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साइकिल की सवारी कहानी - सुदर्शन
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साइकिल की सवारी कहानी का सारांश
साइकिल की सवारी, सुदर्शन जी द्वारा लिखी गयी प्रसिद्ध कहानी है। प्रस्तुत पाठ में अपने लड़के की साइकिल चलाने की कुशलता देखकर लेखक के मन में साइकिल सीखने की धुन सवार हुई। उसने अपनी पत्नी से फटे - पुराने कपड़े तलाश करके ठीक करने के लिए कहा ताकि अगर साइकिल चलाते - चलाते गिर पड़े तो उन्ही कपड़ों को नुकशान पहुंचे। लेखक ने बजार जाकर चोट पर लगाने के लिए जम्बक के दो डिब्बे ख़रीदे ताकि चोट लगने पर झट से लगा दी जाए। साइकिल सवारी का अभ्यास करने के लिए एक खुले मैदान की तलाश की। लेखक ने अपने एक मित्र तिवारी को इस काम के लिए एक आदमी तैयार करने को कहा जो उसे साइकिल चलाना सिखा दे। वह उसे बीस रुपये देने को भी तैयार हो गया। लेखक के मित्र तिवारी ने पहले तो उसे मना किया कि वह इस उम्र में यह रोग न पाले लेकिन लेखक न माना। इसके बाद लेखक को साइकिल सिखाने के लिए उसके मित्र ने एक आदमी तैयार किया।
लेखक ने आठ - नौ दिन में साइकिल चलाना तो सीख लिया लेकिन उस पर चढ़ना नहीं आया। लेखक को अब सोते - जागते साइकिल पर चढ़ने के ही सपने दीखते। एक दिन लेखक ने साइकिल मंगवाई और चलाना शुरू किया और दूर से ही लोगों को बायीं ओर हटने को कहने लगा क्योंकि उसे डर था कि कहीं किसी से टकरा न जाए। तभी उसे तिवारी जी ने आवाज लगायी। उतरना न आने की वजह से लेखक सामने से आते हुए टाँगे के नीचे आ गया और बेहोश हो गया। जब होश आया तब वे अपने घर में थे। शरीर पर कितनी ही पट्टियाँ बंधी थी। पत्नी के पूछने पर उन्होंने तिवारी जी का कसूर निकाल दिया और कहा की ये सब तिवारी की ही शरारत है। पत्नी ने कहा मुझे सब मालूम है। चकमा तो उसे दो जिसे कुछ मालूम न हो। उसकी पत्नी ने कहा कि मैं उसी तांगे में थी जिससे तुम टकराए थे। मैं बच्चों को लेकर घूमने निकली थी कि सैर भी कर आयेंगे और तुम्हे साइकिल चलाते भी देख आयेंगे। लेखक को बहुत लज्जा आई। उस दिन के बाद लेखक ने कभी साइकिल को हाथ नहीं लगाया।
साइकिल की सवारी के प्रश्न उत्तर
प्र. लेखक को साइकिल चलाना सीखने की धुन क्यों सवार हुई और उन्होंने क्या निश्चय किया ?
उ. लेखक ने अपने लड़के और अन्य दुसरे लोगों को साइकिल चलाते देखा तो उसके मन में भी साइकिल चलाना सीखने की धुन सवार हुई और उन्होंने निश्चय किया कि चाहे जो हो जाए ,परवाह नहीं। वह साइकिल चलाना अवश्य सीखेगा।
प्र. लेखक साइकिल चलाना सीखने की बात किसी को क्यों नहीं बताना चाहते थे ? मगर पत्नी को यह रहस्य क्यों बताना पड़ा ?
उ. लेखक यह बात किसी को इसीलिए नहीं बताना चाहते थे कि लोग शायद उनकी आयु देखकर मज़ाक न उडाये। मगर पत्नी को यह रहस्य इसीलिए बताना पड़ा क्योंकि उनसे फटे हुए कपड़ों की मरम्मत करवानी थी।
उ. साइकिल चलाना सीखने से पहले लेखक ने अपने फटे हुए कपड़ों की मरम्मत करवा ली। जम्बक के दो डिब्बे खरीद लिए और खुले मैदान की तलाश की।
प्र. तिवारी कौन था और लेखक के अनुसार वह कैसा व्यक्ति था ?
उ. तिवारी लेखक का मित्र था। लेखक के अनुसार वह अधिक आदमी नहीं था क्योंकि जब लेखक ने तिवारी से साइकिल चलाने की बात की तब लेखक को ऐसा लगा कि वह ईर्ष्या की आग में फूँका जा रहा था।
प्र. साइकिल चलाना सीखने से पहले लेखक को कौन कौन से सपने आ रहे थे ?
उ. साइकिल चलाना सीखने से पहले लेखक ने स्वप्न में देखा कि वह साइकिल से गिर कर जख्मी हो गए हैं। दूसरी बार देखा कि हम साइकिल पर सवार हैं। साइकिल हवा में चल रही है और लोग उसकी तरफ आँखें फाड़ - फाड़ कर देख रहे हैं।
प्र. साइकिल चलाना सीखने से पहले और दूसरे दिन लेखक के साथ कौन सी घटना घटी ?
उ. साइकिल चलाना सीखने से पहले दिन जब लेखक घर से निकले ही थी तो बिल्ली से रास्ता काटा ,लड़के ने छींक दिया। बाज़ार में लोग मुस्करा रहे थे। घबराहट में उन्होंने कपड़े गलती से पहन लिए थे। पहला दिन मुफ्त में ही गया। दूसरे दिन साइकिल लेखक के पाँव पर लग गया और उनके पाँव पर जख्म हो गया तो लेखक ने पाँव पर जम्बक लगायी और लंगडाते हुए घर आ गए।
प्र. साइकिल चलाते - चलाते उनकी टक्कर किससे हुई और उसका क्या परिणाम निकला ?
उ. साइकिल चलाते - चलाते उनकी टक्कर तांगे से हुई। साइकिल तांगे के नीचे आ गयी और लेखक बेहोश हो गए। लेखक के पट्टियाँ बंध गयी और उन्होंने इसका सारा इल्जाम तिवारी पर लगा कर फिर कभी साइकिल को हाथ न लगाने की कसम खायी।
प्र. लेखक की कौन सी तीव्र इच्छा मन ही मन में रह गयी ?
उ. लेखक की साइकिल चलाना सीखने की तीव्र इच्छा मन ही मन में रह गयी।
साइकिल की सवारी कहानी के शब्द अर्थ
धारणा - विचार
दृष्टि - नजर
अभ्यास - प्रयत्न
ईर्ष्या - नफरत
नामुराद - मनहूस
गंभीर - नाजुक
सहानुभूति - हमदर्दी
साहस - हौंसला
Nice story
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