सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्यगत विशेषताएँ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्य चेतना का मूल्यांकन sarveshwar dayal saxena ki kavyagat visheshta भाषा शैली
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्यगत विशेषताएँ
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्यगत विशेषताएँ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्य चेतना का मूल्यांकन sarveshwar dayal saxena ki kavyagat visheshta सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविताओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन - तीसरा सप्तक के कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हिन्दी मे नयी कविता के एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप मे उभर कर हमारे सामने आए । हिन्दी कविता को आपने जीवन की मुख्य धारा से जोड़ा । आपकी मुख्य रचनाएँ जिनमें काठ की घंटियाँ ,बांस का पूल , एक सूनी नाव , गर्म हवाएँ ,कुआनो नदी , जंगल का दर्द , खूंटियों पर टंगे लोग आदि । इसके अतिरिक्त उन्होने उपन्यास , नाटक और बाल साहित्य की भी रचना की है । सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की कविता की निम्नलिखित विशेषताएँ सामने आती है -
व्यापक जीवन का चित्रण
तीसरा सप्तक मे अपना वक्तव्य देते हुए कवि ने यह स्पष्ट किया है कि वे कविता इसीलिए करते हैं क्योंकि हिन्दी मे व्यापक जीवन को अपनी कविताओं का विषय बनाने वाले कवि नहीं है । सर्वेश्वर जी की कविता व्यापक जीवन के विविध अनुभवों की कविता है । उनका यह मानना है कि कविता किसी भी विषय पर लिखी जा सकती है क्योंकि वह मानव जीवन का दर्पण है । कविता के माध्यम से कवि राजनैतिक ,सामाजिक ,आर्थिक तथा अन्य क्षेत्रों मे जर्जर परम्पराओं से लड़ने का प्रयास करता है । कवि ,यदि सच्चा कवि है तो वह जीवन की सच्चाई के प्रति ईमानदार रहकर अपनी कवितायें रचता है । सर्वेश्वर की कविता किसी गुट अथवा वाद मे बंधी कविता नहीं उस में व्यापक मानवता के दर्शन होते हैं । नए साल पर कविता मे आप लिखते हैं -
नये साल की शुभकामनाएं!
खेतों की मेड़ों पर धूल-भरे पांव को,
कुहरे में लिपटे उस छोटे-से गांव को,
नए साल की शुभकामनाएं!
इसी प्रकार चुपाई मारो दुल्हिन कविता मे निर्धन की विवशता प्रकट करते हुए लिखते हैं -
चुपाई मारों दुल्हिन
मारा जाई कौआ !
दे रोटी ?
कहाँ गयी थे सवेरे
कर चोटी ;
लाला के बाज़ार में
मिली दुअन्नी
पर वह भी निकली खोटी ,
दिन भर सोची
बीच बाज़ार में बैठ कर रोई ,
साँझ को लौटी
दे खाली झौआ .
चुपाई मारो दुलहिन
मारा जाई कौआ . "
इस प्रकार कवि खेतों मे काम करते हुए किसान को ,कुहरे मे लिपटे गाँव को , लोक गीत को ,बैल को ,करघे को ,कोल्हू ,जाल को ,पकती रोटी को ,शोर को ,जंगल को , हर नन्ही याद को ,हर नए फूल को अपनी शुभकामनायें नए साल मे देते हैं ।
लोकधुनों मे रोमांटिक गीत
जन जीवन से जुडने की ललक उन्हे लोकधुनों को अपनाने को विवश कर देती है । जीवन के सरस एवं आनंदमय क्षणों को वे कविता मे बांध कर लिखते हैं -
यह डूबी डूबी सांझ उदासी का आलम‚
मैं बहुत अनमनी चले नहीं जाना बालम!
