स्वर्ण मरीचिका कहानी का सारांश प्रश्न उत्तर Swarn Marichika moral stories in hindi शब्दार्थ समय का महत्व स्वर्ण मरीचिका के लेखक लोककथा शैली महात्मा
स्वर्ण मरीचिका विजयदान देथा
स्वर्ण मरीचिका स्वर्ण मरीचिका के लेखक Swarn Marichika moral stories in hindi स्वर्ण मरीचिका कहानी का सारांश स्वर्ण मरीचिका पाठ के प्रश्न उत्तर विजयदान देथा स्वर्ण मरीचिका पाठ के शब्दार्थ
स्वर्ण मरीचिका कहानी का सारांश
प्रस्तुत पाठ या कहानी स्वर्ण मरीचिका , प्रसिद्ध कथाकार विजयदान देथा जी द्वारा रचित है। यह कहानी हमें समय का महत्व बताने के साथ-साथ लोभ-लालच त्यागने के लिए प्रेरित करती है । लोककथा शैली में रचित इस कहानी में मनुष्य के लोभ-लालच को अनूठे ढंग से अभिव्यक्त किया गया है। प्रस्तुत पाठ के अनुसार, जब एक बहुत पहुँचे हुए संत या महात्मा ने एक गाँव में धूनी जगाई तो उसके दर्शन के लिए अर्थात् उसे देखने के लिए सारा इलाका इकठ्ठा हो गया। इसी भीड़ में एक भक्त निराला निकला। बिना कुछ मांगे या बोले वह आते ही हाथ जोड़कर एक पांव पर खड़ा हो गया और पखवाड़े तक बूत की तरह खड़ा रहा। उसपर महात्मा ने खुश होकर बोला – बच्चा तेरी भक्ति से मैं बहुत प्रसन्न हुआ, बोल तेरी क्या कामना है, मोक्ष पाना चाहता है या जीते जी स्वर्ग जाना चाहता है ? उस भक्त ने महात्मा के चरणों में शीश नवाकर कहा – मुझे न स्वर्ग चाहिए और न मोक्ष, हम दुनियादारों के लिए स्वर्ग-नरक यहीं है, हाथ में खूब सारा पैसा हो तो यह दुनिया स्वर्ग से भी बढ़कर है, मैं इसी जनम में जीने का मजा लूटना चाहता हूँ, बेशुमार सोने की कामना है, पूरी करें।
सुनकर महात्मा को धक्का लगा, पर वे अपने वचन से मुकर नहीं सकते थे।फिर उन्होंने भक्त से पूछा – पगले, ऐसी भक्ति से तो भगवान भी वश में हो जाते हैं, इसलिए थोड़े से सोने के लिए क्यों अपनी भक्ति बेकार गवाँ रहा है ? तभी भक्त ने महात्मा से कहा – मैं सारी ज़िंदगी मेहनत करके भी बहुत सारा सोना हासिल नहीं कर सकता, पर सोने के पहाड़ हाथ लगे तो मैं हजार बरसों तक केवल अंगुलियों पर खड़ा रह सकता हूँ। तत्पश्चात्, महात्मा ने जटा से पारस निकाला और बोले – वचनों से बंधा हूँ, तेरी कामना पूरी करनी ही पड़ेगी। तूने एक पखवाड़े तक तपस्या की, सो तुझे एक पखवाड़े का समय देता हूँ, यह पारस है, इसके परस से लोहा सोना बन जाता है। पर एक बार से अधिक तू इसे काम में नहीं ले सकेगा। जितना लोहा इकठ्ठा कर सकते हो, कर लेना, इसे दूसरी बार काम में लिया तो पहले बना सोना भी मिट्टी हो जाएगा। तभी महात्मा ने भक्त को पारस देते हुए चेतावनी दी कि – पखवाड़ा बीतते ही मैं पारस लेने के लिए आ जाऊंगा। एक पल भी और नहीं मिलेगा।
