,एक को सुमति तथा दूसरे को कुमति कह सकते हैं । सुमति का अर्थ है लोक कल्याण एवं लोक मंगल के लिए सोचना जब कि कुमति का अर्थ है लोगों को हानि पहुंचाने का प्रयास करना ,अपने छोटे से स्वार्थ के लिए दूसरों के विनाश की योजनाएँ बनाना । सुमति अथवा कुमति का संबंध पुस्तकीय ज्ञान अथवा बड़ी - बड़ी उपाधियों से जुड़ा हुआ नहीं है । सुमति मन की वह दशा है जबकि वह सात्विक वृत्तियों के अधीन होता है । जब मन मे सृष्टि के कण - कण से रागात्मक संबंध बनाने का भाव पैदा हो , जब मनुष्य सहयोग ,सहानुभूति ,दया - ममता ,परोपकार ,ईमानदारी तथा निस्वार्थ सेवा का भाव लेकर जीवन संघर्ष मे उतरता है तो हम उसकी सुमति के दर्शन करते हैं । सुमति का अर्थ यह भी है कि मनुष्य सर्वजन हिताय एवं सर्वजन सुखाय काम करें । दूसरे प्रकार की बुद्धि कुमति कहलाती । यह मन की तामसिक शक्ति है । इसका आधार मन मे दबी वासना होती है । जब मनुष्य पशु - वृत्तियों का शिकार हो जाता है ,हिंसा ,घृणा ,स्वार्थ ,क्रूरता ,काम वासना ,क्रोध ,लोभ ,मोह आदि दुर्गुणों की पट्टी उसकी आँखों पर बंध जाती है ,तो उसे कुमति का शिकार समझना चाहिए ।
सत्संग की खोज
सुमति का सीधा संबंध सत्संग से है । अच्छे लोगों के संग रहने से सुमति पैदा होती है और सुमति के रहने से मनुष्य सत्संग की खोज करता है ।अच्छी संगति से अच्छे विचार और अच्छे विचारों से अच्छा आचरण जन्म लेता है । महात्मा तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस के निर्माण मे सुमति को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया है ,वे लिखते हैं कि -
सुमति भूमि थल हृदय अगाधू। बेद पुरान उदधि घन साधू॥
बरषहिं राम सुजस बर बारी। मधुर मनोहर मंगलकारी॥
अर्थात सुमति या अच्छी बुद्धि ही वह आधार है , जिस पर राम भक्ति का सरोवर बन सकता है । सुमति के बिना तो ईश्वर की भक्ति भी संभव नहीं है । कुमति ,अज्ञान एवं अहंकार की संतान है ,इसीलिए उसका अंत विनाशकारी होता है । कवि के शब्दों मे -
संगति सुमति न पावहिं परे कुमति कै धंध ।
राखौं मेलि कपूर मैं हींग न होई सुगंध । ।
अर्थात जो लोग बुरे विचारों ,बुरे भावों तथा बुरे कामों मे फंसे हैं ,उन्हे न सत्संग मिल सकता है और न ही सुबुद्धि ।
विनाश काले विपरीत बुद्धि
कुमति का आना निश्चय ही प्रभु कृपा से वंचित होने का प्रमाण है । कहावत है कि विनाश काले विपरीत बुद्धि अर्थात जब मनुष्य का विनाश निकट होता है तब उसकी बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाती है । इसके विपरीत जब सुमति आती है तब उसके साथ ही एकता या संगठन का भाव भी जागता है । सुमति का अर्थ ही है सभी प्राणी मे एक ही परमेश्वर का रूप देखना । जब मनुष्य ,मनुष्य मात्र की समता मे विश्वास करने लगता है तब एकता की भावना का उदय होता है । सहानुभूति, सेवा ,सहायता एवं संगठन सुमति के ही परिणाम है । जिस व्यक्ति मे सुमति है उसका पारिवारिक