ड्योढ़ी पर पहले दीप जलाने दो मुझ को‚
तुलसी जी की आरती सजाने दो मुझ को‚
मंदिर में घण्टे‚ शंख और घड़ियाल बजे‚
पूजा की सांझ संझौती गाने दो मुझको‚
आस्था के कवि
सर्वेश्वर की कविता मे व्यापक जीवन की अभिव्यक्ति के साथ - साथ मानव भविष्य मे आस्था भी व्यक्त है । आत्म - पीड़ा के साक्षात्कार द्वारा ये जीवन की महानता को छू लेना चाहते हैं । पराजय और घुटन की अनुभूतियाँ इन्हे टूटने अथवा निराश होने के अपेक्षा समर्पणशील और गतिशील होने की प्रेरणा देती है । इस भाव की व्यंजना 'आज पहली बार ' कविता मे देते हुए आप लिखते हैं कि -
सुनो, मैं भी पराजित हूँ
सुनो, मैं भी बहुत भटकी हूँ
सुनो, मेरा भी नहीं कोई
सुनो, मैं भी कहीं अटकी हूँ
पर न जाने क्यों
पराजय नें मुझे शीतल किया
और हर भटकाव ने गति दी;
नहीं कोई था
इसी से सब हो गए मेरे
मैं स्वयं को बाँटती ही फिरी
किसी ने मुझको नहीं यति दी
प्रकृति चित्रण मे नवीनता
सर्वेश्वर की कविता मे प्रकृति चित्रण का नया रूप दिखाई पड़ता है । अप्रस्तुतों के आयोजन और बिम्ब रचना की दृष्टि से भोर शीर्षक रचना दृष्टव्य है । प्रकृति चित्रण द्विवेदी युगीन कवियों ने किया है और छायावादीओं ने भी ,लेकिन आज नए कवि की रचना प्रणाली उन सबसे भिन्न है । उसे न तो कोरी इतिवृत्तित्मकता प्रिय है और न ही जटिल लक्षिणकता । प्रकृति का मोहक चित्र भोर कविता मे देखिये -
सलमे सितारों की कामवाली
नीली मखमल का खोल चढ़ा
अम्बर का बड़ा सिंधोरा
धरती पर ,
नदियों के जल में ,
गिरि - तरु के शिखरों से ढर - ढर कर
सब सेंदूर फैल गया ।
सर्वेश्वर की कविता मे कहीं पर भोर लजाती हुई हथेलियों से मुँह छुपाए चली जाती है तो कहीं सूखा पीला पत्ता कार के पीछे दौड़ता हुआ कहता है -
हम में भी गति है -
सुनों , हम मे भी जीवन है ,
रुकों ,रुकों हम भी
साथ चलते हैं ,
हम भी प्रगतिशील हैं ।
कहीं पर थकी हारी पवन मे कवि को अपने मनोभाव दिखाई पड़ते हैं ।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भाषा शैली
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की काव्य भाषा बोलचाल की है । अतिशय अलंकृत अथवा असाधारण भाषा का प्रयोग इनहोने नहीं के बराबर किया है ,किन्तु इसे काव्य की विशेषता माना जा सकता है ,कमजोरी नहीं । बड़े - बड़े शब्दों और अलंकारों का ठाठ बाँधकर चमत्कार उत्पन्न करना सरल कार्य है ,किन्तु सीधी - सादी भाषा मे बड़ी बात कहना और मर्म को छू लेना मुश्किल होता है । सर्वेश्वर जी ने यही मुश्किल रास्ता चुना ।
सर्वेश्वर जी की कविता मे रूप या शिल्प की अपेक्षा कथ्य पर सर्वत्र अधिक बल दिया गया है । उनकी अभिव्यक्तियाँ प्रायः सहज होती है । इस दृष्टि से इनकी कविता कभी कभी एकदम सीधे और सपाट हो जाते हैं और तब इनकी कृतियाँ गद्यात्मक प्रतीत होने लगती है । उनकी कविता खाली - समय मे गद्य के निकट पहुँच गयी है ।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की कविता कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है ।
Ishwar dayal saksena athva sumitranandan pant ke wow Soundary ki do visheshtaen likhiye
जवाब देंहटाएंSarveshwar Dayal Saxena original
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