पारस हाथ लगते ही वह भक्त भागकर अपने घर आ गया। अफ़सोस जताने लगा कि आज घर में ज्यादा लोहा ही नहीं है। जबकि उसकी बूढ़ी माँ ने उसे समझाया कि बेटे घर का लोहा ही काफी है। तू अपार लोहे का लालच मत कर। हाथ आए पारस को अभी ही इस्तेमाल कर ले तो अच्छा है। तभी बूढ़ा बाप ख़ुशी से उछल पड़ा और कहा – तुम लोग बिलकुल गधे हो। झोंपड़ी में दो कुल्हाड़ियाँ, हथौड़ा, हल का फाल, हंसिया, दो फावड़े, तीन कुदालियाँ और दो ह्लबानियाँ पड़ी हैं। इतना सोना होने पर तो हम हमेशा सोने के गुलगुले खाएँ तो भी ख़त्म न हो। हालांकि भक्त को महात्मा की बात पर पूरा यकीन था, पर वह घरवालों की तरह बावला नहीं था। एक बार आजमाने के बाद पारस बेकार हो जाएगा। उसने पारस को अंटी खोंस लिया। तत्पश्चात भक्त एक बनिए की दुकान पर गया। उसने बनिए को समझाकर उसमें उसका आधा हिस्सा होने की बात कही। तभी बनिए ने फ़ौरन अपने मुनीम को शहर से इक्कीस गाड़ी लोहा लाने के लिए रवाना कर दिया। भगत का मन इतने में भी नहीं भरा तो सेठ ने उसे समझाया – वरदान फल गया तो ये इक्कीस गाड़ियाँ ही बीस पीढ़ियाँ तक बहुत हैं। कहीं तो आदमी को संतोष करना चाहिए।
पखवाड़े के आखिरी दिन जैसे सबके सर में ज्वार आ गया। खुद उसकी हालत खस्ता हो गई। अगर गाड़ियों के भरोसे वह पारस धरा-का-धरा रह गया तो सारे स्वप्न ढह जाएँगे। बनिए ने भक्त को संबोधित करते हुए पागलपन में बोल उठा – कितना पैसा इन इक्कीस गाड़ियों में डूब गया। इस लोहे से क्या अपना सर फोडूंगा ? कुछ अनहोनी हो गई लगती है ? गाड़ियाँ शायद वक्त पर न आ सकें। इन्हें भूलकर पास के लोहे को तो सोना बना लें। तुम्हें यह कम लगता है क्या ? मुझ पर भरोसा रखो। मैं कारोबार से इस सोने को हजार गुना कर लूँगा। देखो, वक़्त निकला जा रहा है। ऐसा मौका बार-बार नहीं आता। आखिरकार, इसी सोच-विचार में पखवाड़े का अंतिम क्षण भी बीत गया। भक्त संत के पांव पकड़कर बहुत विनती करने लगा। थोड़ी मोहलत और मांगने लगा, पर संत ने उसकी एक न सुनी। महात्मा ने भक्त को समय का महत्त्व बताया, अब समय हाथ से निकल जाने पर पछतावा निरर्थक है। समय बीत गया है। समय अनमोल है, जो तुमने यों ही गँवा दिया...।
स्वर्ण मरीचिका पाठ के प्रश्न उत्तर
अभ्यास-प्रश्न
बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न-1 – स्वर्ण का क्या अर्थ होता है ?
उत्तर- सोना
प्रश्न-2 – यह कहानी किस चीज़ का महत्त्व बताती है ?
उत्तर- समय
प्रश्न-3 – किसके दरसनों के लिए सारा इलाका उमड़ पड़ा ?
उत्तर- संत
प्रश्न-4 – भगत को किस चीज़ की कामना थी ?
उत्तर- स्वर्ण की
प्रश्न-5 – संत ने भगत को क्या दिया ?
उत्तर- पारस
प्रश्नोत्तर
प्रश्न-1 – यह कहानी किस शैली में रचित है ?
उत्तर- यह कहानी लोककथा शैली में रचित है।
प्रश्न-2 – इस कहानी के माध्यम से क्या सन्देश दिया गया है ?