जीवन सुखी होगा । वह माता - पिता की सेवा करेगा , उनकी आज्ञा मानेगा और फलस्वरूप उनका आशीर्वाद तथा शुभकामनायें प्राप्त करेगा । ऐसा व्यक्ति भाई - बहनों ,पत्नी तथा बच्चों के प्रति अपने कर्तव्यों को समझेगा और उन्हे पूरा करने का प्रयास करेगा । घर मे कलह नहीं होगी ,बच्चों का अनावश्यक दमन नहीं होगा । घर स्वर्ग के समान सुखद बन जाएगा । ऐसा व्यक्ति कभी भ्रष्ट तरीकों से धन नहीं कमाएगा । इसीलिए वह गलत रास्तों पर नहीं जाएगा । ईमानदारी और परिश्रम से आजीविका कमाकर परिवार का पालन पोषण करेगा तो बच्चों के संस्कार भी अच्छे आएंगे ।
जिस समाज मे सुमति का अभाव होता है , वहाँ पर अव्यवस्था ,हिंसा ,लूटमार तथा छल - कपट का बाज़ार गरम रहता है । ऐसा समाज निरंतर अशांति का शिकार रहता है । ऐसे समाज मे स्वाभिमान ,जातीय प्रेम तथा देशानुराग का अंकुर नहीं फूटता । वहाँ पर जयचंद और जाफ़रों की भरमार रहती है । ऐसे समाज मे धर्म ,जाति ,वर्ग अथवा भाषा के नाम पर संघर्ष होने लगते हैं । वहाँ पर अज्ञान के अंधेरे का अखंड साम्राज्य हो जाता है तथा ज्ञान का प्रकाश पूर्णतः लुप्त हो जाता है । इसके ठीक विपरीत यदि समाज मे सुमति का विकास हो तो समस्याओं मे राह निकल आती है ,पारस्परिक सद्भाव से टकराव की स्थितियाँ टल जाती हैं । त्याग एवं सहयोग की उच्च भावनाएं मनुष्यों को एक दूसरे के सुख दुख मे भाग लेने की प्रेरणा देती है । तब जातिवाद ,संप्रदायवाद ,भाषावाद ,प्रांतीयता अथवा छुआछूत का नाम तक नहीं रहता है । सारा समाज एक हो जाता है । सुमति के कारण एकत्रित हुआ समाज समाज अजेय होता है । सुमति मे दंभ या दर्प नहीं होता है । इसमें विनम्रता ,शिष्टता एवं सदाचार समाया रहता है । अच्छे बुरे का विवेक अथवा आत्मा की आवाज पर बड़े से बड़ा त्याग करने का भाव सुमति से ही पैदा होता है ।
अच्छी शिक्षा
सुमति का संबंध शिक्षा से भी है । ज्ञान हमारा तीसरा नेत्र हैं । इसकी सहायता से अच्छे भाव या संस्कार भी ग्रहण किए जा सकते हैं । ज्ञान और सुमति मे अंतर हैं । ज्ञान का आधार शास्त्रीय ज्ञान होता है और उसका प्रमाण शस्त्र का आप्त चयन होता है । सुमति का प्रमाण आचरण अथवा व्यवहार ही होता है । विद्वान मे सुमति हो ही ,यह आवश्यक नहीं है । रावण विद्वान था परंतु उसकी कुमति ने उसे विश्व भर मे हंसी का पात्र बना दिया । जहां सुमति होगी वहाँ पर मानसिक शांति एवं हार्दिक आनंद के साथ - साथ लक्ष्मी का भी निवास होगा । सुमति मनुष्य के आचरण को सुधारती है और सुधरा हुआ आचरण आर्थिक समृद्धि का कारण भी बन जाता है । सुमति के कारण ही मनुष्य धन - दौलत प्राप्त कर सकता है ।
कुलमिलाकर यह कहा जा सकता है कि जहां सुमति है वहाँ पर हर प्रकार की संपत्ति रहती है , जहां कुमति है वहाँ पर कंगाली छाई रहती है । हमारी सुमति या कुमति पर आने वाले विश्व की छाया अवश्य रहेगी ।
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