हिंदी भावनात्मक रूप से फ्रांसीसी के करीब है, हिंदी और फ्रांसीसी में बोलने वाले लोग बेशक अलग अलग रूपकों का प्रयोग करते हैं, पर वे समान बातें कहते हैं।
जया गंगा का हिंदी अनुवाद राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित
भारत में फ्रांस के राजदूत श्री इमैनुएल लेनैन ने किया लोकार्पण
·विजय सिंह फ्रांस के सच्चे मित्र हैं,एक लेखक, फिल्म निर्देशक और पत्रकार के रूप में अपने करियर के माध्यम से, उन्होंने हमारे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों में एक प्रमुख भूमिका निभाई है- इमैनुएल लेनैन
·हिंदी भावनात्मक रूप से फ्रांसीसी के करीब है,हिंदी और फ्रांसीसी में बोलने वाले लोग बेशक अलग अलग रूपकों का प्रयोग करते हैं, पर वे समान बातें कहते हैं -- विजय सिंह
नई दिल्ली: मशहूर लेखक विजय सिंह के उपन्यास 'जया गंगा' के हिन्दी अनुवाद का विमोचन फ्रांस के नई दिल्ली स्थित दूतावास में बुधवार शाम हुआ। यह अनुवाद राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया है,इस कार्यक्रम में जया गंगा के अंग्रेजी पुनर्मुद्रण को भी जारी किया गया जिसे रूपा पब्लिकेशंस ने प्रकाशित किया है।
जया गंगा के हिन्दी अनुवाद का लोकार्पण फ्रांस के राजदूत इमैनुएल लेनैन, राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी, रूपा पब्लिकेशंस में उप प्रबंध संपादक, निष्ठा कपिल और इसके लेखक विजय सिंह ने किया। इस उपन्यास का हिंदी अनुवाद सुपरिचित हिंदी कवि लेखक मंगलेश डबराल ने किया है, जो अब दिवंगत हो चुके हैं।
इस उपन्यास को विजय सिंह खुद एक फिल्म में रूपांतरित कर चुके हैं, जिसे दुनिया के करीब 40 देशों में प्रदर्शित किया जा चुका है। यह फिल्म पेरिस और यूके के सिनेमाघरों में रिकॉर्ड 49 सप्ताह तक चली,कार्यक्रम में इस फिल्म का ट्रेलर दिखाया गया।
यह उपन्यास पेरिस में रहने वाले एक युवा भारतीय की गंगा यात्रा के बारे में है जो उसकी आत्मानुसंधान की यात्रा भी है।
कार्यक्रम की शुरुआत फ्रांस के राजदूत इमैनुएल लेनैन के विजय सिंह को बधाई देने से हुई,राजदूत ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया और भारत और फ्रांस तथा उनके अच्छे साहित्यिक रिश्तों की चर्चा की।
इस अवसर पर श्री लेनैन ने कहा, मुझे जया गंगा के हिंदी अनुवाद और अंग्रेजी पुनर्मुद्रण के लोकार्पण की मेजबानी करते हुए खुशी हो रही है,मुझे गर्व है कि भारत में फ्रांसीसी संस्थान इस प्रयास का समर्थन कर सकता है।
उन्होंने कहा, विजय सिंह फ्रांस के सच्चे दोस्त हैं,एक लेखक, फिल्म निर्देशक और पत्रकार के रूप में अपने करियर के माध्यम से उन्होंने हमारे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों में प्रमुख भूमिका निभाई है। फ्रांस और भारत असाधारण साहित्यिक परंपराओं वाले दो राष्ट्र हैं और हम अपने लेखकों, प्रकाशकों और पाठकों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने के इच्छुक हैं। मुझे अगले साल होने वाले नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले का इंतज़ार है जिसमें फ्रांस सम्मानित अतिथि होगा।
राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, महात्मा गांधी और रोमां रोला को हमें इस अवसर पर याद करना चाहिए, फ्रांस का दूतावास और कल्चरल सेंटर दोनों देशों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। पुस्तकों का प्रकाशन इस का एक बड़ा हिस्सा है,अभी फ्रेंच से बहुत सी किताबें हिंदी और भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होती हैं। हिंदी से फ्रेंच में प्रकाशित होने वाली किताबों की गिनती बहुत कम है,इसे बढ़ाने की जरूरत है, फ्रेंच से भी साहित्य का अनुवाद बहुत होता है, मानविकी की पुस्तकों का भी अनुवाद होना चाहिए। भारत पर बहुत सी किताबें वहां लिखी गई हैं, भारतीय इतिहास भारतीय राजनीति दर्शन बहुत से ऐसे विषय हैं जिन पर किताबें वहां लिखी गई हैं। उनके अनुवाद भी हिंदी में आने चाहिएं। इस वर्ष हमारे विश्व पुस्तक मेले में फ्रांस गेस्ट आफ ऑनर देश है,हम इस से प्रसन्न हैं। फ्रेंच लेखकों और प्रकाशकों का प्रतिनिधिमंडल इस अवसर पर आएगा, हम उनसे बैक टू बैक बात करना चाहेंगे, शायद आगे बढ़ने के रास्ते और खुलें।
इसके बाद पत्रकार अंजिली इस्तवाल ने विजय सिंह का इंटरव्यू लिया,अंजलि ने जया गंगा उपन्यास और फिल्म की कहानियों में कुछ अंतर को लेकर सवाल किया जिस पर विजय सिंह ने कहा, इस सवाल का सबसे अच्छा जवाब सैन फ्रांसिस्को में एक युवा महिला ने एक स्क्रीनिंग में दिया था,उन्होंने कहा कि यह किताब और यह फिल्म समाप्त होने पर आपको समान भावना के साथ छोड़ते हैं।
लेखक विजय सिंह ने कहा, हिंदी भावनात्मक रूप से फ्रांसीसी के करीब है, हिंदी और फ्रांसीसी में बोलने वाले लोग बेशक अलग अलग रूपकों का प्रयोग करते हैं, पर वे समान बातें कहते हैं। उन्होंने मंगलेश डबराल का जिक्र करते हुए कहा, दिवंगत कवि ने मुझे जो आखिरी बातें बताईं उनमें से एक थी जया गंगा के हिन्दी अनुवाद के प्रकाशन को लेकर उनका भरोसा, डबराल जी ने कहा था कि हिंदी में प्रकाशन को लेकर चिंता न करें, वह मैं संभाल लूँगा अपने उपन्यास के बारे में आगे उन्होंने कहा कि उपन्यास साढ़े सात सप्ताह में लिखा गया था और यह अनायास ही लिखा गया था। गंगा यात्रा एक कठिन यात्रा थी, नदी में अधिकांश भागों में बहुत कम पानी था, नावें नहीं थीं, और संबद्ध इलाकों में अपराध की समस्या थी, श्री सिंह ने कहा, मेरे कार्यों का प्रयास अतियथार्थवाद और आध्यात्मिकता को एक साथ लाना है।
कार्यक्रम के अंत में श्री इमैनुएल लेनैन, श्री विजय सिंह और प्रकाशकों ने कार्यक्रम में उपस्थित सम्मानित और विद्वान दर्शकों के साथ संवाद किया और हिन्दी व फ्रांसीसी भाषाओं के लिए अपने प्यार का इजहार किया।
आभार ,
संतोष कुमार
M -9990937676
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