उत्तर- इस कहानी के माध्यम से समय के सदुपयोग का सन्देश दिया गया है।
प्रश्न-3 – महात्मा किस बात से प्रसन्न हो गए और भगत से क्या बोले ?
उत्तर- जब भगत ने हाथ जोड़कर एक पांव पर खड़ा होकर पूरा एक पखवाड़ा बिता दिया, तो महात्मा उससे प्रसन्न होकर बोले – बच्चा तेरी भक्ति से मैं बहुत प्रसन्न हुआ, तुझे जो माँगना है माँग।
प्रश्न-4 – महात्मा और भगत की सोच में क्या अंतर था ?
उत्तर- महात्मा समय और वादे के पक्के थे, लेकिन भगत एक लालची व्यक्ति था, जिसे समय के मूल्य का पहचान नहीं था।
प्रश्न-5 – भगत ने स्वर्ग या मोक्ष की अपेक्षा किसको अधिक महत्त्व दिया ? इससे उसकी किस प्रवृत्ति का पता चलता है ?
उत्तर- भगत ने स्वर्ग या मोक्ष की अपेक्षा स्वर्णों को अधिक महत्त्व दिया। इससे उसकी लालची प्रवृत्ति का पता चलता है।
प्रश्न-6 – भगत की पत्नी क्या चाहती थी ?
उत्तर- भगत की पत्नी चाहती थी कि भगत उस पारस को कम से कम तवे पर ही इस्तेमाल कर ले। पता तो चले, सोना बनता भी है कि नहीं। वह तवे को एक बड़ा चन्द्रहार के रूप में देखना चाहती थी।
प्रश्न-7 – बूढ़े बाप ने लोहे की किन अन्य चीजों की ओर ध्यान दिलाया ?
उत्तर- बूढ़े बाप ने लोहे की दो कुल्हाड़ी, हथौड़ा, हल का फाल, हंसिया, दो फावड़े, तीन कुदालियाँ और दो हलबानियाँ के ओर ध्यान दिलाया।
भाषा संरचना
प्रश्न-1 – बहुवचन रूप लिखिए –
कुल्हाड़ी – कुल्हाड़ियाँ
कुदाली – कुदालियाँ
हलबानी – हलबानियाँ
कड़ाही – कड़ाहियाँ
साँकल – साँकलें
हथौड़ा – हथौड़े
चिमटा – चिमटे
संडासी – संडासियां
कैंची – कैंचियाँ
कुंडी – कुंडियां
प्रश्न-2 – क्रिया विशेषण –
जो शब्द क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, उन्हें क्रिया-विशेषण कहते हैं। जैसे – तेज़ दौड़ो, कम खाओ ⃒
निम्नलिखित वाक्यों में आए क्रिया-विशेषणों के नीचे रेखा खींचो –
उत्तर-
वह बेतहाशा भागा।
वह सीधा खड़ा रहा।
मैं ख़ूब जीना चाहता हूँ।
तुम एक पखवाड़े बाद आना।
तुम बाहर खड़े रहो।
प्रश्न-3 – उदाहरण पढ़ो, समझो और वाक्य परिवर्तित करो –
उदाहरण – उसे संत की बात पर पूरा यकीन था।
वह संत की बात पर पूरा यकीन करता था।
उत्तर-
मुझे तुम्हारी बात पर पूरा भरोसा है।
मैं तुम्हारी बात पर पूरा भरोसा करता हूँ।
हमको इस स्कूल पर विश्वास नहीं है ?
हम इस स्कूल पर विश्वास नहीं करते हैं।
स्वर्ण मरीचिका पाठ के शब्दार्थ
दरसन – दर्शन
गिरस्ती – गृहस्थ
ताकीद – हिदायत, चेतावनी
हाथ मलना – पछताना
अदीठ – नज़र से दूर, गायब
मोक्ष – मुक्ति
बेशुमार – बहुत अधिक
फ़क़त – सिर्फ, केवल
परस – स्पर्श
बरतना – प्रयोग में लाना
निरर्थक – अर्थहीन, व्यर्थ
इल्म – ज्ञान ।
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